मेरी गली का सलीम-2

लेखिका : शमीम बानो कुरेशी

वो बोला- कल घर के सब लोग एक शादी में जायेंगे, आप उस समय मेरे घर आ जाना, बातें करेंगे।”

“बातें करेंगे या चुदाई…?” मैंने उसके सीधे साधे दिल को भड़का दिया।

“बानो आप तो जाने कैसे ये सब कह देती हो?” वो मचल कर बोला।

“देखो मुझे गाण्ड मराने में बहुत मजा आता है … बोलो तो मारोगे ना?” मैंने उसकी आँखों में देखते हुये कहा।

उसने मेरे गाण्ड का एक गोला दबा दिया … मैं तो चिहुंक उठी।

“तो पक्का ना…?” उसने फिर से मुझे याद दिलाया।

मैंने घर आकर ठीक से अपनी चूत की शविंग की और उसे चिकनी बना ली। गाण्ड में क्रीम भर कर उसे खूब मल लिया और उसे भी चिकनी कर दिया। मैं घर से बार बार झांक कर देख रही थी कि उसके घर वाले गये या नहीं। फिर करीब सात बजे मजीद अंकल ने कार निकाली और सब चले गये। मैंने तुरन्त अपनी चड्डी और ब्रा उतार फ़ेंकी और अपनी फ़्रॉक ठीक की। मात्र एक फ़्रॉक में ही उसके घर चली आई।

उसने दरवाजा खुला छोड़ रखा था। मुझे देखते ही वो खिल गया। मेरे पहुँचते ही उसने जल्दी से दरवाजा बन्द कर दिया।

“सलीम भाई जान, घर में और कोई तो नहीं है ना?”

मेरी बात सुनकर पहले तो उसने मुझे देखा फिर बोला- कोई नहीं है …

“मजीद अंकल तो गये, अब तो हम तुम एक कमरे में बन्द ..तो फिर ये देख …” मैंने अपनी फ़्रॉक ऊंची कर दी। मेरी चिकनी चूत चमक उठी।

वो तो अपनी आँखें फ़ाड़े बस देखता ही रह गया।

“हाय बानो … इतनी सुन्दर … मस्त है … लाल सुर्ख गहराई है।” उसके मुख से आह निकल गई।

मैंने झट से अपनी फ़्रॉक नीचे कर दी और बोली- अब दिखा दे अपना डन्डा भी…

पहले तो शरमा गया फिर बोला- बानो शरम आती है … आज तक मैंने किसी को अपना दिखाया नहीं !

“ठीक है तो ले अब मस्त हो जा !” मैंने उसकी शरम खोलने की कोशिश की । मैंने अपनी फ़्रॉक उठा कर उसके मुख को अपनी फ़्रॉक के घेरे में ले लिया। उसका मुख मेरी चूत के बहुत निकट था। उसे मेरी खुली चूत की भीनी भीनी सुगंध आ रही थी।

“अब कुछ कर ना … देख मुझे तेज खुजली होने लगी है !” मेरे तन मन में एक सनसनी सी फ़ैलने लगी थी।

सच में मैं खुजली के मारे बेहाल हो रही थी। बस लग रहा था कि कोई लौड़ा अन्दर तक समा जाये और उसे चोद डाले। उफ़्फ़्फ़ ! जाने कितने दिन हो गये थे … कौन चोदता भला … सभी तो मुम्बई चले गये थे।

सलीम ने धीरे से अपना मुख फ़्रॉक से बाहर निकाला- क्या करूँ बानो … कुछ बता तो सही?

उसने वासना भरी आँखों से मुझे देखा।

मैंने फिर से अपनी फ़्रॉक के अन्दर उसे ले लिया और कहा- सलीम … ओह्ह्ह … मेरी चूत को चूस डाल … मेरी खुजली मिटा दे…

फिर मैंने अपनी चूत उसके नाजुक होंठो पर दबा दी। उसने पहले तो अपना मुख मेरी चूत पर रगड़ा और फिर अपनी जीभ निकाल कर मेरी गीली चूत को एक बार में ही चूस कर साफ़ कर दी।

फिर मुझे गुदगुदी सी हुई … उसकी जीभ मेरी चूत में प्रवेश कर गई थी। मैंने अपने पांव थोड़े से और खोल दिये। तभी उसकी जीभ ने मेरे फ़ूले हुये मटर के से दाने को रगड़ा और फिर अपने होंठों से भींच लिया। एक तीखी सी मिठास और जलन सी शरीर में फ़ैल गई।

“मार डाला भोसड़ी के … देख काटना मत … लग जायेगी।” मैं खुशी से झूम उठी।

वो बिना कुछ बोले मेरे दाने को होंठो से सहलाता रहा और दबाता रहा। मैंने उसके बाल पकड़ लिये और खींचने लगी।

“आह … बानो ! छोड़ दे ! लगती है…” वो कराह उठा।

“मादरचोद, तूने तो मेरी मां ही चोद दी … हाय अल्लाह … पानी निकाल देगा क्या?”

अब उसकी जीभ मेरी प्यारी सी चूत पर सड़ाक सड़ाक चल रही थी। मेरा तो गुदगुदी के मारे बुरा हाल हो गया था।

“साले हरामी… अब तो मुझे चोद डाल ना … देख चूत ने कितना बड़ा मुँह खोल दिया है।”

उसने अपना मुख मेरी फ़्रॉक से बाहर निकाल लिया और जोर से मुझसे लिपट गया। मुझे उसने वहीं कुर्सी पर बैठा कर अपनी पैंट खोल दी और चड्डी उतार कर अपना सोलिड लण्ड बाहर निकाल लिया।

ओह मेरी अम्मी … गुलाबी-भूरे रंग का मस्त सुपारे मेरी आँखों के आगे झूम उठा। लगता था सारा रक्त उसी में भरा हुआ हो।

मैंने सुपारे को मुठ्ठ से रगड़ते हुये हाथ को उसके डण्डे पर आगे पीछे करने लगी। उसके सुपारे की चीर पर कुछ बूंदे चिकनी सी निकल आई। मेरे से रहा नहीं गया। उसके सुपारे में से वीर्य की सुगन्ध आ रही थी। मैंने धीरे से अपनी आँखें बन्द की और लण्ड का फ़ूला हुआ सुपारा अपने मुख में ले लिया। उस गरीब को क्या पता था कि इस फ़ील्ड की मैं तो एक कुशल खिलाड़ी हूँ।चर्म रहित उसका सुन्दर गर्म सुपारा मेरे नर्म मुँह में घूमने लगा। दांतों का हल्की काट से वो मदमस्त होने लगा था। उसके सुपारे के छल्ले को कस कर जीभ और होंठों की रगड़ से उसे मस्त कर दिया। कुछ समय बाद उसका सुपारा मैंने अपने मुख से बाहर निकाल दिया।

सलीम की आँखें वासना के मारे लाल सुर्ख और नशीली हो रही थी। लण्ड बहुत ही उत्तेजित अवस्था में 120 डिग्री पर तना हुआ था।

मैंने पलट कर अपने हाथ खाट पर रख लिये और अपनी गाण्ड का उदघाटन करवाने के लिये मैं घोड़ी सी बन कर उसके सम्मुख अपनी गाण्ड के गोले उभार दिये। थोड़े से चूतड़ के गोलों के खिलने से मेरी गाण्ड का भूरा सा छेद बाहर नजर आने लगा। लण्ड खाने की भूख से मेरा गाण्ड का छिद्र अन्दर बाहर हो कर मचलने लगा था।

“भैन के लौड़े … अब मार भी दे मेरी गाण्ड … तेरी तो भोसड़ी के… !” मैंने अपने दांतों को किटकिटा कर कहा।

“फ़ट जायेगी तेरी गाण्ड बानो, पहले चूत मरवा ले !” उसने मुझे अपनी राय दी।

“तेरी तो… गाण्डू भड़वे… मां चोद दूंगी तेरी तो … चल लगा गाण्ड में लौड़ा…” मुझे गुस्सा सा आने लगा था।

“ऐ साली … मरेगी … मेरा क्या …” कह कर उसका स्पंजी सुपारा मेरी गाण्ड के छेद से चिपक गया। मुझे बड़ी सुहानी सी गुदगुदी हुई। वो हल्के हल्के उसे मेरी गाण्ड में दबा रहा था। मुझे बहुत तेज मीठी सी पीड़ा होने लगी थी। तभी सुपारा धीरे से भीतर सरक आया। सच में उसका लण्ड भारी लग रहा था।

“क्या बात है सलीम … साला है तो फ़िट एकदम … चल मार दे अब मस्ती से मेरी गाण्ड !” उसके लौड़े को भीतर महसूस करके मैं बोली।

उसका लण्ड मेरी गाण्ड के अन्दर कोमल दीवारों को रगड़ता हुआ घुसने लगा। आह्ह कैसा मधुर सा अहसास था… फिर उसने अपना लण्ड थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर अन्दर सरकाता चला गया। मैं गाण्ड मराने में माहिर … मुझे बहुत ही तेज आनन्द आने लगा था। मेरी सुन्दर गाण्ड की चुदाई लगभग दो महीने के बाद हुई थी, आनन्द से अभिभूत हो गई थी मैं तो।

“सलीम, मेरी चूत में अपनी दोनों अंगुलियाँ घुसा दे… मजा आ जायेगा … !” मैंने और भी अधिक मजा लेने के लिये उसे कहा और सलीम ने मेरी चूत में दो दो अंगुलियाँ डाल कर अन्दर बाहर करने लगा। दूसरा हाथ उसने मेरी चूचियों पर डाल दिया था।

एक साथ तीन तीन मजे… मेरी गाण्ड के साथ साथ मेरी चूत में भी वो अंगुलियाँ घुसा कर मस्त किये दे रहा था। फिर एक हाथ से मेरे कड़े बोबे दबा दबा कर मुझे उत्तेजित कर रहा था। उफ़्फ़्… कितना मजा आ रहा था इस गाण्ड मराई में। वो मस्ती से मुझे पेल रहा था। मुझे अत्यधिक आनन्द आने लगा था। मेरी चूत भी चूने लगी थी। मेरी गाण्ड की टाईट रगड़ से वो जल्दी ही झड़ गया। साथ साथ उसने उत्तेजना की मारी मुझे भी स्वर्ग दिखा दिया। फिर तो मैं जोर से झड़ने लगी। कई दिनों के बाद सन्तुष्टि के साथ झड़ी थी सो मुझे बहुत मजा आया था। समय देखा तो मात्र साढ़े आठ ही बजे थे।

सलीम ने मुझे चाय बना कर पिलाई, थोड़ा सा मटन कवाब खिलाया तो हम दोनों ही फिर से ताजा दम हो गये। उसका लण्ड एक दम से खड़ा हुआ तना हुआ था।

मैंने कहा- सलीम, अपने लण्ड को मुझ पर मार के देख …”

मैंने उसे नया खेल सुझाया।

“वो कैसे…?” उसने कुछ आश्चर्य से मुझे देखा।

“पास आ और लण्ड से मेरे मुख पर लण्ड के सुपारे से मार, फिर यहाँ मारना फिर यहां पर भी…” मैं उसे अपने अंग बताती रही…

सलीम ने मेरे गालों पर अपना लण्ड ठपकाया, फिर जल्दी जल्दी वो होंठों पर, गले पर मेरे स्तनो पर, पीठ पर मारने लगा। इससे उसका लण्ड भी लाल सुर्ख हो कर फ़ड़फ़ड़ाने लगा … अन्त में बैचेन हो कर उसने मुझे सीधे करके दबोच लिया और मेरी चूत में लण्ड मारते हुये उसमें उसे घुसेड़ दिया। मुझे इस कार्य से बहुत उत्तेजना होती थी। उसने मुझे नीचे कालीन पर ही चोदना आरम्भ कर दिया।

मैंने भी खूब चीख चीख कर अपनी खुशी का इजहार किया। उसने अपनी रासलीला मेरे पूरे तन पर अपने वीर्य का छिड़काव करके पूर्ण की।

मेरी उत्तेजना के साथ साथ जोश और छटपटाहट भी थी सो थकान भी आ गई थी। पर वो तो पठ्ठा 20 साल का मस्त मुस्टण्डा था। उसे अधिक असर नहीं हुआ था। उसने कुछ ही देर में अपने आप को तैयार कर लिया था। पर मैं तो बस उठ कर बैठी ही थी।

“क्या हुआ बानो … मस्ती से चुदी ना…?”

“तू तो बहुत मस्ती से चोदता है रे … तू तो मुझे रोज ही चोद दिया कर !” मैंने गहरी सांस भर कर कहा।

“अरे तू रुक तो सही … जरा नीचे घोड़ी तो बन जा… !”

मुझे समझ में नहीं आया था … अभी अभी तो मेरी गाण्ड मारी थी उसने … अब क्या करेगा।

मैं उछल कर पास के दीवान पर चढ़ कर फिर से घोड़ी बन गई। उसने एक थूक का लौन्दा मेरी गाण्ड पर टपकाया और अपना तना हुआ लण्ड फिर से जोर जोर से मारने लगा। उसके ऐसा करने से मुझे भी रंगत चढ़ने लगी। फिर उसने अपना लण्ड मेरी गाण्ड में फ़ंसा दिया।

“बानो हो जाये … एक बार मस्ती की गाण्ड चुदाई ?”

“आज नहीं, फिर कभी ना !” मैंने यूं ही उसे छेड़ने के लिये कहा, मुझे पता था बिना गाण्ड मारे तो वो मुझे छोड़ेगा नहीं, क्या करूँ, मेरी गाण्ड ही इतनी मस्त है।

“कल किसने देखा है मेरी बानो … आज ही ले ले मेरा लौड़ा !” वो खुशी से किलकारी मारता हुआ बोला।

उसने धीरे से अपना लण्ड फिर से मेरी गाण्ड में घुसा डाला। मैंने अपना सर तकिये में घुसा लिया और उसे गाण्ड मारने दिया। उसने तो खूब ही बजाया मेरी गाण्ड को… । फिर उसने मेरी पीठ पर वीर्य उगल दिया।

इस तरह वो रात को दस बजे तक मेरी सिर्फ़ गाण्ड को ही चोदता रहा … इतनी देर में मेरी गाण्ड में जलन सी उठने लगी थी। सलीम के घर वालों के आने समय भी हो चुका था।

तब उसने मेरे बदन को ठीक से साफ़ किया। मैंने अपनी फ़्रॉक पहन ली।

“चल अब मुझे घर तक छोड़ कर आ … वर्ना अब्बू-अम्मी मुझे डांटेंगे।”

“अच्छा चलो !” सलीम और हम दोनों बातें करते हुये घर आ गये।

“अरे मरी, भोसड़ी की … कहां से चुद कर आ रही है?” अब्बू की चिर परिचित गाली के साथ दोनों का स्वागत हुआ।

“अब्बू, सलीम है … उह्ह्ह्ह कुछ चाय वाय तो पिला दो !” मैंने अम्मी को आवाज लगाते हुये कहा।

“ओह बेटा सलीम … अरे क्या कहूँ? घर में इतना काम रहता है और ये छिनाल जाने कहाँ गाण्ड मरवाती फ़िरती है?”

सलीम अपना मुख दबा कर हंसने लगा। मैंने भी उसे देखा और हंस पड़ी। फिर मैं नहाने अन्दर चली गई। अम्मी ने उसके लिये चाय बनाई, फिर अम्मी और सलीम गपशप मारने लगे। मैंने साबुन से अच्छी तरह से वीर्य की चिपचिपाहट साफ़ की और बनठन कर फिर से बाहर आ गई। सलीम जाने को तैयार खड़ा था। उसने जाने से पहले मुझे एक कागज का टुकड़ा दिया जिसमे उसका मोबाईल नम्बर लिखा हुआ था।

मैंने उसे आंख मार दी … वो झेंप कर बाहर जाने को मुड़ गया। मैं दरवाजे का सहारा लेकर उसे अंधेरे में गुम होते हुये देखती रही…

शमीम बानो कुरेशी

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