गाँव जाकर नौकर से प्यास बुझवाई-1

अंचल 2007-06-07 Comments

लेखिका : आंचल

गुरुजी को सबसे पहले और फिर अंतर्वासना के पाठक-समूह को मेरी तरफ से यानि कि आंचल की तरफ से बहुत बहुत प्यार- दुलार !

इस वेबसाइट पर प्रकाशित होने वाले किस्से पढ़-पढ़ कर मुझे अपनी प्यास बुझाने का रास्ता मिला।

मेरी उम्र 28 साल की है, मैं पंजाब की रहने वाली हूँ। मेरे ब्रा का नाप है छत्तीस, कमर अठाईस और गांड छत्तीस !

मैं एक गरीब परिवार से लेकिन सपने आसमान छूने के थे। हम तीन बहने हैं। मैं चौदह साल की थी जब मेरे पापा ने आत्महत्या कर ली थी। तीन बच्चों की माँ होने के बाद भी मेरी माँ में इतनी आग थी, कसा हुआ जिस्म जिसको सम्भालने के लिए मर्द भी ज़बरदस्त चाहिए था। इससे आगे मैं क्या कहूँ आप समझदार हो !

पिता की मौत के बाद बड़ी बहन को नानी ले गई, उसकी शादी, पढ़ाई की जिम्मेदारी ली, अपने किसी अमीर यार से मिलकर उसके खर्चे पर दूसरी वाली को बोर्डिंग में डाल दिया।

रह गई मैं ! मुझे कमरे में सुला कर माँ दूसरे कमरे में रंगरलियाँ मनाती, ऐश करती !

मैं भी जवानी की दहलीज़ पर थी। आए दिन उसका नया आशिक पैदा हो जाता, मैं छुप कर देखती तो पहले पहले मुझे माँ पर बहुत गुस्सा आता, फिर सब देख मुझे अजीब जा एहसास होने लगा, मेरे छोटे-छोटे चूचक तन जाते, पैंटी गीली होने लगती। अब मेरा भी दाना कूदता था। मेरे कदम डोलते वक़्त नहीं लगा।

माँ जवान लड़कों, कॉलेज के लड़कों को भी अपने हुस्न-जाल में फंसाती। उनमे से एक लड़का बबलू जिसकी असल में आँख मुझ पर थी, माँ मुझ तक आने का जरिया थी।

एक दिन वो उस समय आया जब उसे मालूम था कि माँ घर में नहीं है। अन्दर आते ही कुण्डी लगा ली और मुझे दोनों कन्धों से पकड़ कर दोस्ती करने के लिए कहने लगा। मेरी बदन में कर्रेंट सा लगा। इससे पहले मैं कुछ बोलती, उसने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए, मना करने का मौका नहीं दे रहा था। उसने मुझे उठाया और सीधा माँ के कमरे में ले गया और बिस्तर पर डाल मुझे पर छा गया। उसने मेरा एक-एक कपड़ा उतार दिया और खुद के भी सारे कपड़े उतार दिए। फ़िर मेरे मुँह में लौड़ा डालने लगा तो मैं काफी छटपटाई, टांगे मारी लेकिन उसमें बहुत दम था। उसने मुझे इस कदर जकड़ लिया कि मैं हिल नहीं पाई, मुझे उसका चूसना पड़ा और मेरी चूत पर थूक लगाते हुए उसने मेरी सील बंद चूत पर मेरे ही थूक से गीला लौड़ा रख दिया। उसका एक हाथ मेरे मम्मे पर था। सेब जैसे छोटे मम्मे तन गए थे। जब उसने लौड़ा मेरी चूत पर रगड़ा तो मुझे मजा आने लगा।

अचानक एक ज़बरदस्त वार हुआ और फड़क की आवाज़ से चीरता हुआ उसका आधे से ज्यादा लौड़ा मेरी चूत में खून से लथपथ !

मेरा मुँह उसने अपने हाथ से दबा रखा था। कुछ पलों के लिए मुझे लगा कि आज मेरा इस दुनिया में आखिरी दिन है। मैं रोने लगी, उसके तरले, मिन्नतें करने लगी। तभी उसने एकदम लौड़ा मेरी चूत से निकाल लिया और पास पड़ी मेरी पैंटी से उसने खून साफ़ किया।

अपने लौड़े को भी थूक लगा फिर घुसा दिया उसने !

कुछ मिनट बाद मैं सामान्य होने लगी और अब वही लौड़ा मुझे मजे देने लगा, खुद चुदवाने लगी। दोनों एक साथ झड़ गए और हांफने लगे। उसने मुझे औरत बना डाला। उसने मुझे एक बार फिर से ठोका।

अब आये दिन मौका देख वो आता, मुझे बजाता, चला जाता !

फिर कुछ और लड़कों से मेरे संबंध बने, जिनकी चर्चा होने लगी !

मेरी जवानी एकदम से आग उगलने लगी, किसी का भी लौड़ा ले लेती थी मैं ! अपनी माँ पर गई थी मैं !

सर्दियों के दिन थे, घना कोहरा पड़ता था। मैं सुबह स्कूल से पहले ट्यूशन पढ़ने जाती थी। मेरे पीछे एक चमकती कार आने लगी और आखिर मेरा भी दिल करता कि मैं भी ऐसे घर जाऊं और एक रोज़ उसकी खिड़की ठीक मेरे पास आकर खुली और मुझे बिठा कर कार चल पड़ी। उसने मुझे अपने बारे में बताया, मेरे बारे में पूछा, मेरा नंबर लिया और फ़िर रोज़ आता।

एक दिन वो कार साइड पर लगा मेरे जिस्म से खेला। उसने मुझे कहा- मैं तुझसे शादी करना चाहता हूँ, उसके बाद ही कुछ करेंगे !

वो मुझसे उम्र में काफी बड़ा लगता था, उसके शॉपिंग मॉल, रेस्टोरेंट थे। वो सरदार था और उसकी गाँव में बहुत ज़मीन थी, उसके बाल कटे हुए थे।

जल्दी किसी ने माँ को बता दिया की तेरी छोरी रोज़ किसी की कार में बैठती है।

माँ ने मुझे बिठाया और पूछा।

मैंने सब कुछ बताया।

माँ ने जब देखा कि कितने अमीर घर में उसकी बेटी जा सकती है तो उसके वारे-न्यारे थे।

एक रोज़ वो घर आया और माँ से मेरा हाथ माँगा।

माँ ने कहा- इतनी जल्दी शादी कैसे कर पाऊँगी?

उसने कहा- मुझे कुछ नहीं चाहिए, तीन कपड़ों में ले जाना है !

चुन्नी चढ़ाई हुई और चार फेरे लेकर मैं उसकी हो गई। शादी के चार दिन बाद उसने एक बहुत बड़ी रेसेप्शन पार्टी रखी जिसमें उसने अपने सारे रिश्तेदारों, दोस्तों को बुलाया। मुझ जैसी कातिल हसीना से शादी कर स्टेज पर बैठ कर बहुत खुश था !

अब वो मेरे साथ चिपका रहता लेकिन मेरी तसल्ली नहीं कर पा रहा था। मैं सिर्फ ऊपर से खुश थी लेकिन उसका लौड़ा वैसा नहीं था जिसकी मुझे आदत थी।

एक दिन मुझे पता चला कि वो पहले से शादीशुदा था, उसका तलाक हो चुका था। मैंने कुछ नहीं कहा। उसने मेरे लिए आलिशान घर बनवा दिया, कई चमकती कारें, नौकर-चाकर सोने से लदी-फ़दी रहती।

दिन बीत रहे थे लेकिन यौन-जीवन से मैं खुश नहीं थी। गाँव में काफी ज़मीन ज़ायदाद थी, जिसपर खूब फसल होती थी। हफ्ते में एक-दो बार गाँव जाते, वहां भी एक आलीशान फार्म-हाउस था और उसकी देखरेख दो नौकर करते थे। मुझे देख उनकी आंखें चमक उठती और वासना साफ़ दिखती थी उनकी आंखों में !

वो थे तो नौकर लेकिन हट्टे कट्टे अच्छी मर्दानगी के मालिक थे। उनकी प्यासी और वासना भरी आँखें देख मेरा दाना कूदने लगता।

फार्म-हाउस में घर के सामने टयूबवेल लगा हुआ था जिसके आगे सीमेंट का बहुत बड़ा टब जैसा था। रात को मैं भी उसमें नहाने चली जाती।

एक बार मैं खिड़की में खड़ी बालों में कंघी कर रही थी और सामने टब में नहा रहे उस नौकर को देख रही थी- चौड़ी छाती, घंने बाल, मजबूत जांघें ! उसका अंडरवीयर गीला होकर चिपका हुआ था, उसका लौड़ा देखने में काफी सोलिड सा लग रहा था।

उसने मुझे खड़ी देख लिया। मैं अपने होंठ चबाने लगी। उसने इधर-उधर देखा और अपना अंडरवीयर नीचे कर दिया साबुन लगाने के बहाने ! उसका काले रंग का लौड़ा देख मेरी हालत खराब होने लगी। वो अनजान बन कर लौड़ा सहलाने लगा, देखते ही उसका तन कर पूरा खड़ा हो गया। मेरा हाथ अपनी कच्छी में चला गया और दूसरा हाथ मम्मे दबाने लगा।

मैंने उसको इशारे से कुछ कहा कि अन्दर आ जा !

वो जल्दी से टब से निकला, तौलिए से बदन पौंछा। तभी कार का होर्न बज गया, मेरे पति आ गए !

हम दोनों उदास हो गए। मुझे लेकर वो वापस शहर आ गए लेकिन मैं दिल वहीं छोड़ चुकी थी, बस मौका तलाश करने लगी !

और फिर आगे आगे क्या-क्या हुआ, जानने के लिए इसका दूसरा अंक पढ़ना अन्तर्वासना पर !

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