पहली कुंवारी चूत मुझे मिली मुँह बोली बहन की -1

(Pahli Kunwari Chut Mujhe Mili Munh Boli Bahan Ki- Part 1)

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मैं अब पचास साल के ऊपर का हो गया हूँ। ऊपर वाले कि बड़ी इनायत है कि आज भी सेक्स में खूब मज़ा आता है और मुझे अभी भी चुदाई के लिए साथी मिल जाते हैं।
आज करीब 36 साल हो गए चोदते हुए और 50 से ज्यादा चूतों के साथ मैं हमबिस्तर हो चुका हूँ।

आज जो मैं लिख रहा हूँ.. वो मेरी ज़िन्दगी में मेरे साथ हुआ है। मेरी इस घटना में कल्पना का कोई स्थान नहीं है।
मैं आज उस चुदाई के बारे में बता रहा हूँ जब मेरे जीवन की पहली कुंवारी लड़की आई थी और जिसका मैंने कौमोर्य भंग किया था।
आपकी आशानुसार नाम और जगह दोनों ही काल्पनिक हैं।

यह घटना 1970 के दशक के आखिरी सालों की है.. तब मैं ग्रेजुएशन कर रहा था.. सेक्स का अनुभव पहले से ही था इसलिए कुछ फितरत हो गई थी लड़की पटाने की.. लेकिन एक दिक्कत थी कि छोटा शहर था और मैं और मेरा परिवार काफी जाना हुआ था.. इसलिए बिना पूरा भरोसा हुए किसी को प्रपोज करना बड़ी समस्या थी।

मेरे घर से लगा हुआ ही एक परिवार और रहता था.. जो बहुत बढ़िया लोग थे। कुछ साल पहले ही उनकी शादी हुई थी। हमारे दोनों परिवार के बीच काफी घनिष्ठता थी। मैं उन लोगों को भईया और भाभी कहता था। मेरे इन भाई साहब की ससुराल भी उसी शहर में थी.. इसलिए उनके ससुराल के सारे सदस्यों से हम लोगों काफी घुले-मिले हुए थे।

उसमें से एक लड़की थी.. जिसका नाम सारिका था.. वो मेरे पड़ोसी भईया की साली थी। चढ़ती जवानी का माल थी और मेरी बहनों के साथ की ही थी।
जैसा कि होता है.. घर में आना-जाना था और बातें भी होती थीं। वो मुझे भईया कहती और रक्षा बंधन में राखी भी बाँधती थी।

हकीकतन मेरा उसको लेकर कोई भी गलत इरादा नहीं था.. लेकिन ज़िन्दगी में कुछ ऐसे पल आ जाते हैं कि इंसान उस रास्ते पर चल पड़ता है.. जिस पर उसने कभी सोचा नहीं होता है।

शुरूआत होली से हुई थी.. मैं होली खेलने अपने दोस्तों के साथ तैयार बैठा था और उन्हीं में से किसी दोस्त के आने का इंतज़ार कर रहा था।
तभी भईया के ससुराल वाले आ गए और उनके यहाँ होली खेलने लगे। मेरे माता पिता और बहनें भी उन्हीं के यहाँ उन लोगों से खेलने चली गईं।

औपचारिकता निभाने के लिए मैं भी वहाँ गया.. लेकिन जब गीली होली होने लगी तो मैं वहाँ से खिसक कर बाहर बरामदे में आ गया.. क्योंकि अभी से मुझे भीगने का बिल्कुल भी मन नहीं था।

मैं वहीं खड़े बाहर गेट की तरफ टकटकी लगाए अपने दोस्त का इंतज़ार करने लगा। तभी किसी ने पीछे से मेरे ऊपर रंग की बाल्टी डाल दी। अचानक इस हमले से मैं अचकचा गया और गुस्से से पीछे मुड़ कर देखा तो सारिका ‘खी.. खी..’ करके हँस रही थी और चिल्ला रही थी ‘भईया होली है.. बुरा न मानो होली है..’

मेरा बहुत तेज़ दिमाग ख़राब हुआ.. लेकिन हँस भी दिया.. आखिर होली है। कब तक मैं सजा-धजा बचा रहूंगा।
मैंने हंसते हुए कहा- सारिका यह तो बदमाशी है.. थोड़ा रंग लगा देती.. पूरा गीला कर दिया और अभी दिन भी नहीं शुरू हुआ है.. चल.. अब देख.. तेरी खैर नहीं..

वो मुझे हंसते हुए चिढ़ाती हुई अन्दर भाग गई और मैं भी हाथों में रंग लगा कर उसके पीछे गया। मैं उसको रंग लगाना चाहता था लेकिन वो इधर-उधर भाग रही थी।
मैंने उसको आखिर ड्राइंग रूम के बाहर वाले आंगन में दबोच लिया, वह ‘न.. न..’ करती रही.. फिर भी मैंने उसके चेहरे पर रंग लगा दिया।

मैंने ज़ब उसको छोड़ा.. तो उसने भी कुछ देर के बाद आकर पीछे से रंग लगा दिया। मैंने उसी वक्त उसको पकड़ लिया और उसके ही हाथों से उसका चेहरा रंग दिया। वह कसमसाने लगी.. तो उसको मैंने दीवार के सहारे बांध दिया। उसी वक़्त कुछ ऐसा हुआ कि मैंने अपने बदन का भार उस पर डाल कर दीवार से चिपका दिया और उसकी चूचियाँ मेरे सीने से लग गईं।

तभी हमारी आँखें मिलीं और मैंने हल्के से अपनी पकड़ उस पर से छोड़ दी, वह वहीं खड़ी रही और उसने अपनी आँखें झुका दीं।
फिर बिना सोचे-समझे जब मैं उससे अलग हुआ.. तो उसकी चूचियों को दबा दिया।
वह चिहुंक पड़ी और भाग गई।

मेरी हालत ख़राब हो गई.. मुझे डर था कि वो कहीं किसी से कह न दे। लेकिन 2-3 दिनों तक जब किसी ने कुछ नहीं कहा.. तो मैं समझ गया कि उसने किसी से नहीं कहा है।
फिर तो मेरी हिम्मत खुल गई.. ज़ब अगली बार कुछ दिनों के बाद वह मुझे अकेले में मिली.. उस वक्त वो मेरी बहन से मिलने आई थी.. इस वक्त वो सीधे स्कूल से अपनी बहन से मिलने आई थी.. लेकिन उसकी बहन थी नहीं इसलिए मेरे घर मेरी छोटी बहन से मिलने चली आई।

उस वक्त मेरी बहन बाथरूम में कपड़े बदल रही थी.. तो वो मुझे कमरे में अकेले खड़ी मिल गई।
मैंने पीछे से आकर उसकी पीठ पर हाथ रख दिया और पीछे से उसकी गर्दन पर चुम्बन कर लिया, वो चिहुंक गई और मुझको खड़ा पाकर कर उसने कहा- भैया यह म़त कीजिए.. ये क्या कर रहे हैं.. कोई देख लेगा तो?

मैंने उसको वहीं उसका मुँह मोड़ते हुए उसके होंठों पर चुम्बन कर लिया और एक हाथ से चूचियों को उसके स्कूल वाले ब्लाउज के ऊपर से दबा दिया।
साथ में, मैं उसे ‘आई लव यू’ कहने लगा। करीब दो मिनट तक मैं उसको चूमता रहा और उसकी चूचियों को सहलाता रहा।
मेरा शरीर पीछे से उससे सटा हुआ था और मेरा खड़ा लंड उसके चूतड़ों में रगड़ रहा था।

ज़ब मैंने उसके ब्लाउज में हाथ डालने की कोशिश की.. तो मुझसे अपने को छुड़ा कर वो भाग गई। इसी तरह ज़ब भी मौका मिलता रहा.. हम लोग चूमने लगे और धीरे-धीरे वो मुझसे खुलने लगी।

एक दिन ऐसा भी मौका आया कि मुझे उसके साथ एकांत मिल गया। उस दिन मैंने पहली बार उसकी चूचियों को उसके ब्लाउज ऊपर से निकाल लिया और उनको चूसा।
उसकी चूचियाँ बहुत ही कड़ी और मस्त थीं.. उनमें काफी भराव था।
मेरे उस तरह से चूसने से वो सिसया गई और बदहवास हो गई।

मैं भी साल भर बाद किसी लड़की के साथ इस अवस्था तक पहुँचा था.. इसलिए मेरे दिमाग में केवल उसको चोदने के अलावा कुछ घूम ही नहीं रहा था।

उस दिन के बाद जब भी मौका लगता.. वो मुझे अपनी चूचियों से खेलने देती और मैं भी पैंट के ऊपर से ही अपने लंड को स्कर्ट के ऊपर से ही उसकी गांड उसकी चूत पर रगड़ता था।

एक दिन.. जब मालूम था कि हम अकेले है.. मैंने उसको स्टोर रूम में खींच लिया और अपना लंड अपनी पैन्ट से निकाल कर उसके हाथ पर रख दिया।
वहाँ अँधेरा था.. इसलिए जब उसने अपने हाथ में मेरा लंड महसूस किया तो कूद पड़ी।
जवानी का भन्नाया लंड था बिल्कुल सख्त और गर्म..

एक बारगी तो उसने हाथ ही हटा दिया.. बड़ी मुश्किल से मैंने उसके हाथ को पकड़ कर अपना लंड उसको पकड़ाया।
जैसा मेरा अनुभव था.. जैसे-जैसे मैं उसको चूमने और उसकी चूचियों को दबाने लगा.. वो भी मेरे लंड को दबाने लगी।

उस दिन से उसका लंड का डर खत्म हो गया और मौके बे मौके वो मेरा लंड सहलाने लगी।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

एक दिन वह दिन में अपनी दीदी से मिलने आई.. उस दिन सन्डे था। मेरी बहनों के स्कूल में स्कूल का वार्षिक दिवस था.. तो सब लोग वहीं गए थे।

वो ज़ब आई.. तो वह मुझसे बाहर ही मिल गई। मैंने इशारे से अपने पास बुलाया तो वह बोली- दीदी के पास जा रही हूँ।
मैंने कहा- उनसे बाद में मिल लेना.. अभी यहाँ आ जाओ।

वह एक बार रुकी.. इधर-उधर देखा और तेजी से मेरे पास अन्दर आ गई।
तब मैंने कहा- आज कोई नहीं है घर पर..

वह थोड़ा घबड़ाई.. लेकिन मैंने उसको बाँहों में लेकर उसके होंठों को अपने होंठों से दबा दिया और चूमने लगा।

अब आज मैं सारिका की चुदाई का मन बना चुका था पर शायद इसके लिए वो पूरी तरह से तैयार नहीं थी और मुझे तो आज उसकी चूत चोदनी हो थी..
देखिए क्या-क्या होता है.. अगले भाग में मिलते हैं। अपने ईमेल जरूर भेजिएगा।
कहानी जारी है।
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