कल्पना का सफ़र-2: संध्या ने सिखाया

(Kalpna Ka Safar-2: Sandhya Ne Sikhaya)

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कल्पना का सफ़र: गर्म दूध की चाय
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भाभी ने अपने होंठ विवेक के होंठों पर रख दिए और विवेक को चुम्बन करने लगी। धीरे धीरे कर संध्या विवेक के शर्ट के बटन एक-एक कर खोलने लगी और उसकी छाती पर अपने मुलायम हाथ चलाने लगी।
विवेक अपना नियंत्रण धीरे-धीरे खोता जा रहा था, एक तरफ संध्या का किस करना चालू था, फिर भाभी ने विवेक को खड़ा किया और उसका बनियान भी उतार दिया।

अब विवेक संध्या के सामने केवल चड्डी में था। संध्या विवेक को एक पल निहारती रही, बाद में विवेक को बोली- वाओ विवेक… बॉडी तो काफी मेन्टेन की है, कितना छुपा कर रखोगे इसे?

बातें करते-करते संध्या ने विवेक का हाथ अपने बूब्स पर टिका दिया।

लेकिन जैसे ही विवेक को ज्ञात हुआ कि संध्या ने उसका एक हाथ उसके स्तनों पर टिका दिया है, विवेक ने अपना हाथ संध्या के वक्ष से हटा लिया। संध्या का भी इस पर ध्यान भंग हुआ और उसने विवेक से पूछा- क्या हुआ?

विवेक ने कहा- भाभी यह सब ठीक नहीं है, गलत है यह सब कुछ!

संध्या ने कहा- तुम तो काफी शर्मीले हो विवेक, हम कुछ गलत नहीं कर रहे, मैं केवल तुम्हें यह सब सिखाकर तुम्हारी मदद कर रही हूँ।

विवेक फिर भी असमंजस में था, संध्या ने कहा- अब पछतावा करने से कुछ नहीं होगा, हम दोनों ने अपनी हदें पार कर दी हैं इसलिए अच्छा है कि हम अब आगे बढ़ें और अपने इस कार्य को पूरा कर इसे नियत अंजाम तक ले जाएँ।

विवेक कुछ देर सोच में डूबा रहा, फिर उसे लगा कि शायद भाभी ठीक ही कह रही हैं। अब विवेक कुछ कम्फ़र्टेबल दिख रहा था, अब विवेक ने खुद पहल की, उसने संध्या को कस के अपनी ओर खींचा और अपने होंठ संध्या के होंठों पर टिका दिए।

संध्या कुछ देर बाद अपने आप को विवेक से अलग करके बोली- यह हुई ना बात… मेरे राजा! चल आ जा, तुझे जन्नत के मजे करवाऊँगी।

इतना कहने पर संध्या ने अपने होंठ विवेक के होंठों पर फिर से रख दिए और धीरे-धीरे एक दूसरे को चूमने लगे।
संध्या विवेक की जीभ को अपने मुंह में लेकर चूस रही थी और साथ-साथ विवेक के सर पर बेतहाशा हाथ फेर रही थी, शायद वो बरसों से इस तरह के प्यार को पाने के लिए भूखी थी।

विवेक भी संध्या का जमकर साथ दे रहा था लेकिन जो संध्या करना चाहती थी वो ही विवेक करता था क्योंकि वो अभी नौसिखिया था।

संध्या विवेक को किस करते-करते अपने हाथ विवेक के कन्धों पर, छाती पर पीठ पर फेर रही थी, विवेक भी साथ दे रहा था।

संध्या ने विवेक को किस करते-करते अपने नाखून के निशान विवेक की छाती और पीठ पर बना दिए, विवेक को कुछ जलन महसूस हुई पर वो कुछ नहीं बोला, संध्या अपनी चरमसीमा पर थी शायद!

संध्या और विवेक को अपना चुम्बन का पाठ शुरू किये लगभग आधा घंटा हो गया था और अब भी वे चुम्बन ही कर रहे थे।

संध्या भी किसी तरह की जल्दबाजी नहीं करना चाहती थी, वो खुद भी मज़ा ले रही थी और विवेक को सारी बातें धीरे-धीरे सिखा रही थी।

शाम के 7:30 बज गये थे, विवेक और संध्या अब भी किस कर रहे थे, इतने में दरवाजे की घंटी बजी, संध्या को लगा कि शायद उसके पति हो सकते हैं, और एक तरफ विवेक केवल चड्डी में था, संध्या ने अपने आपको विवेक से जल्दी अलग किया और विवेक को कपड़े लेकर बाथरूम में जाने को कहा और वहाँ पहनने को कहा।

और उसने जल्दी दरवाज़ा खोला, उसके पति ही थे, निशीथ अन्दर आया तभी विवेक भी बाथरूम से कपड़े पहन कर निकला, निशीथ ने विवेक से पूछा- कैसा चल रहा है? तुम अपनी भाभी को ठीक से सिखा तो रहे हो ना?

विवेक ने ‘जी’ में जवाब दिया।

निशीथ के आ जाने से संध्या और विवेक की प्रणय-क्रीड़ा टूट गई थी, थोड़ी देर में विवेक अपने घर चला गया।

विवेक के जाने के बाद निशीथ खड़ा हुआ और अपने रूम की तरफ जाने लगा, संध्या ने पूछा- कहाँ जा रहे हो निशीथ?

निशीथ ने कहा- कपड़े बदल कर लेटूंगा थोड़ी देर…

संध्या ने कहा- मेरे सामने बदल लो ना… कितने दिन हो गये तुम्हारे जिस्म के स्पर्श का आनंद लिए हुए! चलो न आज की रात को मिलन की रात बनायें !

निशीथ थका हारा था तो उसने संध्या के गालों पर हाथ फेरा और कहा- डार्लिंग, आज नहीं, फिर कभी… आज तो मैं पूरी तरह थक चुका हूँ।

संध्या बेचारी तड़पती रह गई! शायद यही कारण था जिसके लिए संध्या विवेक को सेक्स के बारे में सिखाने के लिए तैयार हो गई थी।

खैर उस रात निशीथ के आ जाने से विवेक और संध्या की प्रणय-क्रीड़ा पूरी न हो सकी। विवेक उस रात घर तो गया लेकिन उसके दिमाग में संध्या भाभी ही घूमती रही और अपनी इच्छाओं से विवश विवेक ने उस दिन पहली बार संध्या के नाम की मुठ मारी और सो गया।

अगली सुबह जब निशीथ काम पर चला गया तब संध्या विवेक के कमरे में आई, उस वक़्त विवेक उठा ही था और नाईट ड्रेस में था।
भाभी उसके पास गई और बोली- आज 5 बजे क्लास में आना, थोड़ा ज्यादा टाइम मिलेगा!

विवेक ने हामी भर दी और बाथरूम की तरफ मुड़ने लगा।

जैसे ही विवेक मुड़ा, संध्या ने हल्का सा चांटा विवेक के पिछवाड़े पे मारा और मुस्कुराई और चल दी।

शाम के 5 बजे विवेक संध्या के घर पर पहुँच गया, संध्या विवेक की ही राह देख रही थी, उसने विवेक को अन्दर बुलाया और उसे चूमने लगी।
आज तो विवेक भी जोश में था, उसे पता था कि चुम्बन कैसे करते हैं, विवेक भी संध्या को पूरे जोश के साथ किस कर रहा था। किस करते-करते परसों की तरह ही संध्या ने विवेक के कपड़े उतार दिए और उसे चड्डी में ही छोड़ा, संध्या विवेक को बेतहाशा चूम रही थी।

फिर संध्या ने विवेक से खुद को अलग किया, थोड़ी झुकी और विवेक के कंधों को चूमने लगी, फिर संध्या और भी नीचे आई, विवेक की छाती पर अपने हाथ फेरने लगी और चूमने लगी।
चूमते-चूमते कभी संध्या विवेक के स्तनों पर हल्का सा काट भी लेती। संध्या की इन हरकतों से विवेक के मुख से मस्ती भरी सिसकारियाँ निकल जाती।

फिर संध्या ने थोड़ा होश संभाला और विवेक को कहा- चलो, बेडरूम में चलते हैं।

विवेक बेडरूम की तरफ बढ़ ही रहा था कि संध्या ने कहा- ऐसे नहीं!

विवेक ने पूछा- तो कैसे?

संध्या ने कहा- चलो मुझे उठाओ और मुझे बेडरूम ले चलो।

विवेक ने संध्या को उठाया और बेडरूम की तरफ चल पड़ा। बेडरूम में आते संध्या ने कहा- अब मुझे बेड पर पटको!

विवेक ने बिलकुल ऐसा ही किया। अब संध्या ने विवेक को भी अपनी तरफ खींच लिया, विवेक संध्या की तरफ जैसे ही झुका, संध्या विवेक को चूमने लगी। चुम्बन करते-करते संध्या ने परसों की तरह विवेक का हाथ उठा कर अपने वक्ष पे टिका दिया।
अब की बार विवेक ने हाथ नहीं हटाया, विवेक का हाथ वहीं रखा रहा। संध्या ने विवेक का हाथ पकड़ा और उसको अपने बूब्स पर धीरे-धीरे कर फिराने लगी।

संध्या ने देख लिया था कि विवेक का लंड अब पूरी तरह तन गया है। फिर संध्या ने विवेक को अपनी ओर खींचा और कहा- बाकी अब कल सीखेंगे।

विवेक ने कहा- क्या भाभी, आप भी? अभी नहीं सीख सकते पूरा का पूरा?

संध्या ने ना कहा और बिस्तर पर से उठ कर किचन की ओर चल पड़ी। विवेक अब चड्डी में खड़ा हुआ, नीचे गया और अपने कपड़े पहन कर जाने लगा।

वो जा ही रहा था कि संध्या ने विवेक को बुलाया और कहा- आज जो काम अधूरा छोड़ा है, उसे याद कर रात को मेरे नाम की मुठ जरूर मारना! मारोगे न?

विवेक खामोश खड़ा रहा।

संध्या ने कहा- बोलो विवेक, मारोगे के नहीं?
विवेक हकलाता हुआ बोला- हाँ…

संध्या ने कहा- डरते क्यों हो? ठीक से बोलो कि ‘हाँ संध्या मारूंगा!’

अगले दिन जब विवेक संध्या के घर गया तो संध्या किचन में चाय बना रही थी, विवेक ख़ामोशी से किचन में गया और संध्या को कस के पीछे से पकड़ लिया।
संध्या ने कहा- आ गये तुम? चाय पियोगे?

विवेक ने कहा- पिलाओगी तुम?

संध्या ने कहा- आप से अब तुम हो गया? बड़ी जल्दी सीख रहे हो…

विवेक ने संध्या को ऐसे ही पकड़े हुए उसकी गर्दन पर किस किया और बाद में उसके कान पर एक चिकोटा काट लिया।

संध्या ने चाय बनाई और इस बार दोनों ने एक ही कप में बारी-बारी से पी। चाय ख़त्म कर विवेक ने संध्या को गोदी में उठा लिया और बेडरूम की तरफ चल पड़ा।

संध्या ने विवेक को कहा- पहले कपड़े तो उतारो!

विवेक ने कहा- इतनी भी क्या जल्दी है… सब करेंगे।

संध्या ने कहा- काफी सीख गये हो. कैसे हुआ ये मिरेकल यानि जादू?

विवेक ने कहा- भाभी, आज कल ब्लू-फिल्में बहुत चलती हैं न! वो ही देख के सीखा।

संध्या ने पूछा- क्या तुम्हारे पास हैं ऐसी वाली फिल्में?

विवेक ने कहा- हाँ ढेर सारी हैं क्या आप देखेंगी?

संध्या ने कहा- हां, मैं देखना चाहूँगी, क्या तुम्हारे कमरे में हैं?

विवेक ने कहा- हाँ!

भाभी ने कहा- जाओ, ले के आओ, साथ में देखेंगे।

विवेक गया, सी डी ले के आया और प्लेयर में लगा दी।

भाभी ने इसी दौरान विवेक को किस किया और विवेक के एक एक कर कपड़े उतारने लगी और उसे रोज की तरह केवल चड्डी में छोड़ा।

अब दोनों सोफे पे बैठ के फिल्म देख रहे थे, संध्या विवेक का सर अपनी गोदी में रख कर बेठी थी और विवेक संध्या की गोद में चड्डी पहने लेटा हुआ था।

संध्या ने थोड़ी देर बाद देखा कि विवेक का लंड खड़ा हो चुका है, उसने विवेक से बोला- विवेक तुम्हारा तो खड़ा हो गया, इसे शांत करना पड़ेगा।

विवेक ने तपाक से कहा- हाँ भाभी, ऐसा ही लगता है।

संध्या ने इतने में पूछा- विवेक, कल मेरे नाम की मुठ मारी थी?

विवेक कुछ बोल न सका।

संध्या ने कहा- चल बे, अब इतना शरीफ न बन… चल अब बता भी दे!

विवेक ने बोला- हां मारी थी।

संध्या ने कहा- यह हुई ना बात!

बातें करते-करते संध्या ने फ़िल्म बंद कर दी और विवेक को बोली- अब कुछ नया करेंगे।

कहानी जारी रहेगी, आपको यह कहानी कैसी लगी, अपने विचार मुझे जरूर मेल करें।

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