अगर खुदा न करे… -4

(Agar Khuda Na Kare-4)

लीलाधर 2015-11-15 Comments

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सुषमा के थोड़ी ही देर के उस चुम्बन ने जतला दिया कि वह बिस्तर पर कितनी गरम औरत साबित होगी, दम-खम की पूरी परीक्षा होगी।
सुषमा ने मेरा ध्यान खींचा – वह एक छोटी-सी बाधा, जो प्रकाश की विनम्र कोशिशों से जाने का नाम नहीं ले रही थी। पैंटी। औरत के संकोच का एक कोना हमेशा बचा रहता है – शायद पूर्ण संभोग के बाद भी।

प्रकाश पैंटी को हटाने की संकोच सहित कोशिश कर रहा था, अंजलि अपने पाँव कसे थी, वह बेचारा उसे कमर से भी ठीक से खिसका नहीं पाया था। अंजलि उसके हाथ पकड़ ले रही थी या पैरों से ठेल दे रही थी।
सुषमा को अपने पति की असफलता बुरी लग रही थी।

यहाँ मेरी जरूरत थी, मुझे मालूम था कि क्या करना है। मैंने अंजलि का हाथ खींचकर कंधों से ऊपर कर दिया और उस ‘बाधा’ के अंदर हाथ घुसा दिया।
यह मेरे होंठों और उंगलियों की सबसे प्रिय जगह थी। चिकने गीलेपन ने हाथों को अंदर आसानी से घूमने की सुविधा दे दी और मैं ‘दरवाजे’ के अंदर घुसने के साथ साथ ऊपर की ‘कुंडी’ भी खटखटाने लगा।

अंजलि बचने के लिए कमर हिलाने लगी मगर घूमती हुई कमर ने और पैंटी को हर तरफ से नीचे खिसकाने की सुविधा दे दी। मेरे सहयोग का बल पाकर प्रकाश ने उसकी एड़ियों को अपनी एक बाँह में जकड़ा और सुषमा की मदद से पैंटी को भगों के उभार पर से और नितम्बों से खिसका दिया।
मैंने योनि के अंदर घुसी उंगलियों की हरकत बढ़ा दी, अंजलि के पैर जरा से अलग हुए और पैंटी आजाद हो गई।
मैंने हाथ बाहर निकाल लिया, योनि के रस की एक गंध एकबारगी हवा में तैर गई।
अंजलि ने पुनः पाँव कस लिए।

मैंने गीली उंगलियों को थोड़ा सा अंजलि के होंठों पर पोंछ दिया। हिचकते हुए मैंने उन्हें सुषमा की ओर बढ़ाया तो उसने जीभ बढ़ाकर चख लिया।
मुझे अच्छा लगा, हम दोनों मिलकर इसकी योनि भी चूसेंगे, मैंने सोचा, पर एक ही समय क्या क्या करेंगे।

प्रकाश ने दोनों हाथों में अंजलि की एक एक एड़ी पकड़ी और जोर लगाकर लकड़हारा जैसे लकड़ी चीरता है वैसे ही अंजलि के पाँव झटके से फैला दिए। भगों की विभाजक रेखा नितम्बों को फाड़ती गुदा को दिखाती ठहाके की तरह खुल गई।

अंजलि ने शर्म से भरकर पाँव खींच लिए मगर तब तक प्रकाश उनके बीच घुस चुका था। उसने झुककर उसकी योनि पर मुँह लगा दिया।
मैंने और सुषमा ने अंजलि के पैरों को अलगाकर उसकी सहायता की।
अंजलि हैरानी की सीमा से भी कहीं बहुत ऊपर जा चुकी थी। हैरान तो कुछ मैं भी था – यह प्रकाश तो मौखिक रति का बड़ा प्रेमी निकला!
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मैंने सुषमा की ओर मुस्कुराते हुए भौंहे उचकाईं।
सुषमा थोड़ा गर्व से हँसी – हम झूठ नहीं कहते थे। प्रकाश पूरे लगाव से अंजलि की योनि को चूम और चूस रहा था। उसकी दीवानगी देखकर मुझे गर्व हो रहा था अंजलि पर।
मैं अंजलि के स्तनों को हौले-हौले ही सहला रहा था ताकि वह योनिप्रदेश से मिल रहे आनन्द पर ज्यादा ध्यान लगा सके।
सुषमा उसकी जाँघों को, पेट को, शरीर के अन्य हिस्सों को सहला रही थी।

सचमुच यह अंजलि का यादगार अनुभव होगा! वह इतनी चंचल हो रही थी कि प्रकाश को सुविधा देने के लिए हमें उसे पकड़ना पड़ रहा था। वह जोर जोर से सीत्कार भर रही थी और हमें चिंता हो रही थी कि आवाज कहीं बाहर न चली जाए।
सुषमा उसकी उग्रता से चकित थी, कभी कभी तो अंजलि छटपटा-सी जाती। जिस समय प्रकाश की जीभ की अंदर भगनासा पर गुदगुदी करती, वह सहन नहीं कर पाती, वह उसका सिर हटा देती।
प्रकाश रुक कर फिर शुरू करता।

मैंने काम देवता को धन्यवाद दिया, उनकी पूरी मेहरबानी अंजलि पर हो रही थी, अंजलि आहें भर भरकर मानो उनकी आराधना में मंत्र-पाठ कर रही थी। प्रकाश उसे पूरे दिल से चूस रहा था।

मैं योनि और मुख के संगम के इस अनोखे दृश्य को मंत्रमुग्ध होकर देख रहा था, मुझमें तरंगें उठ रही थीं, कितनी गहरी इ्च्छा पूरी हो रही थी। कोई और स्त्री होती तो मुझ पर इतना असर न होता पर अपनी प्राण प्यारी पत्नी को इस हाल में देखना।
यह खुशी की इंतिहा थी। मुझे डर लग रहा था कहीं मेरा आधे रास्ते में ही…

मुख-सुख की अभ्यस्त अंजलि जल्दी ही स्खलित होने के कगार पर आ पहुँची। अनुभवी खिलाड़ी प्रकाश ने मुँह हटा लिया। अंजलि ने उसके मुँह से मिलने के लिए कमर उठाई तो प्रकाश ने योनि के उभार पर एक चपत जड़ दी। अवाक होकर अंजलि की हलचल बंद हो गई।
मैंने प्रकाश को देखा, वह आत्मविश्वास से भरा था।
हमने भी अपने हरकतें रोक दीं।

कुछ क्षणों बाद प्रकाश उस पर पुनः झुका और हम भी चालू हुए। पुनः अंजलि स्खलन पर पहुँचने को हुई कि वह उठ गया। वही चपत, वही अपमानजनित स्थिरता। फिर से शुरूआत।

तीसरे दौर में तो अंजलि बेकरार हो गई। वह आतुरता में कमर उठाकर प्रकाश का सिर खींचकर अपनी योनिस्थल पर लगाने लगी। हमारी पकड़ने की कोशिश को भी उसने हाथ से झटक दिया।
निर्णय का क्षण आ गया था, लोहा गरम लाल था, अब उस पर चोट की जरूरत थी।

कहानी जारी रहेगी।
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