जब साजन ने खोली मोरी अंगिया-3

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मुख-चोदन

मैं लेटी थी, वह लेटा था, अंग-अंग को उसने चूसा था,

होंठों से उसने सुन री सखी, मेरे अंग-अंग को झकझोर दिया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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एक किरण ऊष्मा की जैसे, मेरे तन – मन में दौड़ गई

मैंने भी उसके अंग को सखी, अपनी मुट्ठी में कैद किया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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साजन ने अपने अंग को सखी, मेरे स्तन पर फेर दिया

रगड़ा दोनों चुचूकों पर बारी-बारी, तो आग लगाय दिया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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कहाँ रुई से नाजुक मेरे स्तन, कहाँ वह निर्दय और कठोर सखी

पर उस कठोर और निर्दय ने, मुझको था भाव-विभोर किया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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वह निर्दय और कठोर सखी, दोनों स्तन मध्य बैठ गया

मैंने भी उसको हाथों से, दोनों स्तनों से जकड़ लिया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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मांसलता में वह कैद सखी, अनुपम सुख को था ढूंढ रहा

आगे जाता पीछे आता, मेरी मांसलता को रौंद दिया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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सिर के नीचे मेरे तकिया था, आँखें थी अब दर्शक मेरी

वह उत्तेजित और विभोर सखी, मेरे मन को भरमाय दिया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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मैंने गर्दन को उठा सखी, उसको मुह मांहि खींच लिया

मुझको तो दो सुख मिले सखी, उसको जिह्वा से सरस किया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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वह दो स्तन मध्य से आता था, और मुँह में जाय समाता था

मैंने होंठों की दी जकड़न, और जिह्वा का उसे दुलार दिया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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अनुभव सुख का कुछ ऐसा था, मुझको बेसुध कर बैठा था
लगता था युग यूँ ही बीतें, थम जाये समय जो बीत गया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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साजन ने कई-कई आह भरीं, और अपनी अखियाँ मूंद लईं

मैं बेसुध थी मुझे पता नहीं, कब ज्वालामुखी था फूट गया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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मुँह, गाल, स्तन, गर्दन, सब आनन्द रस से तर थे सखी

वह गर्माहट वह शीतलता, कैसे मैं करूँ बखान सखी

मेरे मन के इस आँगन को, वह कामसुधा से लीप गया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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साजन थे आनन्द के सहभागी, मैं पुन-पुन यह सुख चाहूँ री सखी

वह मधुर अगन वह मधुर जलन, मैंने तो चरम सुख पाय लिया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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