तीन पत्ती गुलाब-42

(Teen Patti Gulab- Part 42)

This story is part of a series:

गौरी को अपनी गोद में उठाये हुए मैं बड़े वाले सोफे की ओर आ गया। गौरी ने अपने घुटने मोड़ दिए और डॉगी स्टाइल में हो गई। लंड थोड़ा तो बाहर निकला था पर आधा तो अन्दर ही फंसा रहा था।

मैं फर्श पर खड़ा हो गया और गौरी ने अपना सिर सोफे पर टिका दिया। ऐसा करने से उसके नितम्ब अब खुलकर मेरे सामने नुमाया हो गए। उसकी गांड का गुलाबी छल्ला तो ऐसे लग रहा था जैसे किसी छोटे बच्चे की कलाई में कोई चूड़ी फंसी हुई हो। मैं तो बस उसे देखता ही रह गया।

गौरी के नितम्ब अब भी लाल से लग रहे थे। थोड़ी देर पहले जब हमने इसी मुद्रा में सेक्स किया था उस समय मैंने गौरी के नितम्बों पर थप्पड़ लगाये थे उनकी लाली अभी भी बरकरार थे।

मैंने प्यार से उसके नितम्बों पर हाथ फिराना चालू किया और फिर हल्का सा धक्के लगाया।
“आईईई …” गौरी की मीठी सीत्कार निकल गई।

गांड के अन्दर-बाहर होता लंड तो किसी पिस्टन की तरह लग रहा था। गौरी ने एक बार अपनी गांड का संकोचन किया। इस अदा से मेरा लंड तो निहाल ही हो गया।

गौरी ने अपना एक हाथ पीछे कर के मेरे लंड को टटोला और फिर अपनी गांड के छल्ले पर अंगुलियाँ फिराई। शायद वह यह जानना चाहती थी कि मेरा इतना बड़ा और मोटा लंड वास्तव में ही गांड के अन्दर चला गया है।

खैर उसका जो भी सोचना था पानी जगह था पर मेरे रोमांच का पारावार ही नहीं था। कई बार मैंने मधुर के साथ भी इसी मुद्रा में कई बार गुदा मैथुन किया है पर गौरी की कसी हुई गांड तो वास्तव में ही लाजवाब है।

मुझे लगता है वो ऑफिस वाला नताशा नाम का जो मुजसम्मा है उसकी गांड भी गौरी की तरह बहुत ही खूबसूरत और कसी हुई होगी। जिस प्रकार वह अपने नितम्बों को मटकाकर चलती है लगता है उसे भी अपने नितम्बों की खूबसूरती का अहसास जरूर है। काश! एक बार उसकी गांड मारने को मिल जाए तो मज़ा आ जाए। मेरा तो मन करता है उसे बाथरूम में घोड़ी बनाकर एक ही झटके में अपना पप्पू उसकी गुलाबी गांड में डाल दूं।

कितना अजीब सी बात है ना? पुरुष और स्त्री की मानसिकता में? पुरुष एकाधिकारी बनाना चाहता है उसका प्रेम बस किसी वस्तु या सुन्दर स्त्री को प्राप्त के लेने से पूर्ण हो जाता है जबकि स्त्री अपने प्रेम को दीर्घायु बनाना चाहती है। जब तक मुझे गौरी की चूत और गांड नहीं मिली थी तब तक मैं उसके लिए जैसे मरा ही जा रहा था और जब गौरी मुझे अपना सब कुछ सोंप कर पूर्ण समर्पिता बन गई है मेरा मन फिर से किसी ओर की तरफ आकर्षित होने लगा है।

“क्या हुआ?” मैं गौरी की आवाज सुनकर चौंका।
“ओह… हाँ…” मैं अपने ख्यालों से वापस हकीकत के धरातल पर आया।

मैंने उसकी कमर पकड़ कर फिर से धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए। गौरी की फिर से मीठी किलकारियां निकलने लगी थी। मैंने थोड़ा सा तेल अपने लंड पर और उंडेल लिया था. अब तो पप्पू महाराज हंसते हुए अन्दर बाहर होने लगे थे।

मैंने अब अपना हाथ नीचे किया और उसके उरोजों को भी मसलना चालू कर दिया। दूसरे हाथ से उसकी सु-सु के मोटे मोटे पपोटों और फांकों को मसलना चालू कर दिया। अपनी अँगुलियों पर चूत से निकला चिपचिपा सा तरल लेप सा महसूस करने से मुझे लगा गौरी का एक बार फिर से स्खलन हो गया है।

हमें 15-20 मिनट तो हो ही गए थे गौरी की सु-सु को मसलना चालू रखा। अब तक गौरी की गूपड़ी ने पप्पू से पक्की दोस्ती कर ली थी। अब मैं भी अपनी अंतिम मंजिल पा लेना चाहता था।

“गौरी मेरी जान … अब मेरा प्रेम बरसने वाला है क्या तुम तैयार हो?”
“आह… हाँ… मेरे साजन… अपनी इस रानी को पटरानी बना दो.”

और फिर मेरे लंड ने पिचकारियाँ मारनी शुरू कर दी। गौरी ने पूरा साथ दिया और मेरे पूरे वीर्य को अपने अन्दर सहेज लिया। मैं गौरी की पीठ से चिपक गया था।

अब गौरी ने अपने पैर सीधे करके नीचे कर लिए थे। थोड़ी देर में मेरा लंड फिसल कर बाहर आ गया। गौरी की गांड का छल्ला भी धीरे-धीरे संकोचन करता सिकुड़ता गया और उसमें से गाढ़ा वीर्य निकल कर उसकी मोटी-मोटी फांकों और चीरे को भिगोने लगा था।

मैं अब सोफे पर बैठ गया था। गौरी भी सरक कर उकड़ू सी होकर फर्श पर बैठ गई और अपनी मुंडी झुकाकर नीचे देखने लगी। शायद वह अपनी गांड की हालत और उससे निकलते रस को देख रही थी।

मेरा मन भी उस दृश्य को देखने का कर रहा था पर मुझे लगा शायद गौरी को यह अन्तरंग बात पसंद नहीं आएगी। मैंने गौरी का सिर अपने हाथों में पकड़ लिया और एक बार फिर से उसके होंठों को चूम लिया।

गौरी तो उईईई… करती ही रह गई।

और फिर अगले 8-10 दिन हमने लगभग रोज ही इस आनंद अलग-अलग आसनों में भोगा। कभी बाथरूम में, कभी रसोई में, कभी इसी सोफे पर और कभी नंगे फर्श पर।
अब तो गौरी मेरे लंड की मलाई पीने को में भी माहिर सी हो गई है।

भगवान् ने हर प्राणी मात्र में काम भावना को कूट-कूट कर भरा है और उसमें इतना माधुर्य और आनंद भरा है कि इसे कितना भी भोग लें पर मन कभी नहीं अघाता (भरता)।

बीच-बीच में मधुर ने भी अहसान सा दिखाते हुए अपना पत्नी धर्म निभाती रही। हेड ऑफिस से मेल आ गया था कि मुझे अब थोड़े ही दिनों में ट्रेनिंग के लिए बंगलुरु पहुँचना होगा।

आज मधुर की शायद छुट्टी थी। जब मैं शाम को ऑफिस से घर आया तो गौरी कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। बाद में मधुर ने बताया कि गौरी की तबियत ठीक नहीं है। उसे थोड़ा बुखार सा भी है और पेट गड़बड़ी की वजह से जी मिचलाता है।

सुबह मैंने भी देखा तो था गौरी वाश-बेसिन पर जब हाथ मुंह धो रही थी तो उसे उबकाई सी आई थी। पर उस समय मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया था।

रात को मधुर ने जी भर के चुदवाया। आज तो उसने मेरे ऊपर बैठ कर अपनी मुनिया को मेरे मुंह पर भी रगड़ा और मेरे लंड को भी कई महीनों के बाद चूसा था। और फिर हमने सारी रात पति पत्नी धर्म निभाया।

और फिर दूसरे दिन मधुर ने शाम को खुशखबरी सुनाई कि उसकी मनोकामना सिद्ध हो गई है और वह पेट से रह गई है। चलो 8-9 महीने की कठोर तपस्या का फल लिंग देव ने आखिर दे ही दिया।

मधुर ने अपने भैया-भाभी और रिश्तेदारों को भी यह खुशखबरी सुना डाली थी।

और फिर अचानक रात को कोई 9 बजे उसकी मुंबई वाली ताईजी का फ़ोन आया। ताऊजी की तबियत बहुत खराब है उनको फिर से हार्ट की परेशानी हो गई है। मधुर तो रोने ही लगी थी।
किसी तरह उसे समझाया कि तुम मुंबई जल्दी से जल्दी चली जाओ।

वह तो मुझे भी साथ ले जाना चाहती थी पर मेरी ऑफिस की मजबूरी थी।
और फिर मधुर के कहने पर मैंने अगले दिन सुबह ही हवाई जहाज के दो टिकट बुक करवा दिए। मुझे हैरानी हो रही थी मधुर ने दो टिकट मधुर माथुर और मधु के नाम से बुक करवाने को कहा था।
मधुर तो अपने साथ गौरी को ले जाने वाली थी. यह मधु का क्या चक्कर है? मेरी समझ से परे था.

मुझे हैरानी हो रही थी. भरतपुर से सीधी उड़ान तो नहीं थी पर आगरा तक टेक्सी से और फिर वहाँ से मुंबई के लिए सीधी उड़ान थी।

दोस्तो! नियति के खेल बड़े अजीब होते हैं। आदमी अपने आप को कितना भी गुरु घंटाल या बुद्धिमान समझे भविष्य में क्या होगा कोई नहीं जानता। आगरा तक मैं भी मधुर के साथ गया और उन दोनों को एअरपोर्ट छोड़कर मैं वापस आ गया। मैंने मधुर को गले लगाकर विदा किया।

मधुर ने गौरी की ओर इशारा किया तो गौरी झिझकते हुए मेरे पास आई और वह भी मेरे गले लग गई। उसके चेहरे को देख कर लग रहा था वह अभी रो पड़ेगी।
पास में खड़े एक आदमी के मोबाइल पर कॉलर ट्यून बज रही थी:

लग जा गले से फिर ये हसीं रात हो ना हो!
शायद इस जन्म में फिर मुलाक़ात हो ना हो!

फिर मधुर बोली- प्रेम! 10-5 दिन की बात है मैंने गुलाबो को कुछ पैसे भिजवा दिए हैं और उससे बात कर ली है. सानिया रोज घर की सफाई कर दिया करेगी और खाना-नाश्ता भी बना दिया करेगी।

मुंबई पहुँच कर मधुर ने फ़ोन पर बताया कि ताऊजी को अस्पताल में भर्ती करवा दिया है। भैया भी जयपुर से कल सुबह आ रहे हैं। अब चिंता की बात नहीं है पर 2-3 महीने उसकी देखभाल के लिए वहाँ रहना पड़ेगा।
ताई जी ने कई बार मुझे भी मुंबई में आकर अपने ताऊ जी का कारोबार संभालने के लिए कहा है पर इस नौकरी को छोड़कर मुंबई जाने से थोड़ा हिचकिचा सा रहा था।

ऑफिस में अभी मेरी जगह नए आदमी ने ज्वाइन नहीं किया है, उसके ज्वाइन करने के बाद ही मैं बंगलुरु जा सकूंगा।

गौरी के जाने के बाद मेरी हालत का अंदाज़ा आप लगा सकते हैं। मेरा किसी काम में मन ही नहीं लग रहा था। बस अब तो नताशा नाम के उस नए मुजसम्मे का ही सहारा बचा था।

नताशा आजकल बहुत खुश नज़र आ रही है। मेरे कहने पर उसकी भी 10 दिनों की छुट्टी मंजूर हो गई है और वह रोज पूछती है कि साथ में क्या क्या बनाकर ले चलूँ? आपके रहने की व्यवस्था कहाँ होगी? मैं आपसे मिलने जरूर आऊँगी।

उसकी आँखों में अजीब सा नशा दिखाई देता है और वह बार बार कोई ना कोई बहाना लेकर मेरे केबिन में आने का प्रयास करती है। कई बार तो अपने घर से खाना और मिठाई भी लेकर आती है।

साधारण लड़कियां करियर बनाने के लिए मन लगाकर खूब पढ़ती हैं और खूबसूरत लड़कियां मजे करती हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कोई ना कोई उल्लू का पट्ठा उनके लिए डॉक्टरी या इंजीनियरिंग कर रहा है।

नताशा के बारे में मुझे बाद में पता चला कि उसके वाला कबूतर (उल्लू का पट्ठा) विद्युत निगम में किसी तकनीकी पद पर है और बिजली के खम्बे की तरह दुबला पतला है।
अब नताशा के गदराये बदन को संभालना उस बेचारे के लिए कहाँ संभव था।

मैंने देखा नताशा की आँखों के नीचे हल्का सा सांवलापन सा नज़र आता है। अक्सर सेक्स में असंतुष्ट और ज्यादा आत्म रति (मुट्ठ मारने) करने से ऐसा हो जाता है।

और आज शाम को संजीवनी बूटी मतलब मेरी बंगाली पड़ोसन संजया बनर्जी सुहाना को लेकर घर आ पहुंची। मैं तो उन दोनों को अपने घर के दरवाजे पर देख कर चौंक ही पड़ा। सुहाना ने सफ़ेद रंग का छोटा निक्कर और लाल रंग का टॉप पहन रखा था।

हे भगवान्! यह तो इन 2-3 महीनों में ही कलि से खिलकर फूल बन गई है। डोरी वाले टॉप में उसके चीकू तो अब रस भरे अनार जैसे लगने लगे है। गोरी शफ्फाक जांघें देख कर तो मेरा दिल हलक के रास्ते बाहर ही आने को करने लगा था।

“आ… आइए मैम!”
“माथुर साहब! आपसे एक काम था.”
“ओह … आइए अन्दर तो आइए!”

“वो मिसेज माथुर दिखाई नहीं दे रही?”
“ओह … हाँ वो 5-7 दिन के लिए मुंबई गई हुई हैं.”
“ओह … आपको खाने-पीने की बड़ी दिक्कत होती होगी. आप हमारे यहाँ खाना खा लिया करें।” संजीवनी बूंटी ने जिस अंदाज़ में यह प्रस्ताव रखा था मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था।

मेरे निगाहें तो बस सुहाना को ही घूरती जा रही थी। छोटे से निक्कर में फंसे उसके नितम्ब तो गौरी से भी ज्यादा कसे हुए लग रहे थे और उसकी जांघें तो बस मुझे छू लेने का निमंत्रण सा देने लगी थी। मैं तो बस अपने होंठों पर जबान ही फिराता रह गया।

“ओह … थैंक यू! बताइए आपकी क्या सेवा करूँ?”
“वो दरअसल सुहाना का एक प्रोजेक्ट है.”
“कैसा प्रोजेक्ट?”

जैसे किसी अमराई में कोई कोयल कूकी हो या किसी ने जलतरंग छेड़ दिया हो। कितने बरसों के बाद निशा जैसी (दो नंबर का बदमाश) मधुर आवाज सुनी थी।

हे भगवान् … इसके गुलाबी रंगत वाले संतरे की फांकों जैसे होंठ और मोटी-मोटी आँखें और कमान की तरह तनी काली घनी भोंहें उफ्फ्फ … क़यामत जैसे मेरे सामने बैठी मुझे क़त्ल करने पर आमादा हो।
“ओह … बहुत खूबसूरत … आई मीन बहुत बढ़िया प्रोजेक्ट है. श्योर मैं हेल्प कर दूंगा।”
“इसे आपके ऑफिस में भेजूं या आप यहीं इसे गाइड कर देंगे?” संजया ने पूछा.

“कक्क … कोई बात नहीं, इसे दिन में ऑफिस भेज दें और शाम को एक घंटे घर भी आप कहेंगी तो मैं हेल्प कर दूंगा पर … इसे मेहनत बहुत करनी पड़ेगी.”
“हा … हा … हा … शी इज क्वाइट हार्ड वर्किंग एंड सिरियस गर्ल!” संजया ने हंसते हुए कहा।

हे भगवान् संजया के गालों पर पड़ने वाले गड्ढों को देखकर तो मेरा पप्पू पैंट में कसमसाने ही लगा था।
“आपके लिए चाय बना देता हूँ?”
“अरे नहीं आप अकेले हैं परेशानी होगी? आप हमारे यहाँ चलें वही चाय पीते हैं और प्लीज मना मत करना आज का खाना भी आपको हमारे साथ ही खाना पड़ेगा।”
अब इतनी प्यार भरी मनुहार को नकारना मेरे लिए कितना मुश्किल था।

प्रिय पाठको और पाठिकाओ!
इस समय आप मेरी हालत और परिस्थितियों को अच्छी तरह समझ सकते हैं। इस समय मैं जिन्दगी के दोराहे पर नहीं चौराहे पर खड़ा हूँ। एक तरफ नौकरी और घर गृहस्थी है और दूसरी तरफ नताशा नामक मुजसम्मा है, तीसरी ओर सानिया और चौथे रास्ते पर संजीवनी बूटी सुहाना को अपने साथ लिए खड़ी मुझे आमंत्रण दे रही हैं।
मेरे तो कुछ समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूँ?
अगर आप इस सम्बन्ध में अपनी कीमती राय लिखेंगे तो प्रेमगुरु को अपनी जिन्दगी का अहम् फैसला लेने में बड़ी सहायता मिलेगी।

विदा मित्रो! आप सभी ने इस लम्बी कहानी कहानी को धैर्यपूर्वक पढ़ा उसके लिए आप सभी का हृदय से आभार। मैं अपने उन पाठकों की भी क्षमा प्रार्थी हूँ जिनको इस कहानी की लम्बाई को लेकर शिकायत रही थी। मुझे विश्वास है प्रेमगुरु की इस कहानी को आप तक पहुंचाने के मेरे इस छोटे से प्रयास के बारे में अपनी राय जरूर देंगे।

धन्यवाद सहित
आपकी स्लिम सीमा (प्रेम गुरु की एक प्रशंसिका)
[email protected]

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