सम्भोग से आत्मदर्शन-6

(Sambhog Se Aatmdarshan- Part 6)

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अब तक आपने इस कहानी में आपने पढ़ा कि मैंने तनु के साथ पहली बार सेक्स कर लिया था.
अब उसकी मम्मी से बात कर रहा था. मैंने चुटकी लेते हुए कहा- तनु आपकी बेटी है आँटी जी, हर अदा हर कार्य में माहिर है। मैं तो उसे एक पल भी ना छोड़ूं! पर इलाज का प्रोग्राम दो दिन बाद का बना लेते हैं।
मेरी इन बातों पर आँटी का भी चेहरा खिल गया था, उन्होंने कहा- ठीक है, जैसा तुम ठीक समझो।

और मैंने मुस्कुरा कर ही धन्यवाद ज्ञापित किया और लौट आया।
आँटी मेरे और तनु के प्रथम सम्भोग के बाद हमसे खुलने लगी थी। अब छोटी के इलाज का समय आ गया था, हम प्रथम सहवास के दो दिन बाद आज इलाज वाले तरीके को आजमाने वाले थे, तो मैंनें आँटी को सारी बातें अच्छे से समझानी चाही।

तभी आँटी ने कहा- संदीप उस दिन तुम्हारे और कविता (तनु) के बीच जो भी हुआ वो पर्दे के पीछे की बात थी, पर संदीप अब सब कुछ मेरे सामने होगा, और तुम तो खिलाड़ी हो, इतना तो समझ ही सकते होगे कि उस वक्त ये सब देख कर मेरी क्या हालत होगी। एक बेटी को अपने ही सामने सम्भोग करते देखना और दूसरी बेटी को सम्भोग के बारे में बताना और संभालना मेरे लिए कितना मुश्किल है। और इस बीच अगर मैं खुद बहक गई तो मैं अपनी बेटियों और ऊपर जाकर अपने पति को क्या मुंह दिखाऊंगी।

मैंने कहा- आप इतना कुछ मत सोचो, इस काम में रिस्क इतना ही है कि कहीं आप बहक ना जाओ, और सही कहो तो आपका बहकना रिस्क नहीं है, एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। और आपको शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं है आपको ईश्वर ने खुद इस काम के लिए चुना है, आपको अपनी बेटी की जिन्दगी भी तो बचानी है, अगर वो ना बचा सकी तो ऊपर जाकr अपने पति को क्या मुंह दिखाओगी। और फिर आपको जिन्दगी और सेक्स का काफी तजुर्बा भी है। आप इसे सम्भोग से आत्मदर्शन पाने का तरीका मान कर हमारा सहयोग कीजिए और छोटी को आत्मदर्शन से ठीक भी कीजिए।

वो अब भी खामोश थी, पर उन्होंने एक बार सहमति में सर हिलाया, फिर भी माहौल बहुत हल्का नहीं हुआ था, आप सभी भी हालात को समझ ही सकते होंगे।

मैंने फिर आँटी से कहा- जिस कमरे को हमने इलाज के लिए तैयार रखा है, वहाँ छोटी को ले जाईये। उसके बाद हम वहाँ आयेंगे और धीरे धीरे इलाज और प्लान के मुताबिक हम वहाँ कामक्रीड़ा करने लगेंगे तब आप छोटी के मस्तिष्क को पढ़ने का प्रयास करना, अब बस ईश्वर से यही कामना है कि हम अपने उद्देश्यों में सफल रहें।

वो यंत्रवत आदेश का पालन करने लगी, और इसके अलावा कोई चारा भी तो नहीं था। वो दोनों माँ बेटी जाकर उस कमरे में बैठी ही थी कि उनके पीछे पीछे हम भी जा पहुंचे.
हम छोटी से बातचीत करने लगे, फिर मैं और तनु पास आने लगे, पहले कंधे फिर हांथ टकराने छूने लगे।

छोटी आँखें फाड़े देख रही थी और आँटी शर्म से दोहरी हुई जा रही थी।
अब हमारे सब्र का बांध भी टूट गया और हमने एक दूसरे के होठों पर होंठ टिका दिये.
यह देख कर छोटी डरने लगी और कहने लगी- ये दीदी को चोदेगा, उसकी चूत फाड़ेगा, खून निकलेगा दीदी मर जायेगी।

तब आँटी उसे समझाने लगी- कुछ नहीं होगा बेटा, बस तू देखती जा, तेरी दीदी को भी इन सबमें मजा आ रहा है और मैं भी तो हूँ ना यहाँ पर।

तनु का ध्यान भी भटकने लगा था, भले मुझसे एक बार और सम्भोग कर चुकी थी पर अपनी माँ के सामने ऐसा करना किसी के लिए भी आसान बात नहीं थी।
पर मैंने कहा- तुम पूरा ध्यान सेक्स में और मजे में लगाओ तभी हमारे सेक्स का उद्देश्य पूरा हो पायेगा।

और हम रतिक्रिया में तल्लीन होने लगे, मैंने तनु के सुडौल चौंतीस साईज के उरोजों का मर्दन करना शुरू कर दिया, जिसकी सुंदरता का बखान मैं और भी कर चुका हूँ। उसके मुंह से ‘आहह उहहह…’ जैसी कामुक ध्वनियाँ निकलने लगी, छोटी का डर और बढ़ने लगा हालांकि उसकी माँ ने स्थिति पूर्ण रूप से संभाल रखी थी।

आज तनु ने नीली साड़ी पहन रखी थी और सब कुछ उसी की मैचिंग का पहना था, मैंने तनु के मखमली शरीर से उस नीली रेशमी साड़ी को अलग करके गुलाबी बदन को कुछ निरावृत कर दिया। तनु ने भी मेरा पूरा सहयोग किया, माहौल उत्तेजक होने लगा, तनु की आँखें नशीली होने लगी, उधर उसकी माँ ने भी कभी छुपी नजरों से तो कभी खुल कर लाईव सेक्स का मजा लेना शुरू कर दिया था पर छोटी का डर बढ़ता ही जा रहा था।

तनु के पास चाहे सेक्स का कितना भी अनुभव क्यों ना रहा हो, पर अपनी माँ और बहन के सामने ये खेल करने में उसके पसीने छुट रहे थे, उसका ध्यान बार बार भटक कर उधर चला ही जाता था, और उसकी माँ भी शर्म हया की परतों को अपने से अलग नहीं कर पा रही थी, अगर छोटी के इलाज की बात ना होती तो शायद ही वो कभी इस काम के लिए मानते।

अब मैंने तनु का ध्यान फिर अपनी ओर खींचना चाहा और अपने शरीर से कपड़े निकालने शुरू किये और कुछ ही पल में मैं सिर्फ अंडरवियर बनियान में रह गया।
मुझे इस स्थिति में देख कर छोटी ने कांपते स्वर में रोते हुए कहा- माँ दीदी को बचा लो, ये आदमी दीदी की चुत फाड़ देगा, माँ ये दीदी को चोदने वाला है.
छोटी अपनी माँ के पीछे छुपने लगी।

पर सुमित्रा देवी (तनु की माँ) को भी मानना पड़ेगा, उन्होंने छोटी को सहारा दिया और ज्ञान देना शुरू किया- डर मत बेटी, किसी स्त्री के लिए प्रथम सहवास डर शर्म कामुकता कौतुहल आनन्द और दर्द का मिला जुला पल होता है, और हर स्त्री के जीवन में ये पल आता ही है, इस पल को सही साथी के साथ भोगने पर असीम आनन्द की अनुभूति होती है, शायद तुम्हें गलत तरीके से इस पल का सामना करना पड़ा इसलिए तुम्हें डर लगता है। तुम सम्भोग को सही तरीके से जान सको और अपने डर से छुटकारा पा सको इसी लिए ये सब तुम्हारे सामने किया जा रहा है। देखो तुम्हारी दीदी कैसे आनन्द के सागर में गोते लगा रही है।
पुरुष का स्पर्श मात्र ही नारी को उत्तेजित कर देता है, और पुरुष का आलिंगन या चुम्बन तो उसे सातवें आसमान पर ले जाता है। तुम अपनी दीदी के आनन्द को समझो बेटी, अब तुम बड़ी हो चुकी हो, और तुम्हें उस बुरे स्वप्न से निकलना ही होगा।

छोटी अब भी डर रही थी, पर अब चुप थी कांप रही थी, झेंप रही थी अपनी माँ से लिपटी थी पर हमें देख रही थी।
मैंने तनु के उभारों को दबाते हुए ही उसकी उत्तेजक नाभि और समतल कामुक गोरी चिकनी पेट पर अपनी जीभ फिराना शुरू कर दिया।
तनु आवेश में आकर मेरे बाल खींचने लगी तो मैंने उसकी मांसल मुलायम जांघों कमर और कूल्हों को सहलाना शुरू कर दिया।

छोटी ने फिर कहा- माँ दीदी को दर्द हो रहा है, प्लीज माँ, उसे बचा लो!
उसकी माँ ने कहा- बेटी, ये दर्द नहीं है, यह तो वह आनन्द है जिसके लिए कोई स्त्री किसी भी दर्द को सह सकती है। यहाँ दूर बैठ कर जब मैं उस आनन्द को महसूस कर सकती हूँ तब तो तुम्हारी दीदी क्या महसूस कर रही है वो तो पूछो ही मत। और तुम्हारी दीदी उसके बाल उसे रोकने के लिए नहीं खींच रही है बल्कि वो तो उसे उकसाने के लिए ऐसा कर रही है, या कहूँ कि अनायास ही उससे ऐसा हो जा रहा है।

मैं उनकी बातें सुनकर खुश भी हो रहा था और उसके अनुभव को मन ही मन प्रणाम भी कर रहा था।

पर अभी हम कुछ और सोचने की हालत में नहीं थे, मैंने तनु के गाल माथे होठों पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी, एक हाथ से जल्दी ही उसके ब्लाउज के हुक छटका दिये और माथे से चुमते हुए गर्दन और फिर उन्नत उभारों तक पहुंचा, सफेद रंग की फैंसी ब्रा में कसी उसकी मदहोश कर देने वाली कठोर हो चुकी पहाड़ी जिसे छूने का अहसास लफ्जों में ब्यान कर पाना मुश्किल है, मैं नारी को नारित्व का अहसास कराने वाले उन खूबसूरत स्तन पर टूट पड़ा।

पहले तो मैंने उन्हें खूब दबाया, दुलारा, प्यार किया, फिर मैंने ब्रा को बिना खोले ही ऊपर की ओर चढ़ा दिया और स्तन को नाजुक समान समझ कर बहुत आहिस्ते से सहलाने लगा, शायद मेरा ऐसा स्पर्श तनु को और बेचैन कर रहा था, तभी तो उसके उसके दूधिया मखमली स्तनों पर रोंगटे खड़े होने जैसे दाने उभरने लगे, चूचुक भूरे रंग के थे ज्यादा दूरी तक फैले भी नहीं थे, पर उत्तेजना में सख्त हो चुके थे मैंने उन्हें दो उंगलियों के बीच रखकर उमेठ दिया, तो तनु ‘उहहह माँ…’ करके चीख उठी।

साथ ही छोटी भी एक बार फिर डर गई- दे.. दे.. देखा माँ, दीदी को कितना दर्द हो रहा है। भगाओ इस आदमी को यहाँ से!
अब उसकी माँ ने जो किया उसकी हम लोगों ने कल्पना भी नहीं की थी, उन्होंने छोटी का हाथ अपने बत्तीस साईज के खूबसूरत उरोजों के ऊपर रखा शायद उन्होंने जानबूझ कर उस दिन ब्रा नहीं पहनी थी, और छोटी को कहा- बेटी जब स्त्री उत्तेजित हो, तब उसे हर ऐसा दर्द आनन्द ही देता है, बस इतना है कि ये चीजें उसकी मर्जी से हो रही हो, अब तुम मेरे चूचुक दबा के देखो!

ऐसा कहते हुए उन्होंने उसके हाथों को पकड़ कर अपने चूचुक दबवाये और कहा- देखो, मुझे दर्द नहीं हुआ बल्कि आनन्द आया, ऐसे ही तुम्हारी दीदी भी मजे ले रही है।

मैं समझ गया था कि अब आँटी भी पूरी तरह गर्म हो चुकी है, या शायद वो इलाज के कार्यों को बहुत गंभीरता से ले रही हों, आखिर ये उनकी बेटी की जिंदगी का सवाल था।
पर मैंने तनु की ओर ध्यान केन्द्रित रखा और नीचे सरक कर तनु के लहंगे का नाड़ा खोल कर लहंगा नीचे सरका दिया। तनु ने अंदर सफेद कलर की ब्रांडेड पेंटी पहन रखी थी, और ये कहने की जरूरत नहीं है कि वो उसके कामरस से भीग चुकी थी जैसे वह पहले दिन भीगी हुई थी।

मैं उसकी फूली हुई खूबसूरत योनि प्रदेश के आसपास चूमने काटने लगा, तनु पर मदहोशी छा रही थी, पर मैं उसकी गोरी मांसल जांघों और पिंडलियों को भी चूमने चाटने टटोलने लगा, उसकी जांघें इतनी गोरी थी कि उसकी नसों का हरापन भी कहीं कहीं झलक रहा था।

मैं यूं ही चूमता चाटता उसके पैरों के अंगूठे तक जा पहुँचा और अंगूठों को मुंह में लेकर चूसने लगा, मेरे कानों पर तनु के माँ की सीत्कार भी सुनाई दी। मैं जानता था कि अब उसका भी खुद पर काबू नहीं रहा।

आँटी की सीत्कार कानों में पड़ते ही मेरा जोश दोगुना हो गया और मैंने तनु पर हावी होते हुए उसकी पेंटी उसके पैरों से अलग कर दी और उसके योनि प्रदेश पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी, उसकी योनि फूली हुई थी, लंबे सेक्स अनुभव के कारण वहाँ थोड़ा सांवलापन था, पर बहुत अच्छे क्लीनशेव चूत ने कामुकता के कारण अपना मुंह खोल रखा था और उस पर कामरस का लेपन लिप ग्लास लगे होने का आभास करा रहा था।

चूत की कंपकपी बता रही थी कि वो बिन जल मछली के समान सांस लेने के लिए तड़प रही है। चूत के खुलते बंद होते लब किसी सुंदर पुष्प का भान करा रहे थे, या कहूं तो टेशू के फूल की भांति प्रतीत हो रहे थे और कोमलता तो पूछो ही मत, और तनु तो आज पूरी तैयारी से चुदाने आई थी, शायद उसे पहले दिन वाली कामक्रीड़ा ने लत लगा दी थी। उसने बहुत अच्छे से वहाँ के बाल साफ कर रखे थे, कामरस की खुशबू किसी इत्र की भांति मुझे रिझा रही थी।

मैंने उसकी योनि में अपनी एक उंगली रखी और नीचे से ऊपर तक सहलाया, तनु पागलों की भांति छटपटाने लगी और मदहोश हो गई.. जोर से ‘सिस्स… सस्सस…’ कर गई और पैरों को फैला लिया, गुलाबी रंगत लिये, भीगी हुई मांसल जांघों के बीच खुलती बंद होती लपलपाती चूत देख के मुंह में पानी ही आ गया। उसकी खूबसूरती को मैं निहार कर ऐसे खुश हुआ जैसे कोई अपने पहले बच्चे को देख कर खुश होता है।

हालांकि पहले दिन मैंने उसकी चूत का दीदार कर लिया था, पर आज हालात अलग थे तो मेरे अंदर भी नयेपन का अहसास था और अगले ही पल मैं योनि के ऊपरी सिरे पर अपनी जीभ लगा दी।

तभी आँटी की सिसकारी बहुत जोर से सुनाई दी, मैंने ऊधर पलट कर देखा तो वो अपने स्तन खुद ही दबाने लगी थी और दांतों से होंठों को दबा रही थी। उसके पीछे छोटी पसीने पसीने हो गई थी, और कांप रही थी, उनकी शर्म और हया के ऊपर वासना की जीत हो रही थी।

मैंने निरंतर कामक्रीड़ा के इस खेल में कुछ पल का ब्रेक लिया और उस ब्रेक में खुद को निर्वस्त्र कर लेना उचित समझा, तब तक तनु भी अपने ब्रा और ब्लाउज को शरीर से अलग कर चुकी थी। मतलब अब हम दोनों ही पूर्ण निर्वस्त्र हो चुके थे। दो आदम जात नग्न बदन कामुकता की आग में सुलग रहे थे।

तनु की दमकती सुंदर काया और सुडौल कटाव मुझे सम्भोग के लिए आमंत्रित कर रहे थे और मेरा सात इंच से कुछ और बड़ा और लगभग तीन इंच मोटा लिंग हवा में लहरा रहा था, लिंग में तनाव से उभरी नशे दूर से दिखाई दे रही थी, लंड का निचला सिरा जहाँ से अंडकोष चालू होता है वहाँ पर भूरे बालों का गुच्छा लंड की खूबसूरती बढा रहा था।
बालों का अर्थ यह नहीं कि वो गंदे या बदबूदार हों। मैं उन्हें अच्छे से साफ रखता हूँ, और कैंची से काट कर उसकी खूबसूरती बरकरार रखता हूँ। मेरा शरीर भी सुडौल बलिष्ट और आकर्षक लग रहा था, मैं तनु पर छा जाने वाला था अब मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था।

आँटी की हालत मेरे लिंग को देखकर खराब हो रही थी, उनकी हालत खराब होनी स्वाभाविक भी थी, क्योंकि मेरा लिंग किसी भी महिला को आकर्षित करने में सक्षम है। लेकिन उससे पहले मेरे विकराल लंड को देख कर छोटी का डर फिर से हावी हो गया।
वो कहने लगी- माँ इसका भी बड़ा है, बाबा का भी बड़ा था.. माँ दीदी को बहुत दर्द होगा, उसे बचा लो माँ।

हालांकि हमें पता था कि छोटी के साथ बुरा काम हुआ है, पर छोटी की इस बात ने और साफ कर दिया कि बुरा काम बाबा ने ही किया है। क्यूंकि आज तक सिर्फ अंदाजे के अलावा हमें और कुछ पता नहीं था।
मेरे दिमाग में छोटी की जिंदगी के पहुलूओं को जानने के कौतुहल और उपाय गूंज रहे थे पर उन सारी बातों को मैंने अपने मन में ही रखा।
इधर छोटी डरने कांपने चीखने लगी पर उसकी माँ ने एक बार फिर हालात संभाल लिये- हाँ बेटी बहुत बड़ा है और सख्त भी!

यह सुन कर मुझे खुशी हुई, पर मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

और उन्होंने छोटी से फिर कहा- पर बेटी ऐसे ही बड़े और कठोर लिंग की कामना हर औरत करती है। अगर औरत तैयार हो तो मर्द का प्रहार उसे मजे ही देता है, फिर मर्द चाहे जितना जोर लगा ले औरत को दर्द नहीं होता, हाँ अगर लड़की या औरत का मन नहीं है तो भले ही उसे चोट लग सकती है या दर्द हो सकता है। अभी तो तेरी दीदी पूरी तरह से तैयार है, और अभी ये दोनों सम्भोग से पहले एक दूसरे के लिंग और योनि को चाट चूस कर और तैयार करेंगे फिर तो बिल्कुल भी दर्द नहीं होगा और आनन्द अपनी सीमाएं लांघ कर परमानन्द में बदल जायेगा।

इन बातों को सुन कर मुझे हँसी भी आ गई क्योंकि चूसने चाटने वाली बात कह कर वो अपने मन की इच्छा जाहिर कर रही थी, मैंने उनकी तरफ देखा और आँख मार दी. उन्होंने थोड़ा शर्माने जैसा अभिनय किया, और मैं 69 की पोजिशन में तनु के ऊपर झुक गया ताकि तनु के मुंह में मेरा लिंग आ जाये और मेरे मुंह में उसकी योनि।
और मैंने एक बार फिर आँटी को देखा, उनकी आँखों में एक चमक आ गई थी, वे अपने एक पैर के ऊपर दूसरे पैर को रख कर खुद को संभालने की नाकाम कोशिश कर रही थी।

कहानी जारी रहेगी…
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