बाथरूम का दर्पण-4

(Bathroom Ka Darpan- Part 4)

This story is part of a series:

मैं आपको बता दूँ कि मैंने कभी किसी को मजबूर करके सेक्स नहीं किया। जिसके साथ सेक्स किया, हमेशा उसकी रजामंदी से! चाहे वह गृहिणी हो या कुंवारी लड़की, यदि सामने वाली चाहती है तो सेक्स करना बुरा नहीं है, न ही दोबारा सेक्स करने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए। कुल मिलकर आपसी सहमति से ही सेक्स को सुखद बनाया जा सकता है। प्यार और सेक्स एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

तो पिछली कहानी में रमा के साथ रात भर सेक्स किया, शायद इतना सुखद सेक्स पहली बार किया था, इच्छा दोनों की थी पर पहल मुझे करनी पड़ी थी। मतलब एक तरफा नहीं था, दोनों तरफ आग बराबर लगी हुई थी बस औरतें कह नहीं पाती, इशारा जरूर कर देती हैं, यदि समझ गए तो ठीक नहीं तो रास्ता अपना अपना।

सुबह 5 बजे जब मैंने जाने की बात की तो जाने से पहले उसने वादा लिया कि मैं दोबारा कभी भी इस बात की मांग नहीं करूँगा, न ही किसी से इसका जिक्र करूँगा।

वादा करके मैं उसके घर से चला गया क्यूंकि दस बजे से बाथरूम का काम शरू करना था तो मिस्त्री, बेलदार को लेकर पुनः रमा पाण्डेय के घर आ गया। मिस्त्री को बाथरूम का पूरा नक्शा समझाया और एक कुर्सी पर बैठ गया।

पुराना निर्माण को तोड़ा जाने लगा, मुझे बैचैनी हो रही थी, रमा बच्चों के बेडरूम में थी। मुझे लगता था कि उससे आँखें तो चार होती ही रहेंगी।

परन्तु वह नहीं आई, मैं धीरे से उठा, रमा के पास गया और उसे बुलाया।
उसने पूछा- क्या बात है?
मैंने कहा- प्यास लगी है!
उसने एक जग में पानी और गिलास दे दिया, बात कुछ नहीं की।

मैंने कहा- रमाजी, मुझसे बात नहीं करोगी?
तो बोली- क्या बात करना है?
और कमरे में चली चली गई।

मैं पानी लेकर आया, फिर कुर्सी पर बैठ गया, सोचने लगा कि शायद रमा ने रात में अन्तर्वासना में बह कर वह सब किया होगा और अब ग्लानि महसूस कर रही है। मुझे इसका ख्याल रखना पड़ेगा कि उसे कोई ठेस न पहुँचे।

मैं आँखें बंद किये बैठा था कि तभी मुझे पायल की झनझनाहट सुनाई दी। मैंने देखा रमा थी।

उसने मुझे मुझे इशारे से बुलाया, कमरे में ले गई और आलमारी खोलकर 5000 रूपये मेरे हाथ पर रख दिए, बोली- यह तुम रख लो कल की बात को भुलाने के लिए।

शायद मुझ पर भी विश्वास नहीं था उसे, मैंने कहा- रमाजी, मैं इतना गया गुजरा नहीं हूँ, आप अपने रूपये अपने पास रखें और मेरा विश्वास करें!

रूपये वापस करके मैं बाहर आ गया, मिस्त्री को बोलकर मैं घर चला गया, मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था।

शाम को मिस्त्री घर आया, बताया- तोड़ने का काम ख़त्म, क़ल से निर्माण शुरू करना है।
मिस्त्री ने मेरे बताये अनुसार काम चालू कर दिया, दो दिन तक मैं वहाँ नहीं गया।

तीसरे दिन दोपहर में रमा का फोन आया- रोनी जी, आप क्यूँ नहीं आ रहे हैं? केवल मिस्त्री और मजदूर काम कर रहे हैं, उन्हें गॉइड कौन करेगा?

मैंने कहा- उसकी आप चिंता न करें, मिस्त्री को मैं समझा देता हूँ, उसी हिसाब से वह काम करता है।

रमा ने कहा- मेरी बात का बुरा मान गए?
मैंने कहा- नहीं!
तो रमा ने कहा- दोस्त बनकर तो आ सकते हो!

शायद रमा सामान्य हो गई थी, मैंने कहा- क़ल जरूर आऊँगा।

चौथे दिन टीम के साथ दस बजे रमा पाण्डेय के घर पहुँचा, पाण्डेय जी बैंक जाने की तयारी कर रहे थे, मुझसे बोले- आओ रोनी!
मैंने कहा- जी!

टीम को काम पर लगा दिया और पाण्डेय जी के पास आ गया। उन्होंने आवाज लगाई- रमा दो कप चाय तो बना देना!
पूछने लगे- किसी और चीज की जरुरत हो तो बताना!
मैंने कहा- जी।

चाय खत्म करके टीम का काम देखने आ गया। सब अपने अपने काम में लगे थे, पाण्डेय जी बैंक चले गए।
दोपहर में हिम्मत करके मैं रमा के पास गया, कहा- पानी चाहिए!
तो बोली- बैठो, लाती हूँ।
मैं बैठक मैं बैठ गया।

पानी देकर पूछा- चाय पियोगे?
मैंने कहा- नहीं, घर जा रहा हूँ, एक काम का ठेका है, वहाँ जाना है।

मिस्त्री को बोलकर वहाँ से चला गया। पांचवें दिन रमा की मिस काल आई, शायद रमा मुझसे कुछ कहना चाहती हो, फिर उसने पता नहीं क्या सोचकर फोन कट कर दिया। मैंने भी काल रिटर्न नहीं किया।
छठे दिन काम लगभग पूरा हो गया था, मिस्त्री ने बताया।

तो शाम को छह बजे पाण्डेय जी के घर पहुँचा, पाण्डेय जी बैंक से अभी आये थे, मेरे साथ बाथरूम देखने आये, कहने लगे- तुमने बहुत सुन्दर बाथरूम बना दिया है।

पूरा बाथरूम चमचमा रहा था, दर्पण को दीवार पर लगा कर प्लास्टर और पुट्टी से बेलबूटा बना दिए थे, ऊपर बड़ा रोशनदान से रोशनी हवा आ रही थी, दर्पण के सामने की दीवार से लगा बाथटब, बीच में आमने सामने की दीवार पर ठण्डे-गर्म पानी के कलात्मक नल, शावर और वाश बेसिन फिट कर दिए गए थे, जमीन में मार्बल, दीवार पर टाइल्स लग चुके थे। दर्पण में अपना पूरा प्रतिबिम्ब दिख रहा था, बाथटब भी पूरा दिख रहा था, यानि नहाने वाला अपने आप को नहाते हुए देख सकता है।

पाण्डेय जी बोले- काम कब ख़त्म होगा?
मैंने कहा- काम तो लगभग पूरा हो गया, फ़ाइनल टच में 1-2 घण्टे लगेंगे, यानि क़ल दोपहर तक हो जायेगा।

तभी रमाजी ने आवाज लगाई तो पाण्डेय जी मुझे लेकर बैठक में आ गए।
रमा ने हम दोनों को चाय दी, चाय देते समय मुझसे बात भी कर रही थी, थोड़ा मुस्कुराई भी थी।

पाण्डेय जी ने जेब से 5000 रूपये देकर कहा- आप अपना पेमेंट चुकता ले लीजिये, क़ल दोपहर मैं बैंक चला जाऊँगा, शाम को आ पाऊँगा। परसों दिन में दौरे पर रहूँगा।
मैंने रूपये रख लिए और आज्ञा ली। मिस्त्री व मजदूरों को लेकर आ गया।

सुबह मिस्त्री का फोन आया कि वो काम पर नहीं आ सकता, बच्चे को बुखार है।
मैंने कहा- ठीक है।
सोचा, आज दूसरी जगह का काम की रूपरेखा बना लेंगे।

फिर मैंने पाण्डेय जी को फोन लगाकर माफ़ी मांगी सारी बात बताकर कहा- आपका काम क़ल हो जायेगा!
वो बोले- कोई बात नहीं।

सारा दिन दूसरी साईट की तैयारी में निकल गया, दूसरे दिन सुबह मिस्त्री को लेकर रमा के घर गया। पाण्डेय जी शायद दौरे पर चले गए थे, तो दरवाजा रमा ने खोला, उसने नारंगी रंग की साड़ी पहनी थी, बला की खूबसूरत लग रही थी।
मिस्त्री अपना काम करने लगा, मैं चेक कर रहा था कि कोई कमी तो नहीं रह गई है।

तभी रमा ने मुझे बैठक में बुलाया और अपनी गलती के किये क्षमा मांगी।
मैंने कहा- कौन सी गलती?

तो बोली- मैं तुम्हें समझ नहीं पाई थी, यह सोचकर कि कहीं तुम मुझे काम करने के बहाने रोज आकर गलत काम यानि सेक्स को मजबूर न करो या मुझे ब्लैकमेल न करो! ऐसे तो मैं बदनाम हो जाती। इसलिए मैं डर रही थी और तुम्हें रूपये देकर तुम्हारा मुँह बंद करना चाह रही थी, सॉरी! एक दिन यही बताने को मैंने तुम्हें फोन किया था, फिर सोचा कि तुम व्यस्त न हो, इसलिए कट कर दिया था, तुम बहुत अच्छे दोस्त हो, कभी फोन लगाऊँ तो मुझसे बात करोगे या नहीं?
मैंने कहा- रमा जी, उस रात को मैं एक सुन्दर सपने की तरह मानता हूँ, जो रात गई तो बात गई, मेरी तरफ से तुम निश्चिंत रहना।

तब तक मिस्त्री का काम हो गया था, मिस्त्री से मैंने कहा- तुम गाड़ी को गेट से बाहर निकालो, मैं मैडम को बाथरूम दिखाकर आता हूँ।
मिस्त्री चाभी लेकर बाहर चला गया, मैं रमा को लेकर बाथरूम मैं गया और पूछा- कैसा लगा?
बोली- कल्पना से भी ज्यादा सुन्दर!

हम दोनों दर्पण में दिख रहे थे, इच्छा हुई कि एक बार चूम लूँ पर मन को काबू में रखकर मैंने कहा- रमा जी, मैं चलता हूँ, अब आप बाथरूम इस्तेमाल कर सकतीं हैं।
और अपना हाथ बढ़ा दिया। रमा ने हाथ बढ़ाकर मुझसे हाथ मिलाया, मैं बाहर निकल गया।
गेट से मुड़कर देखा तो रमा मुस्कुरा रही थी।

मैं और मिस्त्री निकल कर अपनी साईट पर पहुँच गए, मिस्त्री को वहाँ का सारा काम समझा कर अगले दिन से काम लगाने को कहा और अपने अपने घर चले गए।शाम के चार बजे थे, बीवी मायके से नहीं लौटी थी तो बियर फ्रिज से निकालकर पीने लगा।

साढ़े चार बजे फोन पर काल आई, देखा तो रमा का नंबर था, बोली- रोनी जी, आपसे काम है, समय हो तो तुरंत आ जाओ।
मुझे कुछ नहीं सूझा, कहा- ठीक है!
फोन कट गया, मैं समझ गया कि आज रमा ने फिर बाथरूम का दर्पण के सामने स्नान कर लिया होगा। पाण्डेय जी हैं नहीं, सो मुझे बुलाया है।

साढ़े पाँच बजे मैं उसके घर पहुँचा तो उसने दरवाजा खोला। उसने लोअर और टॉप पहना था, बाल खुले थे, होंठों पर लिपस्टिक लगी थी, बदन से परफ़्यूम की खुशबू आ रही थी, आँखें लाल लग रही थी।
मैंने कहा- कहिये?
बोली- अन्दर तो आओ!
अन्दर जाकर मैं सोफे पर बैठ गया, वो मेरे पास बैठ गई।

मैंने पूछा- कैसे याद किया?
बोली- बस याद आ रही थी!
मैंने कहा- रमा जी, आपने तो मना किया था कि कभी भी इस प्रकार सोचने के लिए भी।
तो रमा बोली- तुम में यही तो खास बात है कि मुझे ही इस प्रकार सोचने पर मजबूर कर दिया।

मैं समझ गया कि मेरे हिसाब से यदि औरत को उसके हाल पर छोड़ दो तो जरुरत पर वह खुद बुला लेती है, जबरन चोदने की कोशिश करो तो बिचक जाती है।

अब मेरे लिए औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं थी, मैंने रमा के हाथों को पकड़कर चूम लिया, पूछा- पाण्डेय जी कब आयेंगे?
बोली- रात दस बजे तक!

मैंने उसे अपनी ओर खींच लिया, वह मेरे पहलू में पके फल की तरह आ गिरी।

मैंने उसे चूमना शुरु किया, धीरे धीरे टॉप उतार दिया, ब्रा भी अलग कर दी, वह लता की तरह मुझसे लिपट गई। आज शायद शर्म नहीं लग रही थी उसे!

मेरी शर्ट को खोलकर उसने अलग कर दी, मेरे सीने पर हाथ फिरा कर लिपट गई।

फिर मैं उसे बाँहों में उठाकर बेडरूम में ले गया उसके सारे कपड़े उतारकर उसके ऊपर छा गया। वो सिसकारने लगी।
फिर उसने मेरी पैंट उतार दी, चड्डी हटा कर लंड को थामकर चूमने लगी।

मैं उसकी चूत को चूम रहा था, उसकी चूत से पानी रिस रहा था तो ज्यादा देर वह बर्दाश्त नहीं कर पाई, बोली- रोनी, अब मत तड़पाओ! जल्दी से अपना मेरे अन्दर डाल दो।

मैंने अपना लंड उसकी चूत पर रखा और एक धक्का लगाया तो लंड चूत के अन्दर चला गया। मैं उसके स्तन को मसलने और चूसने लगा, उसके मुँह से आह… सी… रोनी…करो… सी… आह… जैसी आवाजें निकल रही थी, साथ अपनी गाण्ड को उचकाकर लंड को अधिक से अधिक अन्दर लेने की कोशिश करने लगी।

मैंने भी धक्के मारने शुरु कर दिए। दस मिनट में उसका शरीर अकड़ने लगा, मैंने भी धक्के तेज कर दिए।

वो मुझसे लिपट कर शांत पड़ गई, थोड़ी देर में मेरा भी छुट गया। थोड़ी देर ऐसे ही पड़े हम एकदूसरे को चुमते रहे, फिर हम नंगे ही बाथरूम में अपने आप को साफ करने गए। दोनों एकदूसरे को साफ कर रहे थे। दर्पण में हम दोनों नंगे एकदूसरे को देख कर फिर उत्तेजित हो गए, मेरा लंड फिर खड़ा हो गया।

हमने शावर चालू किया और नहाते हुए खड़े खड़े ही चूत में लंड डालकर रमा को गोद में ले लिया। उसने अपनी टांगों को मेरी कमर में लपेट लिया। कुछ देर बाद रमा को घोड़ी बनाकर चोदा, वो दर्पण में मुझे पीछे से चोदते हुए देख कर बहुत उत्तेजित हो रही थी।

जब वो चरम पर पहुँच गई तो जमीन पर चित्त लेट गई, अपने पैर मोड़ कर ऊपर कर लिए और बोली- जोर से करो रोनी! बहुत अच्छा लग रहा है।

दस मिनट में मेरा माल निकल गया। हम एक बार फिर नहाए और बेडरूम आकर अपने कपड़े पहने। तब तक रात के आठ बज चुके थे।

रमा ने खाना लगा दिया, हमने साथ खाना खाया।

रमा बोली- रोनी, मैं कभी याद करुँगी तो तुम इसी तरह मेरे पास आ सकते हो?
तो मैंने कहा- जरूर, लेकिन परिस्थिति के अनुसार! यानि यदि मैं आने की स्थिति में हूँ तो जरूर आऊँगा।

साढ़े आठ पर मैंने कहा- रमा, अब मुझे चलना चाहिए!
अनमने ढंग से बोली- ओके।
मैंने उसे चूमा और अपने घर चला आया।

मेरे हालचाल पूछने के लिए हफ्ते में एकाध फोन वो जरूर लगा लेती है। मैं चाहकर भी फोन नहीं लगाता कि मालूम नहीं कौन फोन उठा ले।
अगर रमा से फिर मिलना हुआ तो जरूर लिखूँगा।

अपने विचार और अपनी राय जरूर लिखें ताकि मैं अपनी अन्य आपबीती घटनाओं को कहानी के रूप में आपके समक्ष प्रेषित करूँ।
[email protected]

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top