बाल्कनी से बेडरूम तक

(Balcony Se Bedroom Tak)

अन्तर्वासना पर यह मेरी पहली कहानी है।

मैं 28 साल का एक गोरा और भरे-पूरे बदन का लड़का हूँ और मैं लखनऊ में एक अपार्टमेंट में रहता हूँ।
मैं अक्सर अपने फ्लैट की बाल्कनी में खड़ा होकर कॉफी पीता हूँ।

एक दिन मैं अपना कप हाथ में लेकर कॉफी पी रहा था.. अचानक सामने वाली बाल्कनी में एक लड़की दिखी दी.. जिसकी उम्र तकरीबन 25 साल की रही होगी।
बड़ी ही खूबसूरत थी.. बस उसको देखते ही मुझे लगा कि जैसे मुझे मेरे सपनों की रानी मिल गई है।
मैं उसे कनखियों से देखने लगा.. पता नहीं तभी उसको क्या हुआ कि वो अचानक चली गई।

मुझे लगा कि वो मेरी नज़रों को समझ गई है.. पर ना जाने क्यों उसकी खूबसूरती मेरे दिल को भा गई।
मैं सोचने लगा कि काश ये लड़की मेरी गर्लफ्रेंड बन जाए.. अगर उसके बाद मैं मर भी जाऊँ.. तो कोई गम नहीं।

अगले दिन मैं उसी टाइम पर कॉफी मग हाथ में लिए हुए अपनी बाल्कनी में पहुँचा.. तो पाया कि वो अपनी बाल्कनी में पहले से ही खड़ी थी।

मैं अपनी बाल्कनी में टहलने लगा और चोरी-छुपे उसे देखने लगा। वो साड़ी पहने हुए थी.. शायद शादी-शुदा थी। मगर वो साड़ी में भी काफ़ी सेक्सी लग रही थी।
उसने साड़ी काफ़ी टाइट पहन रखी थी.. जिससे उसके उभार साफ नज़र आ रहे थे।

उसकी साड़ी नीले रंग की थी और उसका गोरा रंग.. कसम से मेरा लम्बा लण्ड कड़ा होने लगा। उसके मम्मे तो कमाल के थे.. मन कर रहा था कि बस चूस डालूं.. लेकिन मैं उसे देखने के अलावा कुछ कर नहीं सकता था।

मैं रोज़ाना फिक्स टाइम पर कॉफी मग लेकर अपनी बाल्कनी में टहलता था और मैंने नोटिस किया कि वो भी उसी टाइम पर अपनी बाल्कनी में टहला करती थी.. मगर मुझसे सीधी नज़रें नहीं मिलाया करती थी.. बस चुपचाप मुझे देखने की कोशिश किया करती थी।

ऐसे करते-करते 5 दिन गुज़र गए और मैं उसकी झलक पाने के लिए उतावला रहने लगा।
इसीलिए मैं अपने फिक्स टाइम से 30 मिनट पहले अपनी बाल्कनी में जाकर खड़ा हो जाया करता था और उसका इंतज़ार किया करता था।

एक दिन मैं एक जगह खड़े होकर उसकी तरफ देखने लगा, मैंने अपना कॉफी मग साइड में रख दिया था।

तभी मैंने देखा वो भी रुक गई.. बस मानो मेरी मुराद पूरी हो गई।
तभी मुझको शरारत सूझी, मैंने उसको आँख मारी.. तो वो अपना सर झुका कर खड़ी हो गई मगर वहाँ से हटी नहीं।

कुछ देर बाद उसने अपने सर उँचा किया तो मैंने फिर से उसे आँख मारी.. तो इस बार उसने अपना सर नहीं झुकाया बस मुस्कुरा कर रह गई।

तभी वो अपने घर के अन्दर चली गई.. तो मेरा दिल टूट गया।

मैं तो उसकी एक झलक पाने के लिए बेताब था.. तो मैं नहीं गया.. अपनी बाल्कनी में खड़ा रहा।

थोड़ी देर बाद वो अपनी बाल्कनी में फिर से नज़र आई.. इस बार उसके हाथ में काग़ज़ और पेन था।
उसने काग़ज़ पर कुछ लिखा और काग़ज़ की बॉल बना कर मेरी तरफ उछाल दिया।

काग़ज़ सीधा मेरी बाल्कनी में आ कर गिरा.. मैं झट से उस कागज की तरफ़ लपका और मैंने काग़ज़ को खोल कर देखा।

उस पर एक नाम लिखा था, ‘प्रिया’ और उसके नीचे एक मोबाइल नंबर था।

मैंने अपनी जेब से अपना फोन निकाला और नंबर डायल किया। वो नंबर उसी का था.. मेरी तो जैसे किस्मत ही खुल गई। उस दिन मैंने उस से 2 घंटे फोन पर बात की और अगले दिन उसको अपने यहाँ कॉफी पर इन्वाइट किया।

अपार्टमेंट कल्चर ऐसा होता है कि कौन किसके यहाँ जा रहा है.. किसी को मतलब नहीं होता.. इसीलिए किसी बात का कोई डर भी नहीं था।
वो आसानी से मान भी गई.. उसने मेरे फ्लैट में दिन में दो बजे मिलने का डिसाइड किया।

गर्मी के दिन थे.. तो दो बजे के आस-पास काफ़ी सन्नाटा रहता है और वैसे भी में अपने फ्लैट में अकेला था।

मगर बातों-बातों में मैंने उसको बता दिया था कि वो नीली साड़ी पहन कर आए तो मुझे अच्छा लगेगा.. जिसे वो मान भी गई।

अगले दिन रविवार था और मुझे कहीं जाना भी नहीं था तो मैं सुबह 9 बजे से ही तैयार हो कर बाल्कनी के चक्कर लगाने लगा.. मगर वो नज़र नहीं आई।

फिर दस बजे.. ग्यारह.. एक.. दो.. दो से तीन.. मगर वो नज़र नहीं आई।

मैंने हार नहीं मानी.. मैं बाल्कनी में खड़ा होकर वेट करने लगा कि शायद अपनी बाल्कनी में नज़र आ जाए.. मगर उस हसीना का दीदार नहीं हुआ।

एक-एक पल काटना मुश्किल हुआ जा रहा था.. जैसे ही शाम के 4 बजने को हुए कि अचानक दरवाज़े की बेल सुनाई दी।
मैं दरवाज़े की तरफ भागा..

मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ.. मेरे सपनों की रानी मेरे सामने नीली साड़ी में खड़ी थी।

वो बिल्कुल परी लग रही थी.. मैं उसको देखता ही रह गया, जैसे सपनों की दुनियाँ में खो सा गया था कि एकाएक से सुरीली आवाज़ मेरे कानों में पड़ी- अन्दर नहीं बुलाओगे?

मेरी मदहोशी का आलम टूटा और मैंने कहा- क्यों नहीं.. अन्दर आइए।

वो चुपचाप मेरे पीछे-पीछे अन्दर आ गई, मैंने गेट बंद किया और उसको अपने एसी रूम में ले आया।

मैंने उससे उसके हाल-चाल पूछे.. उसको बैठा कर रसोई में कॉफी लाने चला गया।

थोड़ी देर बाद दो कप कॉफी लेकर वापस आया और एक कप उसको दिया। मैंने उसके हाल-चाल भी पूछे।

उस दिन मुझे मालूम हुआ कि उसका पति भी है.. जो की मर्चेंट नेवी में है और दो महीने के लिए जहाज़ पर गया था।

ये लोग एक महीने पहले मेरे सामने वाले फ्लैट में शिफ्ट हुए थे और उसका पति दस दिन पहले अपने शिप पर चला गया था।
प्रिया घर में अकेली रहा करती थी और उसको टाइम काटना मुश्किल हो रहा था इसीलिए वो शाम को बाल्कनी में आ जाया करती थी।
मैंने उस से इधर-उधर की बातें की.. ताकि वो मेरे साथ कंफर्टबल हो जाए।

काफ़ी देर बात करने के बाद मैंने उससे पूछ ही लिया- जब आपके पति बाहर जाते हैं.. तो क्या आपको अकेलापन नहीं लगता?
उसने कहा- लगता तो है मगर हम इसमें कुछ कर नहीं सकते।

मैंने उससे कहा- अगर मैं तुम्हारा अकेलापन दूर कर पाऊँ तो मुझे खुशी होगी।
तो उसने पूछा- मतलब?

मैं डर गया.. फिर भी मैंने हिम्मत करके कहा- सबकी बॉडी की कुछ जरूरतें होती हैं.. जिनको पूरा करना ज़रूरी होता है।
उसने पूछा- वो तो ठीक है.. मगर कैसे?

मुझे तो जैसे मुँह माँगी मुराद मिल गई हो।

मैंने उससे पूछा- एक जवान लड़की एक लड़के के फ्लैट में अकेले आई है.. तो इसका क्या मतलब हो सकता है?
तो उसने कहा- तुम इसका क्या मतलब निकाल सकते हो?
मैंने कहा- जो आप चाहो।

उसने कहा- जो तुम करना चाहो वो कर सकते हो.. बस मुझे जन्नत दिखा दो।
मैं उसका इशारा समझ गया और मैंने उसको अपनी बाँहों में ले लिया।

बाँहों में लेते ही उसने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए.. मेरे हाथ उसकी कमर पर थे और मैं उसके होंठों को चूसे जा रहा था।

मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी तो वो मेरी जीभ चूसने लगी। हम काफ़ी देर तक एक-दूसरे की जीभ और होंठ चूसते रहे और मेरे दोनों हाथ सरक कर उसके मम्मों पर आ गए।

अब मैं अपने हाथों से उसके ब्लाउज के ऊपर से उसके मम्मों को दबाने लगा और उसको किस करने लगा।

मैंने अपनी जीभ उसके मुँह से निकाल ली और उसके चेहरे को चाटने लगा। मैं अपनी जीभ उसकी ठोड़ी पर लेकर आया और उसे भी चाटने लगा।

धीरे-धीरे मैं अपनी जीभ को नीचे सरकाने लगा और वो सीत्कार करने लगी।

मैं अपनी जीभ को सरकाता हुआ उसकी गर्दन पर लेकर आया.. तो वो काफ़ी उत्तेजित हो गई और अपने हाथों से मेरी पैंट के ऊपर से मेरे लण्ड को सहलाने लगी.. जिससे कि अब मैं भी उत्तेजित होने लगा और मेरा लण्ड खड़ा होने लगा।

मैं अब अपने दोनों हाथों से साड़ी के ऊपर से ही उसके चूतड़ों को दबाने लगा और मेरी जीभ उसके मम्मों की दरार में रास्ता तलाशने लगी।
मेरी जीभ लगातार चलती जा रही थी और वो दरार में से होते हुए मम्मे तक जाने की कोशिश करने लगी।
मुझे ज़्यादा मेहनत करने की ज़रूरत नहीं पड़ी।

प्रिया ने अपना हाथ मेरे पैंट से हटा लिया और अपना ब्लाउज नीचे सरकाने लगी। वो अपना ब्लाउज जितना नीचे सरकाती.. मेरी जीभ उतना ही उसके निप्पल के करीब आती जाती।

अचानक उसने अपना ब्लाउज नीचे सरका दिया तो अब उसके दो गोरे-गोरे मम्मे मेरे सामने थे।

मैं उनको देखकर अपना कंट्रोल खोने लगा।
मैं अपना हाथ उसके चूतड़ों से हटा कर उसके मम्मों पर लेकर आया और बारी-बारी से एक उरोज को दबाता और दूसरे को चूसता रहा।

प्रिया कुछ ज़्यादा ही उत्तेजित होने लगी थी.. उसने अपने दोनों हाथों से मेरी पैंट की ज़िप खोल डाली और लण्ड बाहर निकाल कर सहलाने लगी।

उसकी इस हरकत से मैं बहुत ज़्यादा उत्तेजित हो गया था.. तो मैं उसके मम्मों को ज़ोर-जोर से चाटने और चूसने लगा।

थोड़ी देर तक जब मैं ऐसा करता रहा.. तो उसकी हालत खराब होने लगी और वो बोली- प्लीज़ कुछ करो.. वरना मैं मर जाऊँगी।

अब मैं अपनी जीभ को उसके मम्मों से नीचे सरकाने लगा और धीरे-धीरे सरका कर उसके पेट की दरार तक लेकर आया, मैं अपने घुटनों के बल बैठ गया और मैंने उसकी नाभि में अपनी जीभ डाल दी।

मैं अपने होंठों से उसका पेट चूस रहा था और मेरी जीभ बार-बार उसकी नाभि में जा रही थी। मेरे दोनों हाथ अब फिर से उसकी साड़ी के ऊपर से ही उसके चूतड़ों पर थे और मेरी उंगलियाँ उसकी चूत की तरफ जाने की कोशिश करने लगीं।

उसने अचानक अपने आपको मुझसे अलग किया.. तो मैं सोच में पड़ गया। मगर मुझे क्या पता था कि अभी एक ज़बरदस्त सरप्राइज़ मिलने वाला है।

उसने अपनी साड़ी और अन्य कपड़े उतार डाले.. अब वह सिर्फ़ पैन्टी में ही थी। उसका गोरा बदन सफेद रंग की रेशमी पैन्टी में कयामत लग रहा था.. जिसे देख कर मैं अपना होश खोने लगा।

मैंने तुरंत अपने सारे कपड़े उतार डाले और उसे लेकर 69 की पोज़िशन में बिस्तर पर आ गया।

उसकी चूत पैन्टी से ढकी हुई मेरे मुँह के ऊपर थी.. जिसको कि मैं अपनी जीभ से चोदने की कोशिश कर रहा था।

उधर वो पागल हुए जा रही थी उसने मेरा लण्ड अपने मुँह में ले लिया था और वो उसको लॉलीपॉप समझ कर चाटने लगी।

इधर मैंने अपनी उंगली से उसकी पैन्टी थोड़ी सरकाई.. मैंने पहली बार उसकी चूत का दीदार किया.. उसकी झाँटें बिल्कुल साफ थीं.. चूत एकदम गुलाबी रंग की थी।
इतनी खूबसूरत चूत मैंने अपनी ज़िंदगी में कभी नहीं देखी थी.. इसीलिए मेरा उसे प्यार करने का मन हुआ।

मैंने अपने होंठ उसकी गुलाब के फूल की पंखुड़ी जैसी चूत पर रख दिए और अपनी जीभ से उसे प्यार से चूमने-चाटने लगा।

मैं अपनी जीभ उसकी चूत में सरकाने की कोशिश करने लगा.. उसकी चूत काफ़ी टाइट थी.. जिससे मेरी जीभ को अन्दर जाने में परेशानी हो रही थी।

प्रिया ने मेरा काम आसान कर दिया उसकी मदहोशी का आलम यह था कि वो अपनी उंगलियों से ही अपनी चूत को खोलने लगी.. जिससे मेरी जीभ उसकी चूत में जाने लगी और मैं उसको अपनी जीभ से ही चोदने लगा।

काफ़ी देर करने के बाद उसकी चूत से नमकीन पानी निकलने लगा.. जिसको कि मैं अपनी जीभ से चाट रहा था, उसका स्वाद मदहोश करने वाला था।

अब मैंने अपनी एक उंगली प्रिया की चूत में सरकानी शुरू की और दूसरे हाथ की उंगली से चूत के दाने को सहलाने लगा, मैं प्रिया की चूत को अपनी उंगली से चोद रहा था.. मैंने एक-एक करके 3 उंगलियाँ उसकी चूत में डाल दीं और पिस्टन की तरह आगे-पीछे करने लगा।

प्रिया की हालत अब बहुत खराब हो चली थी.. वो चिल्लाने लगी, वो मुझसे विनती करने लगी- अब मेरी चूत में लण्ड डाल दो.. अब रहा नहीं जाता।

मैंने उसकी बात नहीं सुनी और अपना काम जारी रखा.. अचानक वो ज़ोर से चिल्लाती हुई खड़ी हो गई और गिड़गिड़ाने लगी- बस अब मुझे चोद डालो..

मेरा लण्ड भी अपने चरम पर था.. मैंने उसको अपनी बाँहों में उठाया और बिस्तर पर लिटाया और अपना सुपाड़ा उसकी चूत से रगड़ना शुरू किया।

प्रिया की हालत लगातार खराब होती जा रही थी.. उसकी हालत पर तरस खाते हुए मैंने अपने लण्ड को उसकी चूत में धकेला.. मगर वो ज़्यादा मोटा होने की वज़ह से अन्दर नहीं गया।

इससे प्रिया के साथ-साथ मुझे भी दर्द हुआ.. मैं तुरंत दौड़ कर गया और क्रीम की शीशी लेकर आया.. उसकी चूत पर क्रीम डाल कर उंगलियों से दो मिनट तक मालिश की।

मैंने अपने लण्ड पर क्रीम ना लगा कर उसे प्रिया के मुँह में दोबारा डाल दिया.. जिसे उसने खूब चाव से चूसा।

अब मैंने अपना लण्ड सीधा उसकी चूत के छेद में डाल दिया.. प्रिया थोड़ा सा चिल्लाई.. तो मैंने अपने हाथ से उसका मुँह बंद कर दिया।

दो मिनट के धक्कों के बाद उसको भी मज़ा आने लगा.. फिर हम दोनों ने अलग-अलग पोज़िशन में खूब चुदाई की।

मैंने उसकी काफी देर तक चुदाई की।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

जब मैं स्खलित होने वाला हुआ तो मैंने प्रिया के बाल पकड़ कर अपना लण्ड उसके मुँह में डाल दिया.. जिससे मेरा सारा वीर्य उसके मुँह में चला गया।
उसने मेरा लण्ड चाट-चाट कर साफ कर दिया।

कसम से उस दिन हमने चुदाई का असली मज़ा लिया।
इसके बाद हमने चुदाई को लेकर काफ़ी प्रयोग किए.. जिसकी कहानी मैं बाद में लिखूंगा।

आजकल प्रिया को अपने पति के जॉब से कोई शिकायत नहीं है.. वो अपने जीवन का भरपूर आनन्द ले रही है।

आपको मेरी कहानी कैसी लगी.. मुझे ज़रूर बताएँ.. मेरे अनुभव आगे भी जारी रहेंगे।

इस कहानी में नायिका का नाम काल्पनिक है.. प्लीज़ नायिका के बारे में जानने के लिए दबाब ना डालें।
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