लण्ड न माने रीत -9

(Lund Na Mane Reet-9)

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अब तक आपने पढ़ा..
अब मेरा सुपाड़ा उसकी उँगलियों से छिप गया था। फिर उसने एक हाथ की मुट्ठी में लण्ड को पकड़ लिया और मोटाई का अंदाजा लगाने लगी।
उसने विस्मय से मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा दी।
‘क्या हुआ.. तू कर क्या रही है..?’ मैंने अधीर होकर पूछा।
अब आगे..

‘नाप रही आपका.. मेरे उनसे तो आपका बहुत बड़ा और मोटा है.. उनका तो सिर्फ छः अंगुल का है और आपका बारह का.. मोटा भी दुगना है उनसे..’ वो बोली।

‘अरे.. जाने दे ये बात.. चल तू रेडी हो जा.. अब इसे अपनी चूत के भीतर ही नापना..’ मैंने हँसते हुए कहा।

‘इतनी जल्दी नहीं बड़े पापा.. थोड़ी देर रुको.. फिर कर लेना.. जब तक मम्मी-पापा नहीं लौटते.. दिन-रात अपने ही हैं!’ वो बोली और मेरे लण्ड को पकड़ कर हिलाने लगी..

फिर उसने लण्ड की चमड़ी नीचे करके सुपाड़ा निकाल लिया.. फिर अपनी जीभ निकाल कर मेरी तरफ देखने लगी।
मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि आरती इतनी बिंदास औरत बन चुकी थी।
उसने जीभ की नोक मेरे सुपाड़े पर चारों ओर घुमाई और बोली- लो.. बड़े पापा आपकी तमन्ना उस दिन पूरी नहीं कर पाई थी.. आज चूसती हूँ आपका ये..’
इतना कहकर उसने आधा लण्ड मुँह में ले लिया और पूरी तन्मयता के साथ चाट-चाट के चूसने लगी।

मैं तो जैसे निहाल हो गया और जैसे जन्नत में जा पहुँचा और उसके मुँह में पूरा लण्ड घुसाने लगा।
वो जिस सलीके और नफासत से लण्ड चूस रही थी.. उससे मैं हतप्रभ था।
बीच-बीच में वो लण्ड को बाहर निकालती और मुस्कुरा के मेरी तरफ देखती और हिला-हिला कर फिर से मुँह में ले लेती..

‘आरती.. इतना मस्ती से लण्ड चूसना कहाँ से सीख लिया तूने?’ मैंने पूछा।
‘क्या बताऊँ… पहले मुझे भी घिन आती थी.. इस पर मुँह लगाने में.. लेकिन मेरे वो हैं न.. पतिदेव.. उन्हें अपना वो चुसवाने का बहुत शौक है.. बिना चुसवाये मानते ही नहीं थे.. धीरे-धीरे मुझे भी चूसने में मज़ा आने लगा और अपनी चटवाने में भी.. पहले जब वो मेरी चाटते थे तो मुझे बहुत ही भद्दा लगता था.. लेकिन अब बहुत मज़ा आता है..’ वो शर्मा कर बोली और मेरा लण्ड चूसना जारी रखा।

मेरी उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी और अब मुझसे भी नहीं रहा जा रहा था। मैं पालथी मार के बैठा था और वो मेरी गोद में सिर रख कर लण्ड चूस रही थी।
मैंने धीरे से अपने पैर खोले और उठ कर उस पर छा गया.. अब मेरा मुँह उसकी जाँघों के बीच में था.. लण्ड उसके मुँह में..
उसकी चूत का उभरा हुआ दाना जैसे मेरी जीभ की ही प्रतीक्षा कर रहा था.. मैंने हौले से उस पर जीभ रख दी और चाट लिया।

आरती के बदन ने झुरझुरी सी ली और उसकी जांघें मेरे सिर पर कस गईं और हाथ के नाखून मेरे नितम्बों में जोर से धंस गए।
उसकी खुली चूत में मेरी जीभ स्वतः ही गहराई तक उतर गई और लपर-लपर करने लगी। मेरे नथुनों में गरम मसाले जैसी गंध घुसती जा रही थी और मेरे मुँह का स्वाद खट्टा-खट्टा सा हो रहा था।

उसकी चूत से रस लगातार बह रहा था.. उधर आरती भी मेरे लण्ड को पूरे मनोयोग से चूस चाट रही थी.. उसके लार से भरे मुँह में मेरे लण्ड को गजब का मज़ा मिल रहा था।
मैं महसूस कर रहा था कि उसका मुखरस बह-बह कर मेरी जांघों को गीला कर उसके गले पर से बह रहा था।

फिर मैंने अपनी जीभ उसकी चूत से बाहर निकाली और अपनी दाड़ी उसकी बुर की गहराई में रगड़ने लगा। जैसे ही मेरी दाड़ी के एक अंगुल जितने छोटे-छोटे बालों की चुभन उसे अपनी चूत के अंदरूनी नाज़ुक हिस्सों में महसूस हुई और वो बेकाबू होकर कमर उछालने लगी।
‘आई…मत करो ऐसे…गुदगुदी होती है जोर से..’ वो हाँफती सी बोली।
दो मिनट में ही उसका धैर्य जवाब दे गया और वो मुझे हटा कर उठ खड़ी हुई।

मैंने देखा उसकी आँखें लाल-लाल हो गई थीं और होंठों से गर्दन तक लार की लकीर बह रही थी। उसके निप्पल कड़क हो गए थे.. उसकी चूत से बहता हुआ रस जाँघों से उतर कर घुटनों तक पहुँच रहा था और वो बहुत ही कामुक चुदासी निगाहों से मुझे देख रही थी।

‘आओ बड़े पापा..’ वो बोली और बिस्तर पर लेट कर अपनी टाँगें सीने की तरफ मोड़कर उठा दीं।
मेरे मुखरस और उसके खुद के रिसाव से गीली उसकी सांवली चूत.. ट्यूब लाइट की रौशनी में दमक उठी।
मैं उस मादक भग के सौन्दर्य को निहारता ही रह गया..

‘अब जल्दी से झंडा गाड़ दो बड़े पापा.. नहीं रहा जाता अब..’ आरती की पुकार सुन कर मैं जैसे होश में आया और झट से उसकी चूत के सामने बैठ गया और लण्ड का मत्था उसकी चूत के छेद पर रख कर उसके मम्मे दबोच लिए और उसके गाल काटने को झुका।

तभी आरती ने अपनी कमर जोर से ऊपर उछाली और मेरा लण्ड अपनी चूत में कैच कर लिया और अपनी बाँहों का घेरा मेरी पीठ पर कस दिया। इसी के साथ वो जल्दी-जल्दी अपनी कमर उठा-उठा कर लण्ड लीलने लगी।
मैं भी जोश में आ गया और पूरी ताकत से उसकी चूत मारने लगा।

आरती मंजे हुए खिलाड़ी की तरह चुद-चुद कर मेरा साथ निभा रही थी। मैं भी अपना लण्ड सुपाड़े तक बाहर निकालता और एक झटके में पूरा घुसा देता।
आरती भी ताल से ताल मिलाती हुई अपनी कमर चला रही थी। कमरे में ‘फचर… फचर…’ की आवाजें और उसकी कामुक ‘आहें.. कराहें..’ गूँज रही थीं।

‘फाड़ डालो.. बड़े पापा.. आज इसे… बहुत सताती है ये.. मुझे.. आह…करो न जल्दी जल्दी… बहुत मज़ा दे रहे हो आप.. मैं अपने पति से जब भी करती थी.. मुझे पता नहीं क्यों आपकी याद आती थी.. वो पहली चुदाई भूल ही नहीं पाती थी.. आह… ले लो अच्छी तरह से मेरी.. खूब हचक के चोदो मुझे..’ आरती कामुक औरत की तरह बोल रही थी और किलकारियाँ लेती हुई कमर उछाल रही थी।

मैं भी पूरी ताकत से उसे चोदे जा रहा था.. सात-आठ मिनट बाद ही मुझे लगा कि अब मैं झड़ जाऊँगा।
‘आरती.. मैं झड़ने वाला हूँ… बाहर निकालूँ क्या..’ मैं स्पीड से धक्के लगाता हुआ बोला।

‘बाहर नहीं.. मेरे भीतर ही झड़ जाओ बड़े पापा.. अपना बीज बो दो मेरी कोख में.. मैं भी बस आ ही रही हूँ.. एक मिनट में.. आह्ह.. बस आठ-दस धक्के करारे करारे और लगा दो आप..’ वो अधीर स्वर में बोली।

फिर मैंने उसके मम्मे कसके दबोच लिए और लण्ड को उसकी चूत में गोल-गोल मथानी की तरह घुमाने लगा.. कभी क्लॉक वाइज कभी.. एंटी क्लॉक वाइज.. और अपनी झांटों से उसके क्लिट को रगड़ता हुआ.. फुर्ती से उसे चोदने लगा।

ज्यादा देर नहीं लगी और मेरे लण्ड से वीर्य की पिचकारियाँ छूट-छूट कर उसकी चूत में समाने लगीं..
आरती ने भी मुझे कसकर जकड़ लिया और अपनी जांघो से मेरी कमर कसके कस ली, उसकी चूत में स्पंदन होने लगे.. चूत की मांसपेशियां लण्ड को भींचने लगीं.. ताकि मेरे वीर्य के एक-एक बूँद निचुड़ जाए।

मैं भी गहरी-गहरी साँसें लेता हुआ उसके उरोजों के बीच सिर रख कर लेट गया।

दोस्तो, मुझे पूरी उम्मीद है कि आपको मेरी इस सत्य घटना से बेहद आनन्द मिला होगा.. एक कच्ची कली को रौंदने की घटना वास्तव में कामप्रेमियों के लिए एक चरम लक्ष्य होता है.. खैर.. दर्शन से अधिक मर्दन में सुख होता है.. इन्हीं शब्दों के साथ आज मैं आपसे विदा लेता हूँ.. अगली बार फिर जल्द ही मुलाक़ात होगी। आपके ईमेल मुझे आत्मसंबल देंगे.. सो लिखना न भूलियेगा।

कहानी जारी है।
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