मेरी चालू बीवी-126

(Meri Chalu Biwi-126)

इमरान 2015-02-14 Comments

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आह्ह… आआह्हा आआआ उउउउउह…

और मेरा लण्ड गप्प्क की आवाज के साथ अन्गर चला गया।

करीब तीन इंच अंदर सरका कर ही मैंने 8-10 धक्के लगाये।
आह्ह… आआह्हा आआआ उउउउउह… ओह्ह्ह्ह्ह् उउउईइह्ह…

मैंने किशोरी के कसे हुए मम्मों को मसला…

और तभी…

मैं- अर्र रे… अह यह क्या? ये तो तुम्म… यहाँ कैसे आ गई?

मैंने जानबूझकर ऐसी नौटंकी की…
ओह्ह्ह मैंने तो तुम्हें सलोनी समझा था।

और किशोरी का मुखड़ा देखने लायक था।

किशोरी ने मुझे धक्का सा दिया, शायद वो भी पाक साफ़ रहना चाहती थी।

मेरा लौड़ा धप्प्प से उसकी योनि से बाहर निकल आया।

मैं उसके बगल में ही लेट गया।

उसकी नाइटी उसके गोरे बदन पर पूरी तरह अस्त व्यस्त थी, वह एक टाँग मोड़े और दूसरी फैलाये लेटी थी।

उसने न तो नाइटी ठीक की और न ही कुछ बोली।

मैं उसके बगल में लेटे हुए उसे देखे जा रहा था।

मैं- ओह किशोरी, यह क्या हो गया… सॉरी यार… सच में मुझको बिल्कुल पता नहीं था। और तुम तो वहाँ लेटी हुई थी ना? फिर अचानक यहां मेरे बिस्तर पे कैसे?

पहली बार किशोरी बोली- जी भैया, बच्चे सोते हुए डिस्टर्ब ना हों इसलिये यहां लेट गई थी।

मैं- सॉरी किशोरी.. प्लीज मुझे माफ़ कर दो ना !

किशोरी- अरे भाई, कोई बात नहीं… आपकी तो कोई गलती है ही नहीं…

उसने अभी भी अपने कपड़े ठीक नहीं किए थे।

उसके मन में चुदाई का बवण्डर उठा हुआ था, पर नारी-सुलभ-लज्जा उसको रोके हुए थी।

यह बात मुझे काफ़ी भा गई।

मैंने अब दूसरी तरीके से तीर चलाया- वैसे किशोरी तुम बहुत सुन्दर हो, लगता नहीं कि तुम एक बेबी की मम्मा हो। तुम्हारा तो अंग-प्रत्यंग साँचे में ढला है।

किशोरी के मुखड़े पर मुस्कुराहट और हया की लालिमा दोनों आ गई।

नारी जाति के मसले में मैं खुद को फ़न्ने खाँ उस्ताद समझता था मगर अक्सर मैं एक अनाड़ी ही साबित हुआ हूँ।

सलोनी ने तो मुझे हरदम हैरान कर ही रखा था… हर रोज उसका एक नया ही चेहरा देखने को मिल जाता था।

अभी कुछ पल पहले जब किशोरी अपने सारे कपड़े उतार कर पूर्ण नग्न होकर सलोनी की नाम-मात्र की नाइटी पहन कर जब मेरे पास आकर लेटी.. तब ऐसा ही लगा था कि यह बहुत चालू माल होगी… खूब चुदाई करवाती होगी।

परन्तु जरा सी ही देर में ही वो ऐसी हो गई…
फ़ुद्दी में घुसा लौड़ा भी निकाल दिया और अब कितना शर्मा रही है जैसे पहली बार मर्द का लिंग देखा हो।

किशोरी- भैया, मुझे तो बहुत शरम आ रही है।

मैं- ऐसा क्यों पागल.. यह सब तो सामान्य है।

किशोरी- व…व्वो मेरे पति के बाद आप ही दूसरे पुरुष हो जिसने मुझे नंगी देखा है, इसलिए।

मैं- वाह… फिर तो मैं बड़ा खुश-नसीब हूँ यार… जिसने इतनी प्यारी लड़की नंगी देख ली।

अब मुझसे नहीं रूका जा रहा था तो मैंने उसकी ओर करवट लेते हुए अपना सीधा हाथ किशोरी के पिचके हुए पेट पर नाभि के इतने नीचे रखा कि मेरी उंगलियाँ उसके बेशकीमती खज़ाने यानि योनि के ऊपरी भाग को छूने लगी।

किशोरी की सिमटी हुई टाँग भी फैल गई।

उसकी सफाचट चिकनी चूत मेरी ऊंगलियों के नीचे थी।

अब किशोरी बिल्कुल चित्त लेटी हुई थी।

मैं अपने हाथ को थोड़ा और नीचे को सरकाने लगा तो…

किशोरी- अह्हहा…आआह… आ… प्लीज़ मत करो ना भैया!

मैं- चल क्या रहा है तुम्हारे दिल में? देखो किशोरी, अब मैंने तुम्हारा सर्वस्व देख ही लिया है… और तुम्हारी योनि से जो यह इतना रस निकल रहा है.. जब तक यह सब निकल नहीं जाएगा, तुम्हें भी चैन नहीं मिलेगा। मैं नहीं चाहता कि पूरी शादी में तुम अशान्त रहो।

अचानक किशोरी मेरी तरफ़ घूमी और मेरे वक्ष से चिपक गई।

किशोरी- मैं क्या करूँ भैया… पर मेरे इनको किसी तरह पता चल गया तो क्या होगा?

मैंने हंसकर उसको खुद से दबोच लिया.. योनि के रस से भीगा हाथ किशोरी के नग्न चूतड़ों पर पहुँचा।

वाह… क्या शानदार उभरे हुए कूल्हे थे… एकदम ठोस जैसे तरबूज…

सलोनी के बाद मुझे यही कूल्हे सलोनी की टक्कर के लगे।

मैं- पगली… लगता है तेरे पति के पास महाभारत के सँजय जैसी कोई दिव्य दृष्टि है.. हा… हा… अरे वहाँ बैठे उन्हें यहाँ के बारे में कैसे पता चल पायेगा?

मेरा लौड़ा फिर से टनटना गया… उसको नयी चूत की खुशबू जो मिल गई थी।

मेरा लिंग किशोरी की योनि पर दस्तक देने लगा।
अपना सिर मेरे वक्ष में छुपाये हुए ही वो बोली- भैया, जो भी करना है जल्दी करिए.. वरना कोई आ गया तो बीच में रह जायेगा।

मुझे भी समय का आभास था, दिन का वक्त था… कोई भी आ सकता था।

और मेरे लिये इतना इशारा काफी था।

किशोरी ने उसी हालत में अपने हाथ से मेरे लिंग को टटोला, उसके हाथ की कम्पकम्पाहट उसकी शरम दर्शा रही थी।
मगर वो स्वय को लण्ड के साथ खेलने से नहीं रोक पा रही थी।

मेरा मन उसको पूर्ण वस्त्रविहीन देखने के लिये आतुर हो रहा था,

नाइटी उसके चूचों तक सिमटी पड़ी थी, सलोनी की नाइटी थी तो मुझे मालूम था कि डोरी के नीचे बटन हैं… मैंने बड़े आराम से बटन खोल नाइटी को हटाकर उसके बदन से अलग कर दिया।

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वो फिर से शरमाई।
उसने अपने दोनों हथेलियाँ अपनी चूचियों पर रख ली।

मुझे अब उसकी शर्म की चिंता नहीं थी।
मैं उठकर उसकी जांघों के मध्य आ गया।

बहुत ही सुन्दर वस्तिस्थल था किशोरी का…

रस से भीगी उसकी योनि की सफ़ेद पंखुड़ियाँ… ओस से भीगे फूल जैसी लग रही थी।

मैं उसको और मजा देना चाहता था… मैंने अपनी खुरदरी जिह्वा से सारे रस को चाट लिया।

‘आअह… आआहा… मम्माह… आआ…’ उसके मुख से सिसकारियों पर सिसकारियाँ निकलने लगी।

अब वह मुझे मना करने वाली अवस्था में नहीं थी।

दो मिनट में ही किशोरी मुझे अपने ऊपर खींचने लगी।

मैंने फिर से पोजीशन लेकर इस बार पूरा लण्ड उसकी चूत में प्रवेश करा दिया।

किशोरी- अह्ह्ह्हा आआहा… मम्माह… आआ… इइइ…

और मैंने एक लय-बद्ध तरीके से झटके लगाने शुरू किए।

करीब दस मिनट के बाद मेरे स्खलन से पहले किशोरी एक बार स्खलित होकर अपना रज त्याग कर चुकी थी।

इस चुदाई में दोनों को ही बहुत मजा आया था।

इस चुदाई से संतुष्ट होने के बाद किशोरी अपनी टांगों को मोड़कर करवट से लेटी हुई थी।

इस दशा में उसकी उठी हुई गाण्ड देख कर मेरा मन मचल उठा था।

कहानी जारी रहेगी।

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