तीन पत्ती गुलाब-21

(Teen Patti Gulab- Part 21)

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अगले दिन सुबह जब मधुर स्कूल चली गई तो गौरी नाज-ओ-अंदाज़ से चलती हुई हॉल में आ गई। उसने आँखें मटकाते हुए इशारों में पूछा- चाय या कॉफ़ी?
“गौरी मैं तुम्हारे लिए लीची और मैंगो फ्रूटी के पाउच और इम्पोर्टेड चॉकलेट लाया था वो तुमने टेस्ट की या नहीं?”
“किच्च!! तहां रखी हैं?”
“अरे फ्रिज़ में ही तो रखी हैं. आज चाय-वाय छोड़ो दोनों फ्रूटी ही पीते हैं.”
“हओ” कहते हुए गौरी रसोई में जाकर फ्रूटी और चॉकलेट ले आई।

गौरी मेरे बगल में आकर बैठ गई। आज उसने गोल गले की टी-शर्ट और इलास्टिक लगी पतली पजामी पहन रखी थी। कमर में कसी पजामी में कैद नितम्ब तो आज कुछ ज्यादा ही नखरीले लग रहे थे और जांघें तो बस कहर ही बरपा रही थी। उसके कमसिन बदन से आती अनछुए कौमार्य और परफ्यूम की मिली जुली खुशबू तो मुझे मदहोश ही किए जा रही थी।

हम दोनों फ्रूटी पीने लगे। मेरी निगाहें तो गौरी की जाँघों से हट ही नहीं रही थी। गौरी ने इसे महसूस तो जरूर कर लिया पर बोली कुछ नहीं अलबत्ता उसने अपनी जांघें और जोर से भींच ली।
“गौरी तुमने कल एक वादा किया था?”
“त्या?”
“भूल गई ना … वो … सु-सु दिखाने का?”
“ओह … वो … ?” कहते हुए गौरी एक बार फिर शर्मा गई। उसने अपनी मुंडी नीचे झुका ली।
ईईइस्स्स्स …

मैंने गौरी को अपनी बांहों में भींच लिया। गौरी थोड़ा कसमसाई तो जरूर पर उसने कोई विरोध नहीं किया।
“गौरी प्लीज … ”
“नहीं … मुझे … शल्म आ रही है।”
“आओ बैडरूम में चलते हैं.”

अब मैं खड़ा हो गया और मैंने उसे गोद में उठा लिया। इस हालत में फूलों जैसी नाजुक और कमसिन लड़कियों का भार वैसे भी ज्यादा नहीं लगता। गौरी ने अपनी आँखें बंद कर ली और अपनी बांहें मेरे गले में डाल दी।

मैं गौरी को उठाये बैडरूम में आ गया। मैंने गौरी को धीरे से पलग पर लेटा दिया। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। गौरी ने शर्माते हुए अपने दोनों हाथों से अपनी आँखें बंद कर ली। मेरा पप्पू तो बेकाबू ही होने लगा था। उसमें इतना तनाव आ गया था कि मुझे तो लगने लगा कहीं इसका सुपारा फट ही ना जाए।

“गौरी? मेरी जान?” मैंने उसे बांहों में भरकर उसके लरजते होंठों पर एक चुम्बन लेते हुए कहा।
“हम” गौरी ने आँखें बंद किये ही जवाब दिया। उसकी साँसें बहुत तेज़ चलने लगी थी। गालों पर जैसे लाली सी छा गई थी। रोमांच के कारण उसके शरीर के रोयें खड़े हो गए।
“आँखें खोलो मेरी जान?”
“किच्च … मुझे शल्म आ रही है?”
“प्लीज अब शर्म छोड़ो ये … ये टी-शर्ट उतार दो ना प्लीज …”

मैंने उसके गालों को चूमते हुए उसे थोड़ा सा सहारा दिया और फिर उसे थोड़ा उठाते हुए अपने हाथ बढ़ाकर मैं उसकी गोल गले वाली टी-शर्ट को उतारने लगा।
गौरी ने अपने हाथ ऊपर उठा दिए।

हे भगवान् … उसकी पतली कमर के ऊपर उभरा हुआ सा पेडू और उसके ऊपर गहरी नाभि … और उसके ऊपर दो कश्मीरी सेब जैसे उन्नत उरोज … उफ्फ्फ … क्या बला की खूबसूरती है … कंगूरे तो रोमांच के कारण भाले की नोक की तरह हो चले हैं। रोम विहीन गोरे रंग की कांख। अब पता नहीं उसने वैक्सिंग से बालों को हटाया है या कुदरती रूप से ही उसके बाल नहीं है।

हे लिंग देव! पतली कमर के नीचे जाँघों के बीच छुपे गौरी के उस अनमोल खजाना भी इसी तरह रोम विहीन होगा। मुझे तो डर सा लगने लगा है … उसे देखकर क्या पता मैं उसकी ताब ही ना सह पाऊँ और कहीं उसकी तपिश से पिंघल ही ना जाऊं?

गौरी फिर से लेट गई। मैंने उसके पेडू पर एक गहरा सा चुम्बन लिया और फिर अपनी जीभ को नुकीला करके उसकी नाभि पर फिराने लगा। गौरी की एक मीठी सीत्कार सी निकल गई और उसे एक झुरझुरी सी आ गई।
“सल … त्या तल लहे हो?”
“गौरी तुम बहुत खूबसूरत हो। मुझे जी भर कर तुम्हारे सौन्दर्य को देख लेने दो।”
कहते हुए मैंने कई चुम्बन उसके पेट और उरोजों पर भी ले लिए।

गौरी ने कसकर अपनी जांघें भींच ली। उसकी साँसें तेज़ होने लगी थी।
अब मैंने उसकी पजामी का इलास्टिक पकड़ा और उसे धीरे धीरे नीचे करने लगा। गौरी ने और जोर से अपनी जांघें भींच ली।
“सल … मुझे शल्म आ लही है … नहीं प्लीज … ”
“गौरी आज मुझे मत रोको … मुझे तुम्हारे इस हुस्न की दौलत को जी भर कर दीदार कर लेने दो … प्लीज …”

जब पजामी थोड़ी नीचे सरकने लगी तो गौरी ने अपने नितम्ब थोड़े से ऊपर उठा दिए … और मैंने उस पजामी को निकाल कर फेंक दिया। गौरी ने झट से अपना एक हाथ अपनी सु-सु पर रख लिया।
“गौरी! मेरी जान अब शर्मो हया का यह बंधन छोड़ो … कितने दिनों और मिन्नतों के बाद आज इस अनमोल खजाने के दर्शन हुए हैं … प्लीज …” कहते हुए मैंने उसका हाथ सु-सु पर से हटा दिया।
गौरी ने ज्यादा विरोध नहीं किया।

मेरा दिल धक-धक करने लगा था। दोनों जाँघों के बीच गुलाबी रंग के मोटे-मोटे पपोटे वाली सु-सु का चीरा तो मुश्किल से ढाई-तीन इंच का रहा होगा। और उस दरार के दोनों ओर कटार की धार की तरह पतली तीखी गहरे जामुनी रंग की दो लकीरें आपस में ऐसे चिपकी थी जैसे दो सहेलियां गले मिल रही हों। गुलाबी रंग की पुष्ट जांघें जिन पर हलकी हलकी पतली नीले रंग की शिरायें।

रोम विहीन गंजी बुर को देखते ही मेरा पप्पू तो दहाड़ें ही मारने लगा। झांट तो छोड़ो उसकी सु-सु पर तो एक रोयाँ भी नहीं था। मैं सच कहता हूँ ऐसी बुर तो केवल सिमरन की ही थी।

फूल सी खिली हुई बुर का लम्बा और एकदम चकुंदर सा सुर्ख चीरा झिलमिला रहा था। फांकों के शीर्ष पर मटर के दाने जितनी गुलाबी रंग की मदनमणि ऐसे लग रही थी जैसे किसी बया की चोंच हो। और उसके दांये पपोटे पर एक काला तिल जैसा उसकी ठोडी पर है … उफ्फ्फ …

गौरी का निर्वस्त्र शरीर मेरी आँखों के सामने पसरा पड़ा था। मुझे अपनी किस्मत पर यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह सब हकीकत है या मैं कोई सपना देख रहा हूँ।
हे भगवान् … मेरे जीवन मैं बहुत बार ऐसे मौके आये हैं जब मैंने अनछुई लड़कियों की बुर को देखा है पर यह मेरे जीवन का एक स्वर्णिम, हसीन और अनमोल नजारा था।

मेरा पप्पू तो बेकाबू सा होने लगा था। एक बार तो मन किया लोहा गर्म है हथोड़ा मार देता हूँ। गौरी ज्यादा ना नुकर नहीं करेगी मान जायेगी।

पर मैं यह सब इतना जल्दी करने के मूड में नहीं था। मैं सच कहता हूँ अगर मैं कोई 18-20 साल का लौंडा लपाड़ा होता तो कभी का इसे ठोक-बजा देता पर मैं इस मिलन को एक यादगार बनाना चाहता था लिहाज़ा मैंने कोई जल्द बाज़ी नहीं की।

अब मैंने उसकी बुर पर अपना हाथ फिराना चालू कर दिया था। एक रेशमी सा अहसास मुझे रोमांच से भरता चला गया। गौरी के शरीर में सिहरन सी दौड़ने लगी। उसका पूरा शरीर रोमांच से कांपने लगा था। अब मैंने अपने दोनों हाथों की चिमटी में उसके पपोटों को थोड़ा सा खोल दिया। हलकी सी पुट की आवाज के साथ रक्तिम चीरा खुल गया। गुलाब की पंखुड़ियों की मानिंद अंदरूनी होंठ (लीबिया-लघु भगोष्ट) कामरस में डूबे थे जैसे किसी तड़फती मछली ने पान की गिलोरी मुंह में दबा रखी हो।

फूली हुई तिकोने आकार की उसकी छोटी सी बुर जैसे गुलाब की कोई कली अभी अभी खिल कर फूल बनी है। मैं अपने आप को कैसे रोक पाता … मैंने अपने होंठ उसके रक्तिम चीरे पर लगा दिए।
ईईईईइ … गौरी की एक हलकी सी रोमांच भरी चीख निकल गई।

मैंने पहले तो उसे सूंघा और फिर एक चुम्बन उस पर ले लिया। अनछुए कौमार्य की तीखी गंद मेरे स्नायु तंत्र को सराबोर करती चली गई।
“सल … त्या तल लहे हो … छी … लुको … ” गौरी पैर पटकने लगी थी।

मैं उसके दोनों टांगों के बीच आ गया और थोड़ा सा अधलेटा होकर मैंने अपनी जीभ को नुकीला किया और गौरी की सु-सु के चीरे के बीच में फिराने लगा।
गौरी का शरीर अकड़ने लगा और उसने मेरे सिर को जोर से पकड़ कर अलग करने की नाकाम सी कोशिश की। मैंने जीभ के 3-4 लिस्कारे लगाए तो गौरी का पूरा शरीर ही रोमांच में डूबकर झटके से खाने लगा।

अब गौरी ने मेरे सिर के बालों को अपने हाथों में पकड़ लिया। मैंने उसकी बुर को पूरा अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगा।
“ईईईईईइ … सल … मैं मल जाऊंगी … सल … आह … मेला … सु सु … छ … छोड़ो … प्लीज …”
गौरी बड़बड़ाने सी लगी थी। अब वह मुझे परे हटाने की कोशिश भी नहीं कर रही थी अलबत्ता उसने मेरे सिर को अपने हाथों से जोर से भींच लिया और अपने पैर उठाकर मेरे कन्धों पर रख दिए।

मैंने अपनी जीभ को ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर फिराना चालू रखा। बीच बीच में मैं उसे पूरा मुंह में भर कर चुस्की सी लगाने लगा था। अब मैंने एक हाथ बढ़ाकर उसके एक उरोज की घुंडी को अपनी चिमटी में पकड़ लिया और उसे हौले-हौले दबाने और मसलने लगा। दूसरे हाथ से उसके नितम्बों का जायजा लिया।

आह … रेशम से मुलायम गोल खरबूजे जैसे कसे हुए नितम्ब और उनके गहरी खाई में मेरी अंगुलियाँ फिरने लगी। शायद गौरी ने कोई खुशबूदार क्रीम या तेल अपनी सु-सु और नितम्बों पर जरूर लगाया होगा। अब मेरी एक अंगुली उसकी महारानी (माफ़ करना इतने खूबसूरत और हसीना अंग को गांड जैसे लफ्ज से संबोधित कैसे किया जा सकता है) के छेद पर चली गई।

जैसे ही मैंने अपनी अंगुली उस छेद पर फिराई गौरी जोर-जोर से उछलने लगी- सल … मुझे तुछ हो लहा है … सल … मेला सु-सु … आआअह्ह्ह … ईईईईईइ!
मैं जानता था इस समय वह रोमांच के उच्चतम शिखर पर पहुँच गई है और उसका ओर्गस्म (स्खलन) होने वाला है। और किसी भी पल उसका कामरस निकल सकता है। मैंने उसकी सु-सु को पूरा मुंह में भर लिया और जोर-जोर से चूसने लगा।

गौरी के शरीर ने 3-4 झटके से खाए और फिर मीठी सीत्कारों के साथ उसकी सु-सु ने कामरस छोड़ दिया।
ईई ईईई ईईईइ …
गौरी ने एक मीठी रोमांच भरी चींख के साथ अपना काम रस मेरे मुंह में उंडेल दिया।

गौरी अब जोर-जोर से सांस लेने लगी थी और रोमांच के मारे उसका सारा बदन लरज रहा था। अब उसका शरीर थोड़ा ढीला पड़ने लगा था। उसने अपने पैर मेरी गर्दन से हटा कर सीधे कर लिए थे। उसके मुंह से मीठी सीत्कार सी निकलने लगी थी। पूर्ण संतुष्टि के बाद अब वह मेरे सिर पर अपना हाथ फिराने लगी थी।

मेरा लंड तो प्री-कम के तुपके छोड़-छोड़ कर बावला हुआ जा रहा था। अब धारा 357 हटाने का सही वक़्त आ गया था। मैंने अपने होंठ गौरी की सु-सु से हटा लिए और अपनी टी-शर्ट निकाल कर फेंक दी।

अचानक गौरी ने आँखें खोली और वह झट से उठी और फर्श पर खड़ी हो गई। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता गौरी ने मुझे हल्का सा धक्का देकर मेरे बरमूडा (घुटनों तक का निक्कर) जोर से खींचा और मेरे पप्पू को पकड़ कर गप्प से अपने मुंह में भर लिया। वह फर्श पर उकडू होकर बैठ गयी और मैं अधलेटा सा बेड पर पड़ा ही रह गया।
“ग … गौरी … ओह … रुको … प्लीज … ” मैंने हकलाते हुए से कहा।

गौरी ने मेरे नितम्बों को कसकर पकड़ लिया और जोर-जोर से मेरे पप्पू को चूसने लगी। उसने इशारे से मुझे हिलाने का मना कर दिया।

एक बात तो आप भी जानते हैं किसी भी पुरुष के लिए अपना लिंग चुसवाना एक दिवास्वप्न की तरह होता है। विशेषकर 35-40 की उम्र के बाद तो पुरुष की तीव्रतम इच्छा होती है कि उसके पत्नी या साथी सम्भोग से पहले उसका लंड जरूर चूसे।

नर अपना वीर्य मादा की कोख में ही डालना पसन्द करता है। मेरा मन तो इस बार वीर्य को गौरी के उदर में नहीं गर्भाशय में उंडेलने का था पर गौरी ने मेरे लंड को इतना जोर से पकड़ रखा था और जल्दी-जल्दी चूस रही थी कि मैं असमंजस में ही पड़ा रहा गया कि इसकी सु-सु में लंड डालूँ या मुंह में ही निकल जाने दूं।

जिस तरह आज गौरी मेरे पप्पू को चूस रही थी लगता है उसे लंड चूसने का बहुत बड़ा अनुभव हो गया है।

अब मैं धीरे-धीरे उठ कर खड़ा हो गया। मैंने उसका सिर अपने हाथों में पकड़ लिया और अपने लंड को उसके मुंह में आगे पीछे करने लगा। मेरा लंड अब पूरा उसके हलक तक जा रहा था।
“गौरी मेरी जान अब चूसना बंद करो … आओ … तुम्हें प्रेम का अगला पाठ तुम्हें पढ़ा दूं … प्लीज गौरी …”
गौरी ने मेरी टांगों को कसकर भींच लिया और इशारे से ऊं-ऊं की आवाज के साथ मना कर दिया।

मेरे लिए विचित्र स्थिति थी एक तरफ लंड चुसाई का आनंद और दूसरी तरफ सु-सु का भोग करने की तमन्ना? मुझे लगने लगा कि मेरे लंड में भारीपन सा आने लगा है और मैं जल्दी ही मेरा वीर्यपात हो जाएगा।

मेरे दिमाग में कई प्रश्न खड़े हो गए थे। ऐसी स्थिति में अगर मैंने गौरी को सम्भोग के लिए मनाया तो क्या पता वह राज़ी हो या ना हो? और अगर वह इसके लिए मान भी गई तो क्या पता इस दौरान मेरा वीर्य बाहर ही ना निकल जाए? मेरा तनाव अपने शिखर पर था और मुझे डर सा भी लगने लगा था कहीं अन्दर डालते ही मेरा पप्पू शहीद हो जाए तो?

मैं तो चाहता था कि गौरी के साथ मेरा प्रथम मिलन एक यादगार बन जाए और मुझे ही नहीं गौरी को भी मिलन के ये पल ता उम्र याद रहें और वह इन्हें याद करके भविष्य में भी रोमांचित होती रहे।

मैंने अपने हथियार डाल दिए। चलो कोई बात नहीं एकबार गौरी को वीर्यपान करवा देता हूँ उसके बाद थोड़ी देर रुक कर धारा 357 हटाने का अगला सोपान पूर्ण कर लेते हैं। गौरी कौन सी भागी जा रही है?
और पप्पू तो आधे घंटे बाद फिर से दहाड़ने लगेगा।

मैंने अपना लंड गौरी के मुंह में अन्दर बाहर करना चालू कर दिया। आज तो गौरी कमाल ही कर रही थी। शुरुवात में तो उसने 2-3 बार थोड़ा झिझकते और डरते हुए चूसा था पर आज तो जैसे उसकी झिझक और शर्म बिलकुल ख़त्म हो गई है। लंड को पूरा मुंह में लेकर धीरे धीरे चूसते हुए बाहर निकलना, कभी सुपारे को चूसना कभी दांतों से थोड़ा दबाना और फिर एक गहरी चुस्की लगाना और साथ-साथ नीचे गोटियों को पकड़कर सहलाने का अंदाज़ तो कमाल का था।

मैंने उसका मुख चोदन जारी रखा। अब मैं धीरे-धीरे अपने लंड को गौरी के मुंह में अन्दर बाहर करने लगा और बीच-बीच में अपने कूल्हों को हिला-हिला कर हल्के धक्के भी लगाने लगा। मैंने उसके सिर पर हाथ फिरना चालू कर दिया और बीच-बीच में उसके होंठों पर अपनी अंगुलियाँ फिरा कर देख लेता था कि वह पूरा लंड मुंह में ले पा रही है या नहीं।

गौरी ने आँखें बंद किये लंड चूसना जारी रखा।
“गौरी मेरी जान … आह … बहुत खूबसूरत हो तुम … आह … बहुत अच्छे ढंग से चूस रही हो मेरी जान … हाँ … पूरा मुंह में लेकर चूसो प्लीज …”
गौरी अब पूरे जोश में आ गयी और जोर जोर से लंड चूसने लगी। मुझे हैरानी हो रही थी आज गौरी ने मुंह दुखाने का बिलकुल भी नहीं कहा।

और फिर 15-20 मिनट की इस लाजवाब चुसाई के बाद मुझे लगने लगा मेरा तोता अब उड़ने वाला है। मेरा लंड कुछ ज्यादा ही मोटा हो गया था और अब तो वह फूलने और पिचकने लगा था। मैंने गौरी को इसके बारे में बताया तो गौरी ने आँखों के इशारे से हामी भरी कि आने दो।

मैंने गौरी का सिर अपने दोनों हाथों में कसकर भींच लिया और और गौरी ने मेरे पप्पू को अपने मुंह की गहराई तक ले गयी और चूसने लगी। और फिर एक लम्बी हुंकार के साथ मेरे लंड ने पिचकारियाँ मारनी शुरू कर दी।
गौरी तो उस अमृत को गटा-गट पीती चली गई जैसे कई बरसों की प्यासी हो। उसने एक भी कतरा बाहर नहीं जाने दिया और फिर लंड को चाटते हुए उसने नशीली आँखों से मेरी ओर देखा जैसे पूछ रही हो ‘कैसा लगा?’

मैंने उसे सहारा देकर खड़ा किया और उसके होंठों को चूमते हुए उसका धन्यवाद किया। गौरी एक बार फिर से मेरे सीने से लग गई। मैंने उसके सिर, पीठ, कमर और नितम्बों पर हाथ फिरना चालू रखा। गौरी आँखें बंद किये सुनहरे सपनों में खोयी लगती थी। वह धीरे धीरे मेरे सीने पर अपनी अंगुलियाँ फिराने लगी थी।

अचानक मोबाइल की घंटी बजी …

कहानी जारी रहेगी.
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