कामुकता की इन्तेहा-4

(Kamukta Ki Inteha- Part 4)

This story is part of a series:

मेरी जवानी की वासना की कहानी के पिछले भाग में पढ़ा कि मेरा मनपसंद लंड मेरी चूत में था और…

वो बहुत जोश में आ गया और मुझसे बोला- करता हूँ तेरी पहलवानी चुदाई।
यह कहकर उसने मेरी टांगें मोड़ कर अपनी मज़बूत बांहों में ले लीं और मेरी तह लगा दी। अब हाल ये था मेरी फुद्दी चट्टान की तरह बहुत ऊंची उठ गयी। अब खेल मेरे बस में 1 प्रतिशत भी नहीं था और मैं 1 इंच भी नहीं हिल सकती थी।

अब उस फौलादी इंसान ने लगातार पूरा बाहर निकाल कर 4-5 झटके दिए। मेरी चूत उसके लंड पर बेरहमी से कसी गई थी। ऐसा लग रहा था जैसे मेरी चूत का अंदरूनी हिस्सा उसके लंड के साथ ही अंदर बाहर हो रहा था।

तभी ज़ोर ज़ोर से चीख़ते हुए मैं सर से पैरों तक कांप गयी और इतने ज़ोर से झड़ी कि मेरी सुधबुध ही गुम हो गयी.

अब आगे:

बूम … बूम … बूम!
और मेरे मुंह से आवाज़ निकली- ऊंह, ऊंह, ऊंह, गूँ गूँ गूँ!
उसके फ़ौलादी लंड के 10-12 घस्सों ने ही मुझे चरम तक पहुंचा दिया था और मेरी अकड़ी चूत के चारों खाने चित कर दिए थे। मेरी हवस को शांत कर दिया था.

ओह, क्या ताकतवर मर्द था … इससे पहले मेरी चूत की आग किसी मर्द ने इस तरह 10-12 झटकों में नहीं बुझाई थी।
क्योंकि अब मैं तृप्त हो चुकी थी तो मैंने उससे कहा- ढिल्लों, बस करो, मेरा हो गया है.
ये शब्द मैंने अपने ऊपर चढ़े हुए पहले मर्द को कहे थे, नहीं तो चाहे मुझे कोई घंटे तक भी पेले, मैं हार नहीं मानती थी।

लेकिन क्या वो रुकने वाला था?
नहीं!
और वो बोला- रुक जा जानेमन, अभी तो ट्रेलर ही दिखाया है, पूरी फिल्म अभी चलनी बाकी है.
ये कहकर वो धीरे और लंबे झटके लगाने लगा। शायद अब वो धीरे इस लिए हो गया था क्योंकि वो मुझे बेहोश नहीं करना चाहता था।

मैं खुले मुँह से उसकी तरफ़ देखती रही और 5 मिनट तक इसी तरह चुदती रही। इसके बाद मेरी फुद्दी फिर गर्म यानि तैयार ही गयी। मज़ा आने लगा तो उसके हर झटके के साथ मैं कोशिश करती कि लंड और अंदर तक जाए।
वो मेरी इस हरकत तो समझ गया और फिर पहलवानी चुदाई करने लगा।

तो जनाब … अब आ रहा था असली मर्द के नीचे लेटने का मज़ा। मेरी आंखें बंद हो गयीं, टाँगें अपने आप और ऊपर उठ गयीं, हाथ अपने आप उसकी पीठ पर चले गए। स्वर्ग था बस … जी करता था कि सारी उम्र इसी तरह चुदती रहूं, कमरे में ज़ोर ज़ोर से टक, टक, टक की आवाज़ें दीवारों से टकरा रही थी, जो मेरे बड़े पिछवाड़े और उसकी जांघों से पैदा हो रही थी। बेड चूं चूं कर रहा था। मेरी चूत बुरी तरह से उसके लंड पर कसी गयी थी जैसे उसे अब छोड़ना ही न चाहती हो।

तभी अनायास ही मेरे मुंह से निकला- मुझे देखना है ढिल्लों!
वो बोला- क्या देखना है तुझे?
“इतना बड़ा लंड कैसे जा रहा है, देखना है बस मुझे … कुछ करो प्लीज़!”
मुझे चोदते चोदते हुए ही वो बोला- देखना क्या है इसमें, तेरी चूत की मां बहन एक हो रही है.
यह कहकर उसने पूरा लौड़ा बाहर निकाल कर पूरे ज़ोर से अंदर धकेल दिया- कोई नहीं … तेरी सारी इच्छाएं पूरी करूँगा, मगर इस बार तो तुझे जी भर के चोदूंगा, अगली बार तेरी पहाड़ों पर ले जा के मारूँगा।

यह सुनकर मैं चुप रही और हो रही ज़बरदस्त चुदाई का मज़ा लेने लगी। मैं उसके बलिष्ठ शरीर के नीचे बुरी तरह दबी हुई थी। ऊपर से कोई देखे तो सिर्फ मेरी टाँगें ही दिखतीं। अब मैंने पूरे जोश में आकर अपने आठों द्वार खोल दिये थे और उसे बुरी तरह किस करने लगी।

मेरे पूर्ण समर्पण के कारण अचानक मेरी गांड से 2-3 पाद निकले, जिसकी आवाज़ उसने सुन ली और कहा- लगता है इसे भी ज़रूरत है अब! रुक, इसका प्रबंध भी करके आया हूँ।
यह कहकर उसने एक झटके से अपना लंड बाहर निकाला और नीचे उतर अपने बैग में से एक चीज़ निकाली।
मैं खुले मुँह से देखती रह गयी।

अचानक लंड बाहर निकालने की वजह से मुझे अपनी फुद्दी बिल्कुल खाली खाली महसूस हुई, पंखे की हवा बहुत अंदर तक महसूस हो रही थी मेरी खुली फुद्दी में। वो चीज़ एक बड़ी निप्पल जैसी थी, जो टोपे से बिल्कुल पतली थी और फिर बीच में 2-3 इंच मोटी और जड़ से बिल्कुल पतली थी। उसके बाद एक छल्ला था। उसने उस पे थूका और आकर मेरी गांड में एक झटके से अंदर डाल दी। मैं थोड़ा चिहुंकी मगर वो ज़्यादा बड़ी नहीं थी। उसकी शेप की वजह से गांड में जाकर फिट हो गयी और मेरी गांड बिल्कुल बंद हो गयी। ऐसा लग रहा था जैसे मेरी गांड में कोई छोटा सा लंड घुसा हो।

इसके बाद जनाब … चढ़ गया वो फिर ऊपर, टाँगें और चूत फिर छत की तरफ। उसकी इस हरकत से पागल हो गयी और हिल हिल के चुदने लगी। हीटर लगे कमरे की गर्मी बहुत बढ़ गई थी, दोनों पसीने से भीग गए थे।
20-25 मिनट तक उसने मुझे वो ठोका कि मुझे जन्नत मिल गयी। मैं इस दौरान 4 बार कांप कांप कर झड़ी थी। आखिर उसने अपना ढेर सारा माल अंदर ही निकाला, जिसकी गर्मी मुझे अपनी फुद्दी के ठीक अंदर महसूस हुई। मुझे ये बहुत अच्छा लगा। क्या चुदाई हो रही थी आज मेरी!

अब वो उठा और उसने अपना लंड मुझे दिखाया बल्ब की रोशनी में … वो मेरे कामरस से पूरा गीला था और चमक रहा था। मुझे यह देखकर बहुत तसल्ली हुई कि मैंने आखिर यह किला भी अपने पूरे होशो हवास में फतेह कर लिया था जो हर औरत के बस की बात नहीं।

एक तो मैं दारू से बिल्कुल टल्ली थी, दूसरा मैं पौने फुट के एक लंड से बुरी तरह चुदी थी और कई बार कांप कांप कर झड़ी थी, मुझमें उठने की बिल्कुल हिम्मत नही थी और वैसे ही अल्फ नंगी बेड पर पड़ी थी, वो निप्पल अभी भी मेरी गांड में थी।

मैंने टाइम देखा तो शाम के 7 बजे थे।
तभी मुझसे वो बोला- टाइम क्या देखती है, अभी तो सुबह के 7 बजे तक चुदना है तुझे; बाकी अभी तो मैंने तुझे एक ही पोज़ में चोदा है, बहुत सारे पोज़ बाकी हैं। डर मत, पूरी तसल्ली कर के भेजूंगा। बाकी तेरी चूत बहुत गहरी है, बहुत कम औरतों की चूत इतनी गहरी होती है, तेरा कद छोटा है, मगर चूत उतनी ही गहरी है, इसीलिए मेरा झेल गयी तू… आम तौर पे औरतें मेरा पूरा अंदर नहीं ले पातीं। पिछली बार जब मैंने एक औरत को चोदा था तो चीख चीख कर कमरे से ही भाग गई थी। मगर तू मोर्चे पे डटी रही। वैसे तेरी तसल्ली करानी बहुत मुश्किल है, लेकिन मेरा नाम भी ढिल्लों नहीं अगर तू बार बार मेरे पास न आई।

मैं भी अपनी तारीफ सुनकर जोश में आ गयी और ये कह गयी- मेरा नाम भी रूप नहीं, अगर तेरी तसल्ली न कराई तो, उछल उछल कर दिया करूँगी तुझे, इस बार मोर्चा मैं ही सँभालूंगी।
यह सुनकर वो बहुत खुश हुआ और बोला- अब आयेगा डबल मज़ा!

यह कहकर उसने एक फोन किया और पता नहीं क्या मंगवाया और बोला कि जल्दी भेज देना!
और फिर मुझसे बोला- जल्दी नहा ले, कहीं घूम कर आते हैं, और हां कपड़े मत पहनना, मैंने मंगवा लिए हैं, वही पहनना।
मैं बोली- बाहर ठंड लगेगी, रात को ठंड बहुत हो जाती है।
उसने कहा- भैनचोद, ठंड दी माँ की आंख, ऐसे नही लगने दूंगा ठंड, चल ये पेग लगा ले देसी का!
“मैं तो पहले ही काफी पी चुकी हूँ।”
“और पी ले, इसका नशा ज़्यादा है पर ये बहुत जल्दी उतर जाती है, वर्ना अगर तेज़ ले आता तो अब तक 5-6 पेग पीने के बाद बेहोश पड़ी होती। चल पी ले, ठंड नहीं लगेगी बाहर, पास ही रात में एक मेला लगा है, देखके आते हैं दोनों, जा नहा ले, कपड़े आते ही होंगे।”

दरअसल अगर इतनी ठंड में मैं कमरे में पिछले 3 घंटों से नंगी थी! वह तो रूम हीटर, देसी और फुद्दी की गर्मी थी।

मैं बाथरूम में गयी और गर्म गर्म पानी से नहाई।
तभी डोरबेल बजी, कोई आदमी आया और ढिल्लों को कुछ कपड़े देकर चला गया। मैं नहा कर बाहर आई तो ढिल्लों ने मुझसे कहा- ये कपड़े पहन ले।
मैंने खोल कर देखा तो वो एक हरे रंग छोटी सी निकर और एक सफेद रंग की टी शर्ट थी। निकर का साइज तो काफी छोटा लग रहा था।
मैं पैंटी पहनने लगी तो उसने मना कर दिया और कहा- सिर्फ इसे ही पहन!

मैंने उसे पहनने की कोशिश की तो वह मेरे घुटनों के ऊपर आकर फंस गयी। तभी मैंने उसे कहा- यार, बहुत छोटी है मेरे लिए!
तो वो मेरे पास आया और बोला- नहीं; ठीक है!
और निकर को पकड़ कर ऊपर खींच दिया और मुझे पहना दी।

यह बेहद छोटी निकर थी, पहले तो मुझे लगा कि वो फट जाएगी लेकिन वो एक शानदार खुलने वाले कपड़े की बनी थी और फटी नहीं। निकर बहुत लो-कट थी। एलास्टिक धुन्नी(नाभि) के बहुत नीचे थी और वो निकर नीचे से मेरी फुद्दी पर कस गई थी। वो मेरी मेरी मेहंदी लगी जांघों को ढकने की बजाये और पेश कर रही थी। मेरे बड़े बड़े चूतड़ उसमें और खुल कर सामने आ गए थे।

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जांघ की मेहंदी

तभी मैंने टीशर्ट भी पहनी और लो … ये भी धुन्नी के बहुत ऊपर आकर खत्म हो गयी। मेरा चिकने और गोरे पेट का ज़्यादातर हिस्सा खुला ही था। मैंने उसकी तरफ देखा तो उसने मुझे एक जोड़ी बेहद ऊंची एड़ी के सैंडल दिए।

मैं उन्हें पहन कर शीशे के सामने गयी तो हैरान रह गयी। उस निकर में तो मेरा पिछवाड़ा पहाड़ लग रहा था, नंगी थी तो इतना नहीं लगता था। एक बार मेरे पति ने मनाली ले जाकर मुझे एक टाइट जीन पहना दी थी। मेरा पिछवाड़ा देख देख कर जनता हमारे पीछे पीछे ही घूमती रही, उसी दिन उसने मुझे बोल दिया था कि आगे से जीन या निकर नहीं पहननी।
और यह निकर इतनी छोटी और टाइट थी कि मेरे निचले जिस्म का रोम रोम नुमाया हो गया था। ऊपर से वो टी शर्ट बहुत शार्ट थी, धुन्नी के आधा फुट ऊपर ही रह गयी। नीचे बेहद ऊंची एड़ी के सैंडल।

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चूत का आकार

तभी वो मुझसे बोला- थोड़ा चल के तो दिखा मेरी झम्मक-छल्लो!
मैंने कमरे में ही बाल ठीक करते करते दो-तीन चक्कर लगाए। मैंने कभी इतनी ऊंची एड़ी के सैंडल नही पहने थे। चलने में बहुत दिक्कत आ रही थी।
तो मैंने उससे कहा- ये सैंडल नहीं पहनने, एड़ी बहुत ऊंची है औए नशा भी है, गिर जाऊँगी।
“कोई बात नहीं जानेमन, गिर गई तो उठा लूंगा, लेकिन यही पहनने हैं बस!”

मैंने पूरी तरह तैयार होकर उससे पूछा- हम जा कहाँ रहे हैं?
तो उसने बताया कि शहर की बगल में ही एक मेला लगा है, वहां घूम कर आते हैं और मैंने कुछ दोस्त भी बुलाये हैं, ज़रा उन्हें थोड़ा जला तो दूं तुझे दिखा कर … तेरा जलवा दिखा कर!

मैंने कुछ सोच कर कहा- हां, हां, मिल तो मैं लूंगी लेकिन मुझे चुदना नहीं है और किसी से … और अगर ऐसा हुआ तो फिर मुझे भूल जाना हमेशा के लिए। तुम जैसे चाहो कर सकते हो, और किसी से नहीं ओके?
उसने कहा- चुदवाने नहीं ले जा रहा हूँ, टेंशन मत ले, दिखाने ले जा रहा हूँ तेरा मक्खन जिस्म … चल आजा जल्दी।

मैंने कहा- मुझे ठंड लगेगी, ऊपर से कुछ पहन लूं?
अब वो चिढ़ गया- नखरे मत कर, बाहर गाड़ी खड़ी है, चुपचाप चल के बैठ जा, समझी!

मैं मुँह सा बनाती, उन ऊंची एड़ी के सैंडलों पर धीरे धीरे उसके साथ चलने लगी। ऐसा लग रहा था कि मेरे चूतड़ निकर फाड़ के कभी भी बाहर आ सकते हैं, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

चूतड़ मटकाती उसकी फारचूनर गाड़ी में आगे उसके साथ बैठ गयी और वो गाड़ी चलाने लगा।

कहानी जारी रहेगी.
आपकी रूपिंदर कौर
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