लीबिडो कामपिपासा अन्तर्वासना

(Libido Kaampipasa Antarvasna)

एक छोटे से शहर से कालेज की पढ़ाई करने के बाद मैं दिल्ली की एक आबादी वाली बस्ती में एक छोटे से कमरे में किराए पर रहता था।
मैं लेखन के क्षेत्र में नाम कमाने के लिए स्ट्रगल कर रहा था, पत्र-पत्रिकाओं में लिखकर अपना खर्च निकाल लेता था।
पढ़ने का शौक था इसलिए किताबें बहुत खरीदता था।
मेरा अधिक लिखने, पढ़ने में ही व्यतीत होता था।

वह मेरे ऊपर वाले कमरे में रहने आई थी। पत्रकार थी, अच्छे से संस्थान में नौकरी करती थी। रंग सांवला था, नाक नक्स तीखे थे। उसकी चूचियां बड़ी-बड़ी थी और हिप्स निकले हुए थे।

शुरू-शुरू में ‘हाय हैलो’ हुई फिर बातचीत होने लगी। वह अपने प्रोफेशन के बारे में बताती थी और उसने यह भी बताया कि वह दिल्ली में काफी मेहनत करके आई है। यहाँ तक कि घरवाले उसका दिल्ली आने का विरोध कर रहे थे लेकिन उसे कुछ बनना था इसलिए दिल्ली चली आई।

धीरे-धीरे वह मेरे कमरे में भी आने लगी और मेरे किताबों को उलट-पलट कर देखने लगी। एक दिन उसकी नजर एक किताब पर गई, जिसका नाम था मैन्युअल सेक्स।
उसमें तस्वीरों के साथ बेहतर सेक्स करने की विधि बताई गई थी, किसी अंग्रेजी लेखक की किताब थी।

मेरी तरफ देखते हुए उसने कहा- क्या मैं यह किताब पढ़ सकती हूँ?
मैंने जवाब दिया- बिल्कुल, यह तो पढ़ने के लिए ही है।

उस दिन वह किताब लेकर चली गई और फिर दो दिन बाद उसने किताब को वापस करते हुए कहा- इस तरह की कोई और बुक हो तो मुझे दो।

मेरे पास एक दूसरी बुक थी, जिसमें तांत्रिक सेक्स के बारे में विस्तार से बताया गया था। कैसे सेक्स के माध्यम से कुंडलियों को जागृत किया जाता है।
मैंने वह किताब निकाल कर उसे दे दी।

एक बार हम रात में छत पर टहल रहे थे तो उसने कहा- सेक्स की समझ तो उसे हो गई है लेकिन अभी तक प्रैक्टिकल नहीं किया है।
मैंने उससे कहा- यदि कोई ब्याय फ्रैंड हो तो उसके साथ कर सकती हो।

तो वह बोली- ब्याय फ्रैंड तो मेरे पास है लेकिन वह उसके साथ नहीं कर सकती है। वह मुझे बेहद प्यार करता है और उसकी ओर से इस बात की पहल करना ठीक नहीं होगा। इसके अलावा मैं जो चाहती हूँ वह शायद नहीं कर पाए।

‘तुम चाहती क्या हो? मैंने पूछा।
‘यह मुझे भी नहीं पता कि मैं क्या चाहती क्या हूँ। यह तो मैं देखना चाहती हूँ कि मैं चाहती क्या हूँ।’

उसकी उलझी हुई बातों में मैं समझने की कोशिश करता रहा। एक लेखक होने के नाते उसके ये शब्द बार-बार मेरे दिमाग में घूमते थे कि कम्यूनिज्म भी एक ऐसी व्यवस्था लाने की बात करता है जिसमें किसी भी महिला को उसकी इच्छा के खिलाफ और कोई शक्ति किसी पुरुष के सामने झुकने पर मजबूर न कर सके।

मैंने उससे पूछा- क्या कभी किसी मर्द ने तुम्हें टच किया है?
उसने बुरा सा मुँह बनाते हुए जवाब दिया- किसी महिला से इस तरह के प्रश्न नहीं पूछने चाहिए।
मैंने उससे ‘सॉरी’ कहा।

इसके कुछ दिन बाद वह अचानक रात को दस बजे मेरे कमरे में आई।
उस वक्त मैं एक कहानी लिख रहा था।

वह एक कुर्सी खींच कर मेरे सामने बैठ गई, अपने कमरे की चाभी को उसने मेरी राइटिंग टेबल पर रख दिया।
वह नीले रंग की कमीज-सलवार पहने हुए थी और उसने अपने बड़े-ब़ड़े बालों को पीछे की ओर करके कस कर बांध रखा था।

मेरी ओर देखते हुए उसने कहा- तुम्हें इस तरह से लिखते हुए देखती हूँ तो मुझे जलन होती है। काश.. मैं भी इसी तरह से बैठ कर लिख पाती। पत्रकारिता में दिन भर इधर से उधर भागना पड़ता है, उसके बाद लिखने लायक ही नहीं रहती हूँ।

वो बोलती रही और मैं अपने लिखने का काम करता रहा।

उसने पूछा- लिख क्या रहे हो तुम?
मैंने कहा- मैं एक रियलिस्टिक राइटर बनना चाहता हूँ। बेसिर-पैर की चीजें नहीं लिखना चाहता। कुछ ऐसी चीजें हों.. जो मुझे अपनी ओर खींच लें।

‘मेरे बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है?’ उसने पूछा।
‘क्या मतलब?’
‘क्या तुम मुझ पर कहानी लिख सकते हो.. क्या मुझे अपनी कहानी की नायिका बना सकते हो?’

‘ऐसी क्या खूबी है तुम में.. जो मैं तुम्हें अपनी कहानी की नायिका बनाऊँ? मैंने पूछा।
‘खुद देख लो..’ मेरी ओर झुकते हुए उसने कहा।
‘क्या मैं तुम्हारे चेहरे पर अपना हाथ फिराऊँ?’

‘क्या तुम मेरे साथ तांत्रिक प्रक्रिया करना चाह रहे हो?’
‘कोशिश करके देखता हूँ.. अभी तक किसी के साथ किया नहीं है।’
‘चलो ठीक है साइकोलॉजी की भाषा में मुझे अपना सब्जेक्ट मान लो।’

मैंने उसके चेहरे पर हल्के-हल्के हाथ फिराना शुरू कर दिया। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। फिर मैं उसकी आँखों और कान को सहलाते हुए उसके होंठों को टटोलने लगा। उसके चेहरे का रंग बदलता जा रहा था। कुछ देर तक मेरी उंगलियां उसके मोटे-मोटे होंठों पर चलती रहीं।

फिर मैंने उसकी गर्दन को टटोलते हुए अपने हाथ को उसकी बड़ी-बड़ी चूचियों की ओर बढ़ाया तो उसने अचानक से मेरे हाथ को पकड़ते हुए कहा- तुमको यह सब नहीं करना चाहिए।

वह अचानक से उठ पड़ी और दरवाजा खोल कर बाहर निकल गई।
बड़ी मुश्किल से खुद को संभालते हुए मैं एक बार फिर कहानी लिखने में मगशूल हो गया।

कुछ देर बाद फिर अन्दर आते हुए बोली- मेरी चाभी यहाँ छूट गई है।
राइटिंग डेस्क से चाभी उठाकर वह बाहर चली गई।

रात करीब तीन बजे तक मेरी कलम सरपट दौड़ती रही, चार बजे के करीब मेरी आंख लग गई।

दरवाजे पर फिर दस्तक हुई।
एक बार फिर वह मेरे सामने खड़ी थी।
उसने ब्राऊन कलर का एक लंबा सा स्कर्ट पहन रखा था और ऊपर एक उजले रंग का ढीली सी टी-शर्ट थी।

उसने मुझे कमरे में अन्दर की ओर धकेलते हुए कहा- तुम्हारे टच के बाद मुझे नींद नहीं आ रही है.. बहुत संभाला खुद को.. पर कुछ नहीं हुआ अब तुम कुछ करो।

जैसे ही मैं बिस्तर पर बैठा.. वह सीधे मेरी गोद में आकर बैठ गई, फिर अपने टॉप के ऊपरी बटन खोलते हुए कहा- आओ तुम्हें फीडिंग कराती हूँ।

उसने अपनी एक चूची को बाहर निकाल कर मेरे मुँह के सामने कर दिया।

उसके निप्पल काले और मोटे थे।
मैंने उसके निप्पल को नाखूनों से खुरच कर हल्का सा मसला, उसके मुँह से एक हल्की सी मादक सिसकारी निकल गई।

‘आराम से करो.. अब तक मैंने इन्हें संभाल कर रखा हुआ था.. पता नहीं आज मुझे क्या हो गया है..’ यह कहते हुए उसने अपनी दूसरी चूची को भी बाहर निकाल लिया।

मैंने उसके निप्पल पर जीभ पर सटाई और फिर दोनों होंठों से उसे दबाते हुए हल्का-हल्का चूसने लगा। उसकी आंखें बंद होती चली गईं। तकरीबन पांच मिनट तक मैं उसके एक निप्पल को ऐसे ही चूसता रहा।
अपनी आंखें बंद किए हुए वह बड़े प्यार से अपनी उंगलियां मेरे बालों में चला रही थी।

‘शिवांगी कैसा लग रहा है?’ निप्पल को मुँह से बाहर निकालते हुए मैंने पूछा।
‘बस पीते रहो.. लो अब दूसरे को पियो.. बहुत देर से इसे जलन हो रही थी..’ अपनी दूसरी चूची मेरी मुँह की ओर बढ़ाते हुए उसने कहा।

उसका शरीर तवे की तरह धधक रहा था। मेरा लण्ड भी तनकर खड़ा हो गया था।

‘अपनी टांगों को क्रॉस करके सामने से मेरी गोद में अच्छे से आ जाओ.. इससे दोनों चूचियों को बारी-बारी से पीने में सहूलियत होगी..’ मैंने कहा।
‘नहीं ऐसे ही पियो अभी.. इसकी जलन मिटाओ पहले..’

अपनी बड़ी चूचियों को उसने अपनी हाथों में थाम रखा था। मैंने दूसरे निप्पल को भी चूसना शुरू कर दिया।
एक बार फिर उसकी आंखें बंद हो गईं।
मेरी चुसाई के साथ ही उसके मुँह से जोर-जोर की मादक सिसकारियां निकल रही थीं और उन मादक ध्वनियों के प्रभाव में आकर मैं उसके निप्पल को पूरे दम से चूस रहा था.. बीच-बीच में काटता भी जा रहा था।

‘आई रियली लव इट.. डू इट मोर हार्ड.. मैं बताऊँ अभी मुझे क्या लग रहा है.. कि तुम मेरी चूचियों को बेदर्दी से मसलो और काटो.. काटो ना.. बाइट दो.. यस.. ऐसे ही.. और.. आहह..’ उसके मुँह से लगातार ये शब्द निकल रहे थे।

मेरा हाथ स्कर्ट के ऊपर से ही उसके चूतड़ों और जांघों पर दौड़ रहा था। मैंने ऊपर से स्कर्ट के बटन को खोलने की कोशिश की.. पर असफल रहा।

अपनी आंखें खोलकर वह मेरी ओर देखते हुए हँसने लगी।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
‘तुम बिल्कुल बुद्धू हो.. सिर्फ किताब चाटते हो।’

‘ऐसा क्या किया मैंने?’
‘पागल स्कर्ट को नीचे से उठाओ.. समझ में आ जाएगा।’

उसकी स्कर्ट को नीचे से उठाते ही उसकी कसी हुई सावंली जांघें चमक उठीं।

उसकी यह अदा मुझे पसंद आई, मुझे समझ आ गया कि ये पूरी तरह से तैयार होकर आई है।

मेरा हाथ सीधे उसकी चूत तक चला गया। उसकी चूत घने काले बालों से भरी हुई थी। अपनी उंगलियों को मैं उसके बालों में फिराने लगा।

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मेरी गोद में पड़ा हुआ उसका शरीर मरोड़ खाने लगा।
इसके साथ ही मैं बारी-बारी से उसकी दोनों चूचियों को भी जोर-जोर से चूस रहा था।

फिर धीरे-धीरे मैंने हथेलियों से उसकी चूत को मसलना शुरू कर दिया। उसके चूतड़ खुद ब खुद उठने लगे थे।

वह जोर जोर से अपनी चूतड़ हिला रही थी और बोल रही थी- तुमने मुझे पागल कर दिया है.. ये मुझे क्या हो रहा है.. आईई.. और रगड़ो मेरी चूत को.. चूचियों को भी चबा जाओ.. कुचल दो इन्हें काट खाओ.. और जोर से रगड़ो.. आहह.. जोर से.. छोड़ना मत..’

मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मेरी हथेलियों पर कुछ गरम-गरम से गिर रहा है, मैंने चूत को थोड़ी और जोर से रगड़नी शुरू कर दी।

अब मैंने बीच की फिंगर को थोड़ा साइड किया और उसकी क्लिट को टटोलने लगा। उसकी क्लिट को मिडल फिंगर से गोल-गोल करके रगड़ने लगा।

उसका चूतड़ अब लयबद्ध तरीके से ऊपर-नीचे हो रहे थे। दोनों होंठों को उसने दांतों में दबा रखा था.. आँखें अभी भी बंद थीं।

ऐसा लग रहा था जैसे उसके पूरे शरीर में सुनामी आ गया हो.. और उसका केंद्र बिंदु उसका क्लिट हो।

मैं उसकी क्लिट को लगातार रगड़ रहा था.. उसकी एक चूची मेरे मुँह में थी.. जिसे मैं चपड़-चपड़ कर चूस रहा था। बीच-बीच में निप्पल को दांत से काट लेता था और काटते ही वह जोर से चिहुंक उठती थी।

मेरे बालों पर उसकी पकड़ मजबूत होती जा रही थी।
‘क्या कर रही हो.. मेरे बाल दुख रहे हैं..’ अपने मुँह से उसके निप्पल को निकालते हुए मैंने कहा।

उसने आंख खोल कर मेरी ओर देखा और मुझसे लिपट कर अपना मुँह मेरे कान तक ले आई और धीरे से कहा- बहुत ही अच्छी फीलिंग दी है तुमने.. चलो अब बिस्तर पर ठीक से बैठो, मैं आती हूँ। वैसे यदि तुम चाहो तो थोड़ा आराम कर सकते हो।

बाहर अंधेरा छटने लगा था, चिड़ियों की चहचहाट सुनाई देने लगी थी।

अपना हाथ जब ऊपर की ओर निकाल कर देखा तो उस पर लसलसाहट सी थी, हल्के उजले रंग का गाढ़ा सा तरह पदार्थ था।

वह हँसते हुए बोली- जाकर हाथ-मुँह धोकर आओ और अपना ‘सामान’ भी अच्छे से धो लेना।

मैं उठकर बाथरूम की ओर गया, पहले अच्छे से अपने हाथ धोये.. फिर पेशाब करने के लिए अपना लंड बाहर निकाला तो देखा कि उसमें से भी थोड़ा-थोड़ा सा रस निकल रहा है।
मैंने अपने लंड को साबुन से अच्छे से धो लिया और वापस कमरे में आया।

‘तो राइटर महोदय.. आज कुछ लिखने के लिए मिला तुम्हें.. रियलिस्टिक चीज?’ उसने अर्थभरी नजरों से मुझे देखते हुए कहा।
वह बेड पर आराम से लेटी हुई थी।

‘शिवांगी मैं तुम्हें न्यूड देखना चाहता हूँ.. ऊपर से नीचे तक..’
‘ठीक है दिखाऊँगी.. लेकिन इसके बाद तुम वही करोगे.. जो मैं कहूँगी..’
‘आज भर के लिए या उम्रभर के लिए?
‘तुम्हें क्या लगता है?’
‘जीवनभर का वादा मैं नहीं कर सकता.. वैसे भी बीवी जैसी चीज का मैं क्या करूँगा?’
‘इन सब चीजों पर हम बाद में बात कर लेंगे.. अभी मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करती हूँ.. फिर तुम मेरी कर देना.. बस आज भर के लिए इतना।’

इतना कहते हुए उसने टॉप को पूरी तरह से खोलकर हटा दिया, उसकी दोनों चूचियां पपीते की तरह लटक रही थीं, निप्पल सख्त हो रहे थे।
फिर वह खड़ी हो गई और उसने अपना स्कर्ट भी हटा दिया।
चूचियां उसकी जितनी बड़ी थीं.. कमर उतनी ही पतली… पेट बिल्कुल सपाट था, चूत के ऊपर गुच्छेदार काले-काले बाल चमक रहे थे।

वह खड़ी मुस्करा रही थी, उसे इस बात का अहसास था कि उसका शरीर बेहद-बेहद खूबसूरत है।

‘अब जरा पीछे की ओर घूम जाओ..’ मैंने कहा।

वह तुरंत पीछे की ओर घूम गई। उसके बाल कंधे तक थे। पीछे से उसके पूरे शरीर में सिर्फ उसके चूतड़ ही दिख रहे थे.. अपनी पूरी गोलाई के साथ।

‘अब जरा हाथ ऊपर उठाकर एक्सरसाइज करते हुए आगे की ओर झुको..’ ऐसा करते हुए जब वह आगे की ओर झुकी तो उसकी गोलाई लिए हुए गांड की पहाड़ी और भी विशाल लगने लगी।

मैं उसके करीब आया और उसके चूतड़ों को सहलाते हुए बोला- तुम्हारे जिस्म में सबसे सेक्सी पार्ट तुम्हारा ये है।

‘मुझे पता है.. जब मैं खुद को आइने में देखती हूँ तो मुझे भी सबसे अच्छा मेरा हिप ही लगता है। हम लड़कियां मर्दों की निगाह को अच्छी तरह से समझती हैं। मेरे ऑफिस में भी सभी मर्दों की नजर मेरे हिप पर ही होती है.. कमेंट्स भी सुनने को मिलते हैं। वैसे किसी का इस तरह का कमेंट्स करना मुझे अच्छा नहीं लगता।’
वह अभी भी झुकी हुई थी।

मैंने उसे खड़ा किया और बोला- तुम्हारे होंठ मोटे हैं।
‘अब देख लिया ना.. अब मैं जैसा कहूँगी तुम्हें वैसा ही करना होगा। चुपचाप बेड पर बैठो.. लात नीचे लटका कर।’
‘तुम करना क्या चाहती हो?’
‘बैठो तो सही.. फिर बताती हूँ.. उसने धक्का देते हुए मुझे बिस्तर पर बैठा दिया।

फिर मेरे सामने ही फर्श पर बैठ कर मेरी चड्डी को नीचे करके मेरे लंड को बाहर निकालते हुए बोली- आज तक मैंने किसी का लंड नहीं चूसा.. मुझे एक बार लंड चूसना है.. मैं भी तो देखूं कि इसका टेस्ट कैसा लगता है।

उसका हाथ लगते ही मेरा लंड पूरी तरह से खड़ा चुका था। लंड को मुँह में लेकर मेरी ओर देखते हुए उसने चूसना शुरू कर दिया।
वह चूस कम रही थी और खेल ज्यादा रही थी, कभी अपना जीभ चलाती.. तो कभी हल्के से दांत काटती.. तो कभी लॉलीपॉप की तरह चूसती।
बीच-बीच में वो अपना मुँह निकालकर मेरे लंड को देखती भी थी और फिर उस पर चुम्बन भी करती थी।

अपने हाथ का बित्ता बनाकर उसे नापते हुए पूछा- यह पूरा मेरे अन्दर चला जाएगा? देखो तो कैसे डंडे की तरह खड़ा है.. मैं तो मर ही जाऊँगी.. पर तुझे लूंगी जरूर।

‘तुम कर क्या रही हो?’ मैंने पूछा।
‘देखो.. मुझे इसकी दोस्ती अपनी चूत से करानी है.. इसलिए इससे बातें कर रही हूँ। सुबह हो गई है.. अभी इसे अन्दर लेने की हिम्मत नहीं हो रही है.. पता नहीं क्या होगा.. मैं तुम्हारे ऊपर आती हूँ और मेरा जैसे मन करेगा मैं करूँगी.. तुम कुछ भी नहीं करोगे और करोगे भी तो मेरे इशारे पर..’ उसने अधिकार के साथ कहा।

मैंने कहा- अच्छी बात है। लेकिन यह छूट मैं सिर्फ अभी के लिए द़े रहा हूँ.. आगे तक के लिए नहीं।

‘मैं खुद चुदवाना चाह रही हूँ.. लेकिन थोड़ा डर लग रहा है। मुझे थोड़ी सहज तो होने दो.. फिर जैसे मन हो कर लेना.. मैं मना नहीं करूँगी। मुझे पता है कि आदमी लोग जानवर होते हैं।’

फिर उसने जमीन पर एक चादर बिछा कर मुझे लिटा दिया और घुटनों को बल मेरे पेट के ऊपर आ गई।
उसका उठा हुआ पिछवाड़ा मेरे लंड को छू रहा था।

पहले उसने अपने चूतड़ों से मेरे लंड को खूब सहलाया फिर चूत को लंड पर दबाते हुए बैठने लग गई।
मेरा तना हुआ लंड उसकी चूत की दीवारों से कशमकश कर रहा था।

मेरे सर के नीचे दो तकिया लगाते हुए उसने अपनी एक चूची मेरे मुँह की ओर बढ़ाते हुए कहा- लो.. अब इसे पियो.. आराम से.. काटना मत।

मैं निप्पल को मुँह में पकड़ कर चूसने लगा और वह सिसकारी भरती हुई अपनी चूत को मेरे लंड पर रगड़ने लगी।
मैं दोनों हाथ बढ़ाकर उसके चूतड़ों को सहलाते हुए मसलने लगा।

अपने शरीर का भार अपने दोनों हाथों में लेकर वह अपनी चूत को मेरे लंड पर घिसे जा रही थी।
अपनी पूरी कोशिश करते हुए वह क्लिट को लंड पर रगड़ रही थी।

मैंने उसके बाल खोलकर करके उसके कंधों पर बिखरा दिए थे।

एक बार फिर उसकी आँखें बंद हो गईं, उसकी पूरी कमर अजीब तरीके से मूव कर रही थी।
इसके साथ ही उसकी गांड के चलने की गति मैं अपनी जांघों पर महसूस कर रहा था।
मैं उसकी चूचियों को लगातार चूस रहा था।

वह बड़बड़ाने लगी- मैं चुदवाना नहीं.. चोदना चाहती थी.. तुम मुझे मिल गए, अब मैं तुम्हें छोड़ूंगी नहीं.. देखो मेरी चूत कैसे तुम्हारे लंड पर चढ़ी हुई है.. आह..ह ऊईई.. यू आर सो ग्रेट.. लव यू.. यू आर इमैजिंग..
उसने मेरे ऊपर चुंबनों की बौछार कर दी।

फिर उसका शरीर अचानक से ढीला हो गया, वह निढाल होकर मेरे ऊपर लेट गई।

कुछ देर बाद उसने अपनी आँखें खोलीं और मेरी ओर देखते हुए कहा- थैंक्स अ लॉट…
‘फॉर व्हाट?’ मैंने पूछा।
‘तुमने मुझे अपने मन की करने दी.. आज लगा कि मैंने खुद को अच्छी तरह से जिया है.. खुद के करीब आ गई.. खुद को पा लिया है।

पॉर्न की दुनिया में इस लेखक पहली कहानी है।
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