बुआ के प्रति भतीजे की वासना-1

(Bua Ke Parti Bhatije Ki Vasna- Part 1)

दोस्तो, मैं आपका जग फिर एक नयी मजेदार कहानी के साथ हाजिर हूँ. मगर उससे पहले आप सबका मेरी पिछली कहानी
कुछ अधूरा सा
को इतना प्यार देने के लिए धन्यवाद.

मैं एक बार फिर अपना परिचय करा देता हूँ. मेरी आयु 25 साल है, मेरी लंबाई 5’4″ है. मैं दिखने में भी ठीक ठाक हूँ.

यह कहानी तब की है, जब मैं पढ़ता था. यह कहानी मेरी और मेरी बुआ जी की है जो आपको एक खूबसूरत सफर पर ले जाएगी. यह कहानी मैं आपको अपनी बुआजी की जुबानी बताऊंगा. मगर उससे पहले एक बात यहां कहना चाहूंगा कि सिर्फ चुदाई के बारे में पढ़ने वालों को ये कहानी शायद उतनी पसंद ना आए. क्योंकि इसमें चुदाई के अलावा मोहब्बत भी है. कहानी पढ़ने वालों को और समझने वालो को ये ज़रूर पसंद आएगी. मुझे यकीन है कि आपको मेरी ज़िन्दगी का ये खूबसूरत सफर बहुत पसंद आएगा.

यह कहानी सत्य घटना पर आधारित है इसलिए इस सेक्स कहानी के रूपांतरण में कुछ चीज़ें बदल दी गयी हैं, जिससे कि गोपनीयता बनी रहे.

हैलो, मेरा नाम अश्विनी है, सब मुझे आशु बुलाते हैं, मैं दिल्ली में अपने पति के साथ रहती हूँ. मेरी आयु 33 साल की है. मेरा फिगर 34-30-36 का है.

ऐसे तो मुझे कोई कमी नहीं है, ना ही कभी किसी गैर मर्द की मुझे जरूरत पड़ी है. मेरे पति बहुत अच्छे हैं. बिस्तर पर भी और स्वभाव में भी. मगर मेरे पति मेरे जैसे नहीं हैं, वो कभी भी ये नहीं जान पाते कि मेरे अन्दर क्या चल रहा है. वो बस एक दिनचर्या को ही ज़िन्दगी मान बैठे हैं. सबके लिए कमाना, सबको खुश रखना … बस इसी में लगे रहते हैं.

हालांकि मैं मानती हूँ कि यह बहुत अच्छी आदत है मगर मुझे फिर भी बहुत अधूरा सा लगता है, तन्हा सा लगता है. मुझे शेर-ओ-शायरी का बहुत शौक है जबकि उनको ये सब बिल्कुल भी नहीं जमता है. तब भी मेरे पति मुझे खुश रखने की पूरी कोशिश करते हैं और मैं उनसे बहुत खुश भी हूँ. बस खुद से ही थोड़ी नाराज़ रहती हूँ कि मैं ऐसी क्यों हूँ, मेरे पास सब कुछ है, फिर भी मैं दिल से खुश क्यों नहीं हूँ.

खैर छोड़ो … ये सब बातें तो चलती रहेंगी.
हुआ यूं कि आज से 4-5 साल पहले जब एक दिन मेरे भैया का कॉल आया- अगर तुम बोलो तो जग को तुम्हारे इधर 5-6 दिन के लिए भेज देता हूँ. उसको अपनी आगे की पढ़ाई के लिए कोई अच्छी कोचिंग में दाखिला दिलाना है और यहां ऐसी कोई कोचिंग मिल नहीं रही है. फिर वो वहीं से फॉर्म भर कर वापस हमारे पास आ जाएगा और यहीं रह कर पढ़ाई करेगा.

मैंने बोला- हां भेज दीजिये … मुझे कोई समस्या नहीं है … मगर मैं एक बार अपने पति से पूछ लेती हूँ, उसके बाद आपको बताती हूँ.
रात को जब वो आए तो मैंने उन्हें बताया कि भैया का फोन आया था और वो ऐसे पूछ रहे थे.
मेरे पति ने बोला- तो बुला लो, इसमें पूछना क्या है.

दो दिन के बाद जग दोपहर में मेरे घर आ गया. वो घर आया, फ्रेश हुआ, खाना खाया और सो गया. मैंने उसे अपने रूम के पास वाला रूम दे दिया. जग ज्यादा बोलता नहीं था, बस खुद में ही मगन रहता था. वो रिश्ते में मेरा भतीजा था मगर रहता मेहमान जैसा था.

वो शाम को उठा, मैंने ही उससे थोड़ी बातें की. फिर वो छत पर चला गया. कुछ देर बाद वो घर से बाहर चला गया. यहां उसका कोई दोस्त नहीं था, तो जल्दी ही लौट आया, आकर टीवी देखने लगा.
कुछ देर बाद मेरे पति आ गए तो फिर वो दोनों आपस में बात करने लगे. मैं रसोई में खाना बना रही थी. जैसे ही खाना तैयार हुआ, मैंने खाना लगा दिया और उन दोनों को भी बुला लिया. खाना खाने के बाद हम तीनों कुछ देर बात करते रहे.. फिर अपने अपने कमरे में सोने चले गए.

रात को हम जैसे रोज़ करते हैं, वैसे ही चुदाई कर रहे थे और चुदाई करते समय आवाजें निकालने की मेरी आदत है, क्योंकि उसके बगैर हम दोनों को ही मज़ा नहीं आता था.

उस दिन भी ऐसा ही कर रहे थे. हम ये भूल गए कि पास वाले कमरे में ही जग सो रहा है. चुदाई करते करते मेरी नज़र अचानक से दरवाज़े की तरफ गयी. मैंने देखा दरवाज़े के नीचे से किसी की परछाई दिख रही है. मुझे समझने में ज्यादा समय नहीं लगा कि बाहर कौन खड़ा है. मैंने अपनी आवाज़ कुछ कम की फिर धीरे धीरे पूरी बंद कर दीं. जैसे ही मैंने आवाज़ करना बंद की, वो परछाई भी चली गयी.

मेरे पति बोले- चुप क्यों हो गयी?
मैं बोली- करीब वाले कमरे में जग है.
वो बोले- वो अब तो सो गया होगा न.
मैंने बोला- नहीं यार अच्छा नहीं लगता.

फिर वैसे ही बिना आवाज़ के हमने अपनी चुदाई पूरी की और सो गए.

जब मैं सुबह उठी, तो सबसे पहले मैं जग के कमरे में गयी. जाकर देखा तो वो उस समय सो रहा था. तो मैं भी नहाने चली गयी और तैयार हो कर रसोई में चली गयी, नाश्ता बनाने लगी.

मेरे पति भी तैयार हो कर आ गए, थोड़ी देर में जग भी आ गया. हम तीनों ने मिल कर नाश्ता किया. मैं रात वाली बात याद कर के उसकी तरफ देखे जा रही थी मगर वो मेरी तरफ देख नहीं रहा था, बस अपने फूफा से ही थोड़ी बहुत बात कर रहा था.

फिर मेरे पति ऑफिस चले गए. मैं भी घर के काम में लग गई. जग भी फ्रेश होने चला गया. फिर तैयार हो कर वो कोचिंग ढूंढने चला गया.

दोपहर में वो आया, तो मैंने उससे खाने का पूछा.
उसने बोला- हां लगा दो.

हम दोनों साथ में ही खाने बैठ गए और बातें करने लगे. मैंने उससे घर वालों के बारे में पूछा, जो कि मैं उससे कल ही पूछ चुकी थी. मगर बात शुरू करने के लिए कुछ तो चाहिए था.

फिर मैंने उसके खुद के बारे में पूछा- बेटा और कैसी चल रही ज़िन्दगी … और तुम इतने चुप चुप क्यों रहते हो? कुछ बात है, तो मुझे बता सकते हो. क्या पता मैं कुछ मदद कर दूँ.
वो बोला- ऐसी कोई बात नहीं है … ज़िन्दगी ठीक चल रही है, बस मुझे खुद में रहना ज्यादा पसंद है, मैं हर हाल में खुश रहने की कोशिश करता हूँ, अच्छा हो तो भी, बुरा हो तो भी.

उसकी बातें मुझे थोड़ी अजीब लगीं, मगर मेरे पास उसकी बातों का कोई जवाब नहीं था. मैं उससे कुछ भी पूछती, तो वो मुझे ऐसे ही लाजावाब कर देता. उसकी बातों से ऐसा लग रहा था, जैसे वो ज़िन्दगी से नाराज़ हो. मगर उसके बोलने का तरीका मुझे पसंद आया.

जैसे ही वो कुछ बोलता था, उसकी बात सीधे दिल में उतरती थी. वो बोलता था कि जिस बात से दिल खुश हो, वो सब काम करूंगा … मेरी वजह से किसी का दिल ना दुखे, मुझे इसकी फ़िक्र रहती है.

मैं यहां आप सबको एक बात बताना भूल गई जो कि बताना जरूरी है. मेरी शादी कम आयु में हो गयी थी, जब मैं पूरी जवान भी नहीं हुई थी. उसके बाद मुझे मायके ज्यादा जाने मिलता नहीं था, बस साल में मुश्किल से एक बार जा पाती थी. इसलिए अपने घर के बच्चों को इतना अच्छे से नहीं जानती थी, ख़ास कर अपने बहन भाई के बच्चों को!

इसलिए मैं अब जग से बात करने के बहाने ढूँढती थी. एक तो वो बातें बहुत अच्छी करता था, दूसरा मेरा समय भी निकल जाता था. इसी बहाने मुझे मेरे मायके वालों के बारे में मालूम भी चल जाता था कि कौन कैसा है, किसको क्या पसंद है.

अगले दिन मैं घर की सफाई कर रही थी और वो सोफे पर बैठा टीवी देख रहा था. सफाई करते करते जब मैंने उसकी तरफ देखा, तो वो मुझे ही देख रहा था.
मैंने पूछा- क्या हुआ?
वो बोला- कुछ नहीं.

वो टीवी देखने लगा. फिर मैंने उसकी तरफ 2-3 बार और ध्यान दिया, तो पाया कि वो तब भी मुझे ही देख रहा था. पहले तो मुझे समझ नहीं आया, फिर मैंने अपने गले की तरफ देखा तो मुझे समझ आया कि वो मेरे बूब्स देख रहा था, जो कमीज के गहरे गले से दिख रहे थे.

मैंने जल्दी से दुपट्टा सही किया. एक बार तो मुझे गुस्सा आया कि उसको बोल दूँ कि साले अपनी फूफी को ही गन्दी नज़र से देखता है, शर्म नहीं आती. फिर अगले पल ख्याल आया कि क्यों किसी को शर्मिंदा करूँ. वैसे भी ये कुछ दिन के लिए ही तो आया है. बस मैं अपना काम करने लगी.

मगर उस दिन के बाद मैं हमेशा ध्यान देती कि जग मुझे घूरता रहता था, ख़ास कर के जब मैं घर की साफ़ सफाई के लिए झाडू पौंछा करती या कपड़े धोती थी. मगर मैं उसे कुछ भी नहीं कहती, बल्कि अब तो मैं उसे जलाने के लिए उसके सामने झुक कर ज्यादा काम करती. क्योंकि मुझे पता था कि वो इसके आगे कुछ नहीं कर सकता.

अपना भी समय कट रहा था. मगर मेरे कुछ ना बोलने से जग की हिम्मत ज़रूर बढ़ रही थी. वो अब किसी ना किसी बहाने से मुझे छूने लगा था. मगर इसके आगे उसकी कुछ करने की हिम्मत नहीं थी.

इन सब में एक चीज़ तो थी, जो बिल्कुल गायब हो गयी थी. मेरे और उसके बीच का फूफी और भतीजे वाला रिश्ता मानो कम हो गया था. उसके आने के करीब 10 दिन बाद वो एक दिन नाश्ते की टेबल पर बोला, वहां मेरे पति भी थे- मुझे कोचिंग मिल गई है और मैंने फॉर्म भी भर दिया है. साढ़े तीन महीने बाद एग्जाम्स हैं तो मैं पढ़ाई गांव में ही कर लूंगा. उधर पापा को भी वहां मेरी जरूरत होती है, इसलिए मैं कल सुबह गांव के लिए निकल जाऊंगा.

यह खबर सुन कर पता नहीं मुझे क्यों अच्छा नहीं लगा.

दूसरे दिन मेरे पति उसे स्टेशन छोड़ने गए. जाने से पहले उसने मुझसे कहा- आप बहुत अच्छी हैं, आपने इतने दिन मेरे ख्याल रखा, उसके लिये धन्यवाद.
फिर उसने नज़रें नीचे की और फिर बोलने लगा- एक बात और कहूंगा, शायद आपको अच्छी ना लगे … काश कि आप मेरी फूफी ना होतीं. काश कि आपकी अब तक शादी ना होती.

इतना कह कर सर झुकाकर वो चला गया. उसने मुझे दोबारा मुड़ कर भी नहीं देखा … ना ही उसने मेरा जवाब सुना. मैं भी बस यही सोचती रही कि उसने ऐसा क्यों कहा, शायद वो नीचे सर करके रो रहा था.

उसको शायद यहां से जाने का ग़म था या फिर कुछ और बात थी. हे भगवान ये जग किस सोच में डुबा कर चला गया मुझे.

उसके जाने के बाद घर भी अब सूना सूना लगने लगा था. मुझे जैसे जग की आदत हो गयी थी. उसकी बातें, ज़िन्दगी के लिए उसकी अपनी सोच, अपनी कशमकश, उसके बोलने का तरीका, मुझे सब बहुत याद आता था.

अब मैं पहले से ज्यादा उदास रहने लगी थी. पूरे दिन बस सोचती रहती थी कि ये ना जाने जग मुझे कौन सी बंदिश में बाँध गया था, जिससे मैं निकल ही नहीं पा रही थी.

फिर एक दिन भैया का कॉल आया कि हमारे घर पर तुम्हारी भाभी के घर वाले आए हुए हैं. उनका परिवार भी बड़ा है और हमारे घर में जगह उतनी नहीं है. जग पहले भी तुम्हारे यहां रहा है और कुछ समय बाद उसे वैसे भी परीक्षा देने आना है. तो क्यों ना जग इन दिनों में ही आ जाए. और अगर तुम्हें या तुम्हारे पति को न जमे, तो जैसे ही तुम्हारी भाभी के घर वाले चले जाएंगे, तो जग को वापस भेज देना. या तुम चाहो तो मैं तुम्हारे पति से भी बात कर लेता हूँ.
मैंने कहा- आप भी क्या बात कर रहे हो भैया? जग कोई दूसरा थोड़ी है. अपना ही बच्चा है, उसका जब तक दिल चाहे, वो मेरे घर रह सकता है और आपको उनसे बात करने की जरूरत नहीं है. वो मैं कर लूँगी. आप जब चाहे जग को भेज सकते हैं.

आज पहली बार मैंने अपने पति से पूछे बगैर किसी काम की हामी भरी थी. वैसे रात में जब मेरे पति आए, तो मैंने उनको बोल दिया कि भैया का कॉल आया था, वो जग को यहां भेजने की बात कर रहे थे.
तो मेरे पति ने भी कहा- अच्छा है भेजने दो.. इसी बहाने तुम्हारा भी दिल लगा रहेगा.

अब मुझे बस जग के आने का इंतज़ार था क्योंकि जिस बेनाम रोग के साथ मुझे वो छोड़ गया था, उसका इलाज भी उसी के पास था. मेरे कुछ सवाल थे, जिनके जवाब उसको देने थे और उसका साथ मुझे अच्छा भी लगता था. उसकी बातों से मेरी तन्हाई दूर होती थी. उसके आस पास होने का एहसास मुझे सुकून देता था.
हां शायद मुझे अपने ही भतीजे से मोहब्बत हो गयी थी. मगर मैं डरती थी कि ये सच ना हो क्योंकि मैं एक शादीशुदा औरत थी. मेरे पास मेरे पति मोहब्बत करने के लिए थे.

एक दो दिन में ही जग हमारे घर आ गया. वो पहले की तरह ही अपने में रहता था. मौका मिले तो मुझे घूर लेता था, मगर जहां वो बात रोक कर गया था, वो बात ना अब तक उसने की थी और ना मैंने.

कभी कभी वो रात में हमारी आवाजें सुनने आ जाता था. अब मैं भी शरमाती नहीं थी बल्कि जोर जोर से आवाजें निकालती थी. बस इतना ख्याल रखती के मेरे पति की नज़र दरवाज़े पर ना जाए.

फिर एक दिन मेरी तबियत अचानक ही बहुत खराब हो गयी. मुझे बहुत तेज़ बुखार आ गया था. मुझे बिस्तर से उठना मुश्किल हो रहा था. उस दिन मेरे पति को बहुत ज़रूरी मीटिंग में जाना था तो वो रूक नहीं सकते थे. उनकी फ़िक्र मेरे लिए उनके चेहरे पर दिख रही थी. वो कभी अपनी फाइल संभालते, कभी मुझे देखते. उनके जाने का दिल बिल्कुल भी नहीं था, मगर मीटिंग ज़रूरी थी, तो उनको जाना ही पड़ा.

उस दिन का नाश्ता भी जग ने ही बनाया था और मेरे पति जाने से पहले जग को बोल गए थे कि मेरे पूरा ध्यान रखे और उस दिन जग ने वैसा किया भी. उसने मुझे अपने बिस्तर से हिलने तक नहीं दिया, यहां तक कि पानी भी उसी ने मुझे अपने हाथों से पिलाया.

बाथरूम जाने के लिए जब मैंने जग का सहारा लिया और उसी के सहारे से उठी, तो मुझे चक्कर आने लगे. मैं बस गिरने ही वाली थी कि जग ने मुझे गोद में उठा लिया और बाथरूम तक ले गया. वहां जाकर उसने ही बाथरूम खोला और मुझे नीचे उतार कर कहा- आप फ्रेश हो जाएं … मैं बाहर दरवाज़े के पास खड़ा हूँ.
मैंने फ्रेश होकर उसको आवाज़ दी. वो फिर से सहारा देकर मुझे बिस्तर तक ले आया और लेटा दिया.

शाम में मेरे पति का कॉल मुझसे बात करने के लिए आया, मगर मुझमें उस वक़्त इतनी हिम्मत नहीं थी कि उनसे सही से बात कर सकूं. तो जग ने ही बात करके उनको मेरा सब हाल सुना दिया.

रात का खाना भी जग ने ही बनाया और मुझे खिलाया भी उसी ने. मेरे थोड़े बोलने पर उसने भी थोड़ा खाना खाया, क्योंकि मुझे पता था कि वो सुबह से मेरे पास ही बैठा था. उसने कुछ खाया नहीं था. ऊपर से सब काम भी वो ही कर रहा था, तो भूख तो उसे भी लगी थी.

रात में फिर मेरे पति का कॉल आया, तब तक मेरी तबियत थोड़ी ठीक हो गई थी. मैंने बात की तो वो बोले- सॉरी जान … मैं शायद आज नहीं आ पाऊंगा क्योंकि बाहर मौसम बहुत खराब है. बारिश भी बहुत हो रही है. हम सब यहां ऑफिस में ही हैं. तुम दवा ले कर सो जाना और जग को बोलना तुम्हारे पास ही रहे.. ख्याल रखे तुम्हारा.

रात भर जग मेरे पास ही बैठा रहा. उसने नींद भी नहीं ली. मैंने उसे कई बार बोला कि सो जाए मगर उसने कहा कि मुझे नींद नहीं आ रही.

मैं रात में दो बार पानी के लिए उठी. दोनों समय मैंने उससे सोने के लिये बोला, मगर उसका जवाब वो ही था- मुझे नींद नहीं आ रही, तुम सो जाओ. मुझे नींद आएगी, तो मैं भी सो जाऊंगा.
सुबह जब मैं उठी, तो वो वहीं कुर्सी पर बैठा और उसकी आंखें बंद थीं.

मैंने उसे उठाना सही नहीं समझा. मेरी तबियत भी अब ठीक थी, तो मैं उठ कर बाथरूम में चली गई. जैसे ही बाथरूम से बाहर आई और दरवाज़ा बंद किया, तो उसकी आवाज़ से जग की आंखें खुल गई.
वो भाग कर मेरे पास आया और बोला- अरे मुझे बोल दिया होता, मैं बैठा था न … आपको अकेली को आने की क्या जरूरत थी. अभी आप सो जाओ और बिस्तर से नीचे नहीं उतरना.
मैंने उसको बोला- अब मैं ठीक हूँ … कोई टेंशन नहीं है.
मगर वो कहां मानने वाला था और वो बस ज़िद करने लगा.
मैंने उसको बोला- जग सुनो … देखो मैं बिल्कुल ठीक हूँ. अब फ़िक्र करने की कोई बात नहीं है और मेरा इतना ख्याल रखने के लिए शुक्रिया.

इतने में दरवाज़े की घंटी बजी. मैंने और जग ने जाकर देखा तो मेरे पति थे. वो मुझे देखते ही मुझसे गले से लिपट गए. मेरी तबियत पूछी और कहा कि बेगम अगर आपकी इज़ाज़त हो तो मैं थोड़ा आराम कर लूं. रात भर से बहुत थक गया हूँ. मुझे बस थोड़ी सी नींद चाहिए और वैसे भी दोपहर में वापस जाना है.

मैंने कहा- ठीक है, आप जाएं.
मैंने जग को भी बोला कि वो भी जाए और जाकर थोड़ा आराम कर ले. अब मैं ठीक हूँ.. सब संभाल लूँगी. वैसे भी कल सुबह से तुमने थोड़ा भी आराम नहीं किया है.
उसने गुस्से में बोला- मुझे बोलने की ज़रूरत नहीं है … मुझे पता है कि मुझे क्या करना है.

मैं कुछ और उसको बोलती, उससे पहले ही वो अपने कमरे की तरफ जा चुका था. मैं सोचने लगी कि इसको अचानक क्या हुआ. अभी तो इतने अच्छे से बात कर रहा था.

प्रिय साथियो, यh कहानी केवल सेक्स सामग्री से युक्त नहीं है, बल्कि इसमें मुहब्बत की वो दास्तान लिखी है, जो एक सच घटना है.

आपको इस सेक्स कहानी के अगले भाग में कुछ मसाला भी मिलेगा. आपके मेल का मुझे इन्तजार रहेगा.
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कहानी का अगला भाग: बुआ के प्रति भतीजे की वासना-2

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