ऑफिस की लड़की से जिस्मानी रिश्ता सही या गलत-2

(Office Ki Ladki Se Jismaani Rishta Sahi Ya Galat-2)

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पिछले भाग से आगे..

शायद सुनीता को भी समझ आ गया था कि क्या हुआ।
उसने मुझसे कहा- प्लीज.. बुरा नहीं मानिए.. पर यह जगह ठीक नहीं है.. कहीं और चलते हैं।

दिल तो हिलने को तैयार नहीं था.. पर मज़बूरी थी और उसकी बात सही भी थी तो हम लोग उस वीरान निर्जन और खतरनाक जगह से आ गए।
मेरा एक मकान है.. जो कि हमेशा लॉक्ड रहता है, हम वहाँ आ गए।
इस समय तक रात काफी हो चुकी थी, घर के अन्दर आने के बाद सुनीता चुपचाप बेडरूम में जाकर बैठ गई और मैं उसको बगल में बैठ गया।

सुनीता ने कहा- सर ये जो हो रहा है क्या वो सही है?

अब मैं क्या जवाब देता.. मेरा ‘हरिप्रसाद’ तो पूसीबाई से मिलने को बेकरार खड़ा था। पर ज़रूरी था कि उसकी शंका को दूर किया जाए।
मैंने सुनीता को याद दिलाया- तुम्हारा अपने पति से लम्बे समय से शारीरिक सम्बन्ध नहीं बना है और यदि तुमको लगता है कि जो हो रहा है वह गलत है तो तुम्हें पूरी आज़ादी है कि मुझको मना कर दो।

आग तो दोनों तरफ लगी थी.. पर स्त्री सुलभ लज्जा ने उसको रोक रखा था।

मेरे इतना कहने के बाद सुनीता का सुर कुछ बदला और उसने मुझको बताया- सेक्स करते समय मुझको बहुत ज्यादा दर्द होता है और मेरे पति सेक्स करते समय जैली का उपयोग करते हैं।

मुझको तुरंत समझ में आ गया कि उसका पति उसको उत्तेजित किए बिना ही अपने हरिबाबू को उसकी चूत में डाल देता होगा।

अब चूत गीली नहीं होगी तो 3 इंच का हरिबाबू भी 8” का लगता है और मेरा तो वैसे भी लम्बा ही है।
मैंने किसी प्रकार से उसको आश्वस्त किया और फिर उसको अपनी बाँहों में भर लिया।

मैंने एक बार फिर से उसको लबों को अपने लबों से मिला कर उसके निचले होंठ को अपने दांतों से थोड़ा सा काटा और जीभ उसको मुँह के अन्दर घुसा कर उसकी जीभ पर चुभलाना शुरू किया।

इस बीच मेरे हाथों ने उसके पेट पर धीरे-धीरे घूमना शुरू कर दिया। पेट के निचले हिस्से से पीठ की ओर जब मेरी उंगलियाँ थिरकती थीं.. तब उसके मुँह से हल्की से सिसकारी निकल जाती थी।

मन तो उसका भी बेकाबू हो चुका था.. पर शर्म अभी बाकी थी, उसने मुझसे लाइट बुझाने को कहा।

लाइट बुझ जाने के बाद मैंने सबसे पहले उसकी कुर्ती को अलग कर दिया और उसके शरीर को महसूस करने लगा।
नरम गुदाज कोमल सिल्की शरीर.. ऐसा लग रहा था.. मानो मेरे हाथों में जन्नत आ गई हो।

जल्दबाजी से काम न लेते हुए मैंने अपने होंठों को उसके पेट पर.. नाभि पर.. कभी दायें किनारों पर.. कभी बाएं किनारों पर घुमाना चालू कर दिया।
उसकी ‘आहों.. कराहों.. सिसकारियों..’ से कमरा गूंजने लगा।

फिर धीरे से मैंने उसकी गोलाइयों को ब्रा की कैद से आज़ाद किया। अँधेरे के कारण शेप तो नहीं दिख रहा था.. पर एक बात समझ में आ गई कि स्तन बहुत सख्त थे और निप्पल इतने छोटे थे कि उँगलियों को घुमाने पर ही महसूस किए जा सकते थे।
ऐसा लगता नहीं था कि कभी इन निपल्स को किसी ने प्यार से चूसा होगा।

मुझको तो स्त्री शरीर में स्तन बड़े और निपल्स छोटे सबसे अधिक प्यारे हैं।
मैं जी-जान से स्तन सेवा में जुट गया.. एक गोलाई मेरे मुँह में.. तो दूसरी का निप्पल मेरे अंगूठे और पहली उंगली के बीच में था।

उंगली से निप्पल को धीरे से मसलते हुए और होंठों से दूसरे निप्पल को लिक करते हुए.. मैंने अपना खाली हाथ नीचे की ओर बढ़ा दिया और उसको सुनीता की जांघों के बीच में लाकर धीरे-धीरे चूत को ऊपर से सहलाना शुरू कर दिया।

अब तो सुनीता का खुद पर से काबू खत्म हो गया।
कुछ देर के बाद मैंने उसकी सलवार के अन्दर हाथ डाल कर चूत को पैंटी के ऊपर से महसूस किया। तंग सलवार होने के कारण पैंटी के अन्दर हाथ नहीं जाए पा रहा था.. तो मैंने पैंटी के किनारे से उंगली अन्दर डाल दी।

उम्म्म्..म्म.. चूत तो ओवरफ्लो हो रही थी।
मैंने अब उसकी सलवार को और पैन्टी दोनों को उसके शरीर से अलग कर दिया और होंठों से प्यार करते नीचे की ओर आना शुरू किया।
जब उसकी जांघों के पास मेरे होंठ आ गए.. तो सुनीता के सब्र का बाँध टूटने लगा।

सुनीता ने बहुत मेरी शर्ट को मुझसे अलग किया।
फिर बारी थी बनियान की.. और फिर कांपते हाथों से उसने मेरे पैंट को अलग कर दिया।

अंडरवियर मैंने खुद ही एक ओर फेंक दी और फिर अपने हरिभाई को सुनीता के हाथों में दे कर प्यार करने को कहा।
उसके नरम नाजुक.. कोमल हाथों में आकर मेरे हरिबाबू ने अपनी लम्बाई और मोटाई कुछ और बढ़ा ली।

मेरे होंठ सुनीता की योनि से निकलने वाले रस का पान कर रहे थे और सुनीता के हाथों में मेरा लिंग था।

अब सब शर्म छोड़ कर सुनीता ने भी मेरे लिंग को प्यार करना शुरू कर दिया। उसने मेरे हरिबाबू को जीभ से जड़ से सुपारे तक प्यार किया, गुलाबी सुपारे के मुँह पर होते से छेद पर अपनी जीभ घुमा-घुमा कर प्यार किया और लिंग को अपने मुँह में भर कर प्यार करना शुरू कर दिया।

मैंने भी सुनीता की चूत के बाहर की ओर जांघों के किनारों पर जीभ से प्यार करना जारी रखा।
अब सुनीता वास्तव में बेकाबू हो गई थी, उसने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को अपनी योनि पर दबा दिया और जांघों से बीच में कुछ इस तरह भींच लिया कि मेरा सर हिल भी नहीं सकता था।

जांघों के बीच जकड़ा हुआ सर और होंठों के सामने यौवन भरी हुई योनि.. शायद यही स्वर्ग है।
मैंने भी अपनी जीभ उस स्वर्ग के अन्दर डाल दी।
सुनीता का पूरा वज़ूद काँप गया.. जब जीभ की नोक ने सुनीता की चूत के जी-स्पॉट को टच किया, जी-स्पॉट को मैंने मेरे अनुभव से जाना है कि यह चूत के लगभग 2 इंच अन्दर ऊपर की तरफ होता है।

उसके स्पर्श से मानो कहर आ गया… सुनीता ने अपने पैरों को मोड़कर अपनी कमर को ऊपर उठा लिया और मेरे चेहरे को पूरी शक्ति से जांघों से दबा कर तेज़ आवाज़ निकालते हुए अपने चर्मोत्कर्ष को पा लिया।

इसके बाद सुनीता निढाल हो गई और उसने हरिबाबू को भी चूसना बंद दिया।
कुछ देर ऐसे ही पड़े रहने के बाद जब उसकी सांस व्यस्थित हुई.. तो फिर उसने मेरे लिंग को अपने मुँह से बाहर निकाला और मेरे टेस्टिकल्स पर जीभ फिराना चालू किया और बॉल को अपने मुँह में लेकर लॉलीपॉप के समान चूसने लगी।

फिर ऐसा ही ट्रीटमेंट दूसरी बॉल के साथ किया।
दोनों बॉल्स के बाद उसने जांघों के बीच में जीभ फिराना शुरू कर दिया।

अब बेकाबू होने की मेरी बारी थी, खुद पर नियंत्रण करना सम्भव ही नहीं रहा, मैंने सुनीता को लिटा कर सवारी कर ली। कभी उसकी गर्दन पर.. जीभ से प्यार किया.. कभी उसकी गोलाइयों को दांतों से.. होंठों से.. हाथों से मसला.. किस किया.. हौले से दबाया और अपने हरिबाबू को उसकी योनि छिद्र पर रख दिया और दबाव दे दिया।

बस इतने से ही उसके होश उड़ने लगे।
मैंने देखा कि सुनीता के चेहरे पर एक डर का सा भाव आ गया था।
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मैंने अपने लिंग को सुनीता के योनि मुँह से हटाया और उससे डर का पूछा।
सुनीता ने ज़वाब दिया- आपने जैली नहीं लगाई है.. मुझको बहुत दर्द होगा। आपका साइज़ तो मेरे पति से भी अधिक है।

मैंने उसको समझाया- तुम्हारी चूत खुद इतनी गीली है कि जैली की ज़रूरत ही नहीं है, बस थोड़ा सहन कर लेना।
उसने कुछ नहीं कहा.. पर ‘मौनम स्वीकृति लक्षणम्’ के सिद्धांत पर मैंने फिर से अपने हरिबाबू को उसकी पूसी के ऊपर रख कर दबाव डाला.. तो लगभग आधा लिंग बिना किसी परेशानी के अन्दर घुस गया।

उसकी चूत बहुत गीली थी.. कोई परेशानी नहीं हुई.. न उसको.. न मुझको।
फिर थोड़ा सा बाहर निकाल कर अगले दबाव के साथ हरिप्रसाद पूरा अन्दर हो गया।

‘धीरे-धीरे करना…’ सुनीता ने मेरे कान में कहा और मैंने शुरू में धीरे-धीरे ही किया।

कुछ शायद दो-तीन मिनट्स में ही सुनीता ने सीत्कार भरी और मुझको ज़ोर से पकड़ लिया.. वो झड़ गई।

अभी मेरा काम-तमाम नहीं हुआ था.. मैंने अन्दर-बाहर का सफ़र चालू रखा।
कुछ झटकों के बाद फिर सुनीता की योनि तैयार हो गई।

कुछ देर के बाद मैंने सुनीता के पैरों को अपने कंधों पर रख लिया और अब पूरा का पूरा हरिबाबू अन्दर जा रहा था।
अन्दर जाने के बाद मुझको साफ़ महसूस हो रहा था कि हरिप्रसाद सुनीता के गर्भाशय पर चोट कर रहा था। इस एहसास ने मुझमें अतुलनीय संचार कर दिया और कुछ मिनट के बाद मैंने अपने अपने वीर्य सुनीता के अन्दर ही खाली कर दिया।

कुछ देर ही पड़े रहे.. फिर मैं ऊपर से उठ कर सुनीता के बाज़ू में लेट गया।
वासना का भूत उतर जाने के बाद सुनीता भी मुझसे लिपट कर लेटी रही।

फिर उसकी आँखों में आंसू आ गए, उसने मुझसे कहा- सर शादी के बाद आज पहली बार मुझको सम्बन्ध बनाने में न तो दर्द हुआ और न ही डर लगा। आपको थैंक यू..

दोस्तो, मेरी शादी-शुदा ज़िंदगी का यह न तो पहला.. और न ही आखिरी सम्बन्ध था.. पर यह है कि इसके बाद मैंने सुनीता के साथ कई बार सम्बन्ध बनाए। हर सम्बन्ध में मेरा प्रयास रहा कि फीमेल पार्टनर को पूरा सुख और संतोष मिले।
यदि कोई मुझसे बात करना चाहे तो मुझे ईमेल कर सकता है।

कहानी अच्छी या बुरी कुछ भी लग सकती है.. यदि आप मेरी ईमेल पर अपनी प्रतिक्रिया दें.. तो मेहरबानी।
[email protected]

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