तीन पत्ती गुलाब-25

(Teen Patti Gulab- Part 25)

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कई बार मुझे संदेह होता है कहीं मधुर जानबूझ कर तो हम दोनों को ऐसा करने के लिए उत्साहित तो नहीं कर रही और बार-बार इस प्रकार की स्थिति और मौक़ा तो पैदा नहीं कर रही जिससे हम दोनों की नजदीकियां बढ़ जायें?

कहीं वह गौरी के माध्यम से तो बच्चा नहीं चाह रही … हे भगवान् … मेरा दिल इस आशंका से जोर-जोर से धड़कने लगा।
मान लो गौरी प्रेग्नेंट हो जाती है सब को पता चल जाएगा … ओह तब क्या होगा?
गौरी तो अभी मासूम है उसने अभी दुनिया नहीं देखी है। वह अभी सुनहरे सपनों के घोड़े पर सवार है और इस समय मेरे या मधुर के एक इशारे किसी भी हद तक जाने के लिए सहर्ष तैयार है। यह सब किस्से कहानियों में तो बहुत आसान लगता है पर वास्तविक जीवन में इसका कानूनी पहलू भी होता है और उसे सोच कर तो मैं जैसे काँप सा उठाता हूँ।

उम्र के इस पड़ाव पर मैं किसी पेचीदगी में नहीं फंसना चाहता। मैं कोशिश करुंगा कि गौरी किसी भी तरह प्रेग्नेंट ना होने पाए। हे लिंग देव! पता नहीं भविष्य के गर्भ में क्या लिखा है? तू ही जाने?
इन्हीं विचारों में कब मेरी आँख लग गई पता नहीं।

गौरी का शुद्धि स्नान

अगले दिन लिंग देव का वार यानि सावन का अंतिम सोमवार था। मुझे इतनी गहरी नींद आई थी कि मधुर कब गुप्ताजी के घर से आई पता ही नहीं चला।

कोई 7 बजे मधुर ने मुझे चाय के साथ जगाया। शायद आज मधुर ने स्कूल से छुट्टी ले ली थी। मधुर ने फरमान जारी किया कि आज लिंग देव के दर्शन करने चलेंगे।

फिर हम तीनों कार से लिंग देव के दर्शन करने गए। आपको तो मिक्की के साथ मेरे लिंग देव के दर्शन करने वाली बातें जरूर याद होंगी। मैं तो चाहता था कि मोटर बाइक पर ही जाया जाए पर तीन व्यक्तियों के लिए बाइक पर जाना असुविधाजनक था तो हम लोग कार से ही लिंग देव के दर्शन करने गए।

मैंने और मधुर जब शिव लिंग पर जल और दूध चढ़ाने लगे तो पता नहीं मधुर ने गौरी को भी साथ में अभिषेक करने के लिए कहा।
मेरे और गौरी के लिए यह अप्रत्याशित था।

मधुर आँखें बंद किये कुछ मन्नत सी मांग रही थी तो मैंने गौरी की ओर देखा। वह मंद-मंद मुस्कुरा रही थी तो मैंने उसका हाथ जोर से भींचते हुए उसकी ओर आँख मार दी।
गौरी ने शरमाकर अपनी नज़रें घुमा ली।

आपको बताता चलूँ कि अगस्त महीने में मधुर का जन्मदिन आता है। एक लम्बे इंतज़ार के बाद सावन भी अब बस ख़त्म होने वाला है और मधुर के व्रत भी इसके साथ शायद ख़त्म हो जाए।
कुछ भी कहो इस बार सावन बहुत बरसों के बाद (याद करें सावन जो आग लगाए) मेरे जीवन में बहुत सी खुशियाँ लेकर आया है।

मेरा मन भी आज छुट्टी मार लेने को करने लगा था पर पर उस आगजनी वाली घटना के कारण ऑफिस जाने की मजबूरी थी। आज सावन का अंतिम सोमवार था तो गौरी तो मुझे पुट्ठे पर हाथ भी नहीं धरने देगी और मधुर तो जैसे सन्यासिन बनी पता नहीं किस भक्ति और तपस्या में लगी है।
चलो आज मुट्ठ मार कर ही काम चला लेंगे।

मैंने आपको ऑफिस में आये उस नए नताशा नामक मुजसम्मे के बारे में बताया था ना? आज वह पूरी पटाका नहीं एटम बम बनकर आई थी। काली जीन पैंट और लाल टॉप के कमर तक झूलते लम्बे घने काले बाल और गहरी लाल रंग की लिपस्टिक … हाथों में मेहंदी और लम्बे नाखूनों पर लिपस्टिक से मिलती जुलती नेल पोलिश … उफ्फ … पूरी छमिया ही लग रही थी।
साली की क्या मस्त गांड है … हे लिंग देव! अगर एक बार इसके नंगे नितम्बों पर हाथ फिराने का मौक़ा मिल जाए तो यह जिन्दगी जन्नत बन जाए।

उसने बताया कि आज उसका जन्मदिन है। शाम को ऑफिस में उसकी तरफ से मीटिंग हॉल में एक छोटी सी पार्टी का आयोजन किया गया।

नताशा ने बताया कि वह मेरे लिए विशेष रूप से अपने हाथों से मिठाई बनाकर लाई है।
मैंने अपने सोमवार के व्रत के बारे में बताया तो नताशा को थोड़ी निराशा सी हुई।

सभी ने उसे हैप्पी बर्थडे विश किया और उसने भी सभी से हाथ मिलाया।
वाह … क्या नाज़ुक हथेली और लम्बी अंगुलियाँ थी। मेरा मन तो उसके हाथों को चूमने को ही करने लगा था। मैंने अपने आप को कितनी मुश्किल से रोका होगा आप अंदाज़ा लगा सकते हैं। काश वह इन हाथों से मेरे पप्पू को पकड़ कर हिलाए तो मैं अपना बहुत कुछ इस पर कुर्बान ही कर दूं।

नाश्ते के बाद जब वह हम सभी के लिए कपों में चाय डाल रही थी तो उसके ढीले और खुले बटनों वाले टॉप के नीचे काली ब्रा में कैद दो कंधारी अनारों की गोलाइयां देखकर तो मेरा पप्पू अटेंशन की मुद्रा में ही आ गया था। मैं तो टकटकी ललचाई आँखों से बस उन बस दो अमृत कलसों की गोलाइयों में डूबा ही रह गया।

हे भगवान् उसने काली ब्रा पहनी है तो जरूर पैंटी भी काली ही पहनी होगी। याल्लाह … काली पैंटी में उसकी बुर (सॉरी यार अब तो बुर नहीं चूत बन चुकी है) कितनी प्यारी लगती होगी? मुझे लगता है उसने तरीके से अपनी झांटों को ट्रिम किया होगा।
आइलाआआआ …

जब पार्टी ख़त्म हो गयी तो वह मेरे केबिन में आ गई और बड़ी आत्मीयता के साथ बोली- सर आपने तो मेरी हाथ की बनी मिठाई खाई ही नहीं? आप थोड़ी मिठाई घर ले जाएँ और मैडम को भी जरूर खिलाएं फिर मुझे बताना कि मिठाई कैसी बनी है?
“भई मेरा सोमवार का व्रत है तो मजबूरी है पर हाँ … आपने अपने हाथ से बनाई है तो बहुत स्वादिष्ट ही होगी.” अपनी तारीफ़ सुनकर नताशा लजा सी गई।

“सर आज हमने अपने घर पर भी एक छोटी सी पार्टी का आयोजन किया है और मैं चाहती हूँ आप उसमें जरूर शामिल हों.”
“ओह … थैंक यू डिअर … पर मैंने बताया ना आज मेरा भी व्रत है और वैसे भी यह तो आप लोगों की घरेलू पार्टी है तो मैं क्या करूंगा?”
“क्या आप हमें अपना नहीं समझते?” नताशा ने मेरी आँखों में आँखें डालते हुए जिस प्रकार पूछा था मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था।

मेरा मन तो इस निमंत्रण को तहे दिल से स्वीकार कर लेने को करने लगा था पर मैं थोड़ा असमंजस में था।

“नताशा आपको जन्म दिन की एक बार फिर से बधाई! मैं फिर कभी जब आपके यहाँ नई ख़ुशखबरी आएगी तब जरूर शामिल होऊँगा।”

मेरी इस नई खुशखबरी की बात पर नताशा तो शरमाकर लाजवंती ही बन गई थी। उसने अपनी पलकें नीची किये हुए मुस्कुराकर जिस प्रकार धन्यवाद किया। आप मेरी हालत और मेरे पप्पू की हालत अच्छी तरह समझ सकते हैं।

“सर! आप बंगलुरु ट्रेनिंग पर कब जा रहे हैं?” उसने अपनी मुंडी नीचे झुकाए हुए पूछा।
“ओह … हाँ वो सेप्टेम्बर (सितम्बर) मिड में जाने का प्रोग्राम है। क्यों?”
“सर, बंगलुरु में मेरी एक कजिन रहती है।”
“अच्छा.”
“वो मुझे भी बंगलुरु आने का बोल रही है।””
“गुड …”

“उनके हब्बी आईटी कंपनी में काम करते हैं और उनके दो बेटियाँ ही हैं। एक इंजीनियरिंग कर रही है और छोटी वाली 12वीं में पढ़ रही है।”
“हम्म …” आप मेरी हालत का अंदाज़ा लगा सकते हैं। याल्लाह … नताशा की तरह ये दोनों भी कितनी खूबसूरत होंगी मेरा दिल तो जोर जोर से धड़कने लगा था।
“सर मैं भी सोच रही थी 4-5 दिन कजिन से भी मिल आऊँ और इस बहाने बंगलुरु भी घूमने का मौक़ा मिल जाएगा. आप छुट्टी तो दे देंगे ना प्लीज …”
“ओह … हाँ … मैं देखूंगा उस समय स्टाफ की क्या पोजीशन रहती है।”
“थैंक यू वैरी मच सर!” कहते हुए नताशा ने एक बार फिर हाथ मिलाया।

प्रिय पाठको! आपकी इस सम्बन्ध में क्या राय है? क्या मुझे नताशा को छुट्टी दे देनी चाहिए? वह तो मेरे साथ ही जाने का प्रोग्राम बना रही है और उसने मुझे घर आने का भी निमंत्रण दिया है आपको क्या लगता है? नताशा ने वैसे ही यह औपचारिकतावश मुझे निमंत्रण दिया था या कोई और बात हो सकती है?

हे लिंग देव आपकी जय हो …

सोमवार किसी तरह बीत गया। आज मंगलवार का दिन है और मधुर 2-3 दिन के बाद आज स्कूल चली गई है।

गौरी ने आज लाल रंग की टी-शर्ट और सफ़ेद निक्कर पहन रखा है। उसने अपने बालों का जूड़ा बना रखा है। वह मेरे सामने बैठी है और हम चाय की चुस्कियां लगा रहे हैं। बाहर रिमझिम बारिश हो रही है।

शादी के शुरू-शुरू के दिनों में मैं और मधुर कई बार बाथरूम में शॉवर की फुहारों के नीचे नहाया करते थे और फिर बहुत सी मिन्नतों और नाज-नखरों के बाद मधुर बाथरूम में ही घोड़ी बन कर पीछे से सम्भोग के लिए राज़ी हो जाया करती थी।

उन पलों को याद करके मेरा लंड तो फनफाने ही लगा था। काश … इस बारिश की फुहार में गौरी के साथ नहाने का मौक़ा मिल जाए तो खुदा कसम मज़ा ही आ जाए।
अचानक मेरे दिमाग में एक जबरदस्त आईडिया आया कि क्यों ना आज बाथरूम में गौरी के साथ नहाकर उन पलों का एक बार फिर से ताज़ा कर लिया जाए।

मैं तो इस विचार से झूम ही उठा।
“अरे गौरी?”
“हओ?”
“वो तुमने पिल्स ले ली थी ना?”
“किच्च …”
“गौरी इसमें लापरवाही नहीं करनी चाहिए यार?”
“मुझे पता है.”
“क्या पता है?” गौरी मंद-मंद मुस्कुराती जा रही थी और मेरी झुंझलाहट बढ़ती जा रही थी।
“उसकी जलुलत नहीं है.”
“क … कैसे … क … क्या मतलब?”
“वो 4-5 दिन बाद मेले पिलियड आने वाले हैं।”

“ओह … थैंक गोड!” मैंने राहत की सांस ली।
गौरी ने मेरी ओर ऐसे देखा जैसे मैं सचमुच का ही लड्डू हूँ। (बकौल मधुर)
“ऐ गौरी! आज तुम इतनी दूर क्यों बैठी हो? कोई नाराज़गी है क्या?”
“किच्च?”
“तो पास आओ ना? प्लीज” कहकर मैंने गौरी का हाथ पकड़कर अपने पास सोफे पर खींच लिया।

गौरी हड़बड़ाहट में मेरी गोद में गिर गई, मैंने उसके गालों पर एक चुम्बन ले लिया।
“हट! आप फिल शरारत तरने लगे?” उसने तिरछी नज़रों से मुझे देखा।
“गौरी उस दिन तुमने वादा किया था … प्लीज?”
“तौन सा वादा?”
“गौरी आओ उन पलों का एक बार फिर से आनन्द ले लें … प्लीज!”
“हट!” गौरी ने शरमाकर अपनी आँखों पर हाथ रख लिए।

“देखो आज मौसम कितना सुहाना हो रहा है बाहर रिमझिम फुहारें पड़ रही हैं। मेरा मन तो इस बारिश में नहाने को कर रहा है.”
“तो नहा लो.”
“यार अकेले में मज़ा नहीं आता? अगर तुम साथ में नहाओ तो यह जिन्दगी जन्नत बन जाए.”
“हट! किसी ने देख लिया तो हम दोनो को लैला मजनू ती तलह पत्थरों से मालेंगे.”
“तो क्या हुआ तुम्हारे लिए तो मैं पत्थर तो क्या जहर भी खा लूँगा?”
“हट!”

“ऐ गौरी प्लीज बाहर तो हम नहीं नहा सकते पर बाथरूम में शॉवर के नीचे ठंडी फुहारों में तो नहा सकते हैं ना?”
“किच्च! मुझे शल्म आती है.”
“अरे यार … एक तो पता नहीं तुम यह शर्म कब छोड़ोगी?”
“आप शरारत तो नहीं कलोगे ना?”
“किच्च … बिलकुल नहीं.” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
पता नहीं … भेनचोद ये लड़कियां जवान होते ही इतने नखरे और जानलेवा अदाएं कहाँ से सीख लेती हैं?

गौरी ने शरमाकर अपनी आँखों पर हाथ रख लिए। गौरी की मौन स्वीकृति पाकर मैंने उसे एक बार फिर कसकर अपनी बांहों में भींचते हुए चूम लिया। लंड महाराज तो पजामा फाड़कर ही बाहर आने लेगे थे।

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मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया और फिर उसे लेकर बाथरूम में आ गया।

कहानी जारी रहेगी.
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