आधी हकीकत आधा फसाना-4

(Aadhi Haquikat Aadha Fasana- Part 4)

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अब तक आपने पढ़ा कि किमी से उसके पति ने संबंध नहीं बनाए, जिससे तंग आकर किमी ने अपनी योनि में गाजर घुसेड़ ली और इससे हुआ ये कि गाजर उसकी योनि में फंस गई, जिसे उसके जेठ जेठानी ने मिलकर निकाली और जेठानी अब किमी की हमराज बन गई।

अब आगे…

जेठानी की कही हुई बात सच निकली, एक हफ्ते के भीतर ही मेरे पति ने एक रात मुझसे संभोग करने की इच्छा जताई, अनायास ही मेरी आँखों में आंसू आ गए। हालांकि वह नशे की हालत में सेक्स करना चाहते थे, मैं फिर भी तैयार थी, मेरे मन में बस यही तसल्ली थी कि कम से कम मैं शादीशुदा होने का अर्थ पूर्ण कर पाऊंगी।

लेकिन जैसा मैंने सोचा था, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, सुधीर नशे की हालत में आए और उन्होंने मुझे बिस्तर पर लेटने और कपड़े उतारने को कहा, मैंने वैसा ही किया और हब्शी की तरह मुझे नोंचने लगे।

उनका लिंग भी मेरे सपने के जैसा नहीं था.. मैंने तो सपने में लगभग आठ इंच के लिंग की कल्पना की थी, पर वास्तविकता में वह महज छ: इंच का लग रहा था। मेरे पति का लिंग बहुत सख्त भी नहीं था, वह कभी मेरे उरोजों को दबाते, कभी होंठों को चूसते।

मुझे उनकी ये हरकत कामोत्तेजित करने के बजाए घृणित काम करने जैसी लग रही थी क्योंकि दारू की तेज गंध मैं बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।

फिर भी प्रथम सहवास की खुशी से ही मेरी योनि गीली हो चुकी थी। सम्भोग की स्थिति बनने की ख़ुशी को अभी मैं महसूस ही कर रही थी कि तभी अचानक उन्होंने मेरे पैर फैलाए और अपना लिंग मेरी योनि में बेदर्दी से ठूंस दिया, मुझे बहुत दर्द हुआ.. पर झिल्ली फटने का दर्द जितना नहीं हुआ क्योंकि मैंने तो अपनी झिल्ली गाजर से ही फाड़ ली थी।

फिर भी मैंने दर्द का और रोने का नाटक किया, उन्हें तो किसी बात से मतलब तो था नहीं.. और वो लिंग को लगातार अन्दर बाहर करने लगे।
अब मैंने भी उसका साथ देना शुरू कर दिया था.. तीन से चार मिनट के अन्दर मैं स्खलित हो गई और पांच मिनट के अन्दर वो भी झड़ गए और उठ कर एक किनारे सो गए।

क्या सेक्स ऐसे ही होता है, फिर लोग जो सेक्स के बारे में इतनी इंस्ट्रेस्टिंग बातें कहते हैं.. वो क्या है? मैं इसी सोच में रात भर जागती रही।

अब ना ही मेरे अन्दर सेक्स की कोई ललक बची थी और ना ही उसके अन्दर ऐसी कोई बात थी कि उसके साथ सेक्स करने की चाहत मेरे अन्दर कोई भाव पैदा कर सके। मैं तो पहली बार में ही सेक्स से विमुख होने लगी थी। फिर सोचा पहली बार के कारण ऐसा हुआ हो। मुझे सेक्स का कोई अनुभव भी नहीं था, इसलिए मैं इस मामले में कुछ नहीं कर सकती थी। मैंने सोचा हो सकता है कि आगे कोई बात बने।

उस महीने पांच-छह बार पति के साथ संबंध बने, पर सभी अनुभव ऐसे ही नीरस ही रहे। सेक्स के दौरान हम दोनों ही उत्तेजित नहीं हो पाते थे।

फिर एक दिन जेठानी ने कहा- चल अब तुझे अपने पति से रगड़वाते एक महीना हो गया.. अब अपना वादा पूरा कर, तेरे जेठ को मैंने कब से रोक रखा है, अब और नहीं रोक सकती।

मैं चाहती तो जेठानी को सीधे मना कर सकती थी और वो मेरा कुछ भी नहीं कर सकती थी। पर मैं खुद सेक्स को जानना चाहती थी, एहसास करना चाहती थी। इसलिए मैंने ‘हाँ’ कह दिया। हालांकि मेरे अन्दर सेक्स उत्तेजना धीरे-धीरे घट रही थी, फिर भी मुझे सारी बातों का हल जेठानी की बातों को मान लेने में ही दिखा।

जेठानी ने कहा कि आज देवर जी बाहर जा रहे हैं.. वो रात को नहीं आएंगे, उनके भैया ने उसे दूसरे शहर भेजा है, आज रात को तुम तैयार रहना।
मैंने मजबूरी और मर्जी के मिले-जुले भाव में ‘हाँ’ में सर हिला दिया।

रात को खाना खाकर मैं जेठ-जेठानी का इंतजार करने लगी, मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था, बहुत डर भी लग रहा था। मैं भगवान को कोस रही थी कि ये गलत काम वो मुझसे क्यों करा रहा है। फिर सोचने लगी कि जो होता है, अच्छा ही होता है।

मेरा अनुमान था कि जेठानी आज मुझे जेठ के सामने परोस कर ही रहेगी, पर क्या वो खुद भी सामने रहेगी? अकेले में तो मैं एक बार जेठ के साथ कर भी लेती पर जेठानी के सामने ये सब!

तभी दरवाजे के खुलने की आवाज आई.. सामने जेठ-जेठानी आ खड़े हुए, जेठानी ने पास आकर सीधे मेरे भारी उरोजों को मसल दिया और कहा- क्यों अभी भी तैयार नहीं है?
मैंने कहा- और कैसे तैयार होते हैं?
उसने कहा- ना लिपिस्टिक, ना सेक्सी गाऊन, ना बेड में नया चादर, ना चेहरे पे खुशी.. ऐसे भी कोई सेक्स के लिए तैयार होता है क्या? पुरानी सी साड़ी ब्लाउज पहन कर मुंह लटकाए बैठी हो..! ऐसे में तो खड़ा लिंग भी सो जाएगा!

मैं प्रतिक्रिया में बिस्तर से उतर कर उनके सामने खड़ी हो गई और उसने ‘जरा देखूँ तो.. कुतिया ने अन्दर क्या तैयारी की है..’ कहते हुए एक झटके में साड़ी खींच दी और ब्लाउज भी फाड़ दिया।
अन्दर मैंने पिंक कलर की ब्रा-पेंटी का सैट पहना था, तो उसने हँस कर कहा- अय.. हय.. अन्दर से तो सेक्स के पूरे इंतजाम किए बैठी है।

अब जेठ जी ने बिना कुछ कहे मुस्कान बिखेरी और वे अपने कपड़े उतारने लगे। मैंने अनजान बनते हुए कहा- दीदी आप मेरे साथ क्या करने वाली हो?
तो जेठानी ने कहा- दिखता नहीं, तेरे ऊपर अपने खसम को चढ़वाने आई हूँ, तुझे अपनी योनि पर बहुत घमंड था ना? आज देख तेरी योनि की कैसे चटनी बनवाती हूँ।

मैं डर गई, या कहिए कि डरने का नाटक करने लगी।

तब तक जेठ जी अपने कपड़े उतार चुके थे.. उन्होंने पास आकर प्यार से मेरे बालों पर हाथ फेरा और कहा- डरो मत बहू रानी, तुम्हारी योनि में मैं बहुत आराम से लिंग डालूंगा, मैं बहुत दिनों से किसी मोटी औरत से संभोग करने के सपने देखता था, मैंने बहुतों से सेक्स किया.. पर किसी मोटी औरत की योनि में लिंग प्रवेश नहीं करा पाया। ऐसे भी तुम या मैं बाहर मुंह मारेंगे तो बदनामी तो घर की ही होगी, इसलिए जो हो रहा है, घर पर ही हो जाए तो अच्छा रहेगा। इसलिए अब तुम बिना कुछ सोचे इस संभोग का आनन्द लो।

फिर मैंने कहा- लेकिन दीदी के सामने..!
तो जेठ ने जेठानी को जाने का इशारा किया, तो जेठानी ‘ठीक है कुतिया जाती हूँ..’ कहते हुए जाने लगी.. और जाते-जाते कह गई- सुनो जी.. जल्दी आकर मेरे खेत में भी जल छिड़कना है, पूरा हैंडपंप यहीं सुखा के मत आ जाना!

उसके जाते ही जेठ जी ने मुझे आगोश में ले लिया और चुम्मा-चाटी करने लगे, वो पिये हुए थे, लेकिन तब भी मुझे उनका छूना बहुत बुरा तो नहीं लग रहा था, पर अच्छा भी नहीं लग रहा था। वो जैसा कहते रहे.. मैं करती रही, मैंने अपने मन से कुछ भी अतिरिक्त करने का प्रयास ही नहीं किया।

फिर उन्होंने अपने अंतर्वस्त्र भी निकाल फेंके, उनका लिंग 7 इंच का सीधा लंबा काला और मोटा था। लिंग में तनाव भी साफ नजर आ रहा था।

वो मुझे बिस्तर में लेट कर पैर को फैलाने बोले, मैं यंत्रवत उनकी आज्ञा का पालन करती रही। फिर वो मेरे ऊपर चढ़ कर मेरे पर्वतों को दबाने लगे, घाटियों को टटोलने लगे और अपने लिंग को मेरी योनि में लगा दिया। उसके बाद उन्होंने झटका जोर से लगा कर एक ही बार में अपना लिंग मेरी योनि की जड़ तक पहुँचा दिया। उम्म्ह… अहह… हय… याह… मुझे थोड़ा दर्द हुआ, पर मैं आराम से सह गई।

मैं कुछ देर में ही झड़ गई और वो मेरे ऊपर कूदते रहे। फिर करीब बीस मिनट बाद वो भी झड़ गए और अपने कपड़े पहन कर चले गए। मैं ऐसी ही लेटी रही, कुछ सोचते हुए.. थोड़ा रोते हुए, नींद भी आ गई।

अब दिन ऐसे ही कटते रहे.. कभी पति रौंद जाते, तो कभी जेठ बिस्तर पर पटक जाते थे, पर मैंने एक बात पर गौर किया कि पहले वो लोग मुझे हफ्ते में एक-दो बार रगड़ ही देते थे और फिर महीने में एक बार हुआ.. फिर अब तो तीन-चार महीनों में कभी-कभी भगवान की कृपा से मेरे सूखे खेत को पानी की बूंद नसीब हो जाती थी। सबसे खास बात ये थी कि मुझे खुद भी इस बीच सेक्स के लिए बहुत ज्यादा ललक नहीं रहती या और शारीरिक क्रियाओं का मन नहीं करता।

अब शादी के डेढ़ साल बीत गए और बच्चे का कोई पता नहीं था.. लोगों के कटीले ताने शुरू हो गए और साथ ही पति और घर वाले दहेज के लिए सुनाने लगे। पति तो बीच-बीच में मायके से पैसे लाने को कहने लगे, मैं पढ़ी-लिखी होकर भी सब चुप-चाप झेल रही थी क्योंकि मेरे मायके वाले हमेशा मुझे चुप रहकर समझौता करने की ही बात करते थे।

इसी बीच मैंने अपनी उदासी दूर करने के लिए अपनी बहन स्वाति को कुछ दिनों के लिए बुला लिया। उसकी छुट्टियाँ चल रही थीं, तो वह मेरे एक बुलावे पर आ गई। उसके आने से अब मुझे अच्छा लगने लगा।

स्वाति ने अभी-अभी जवानी में कदम रखा था, वो खूबसूरत चंचल लड़की जल्दी ही मेरे ससुराल वालों के साथ घुल-मिल गई।

पर स्वाति के आने से शायद मेरे पति को अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिए उनके कहने पर मैंने स्वाति को अलग कमरे में सोने को कहा।

हमेशा की तरह एक रात मेरे पति घर नहीं आए थे, मैं अकेले ही सोई हुई थी और रात को अचानक किसी सपने या आवाज की वजह से मेरी नींद खुली और उठकर इधर-उधर देखने पर भी कुछ समझ ना आया तो फिर मैं बाथरूम चली गई।

फिर मैं जैसे ही वापस आने के लिए मुड़ी तो मुझे स्वाति के कमरे से कुछ आवाजें सुनाई दीं। मेरे कदम ठिठके और उस ओर बढ़ गए। मैं उसके कमरे के सामने पहुँच गई और जैसे ही मैंने दरवाजा खोला… मेरे पांव तले जमीन ही खिसक गई, जिसे मैं बच्ची समझ रही थी मेरी वही बहन, जिसने जवानी की दहलीज पर ठीक से कदम भी नहीं रखा था.. अपने ही जीजा जी के साथ निर्वस्त्र होकर रंगरेलियाँ मना रही है।
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मेरी आँखों से आंसुओं की धार बह निकली, मैं पहले के गमों से ही पीछा नहीं छुड़ा पाई थी और अब स्वाति की इस हरकत ने मुझे अन्दर तक हिला दिया।

मुझे सामने पाते ही स्वाति ने खुद को ढकना चाहा, वहाँ से हटना चाहा.. पर मेरे पति को कोई फर्क ही नहीं पड़ा। जिनका लिंग मेरे लिए हमेशा मुरझाया हुआ रहता था.. आज उसमें जान आ गई थी।
मैं समझ गई थी कि ये सब मेरे भद्देपन के कारण ही हुआ है।
मैं बिना कुछ बोले अपने कमरे में वापस आ गई।

सुबह भी मैंने किसी से कुछ नहीं कहा, बस स्वाति का सामान बांध कर वापस भेज दिया। स्वाति अपनी सफाई देना चाहती थी, पर अब सफाई सुनने का कोई फायदा नहीं था और मेरे पति ने तो सफाई देना तो दूर, उनके चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं आई थी। मैं भी अन्दर ही अन्दर घुट के रह गई।

ऐसे ही दिन बीतने लगे, मुझे खुद से घिन आने लगी.. अपनी जिन्दगी से घिन आने लगी, मेरी जेठानी ने भी मेरे मोटापे और भद्देपन का खूब मजाक उड़ाया, उसने तो यहाँ तक कह दिया कि मेरे भद्देपन के कारण मर्द मेरे से दूर भागते हैं और अब मुझे सेक्स, आकर्षक या उत्तेजना जैसे शब्दों से चिढ़ हो गई।

पर हद तो तब हो गई.. जब मेरे हाथ घर की सफाई करते हुए पुराने कागज लगे। उसमें एक फोटो और एक सर्टिफिकेट था। वो सर्टिफिकेट मेरे पति की पहली शादी के थे। मैं दंग रह गई कि मेरे साथ इतना बड़ा धोखा हुआ है।

फोटो में भी मेरे पति किसी और महिला के साथ नजर आ रहे थे। मैं फूट पड़ी… क्या मेरी शादी एक पहले से शादीशुदा इंसान से कर दी गई है??

मैंने तुरंत ही रोना-चिल्लाना शुरू कर दिया, तब मेरे पति ने मुझसे साफ-साफ कह दिया कि मैंने तो तुमसे सिर्फ दहेज के लिए शादी की थी। वर्ना तुम जैसी भद्दी लड़की के साथ तो कुत्ता भी ना रहे।

अब मेरे सब्र का बांध टूट चुका था, मैंने घर फोन लगाकर पापा से बात की, तो पापा ने कहा- हमें सुधीर की पहली शादी के बारे में पता था, पर हम लोगों ने पता किया था, अब सुधीर उसके साथ नहीं रहता इसलिए हमने तुम्हारी शादी उससे कर दी।

मैंने फोन काट दिया, अब मुझे मेरे साथ ससुराल में हो रहे सारे बर्ताव समझ आ गए कि मेरे पति अकसर कहाँ जाया करते थे, लेकिन जब मेरे ही माँ-बाप ने मुझे धोखा दिया तो मैं क्या करती।

मैंने तुरंत खेत में डालने वाली एक कीटनाशक दवाई की शीशी खोली और खा ली।

मैं जीना ही नहीं चाहती थी, पर उन लोगों ने समय पर अस्पताल पहुँचा कर बचा लिया। फिर मैंने हिम्मत जुटाई और तलाक ले लिया।

सिर्फ सेक्स चाहने वालों को इस भाग में निराशा हुई होगी। पर यही समाज का असली चेहरा है। आप कहानी से जुड़े रहिए.. आगे की कड़ियों में जबरदस्त रोमांच और सेक्स के किस्से मिलेंगे..

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कहानी जारी रहेगी।

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