वो कौन थी-2

(Wo Kaun Thi- Part 2)

मेरी सेक्सी स्टोरी के पहले भाग
वो कौन थी-1
में अपने पढ़ा कि मैं अपने चाचा की बेटी की शादी में गाँव गया हुआ था. सर्दियों के दिन थे, रात को मैं रजाई लेकर सोया हुआ था कि मेरे साथ कोई लड़की या औरत सोई हुयी थी, उसके ऊपर रजाई नहीं थी.
अब आगे:

वो एक तो गहरी नींद में थी ऊपर से सर्दी से उसका पूरा बदन ठण्डा हो रहा था इसलिये मेरे शरीर की गर्मी पाकर वो खुद ही मेरे करीब आने लगी। उसने भी अपना एक हाथ मुझ पर डाल दिया और धीरे धीरे मुझसे चिपकने लगी।

मुझे डर तो लग रहा था मगर फिर भी मैं धीरे‌ धीरे उसकी मखमली कमर को सहलाते हुए उसकी कमर पर हल्का हल्का अपनी तरफ दबाव डालने लगा, मेरे शरीर से गर्मी पाकर वो पहले ही मुझसे चिपकी जा रही थी ऊपर से मेरे हाथ का कमर पर दबाव पड़ने पर वो मुझसे बिल्कुल ही चिपक गयी जिससे उसकी नर्म मुलायम गोलाइयाँ मेरे सीने से दब गयी।

मेरा हाथ भी अब उसकी पतली कमर पर से फिसलता हुआ धीरे से नीचे उसके नितम्बों पर आ गया, शलवार के नीचे उसने पेंटी पहनी हुई थी जो उसके भरे हुए गुदाज नितम्बों से बिल्कुल चिपकी हुई थी। मेरा हाथ उसके भरे हुए कूल्हों को सहलाते हुए धीरे धीरे उसकी मुलायम व चिकनी जांघों तक रेंगने लगा… तभी उसका एक पैर भी मेरे पैरों पर आ गया, इस दौरान मैंने भी मौके का फायदा उठाते हुए उसके पैरे को थोड़ा जोर से अपनी तरफ खींच लिया जिससे उसकी जांघ मेरी जांघ पर चढ़ गयी।

मुझसे वो अब और भी जोर से चिपक गयी थी जिससे उसकी ठोस व भरी हुई गोलाइयाँ मुझे अपने सीने ने चुभती हुई महसूस हो रही थी तो नीचे से मेरा उत्तेजित लिंग भी अब उसकी योनि की तपिश को महसूस करने लगा। उत्तेजना के कारण मेरा अब बुरा हाल होने लगा।

वो अपना एक हाथ व पैर को मेरे शरीर पर डालकर मुझसे चिपकी हुई थी तो मैंने भी उसके चूतड़ों को पकड़े हुए था। हम‌ दोनों के बदन एक‌ दूसरे से बिल्कुल चिपक हुए थे और हमारी सांसें एक दूसरे के चेहरे पर पड़ रही थी। उसका तो पता नहीं मगर उसकी महकती गर्म सांसें मेरे चेहरे पर पड़ने से मेरा बुरा हाल हो रहा था। मेरा दिल तो कर रहा था की अभी के अभी इसको जोर से चूम लूँ मगर डर भी लग रहा था कही यह जाग कर शोर ना मचा दे।

वो तो सर्दी के कारण मुझसे चिपकी हुई थी मगर मैं अपने मजे के लिये उसके बदन से चिपका हुआ था, लेकिन कुछ भी हो… उसके नर्म, मुलायम‌ और कोमल‌ बदन‌ का स्पर्श पाकर मुझसे अब अपने आप पर काबू पाना मुश्किल हो रहा था।

डर व उत्तेजना से मेरा बुरा हाल हो रहा था मगर फिर भी मैं अपने शरीर को धीरे धीरे से आगे पीछे करके उसके मखमली बदन को मसलने लगा जिससे कुछ ही देर में उसका बदन गर्म होने लगा.
मैंने जो हाथ उसके कूल्हों पर रखा हुआ था उसे धीरे से थोड़ा नीचे उसके चूतड़ों की गहराई की तरफ बढ़ दिया… मैंने पीछे से बस अपनी उंगलियों को ही उसकी दोनों जांघों के बीच की तरफ बढ़ाया था कि डर व उत्तेजना से मेरा पूरा शरीर कम्पकपा गया…. क्योंकि मेरी उंगलियों ने सीधा ही उसकी योनि को छू लिया था।

उसकी एक जांघ मेरी जांघ पर रखी होने कारण दोनों जांघें थोड़ा अलग अलग हो गयी थी, और जैसे ही मैं अपनी उंगलियों को पीछे से उसकी जांघों के जोड़ पर ले गया, मेरी उंगलियाँ सीधा ही उसके खजाने पर लग गयी जो‌ काफी फूली हुई सी थी। शलवार और पेंटी के ऊपर से भी उसकी योनि की फांकें मुझे अच्छे से महसूस हो रही थी।

अब तक उसका बदन काफी गर्म हो गया था और हमारे बदन जहाँ से एक दूसरे से चिपके हुए थे वहाँ पर मुझे गर्मी के कारण पसीने आने लगे थे। पता नहीं ये रजाई की गर्मी थी या फिर कुछ और मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था।

मुझे डर तो लग रहा था मगर मजा भी आ रहा था इसलिये मैं धीरे बहुत ही धीरे धीरे पीछे से उसकी योनि‌ की फाँकों पर उंगलियाँ फिराने लगा जिससे उसकी ‌एक जांघ जो मेरी जांघ पर रखी हुई थी, वो धीरे धीरे मेरी कमर पर चढ़ने लगी और उसकी दोनों जांघों के बीच का दायरा बढ़ गया। उसकी योनि के निचला छोर जहाँ पर प्रवेशद्वार होता है वहाँ पर मुझे कुछ हल्की नमी सी भी महसूस हो रही थी।

मगर फिर तभी वो हल्का सा कसमसाई और एकदम से उसके बदन का तापमान बढ़ गया, वो तुरन्त झटके से मुझसे अलग हुई और उसने करवट बदल ली। एक बार तो डर के मारे मेरी सांस ही अटक गयी थी मगर उसने बस करवट ही बदली और अपना मुँह अब दूसरी तरफ करके फिर से सो गयी।

उसकी नींद मेरी हरकत से खुली थी, या फिर किसी और कारण से ये तो मुझे नहीं पता, मगर हाँ जिस तरह से हम दोनों एक दूसरे से चिपके हुए थे, और जिस हालत में वो खुद मुझसे लिपटी हुई थी उसके अहसास से उसके बदन में गर्मी जरूर आ गयी थी क्योंकि उसकी सांसें अब थोड़ा तेजी से चल रही थी।

दोबारा से उसको छूने की या फिर उसके पास जाने की मैं अब हिम्मत नहीं कर पा रहा था क्योंकि मैं सोच रहा था कि हमारे बीच अभी जो कुछ भी हुआ उसमें वो नींद में थी, अब अगर मैंने दोबारा से उसको छुआ या कुछ करने की कोशिश की, और इसने शोर मचा दिया तो क्या होगा?
हमारे साथ उस कमरे में और भी कुछ औरतें या फिर लड़कियाँ सो रही थी जिससे मेरी अच्छी खासी बदनामी हो जानी थी।

मैं काफी देर तक यही सब सोचता रहा।

वो अब शांत होकर सो गयी थी लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी फिर तभी मेरे दिमाग में आया कि मैं इसके पास थोड़े ही गया हूँ, ये खुद ही मेरी रजाई घुसी हुई है. यह बात मेरे दिमाग में आते ही मैंने धीरे से अपना एक हाथ फिर से उसकी कमर पर रख दिया. वो अब गहरी नींद में सो गयी थी इसलिये मैं धीरे धीरे खिसक कर फिर से उसके करीब हो गया और पीछे से उसके बदन से चिपक गया। मेरा शरीर अब फिर से उसके नर्म मुलायम बदन को छू रहा था और मेरा उत्तेजित लिंग सीधे उसके भरे हुए कूल्हों पर लग गया था।

कुछ देर तक मैं ऐसे ही उससे चिपक कर सोता रहा और उसकी हरकत का इन्तजार करने लगा। जब उसने कोई हरकत नहीं की तो मैंने धीरे से अपना हाथ उसकी गोलाइयों की तरफ बढ़ा दिया और आहिस्ता आहिस्ता से उसकी गोलाइयों पर हाथ फिराकर उनका माप लेने लगा… एक बड़े से सन्तरे के जितनी बड़ी और ठोस भरी हुई गोलाइयाँ थी उसकी, मगर ऊपर से काफी मुलायम सी महसूस हो रही थी।

उसकी गोलाइयों पर हाथ घुमाने में मुझे मजा नहीं रहा था, क्योंकि एक तो उसने शर्ट के नीचे ब्रा पहन रखी थी और दूसरा मैं उनको दिल भर के मसल भी नहीं सकता था, इसलिये मैंने बस एक बार उनका हल्का सा माप लेने के बाद अपना हाथ उसकी गोलाइयों पर से उठाकर धीरे से उसकी जांघों पर रख दिया।

अपने हाथ को शलवार के ऊपर से ही उसकी जांघों पर रख कर कुछ देर मैं फिर से ऐसे ही लेटा रहा… जब काफी देर तक उसने कोई हरकत नहीं की तो धीरे धीरे बहुत ही धीरे मैं अपने हाथ को उसकी योनि की तरफ बढ़ने लगा.

उसने अपना‌ मुँह दूसरी तरफ किया हुआ था और उसने दोनों जांघों को आपस में जोड़कर घुटनों को थोड़ा सा मोड़ रखा था इसलिये थोड़ा सा अपने हाथ को आगे बढ़ते ही मेरा हाथ सीधा उसकी योनि के करीब दोनों जांघों के जोड़ पर पहुँच गया।
उसकी दोनों जांघें एक दूसरे से चिपकी हुई थी इसलिये मेरा हाथ उसकी योनि तक तो नहीं पहुँच रहा था मगर योनि के ऊपरी भाग को जरूर छू रहा था जो काफी फूला हुआ सा महसूस हो रहा था।

तभी मेरे दिमाग में एक योजना आई, मैं अपने पैर से ही धीरे धीरे उसके एक पैर पर हल्का हल्का दबाव डालकर उसे अपनी तरफ खींचने लगा जिससे उसके पैर एक दूसरे से कुछ अलग हो गये और उसकी जांघें थोड़ा सा खुल गयी।
मगर तभी वो हल्का सा कसमसाई और अचानक से उसके बदन का तापमान फिर से बढ़ गया। शायद फिर से उसकी नींद खुल गयी थी और अबकी बार उसे मेरी हरकत का भी पता चल गया था क्योंकि मेरा हाथ अब भी उसकी जांघों के जोड़ पर ठीक उसकी योनि पर ही था और मेरा उत्तेजित लिंग भी उसके‌ चूतड़ों की गहराई का माप ले रहा था.

डर के मारे मेरा हाथ अब जहाँ था, वहीं के वहीं रूक गया और मैं फिर से सोने का नाटक करने लगा।

काफी देर तक मैं ऐसे ही बिना कोई हरकत किये चुपचाप पड़ा रहा, उसने भी ना तो मुझे कुछ कहा और ना ही मेरे हाथ को अपनी योनि पर से हटाने‌ की‌ कोशिश की, वो भी ऐसे ही चुपचाप सोती रही।

मैं अब दिल ही दिल में ये सोच रहा था कि अभी तक इसे अगर मुझे हटाना होता, या फिर शोर मचाना होता तो कब का शोर मचा देती। या तो मेरा ये वहम है कि ये जाग गयी है, या फिर शर्म के कारण, या जानबूझकर ये कुछ बोल‌ नहीं रही है।
अब ‘जो होगा सो देखा जायेगा’ यह सोचकर अपने पैर के साथ साथ अबकी बार मैं अपने हाथ से भी उसकी कमर को पकड़ कर धीरे धीरे अपनी तरफ दबाने लगा जिससे वो धीरे धीरे सीधा हो गयी।

वो अब पीठ के बल करवट लेकर सो गयी थी इसलिये मैंने अपने हाथ को उसकी शलवार व पेंटी के ऊपर से सीधा ही उसकी योनि पर रख दिया… उसने‌ अब भी कोई हरकत नहीं की और चुपचाप सोती रही।

मैं भी अब अपनी उंगलियों से उसकी योनि को सहलाने लगा… उसे सहलाना तो नहीं कह सकते बस हल्के हल्के उंगलियों से योनि की बनावट को ही महसूस करने लगा जो काफी फूली हुई लग रही थी। ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि उसने अपनी दोनों जांघों के बीच पांव (डबल रोटी) दबा रखा हो। उसने शलवार के नीचे पेंटी भी पहनी हुई थी मगर उसकी शलवार और पेंटी का कपड़ा शायद कुछ ज्यादा ही पतला था इसलिये मुझे शलवार और पेंटी के ऊपर से ही उसकी योनि की बनावट महसूस हो रही थी.
उसकी योनि छोटी सी ही थी मगर काफी फूली हुई थी जिसके कारण योनि की छोटी छोटी फांकें स्वतः ही खुली हुई महसूस हो रही थी। उसकी योनि पर छोटे छोटे और हल्के से बाल भी महसूस हो रहे थे।

उसकी छोटी सी फूली हुई योनि व उसकी उभरी फांकों को महसूस करने करने के बाद ये तो मुझे यकीन हो गया था कि ये औरत नहीं बल्कि कोई लड़की है और हो सकता है ये अभी तक कुँवारी भी हो.
मैं ऐसे ही धीरे धीरे हल्के हाथ से उसकी योनि पर उंगलियाँ घुमा ही रहा था कि धीरे धीरे उसके बदन का तापमान बढ़ने‌ लगा… उसके बदन में अब हल्का हल्का कम्पन सा होने लगा और सांसें तेज हो गयी.

तभी मुझे उसकी योनि में भी कुछ नमी सी महसूस होने लगी, शायद उसको भी अब मजा आ रहा था, पता नहीं यह मेरा वहम था या सही में ही उसकी योनि में नमी आ गयी थी।
डर व उत्तेजना के कारण मेरा भी अब पूरा बदन कम्पकपाने लगा था मगर फिर भी मैं ऐसे ही धीरे धीरे उसकी योनि पर उंगलियाँ घुमाता रहा जिससे कुछ ही देर में उसकी योनि पूरी तरह से गीली हो गयी।

मुझमें भी अब हिम्मत आ गयी इसलिये मैं अब थोड़ा सा खुलकर उसकी‌ योनि को सहलाने लगा. मैंने पहले तो उसकी योनि पर धीरे से अपना हाथ रखा और फिर धीरे धीरे अपना पूरा पंजा खोलकर उसकी छोटी सी योनि को अपनी हथेली में भर लिया जिससे उसके बदन ने झुरझुरी सी ली.
एक बार मैं फिर से थोड़ा डर गया मगर फिर वो शांत हो गयी।

मैं अब उसकी योनि को पूरा हाथ खोलकर सहलाने लगा। शलवार व पेंटी के ऊपर से ही मैंने उसकी योनि पर अपनी उंगलियों से दबाव डालकर योनि की दोनों फांकों को थोड़ा सा फैला दिया और योनि की दरार के बीच अपनी उंगली घुमाने लगा जिससे कुछ ही देर में उसकी योनि प्रेमरस से सरोबार हो गयी‌ और उसने शलवार व पेंटी को गीला कर दिया।

अब तो मुझे यकीन हो गया था कि वो जाग रही है और सोने का नाटक कर रही है इसलिये मैंने धीरे से उसकी शलवार का नाड़ा खोल दिया और धीरे धीरे शलवार को नीचे खिसकाने लगा.
मगर उसकी शलवार थोड़ी सी निकलकर रूक गयी क्योंकि वो उसके नितम्बों के नीचे दबी हुई थी। मैंने उसे खींचकर भी निकालना चाहा मगर कामयाब नहीं हो पाया क्योंकि शलवार को निकालने में उसने मेरा बिल्कुल भी सहयोग नहीं किया।

मैं सोच रहा था कि मेरे खींचने पर वो उपने नितम्ब ऊपर उठाकर शलवार निकालने में मेरा सहयोग करेगी मगर उसने कोई भी हरकत नहीं की और वैसे ही सोती रही। मैं भी जल्दबाजी में कोई गलती नहीं करना चाहता था इसलिये जैसा चल रहा था, मैंने वैसे ही चलने दिया और उसकी शलवार को निकालने के लिये कोई जबरदस्ती नहीं की।

जितनी उसकी शलवार निकली थी उससे उसकी पेंटी और थोड़ी सी जांघें नंगी हो गयी थी इसलिये मैंने धीरे से अपना हाथ उसकी पेंटी में घुसा दिया जो अन्दर से पूरी भीगी हुई थी.
उसकी पेंटी में हाथ घुसाकर जैसे ही मैंने उसकी छोटी सी नंगी योनि को छुआ, उसका पूरा बदन जोर से थरथरा गया, उसने जल्दी से दोनों जांघों को बन्द करके अपनी योनि को छुपा लिया और करवट बदलकर मेरी तरफ घूम गयी जिससे मेरा हाथ उसकी पेंटी से अब बाहर निकल गया।

मेरी तरफ घूम जाने से उसकी महकती गर्म सांसें अब मेरे चेहरे पर पड़ने लगी और उसकी गोलाइयाँ मेरे सीने में धंस सी गयी। मैंने भी धीरे से अपना हाथ उसकी कमर पर रख दिया और धीरे धीरे उसकी कमर पर से सहलाते हुए उसके नितम्बों पर आ गया। करवट बदलने से उसकी शलवार अब उसके नितम्बों के नीचे से निकल गयी थी, मैंने ये सही मौका जानकर उसकी शलवार के साथ साथ उसकी पेंटी को भी नीचे खिसका दिया।

मैंने उसकी शलवार व पेंटी को पहले तो एक हाथ से धीरे धीरे खिसकाकर घुटनों तक किया और फिर अपने पैर में फंसाकर उन्हें पूरा ही निकाल दिया।

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