हर किसी को चाहिए तन का मिलन-2

(Bahu Ki Chudai : Har Kisi Ko Chahiye Tan Ka Milan- Part 2)

तनु फन 2018-01-26 Comments

This story is part of a series:

प्रोफेसर दिनेश का एक ही बेटा है रोहण, उम्र 32 साल देखने में लम्बा चौड़ा और पुलिस इंस्पेक्टर है; पर चुदाई करने में बिल्कुल जीरो; पर यह बात दिनेश के लिए बदनामी की जगह एक चूत का जुगाड़ कर गयी।
दिनेश की शादी लगभग दो साल पहले हुई; आरुषि दिनेश के दोस्त की बेटी थी, 25 की हो चुकी थी; देखने में गोरी चिट्टी, 5 फुट 7 इंच की बदन अजंता की मूर्तियों जैसा तराशा हुआ गोल चेहरा कुछ कुछ काजल अग्रवाल जैसा; ऊपर से कॉलेज में प्रोफेसर तो दोनों दोस्तों ने अपने बच्चों की शादी करवा दी।

पर शादी के कुछ दिन बाद ही दिनेश को लगने लगा कि आरुषि और रोहण के बीच में सब कुछ ठीक नहीं है। पति जवान हो अमीर हो और पत्नी हूरों जैसी; इसके बाद भी अगर शादी के कुछ दिन बाद ही दोनों उखड़े उखड़े रहने लगें तो समझ जाना चाहिए मामला गड़बड़ है।
दिनेश एक तो ठरकी… ऊपर से औरतों को समझने वाला था; वो झट से ताड़ गया कि उसका बेटा ही नपुंसक है। पर इससे नाराज या परेशान होने के बजाए उसकी आँखें खुशी से चमक उठी। आखिर उसे एक कुंवारी चूत मिल सकती थी।

दिनेश ने अपना जाल बिछाना शुरू किया। पुलिस में होने के कारण रोहण अक्सर घर से बाहर रहता; इसी का फायदा उठा कर उसने आरुषि पर नज़र रखनी शुरू कर दी। वो उसे नहाते हुए कीहोल से देखता और आरुषि की भरी हुई गांड और कसे हुए बड़े बड़े मम्मों पर खूब मुठ मारता।
पर आरुषि ऐसा कोई काम नहीं कर रही थी जिससे लगे कि वो भी चुदाई के लिए तैयार है या तड़प रही है।

दिनेश की वासना दिन ब दिन बढ़ती जा रही थी पर रिश्ते दारी का मामला होने के कारण वो पहल करने से डर रहा था। पर जल्दी ही वो दिन आ गया जब उसे आरुषि की चूत पेलने का मौका मिला।

रविवार का दिन था पर रोहण की ड्यूटी थी थाने में, वो सोमवार शाम से पहले नहीं आने वाला था.
दिनेश सोच रहा था कि आज रात को आराम से बहू को देखेगा कि वो उंगली करती है या नहीं।

दिनेश को भी 11 बजे ओल्ड क्लब की मीटिंग में जाना था। यह बात उसने सुबह खाने वक़्त ही आरुषि को बता दी थी ताकि वो दिन का खाना उसके लिए न बनाए।
दिनेश 11 बजे घर से निकल गया उसे मीटिंग के लिए मोहाली जाना था पर आधे रास्ते में उसे याद आया कि वो अपना पर्स घर ही भूल आया है, उसने कार घुमाई और घर पहुंच गया।

दिन के 12 बज रहे थे वो जल्दी में वो घंटी बजाना भूल गया और गेट खोल के अंदर घुस गया पर घर के अंदर आते ही उसका माथा ठनका “बहनचोद घर का मेन गेट खोल कर ये आरुषि कर क्या रही है?” उसने खुद से कहा।
उसे लगा कि पक्का इसने अपने किसी यार को बुला लिया होगा और मज़े कर रही होगी.
यह सोच कर वो रोमांचित हो गया।

वो दबे पांव बहू के कमरे के बाहर पहुंचा, उसकी किस्मत अच्छी थी दरवाजा खुला हुआ था। वो दबे अपनी बहू के कमरे की बढ़ने लगा।
दरवाजा खुला था और अंदर से आरुषि की हल्की हलकी सिसकारियों की आवाज़ आ रही थी। उसने छुप के अंदर झाँका तो आरुषि बिल्कुल नंगी अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी और चूत में उंगली कर रही थी।

दिनेश तो नज़ारा देखते ही पागल हो उठा; उसका मन कर रहा था कि अभी अंदर चला जाये और अपनी बहू को चोद दे.
पर वो जनता था कि आरुषि को फंसाना इतना आसान नहीं है इसिलए उसने फटाफट अपना मोबाइल निकाला और आरुषि की वीडियो बना ली और अपने कमरे में आकर उसने कपड़े उतारे; एक पतली सी लुंगी पहनी और बिस्तर पर लेट गया ताकि आरुषि को कोई शक न हो।

एक दो घंटे बाद जब आरुषि को पता चला कि उसका ससुर घर पे ही है तो वो कुछ डर गई कि कहीं उसके ससुर ने उसे वो करते हुए देख न लिया हो। पर अपने ससुर को गहरी नींद में सोता हुआ देख के उसने चैन की सांस ली।
वो पलटने ही वाली थी कि अपने ससुर की लुंगी में से लटकते लन्ड को देख कर कर वो सन्न रह गयी; सोई हुई हालत में भी लन्ड बेहद लम्बा और मोटा था ‘कम से कम 4 इंच लम्बा तो होगा.’ आरुषि ने मन में सोचा।
इतने दिनों के बाद वो असली लन्ड देख रही थी; उसका तो मन हुआ कि अभी इस लन्ड को मुंह में ले ले और चूस-2 के खड़ा कर दे।

वो कोई 2 मिनट अपने ससुर के लन्ड को घूरती रही। दिनेश का निशाना सही जगह लगा था, वो सोने का नाटक करते हुए अपनी बहू की सारी हरकतों को देख रहा था. वो अभी आरुषि को पकड़ के चोद सकता था पर वो आरुषि के साथ थोड़ा और खेलना चाहता था इसलिए सोने का नाटक करता रहा।

आरुषि के चले जाने के कोई 10 मिनट बाद उसने आरुषि को आवाज़ लगाई- बहू… बहू…
“पापा आई…” आरुषि ने जवाब दिया और अपने ससुर के रूम की तरफ चल पड़ी; उसने इस समय हल्के नीले रंग की साड़ी पहन रखी थी।

आरुषि कमरे में दाखिल होते हुए- जी पापा… आप जाग गए?
आरुषि की नज़र सीधी दिनेश की लुंगी की तरफ गयी जिसमें वो अभी भी साफ साफ अपने ससुर के लन्ड को देख सकती थी।
दिनेश- हाँ बहू… ज़रा तेल गरम कर के दे दे, आज टांग में मोच आ गयी थी, बहुत दर्द हो रहा है। मालिश करके देखता हूँ शायद कोई फर्क पड़े।
आरुषि- पापा तेल से क्या फर्क पड़ेगा, मैं मूव लगा देती हूँ; मेरे पास पड़ी है।

आरुषि अपने कमरे से मूव की ट्यूब ले आयी।
दिनेश अपने बिस्तर पर लेट गया।

आरुषि- पापा, कहाँ दर्द हो रहा है?
दिनेश- घुटने के थोड़ा ऊपर!
आरुषि घुटने के ऊपर छूते हुए- यहाँ पे?
दिनेश- नहीं बहू थोड़ा और ऊपर!

दिनेश थोड़ा ऊपर थोड़ा ऊपर करते हुए आरुषि के हाथ को टांग के बिल्कुल ऊपरी हिस्से तक ले आया। आरुषि की नज़रें फिर अपने ससुर के लन्ड पर चली गईं जो इस समय सोते हुए अजगर की भाँति लग रहा था। उसने झट से मुँह घुमा लिया और धीरे-2 टाँग पर मूव लगाने लग पड़ी।

आरुषि के कोमल हाथों का स्पर्श पाते ही दिनेश काम अग्नि में जलने लग पड़ा और उसके सोये हुए अजगर ने एक अँगड़ाई ली और एक झटके में ही लोहे के सख्त डण्डे जैसा होगा। आरुषि ने मुँह दूसरी तरफ घुमा रखा था और धीरे-2 अपने कोमल नाज़ुक हाथों से उसकी मालिश कर रही थी।

दिनेश को तो लग रहा था कि वो ऐसे झड़ जाएगा; उसने आँखें बंद कर ली और सोने का नाटक करने लग पड़ा।

कुछ देर बाद आरुषि को लगा कि शायद ससुर जी की दूसरी टांग भी दर्द कर रही होगी, पर वो शर्मा रही थी इसलिए उसने पूछना ही ठीक समझा- पापा दूसरी पे भी मूव लगा दूँ?
पर दिनेश पूरा हरामी था; उसने कोई जवाब नहीं दिया और सोने का नाटक करता रहा।

जब दो तीन बार पूछने पर भी कोई जवाब न मिला तो आरुषि ने सोचा कि बूढ़ा सो गया होगा; पर उसे क्या पता था कि वो इस चालाक ठरकी बूढ़े के जाल में फंसती जा रही है। वो अपने ससुर की तरफ जैसे ही घूमी तो उसकी नजर सीधी बूढ़े के लम्बे मोटे लन्ड पर पड़ी जो छत की तरफ 90 के कोण पर तना हुआ था।
आरुषि की चीख निकलते निकलते रह गयी।

उसने झट से मुँह घुमा लिया पर उसके अंदर की औरत उसे लन्ड को दोबारा देखने के मजबूर कर रही थी।
‘पापा तो सो रहे हैं, एक बार देख लेती हूँ कितना मस्त लन्ड है.’ उसने खुद से कहा और इस बार हिम्मत करके वो मंत्रमुग्ध हो कर अपने ससुर के लन्ड को देखने लगी।

“भूरे गुलाबी रंग का सुपारा और उसके पीछे 20 रुपये वाली कोक की बोतल जितना मोटा और 7- 7.5 इंच लम्बा लन्ड… हाय राम कितना मस्त लन्ड है.” ये सब सोचते-2 कब उसका हाथ साड़ी के अंदर चला गया और कब वो अपनी चूत में उंगली करने लग पड़ी उसे पता ही नहीं चला।

दिनेश ये सब चुपके से देख रहा था पर वो कोई हरकत करने से पहले आरुषि को ऐसी हालात में देखना चाहता था जहाँ वो इंकार न कर पाए। और जैसे ही उसे महसूस हुआ कि आरुषि के बदन में हल्की की अकड़न आने लगी है, वो उस पर भूखे शेर की तरह झपट पड़ा और इससे पहले की आरुषि कुछ समझ पाती, वो फर्श पड़ी थी उसकी साड़ी खुल चुकी थी, उसका पेटीकोट दूर एक कोने में पड़ा था और उसके तन पर केवल ब्लाउज़ था वो भी ऐसा कि उसके भरपूर मोटे स्तनों को छुपा नहीं पा रहा था और उसका बूढ़ा ससुर उसकी टाँगों के बीच घुटनों के बल बैठा उसकी चूत पर अपना लन्ड सेट कर रहा था।

“पापा, प्लीज़ ऐसा मत करो!” वो फुसफुसाई.
“क्या न करूँ?” दिनेश उसके साथ खेल रहा था, वो उससे गन्दी बातें बुलवाना चाहता था क्योंकि एक औरत सिर्फ उससे ही खुलती है जिसका लन्ड उसकी फुद्दी को खोलता है।
“यही जो… आप कर रहे हो.”

पर अब तक तो दिनेश ने अपना सुपारा उसकी चूत के दाने पर रगड़ना शुरू कर दिया था जिसके कारण वो और गर्म होती जा रही थी और उसकी सिसकारियाँ निकलनी शुरू हो चुकी थी- आह… उम्म… नन नहीं अहह!
“क्या न करूँ?” दिनेश ने आरुषि की आंखों में आँखें डाल के पूछा।
“आह… आह… मत रगड़ो… मैं आपकी बहू हूँ.” वो बड़ी मुश्किल से खुद को रोक पा रही थी।
“क्या न रगड़ूँ? बहू पहलियाँ मत बुझाओ, साफ साफ बोलो कहीं देर न हो जायेऍ” उसने आरुषि की चूत को लन्ड से थपथपाते हुए पूछा।
“पापा लिंग को मत रगड़ो.”
“ये लिंग क्या होता है?” दिनेश ने उसकी चूत पर गीलापन महसूस करते हुए पूछा।
“लन्ड…”

पर अब तक देर हो चुकी थी, दिनेश उसे यहाँ तक ले आया था कि अब और विरोध उसके बस का नहीं था- डाल दे… बूढ़े… हरामी… आह जल्दी कर तेरे बेटे से तो कुछ होता नहीं! तू ही कुछ दम दिखा!
आरुषि के यह कहने की देर थी और अगले ही पल दिनेश ने एक ज़ोरदार झटका मारा और उसका मूसल लन्ड आरुषि की कुंवारी और गीली चूत में घुसता चला गया और आधे से ज्यादा अंदर चला गया।
“आह… मर गयी… साले ठरकी बूढ़े कैसा लन्ड है तेरा फाड़ दी मेरी… ” आरुषि चिल्ला पड़ी।

घर पर कोई नहीं था इसिलए दिनेश ने उसका मुँह बंद करने की कोशिश नहीं की बल्कि वो इस कच्ची कली से और खेलना चाहता था.
“अब तुझे लन्ड पसंद नहीं आया तो निकाल लेता हूँ.” दिनेश अपना खून से सना लन्ड उसकी कसी हुई चूत से बाहर खींच लिया।
“अरे तू तो कुंवारी निकली… छक्का साला मेरा बेटा जो ऐसी चूत की नथ खुलवाई न कर पाया.”

पर इस समय आरुषि कुछ सुन नहीं पा रही थी उसे लन्ड चाहिए था जो उसकी चूत की आग को बुझा सकता- छक्के के बाप, डाल भी दे अब… या तेरे से भी नहीं होगा?
वो चिल्ला उठी.

आरुषि की यह बात सुन के न जाने दिनेश पर क्या भूत सवार हुआ कि उसने खींच के दो चार थप्पड़ आरुषि के जड़ दिए और उसका ब्लाउज़ फाड़ के उसकी चुच्ची को मुँह में भर लिया और अपने लन्ड को अभी-2 कली से फूल बनी चूत पर सेट करके ऐसा तगड़ा झटका मारा कि इसका लन्ड जाके आरुषि के गर्भाशय से टकराया।

“आह मार दिया रे… फाड़ दी मेरी… आह… निकाल बेटी चोद बूढ़े अपना लन्ड मेरी चूत से बाहर!” आरुषि दर्द से तड़पते हुए बेतहाशा गालियां बके जा रही थी। पर बूढ़े को उस पर कोई तरस नहीं आया और वो उसे फुल स्पीड चोदने लगा। उसके जानदार और तेज़ धक्कों की आवाज़ पूरे घर में गूँज रही थी। बेचारी आरुषि अब पूरी छिनाल बन चुकी थी, वो जानती आज के बाद ये बूढा उसे कई बार चोदने वाला था। वो थक कर चूर थी और कई बार झड़ने के बाद उसकी सारी शक्ति निचुड़ चुकी थी पर वो संतुष्ट थी इतना मजा उसे पहले कभी नहीं आया था।

आरुषि- पापा आप ने तो जान ही निकाल दी।
दिनेश- बहू, जान नहीं निकाली आज तुझे लड़की से औरत बनाया है। अभी तुझे असली चुदाई का मजा दिया कहाँ है?
आरुषि- क्या यह नकली चुदाई थी? असली में तो मर जाऊंगी मैं।
दिनेश- यह तो बस नमूना था; अब से तेरा असली पति मैं ही हूँ। देख अपने पापा के इस बूढ़े लन्ड को अभी भी जान बाकी है इसमें और तू जवान होकर भी डर रही है।
आरुषि- ऐसा मूसल लन्ड देखकर कौन नहीं डरेगी?
दिनेश- बहू अब क्या… मूसल लन्ड जवानी में देखती तू…
आरुषि- इससे भी बड़ा था क्या?
दिनेश- और नहीं तो क्या अब तो बेचारा ढंग से खड़ा भी नहीं होता। जा मेरी अलमारी में एक लोहे का कड़ा(रिंग) होगा उसे ले आ तुझे कुछ दिखता हूँ।

आरुषि कपड़े पहनने लगती है पर दिनेश उसे रोक देता है यह कहते हुए कि रात हो रही है अब साड़ी क्या पहननी, मैक्सी पहन लेना आरामदायक रहेगी।
आरुषि नंगी ही जा कर अलमारी से लोहे का कड़ा ले आती है।
आरुषि- अब इससे मेरी मुँह दिखाई करेंगे पापा?
दिनेश- इससे तेरी मुँह दिखाई नहीं लन्ड दिखाई करूँगा. तू बस आँखें बंद कर और जब तक मैं ना कहूँ खोलना मत।
आरुषि- अब इसे लन्ड पर पहनेंगे?
दिनेश- सही समझी बहू, इस उम्र में नसें ढीली पड़ जाती है जिसके कारण ब्लड फ्लो लन्ड तक नहीं पहुंचता और वो पूरा खड़ा नहीं हो पाता और यह रिंग ब्लड फ्लो को लन्ड में रोक लेगी जिससे बेहतर इरेक्शन मिलेगा।

दिनेश जो कहा वो सही था पर इस रिंग के साथ एक रहस्य भी जुड़ा था जिसे दिनेश ने छुपा लिया।
आरुषि ने जब आंखें खोली तो दिनेश के लन्ड को देखकर थोड़ा घबरा गई उसके ससुर का महाराज लन्ड और ज्यादा मोटा और लम्बा लग रहा था, नसें उभरी हुईं थीं और लन्ड किसी डंडे की तरह तना हुआ था 120 डिग्री के कौन पर।
“हाय राम इतना बड़ा… इसका तो टोपा ही गोल्फ बाल जितना है.”

दिनेश- बहू तू हैरान न हो, अब यह ही तुझे जन्नत का मजा देगा।

आरुषि बेचारी लन्ड को देख घबरा गई पहले दिनेश उसकी बुरी गत बना चुका था सोचने लगी अब तो मर जाऊंगी कोई बहाना बनाना होगा- पापा, रोहण रात का खाना लेने के लिए किसी को भेजते होंगे, पहले मैं खाना बना लूँ फिर आपको जो करना होगा कर लेना।
दिनेश जानता था कि चाहे उसकी बहू बहाना बना रही है पर बोल सच्ची बात रही है 7 बजे थाने से कोई न कोई ज़रूर आएगा- ठीक है बहू, पर याद रहे साड़ी मत पहनना मैक्सी ही पहन लेना।
आरुषि- ठीक है पापा, मैक्सी ही पहन लूँगी।
वो सोच रही थी जान बची लाखों पाए।

वो अपने कमरे में गयी, मैक्सी पहनी और रसोई में सब्जी काटी और तड़का लगाने लगी।

कामुकता भरी चोदन कहानी जारी रहेगी.
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