बेटे के दोस्त पर कामुक दृष्टि-1

(Bete Ke Dost Par Kamuk Drishti- Part 1)

राहुल 2019-08-03 Comments

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नमस्कार, अन्तर्वासना पर यह मेरी पहली कहानी है. आशा है आप सभी लोगों को पसंद आयेगी. यह कहानी थोड़ी धीमी गति से चलेगी, आशा है आप सब लोग सब्र से मेरा साथ देंगे.

काफी वक़्त हो गया जबसे उसने कुछ नहीं किया था. ऐसा नहीं था उसको अपने पति से प्यार नहीं था या वो उनसे नफरत करती थी.
लेकिन जैसा ज्यादातर शादीशुदा लोगों के साथ होता है, विवाह के इतने वक़्त के बाद, उनकी ज़िन्दगी में से जैसा कुछ खो सा गया था. या शायद इतना ज्यादा एक दूसरे की आदत पड़ गयी थी कि अब वो तीव्रता नहीं रह गयी थी.

उसको अब भी वो दिन याद आते हैं, जब वो एक दूसरे की आँखों में देर तक देखा करते थे, एक दूसरे को बांहों में जकड़े हुए और उन भावनाओं को अपने अन्दर पनपते हुए जिसकी उन दोनों को तलाश रहती थी. 45 की उम्र में भी वो उस स्पर्श की कमी महसूस करती थी.

45? सच? कभी कभी उसको खुद पर और स्वयं की कभी ना पूरी होने वाली इच्छाओं पर आश्चर्य होता था. लेकिन जो था, यही था और बहुत चाहते हुए भी वो खुद की कोई मदद नहीं कर सकती थी.
45 की उम्र में शबनम बहुत बुरी नहीं दिखती थी. हालाँकि उसका वजन कुछ बढ़ गया था लेकिन इस वजन ने केवल उसकी मादकता में बढ़ोत्तरी की थी. उसका शरीर अभी भी पुरुषों की आँखों को अपनी तरफ मोड़ने की ताक़त रखता था और उसकी खूबसूरत मादक मुस्कान का कोई तोड़ नहीं था. वो अपने एक बेटे और बेटी के साथ दिल्ली की अब अपर मिडल सोसाइटी में रहती थी. उसके जीवन में किसी तरह का कोई दुःख नहीं था. वो हमेशा खुश रहती थी और इस चीज़ ने उसकी ख़ूबसूरती में चार चाँद लगा रखे थे.

जैसा हम सब के साथ होता है, ऐसे शहर में रहना जहाँ आप नए हों, हमेशा मुश्किल होता है. इस शहर में उसका कोई भी रिश्तेदार नहीं रहता था. वो हर चीज़ के लिए खुद पर निर्भर थी. पति की व्यस्तता को देखते हुए उसके दिमाग में कई बार ये विचार आये कि वो अपने पति से बाहर जाकर वो पा ले जिसकी उसको तीव्र इच्छा होती थी.

लेकिन परेशानियों का अंत केवल खुद के विरोधाभास पर नहीं बल्कि इस काम के लिए किसको चुना जाए उस पर भी था. यहाँ पर ज्यादातर पुरुष जो उसके संपर्क में आते थे, उससे उम्र में काफी छोटे थे. ये सभी उसके बेटे के सहपाठी या दोस्त थे.

हालाँकि उसके बेटे के बहुत सारे दोस्त थे लेकिन उनमें से उसका सबसे अभिन्न मित्र था अंकित. पिछले 8 सालों से दोनों एक दूसरे के दोस्त थे और लगभग रोज एक दूसरे के घर आते जाते थे. चूँकि वो आस पास ही रहते थे इसलिए रोज एक दूसरे के घर आने जाने में ऐसी कोई दिक्कत भी नहीं थी.

शबनम अपनी उम्र की बाकी औरतों से थोड़ी सी अलग थी. इस उम्र में भी उसकी ख़ूबसूरती देखते ही बनती थी. 45 की उम्र में भी उसका चेहरा बिना किसी झुर्रियों के चमकता हुआ था. उसकी मुलायम त्वचा और उसकी बड़ी बड़ी आँखें किसी का भी मन मोहने के लिए काफी थी.

उसकी हल्की गुलाबी त्वचा पर लम्बे काले बाल किसी भी औरत को जलने के लिए मजबूर कर सकते थे. उसने अपनी त्वचा और शरीर का पूरा पूरा ख्याल रखा हुआ था. उसके भरे पूरे शरीर पर बाकी सारे अंग एकदम अनुपात में थे. उस शरीर पर उसके वक्ष और कमर के कटाव से होते हुए, उसके नितम्बों पर कोई भी मर-मिट सकता था.

शबनम ने उस दिन से पहले अंकित के बारे में कुछ भी नहीं सोचा था, जिस दिन फुटबॉल खेलने के बाद वो उसके बेटे आतिफ से मिलने घर आया था. आतिफ उस वक़्त घर पर नहीं था तो शबनम ने उसको रुक कर इंतज़ार करने के लिए बोला. उसने उसको बोला कि चूँकि आतिफ घर पर नहीं है, इसलिए अगर वो चाहे तो रुक कर इंतज़ार कर सकता है.

अंकित अभी 18 साल का ही था लेकिन खेल-कूद की वजह से उसका शरीर काफी विकसित हो गया था. लेकिन अभी भी उसके चेहरे पर उम्र की मासूमियत बरक़रार थी. एक अच्छे परिवार से आने की वजह से उसके अन्दर शिष्टाचार की खूबी भी थी.

दोनों लड़कों में दोस्ती की वजह से शबनम उसको अपने बेटे जैसा ही मानती थी. वो एक दूसरे से हमेशा बात करते थे और एक साथ बैठ कर बात करने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं थी.

“ठीक है आंटी, लेकिन क्या मैं तब तक नहा लूं? मुझे लग रहा है इसकी मुझे बहुत जरूरत है.” खुद की हालत पर हँसते हुए अंकित ने पूछा.
“अरे बिल्कुल! इसके लिए तुम्हें मुझसे पूछने की क्या जरूरत. तुम नहा लो, तब तक मैं तुम्हारे पीने के लिए कुछ बनाती हूँ.” शबनम ने मुस्कराते हुए जवाब दिया.

कुछ देर के बाद जब वो बाथरूम के पास से गुजर रही थी तो उसको एक कराहने की आवाज़ आयी. उसको थोड़ा आश्चर्य हुआ. वो बाथरूम के थोड़ा और पास गयी तो उसको लगा जैसे ये आवाज़ अन्दर से ही आ रही है. उसने बाथरूम के की-होल से अन्दर झाँका तो अन्दर का दृश्य देख कर उसकी आँखें फटी रह गयी.

उसने अन्दर जो देखा उससे उसकी दिल की धड़कनें रुक सी गयी. उसके बाद जब वो शुरू हुईं तो ऐसा लगा जैसे वो भाग रहीं हो. अंकित ने अपने लिंग को अपने हाथ में पकड़ रखा था और उसको रगड़ रहा था.

ऐसा नहीं था कि वो अपनी ज़िन्दगी में पहली बार लिंग देख रही थी, लेकिन इस उम्र के लड़के की इतनी मजबूती और उसकी खुद की प्यास ने उसको वहां से ना हटने के लिए मजबूर कर दिया था. उसके कदम जैसे वहीं के वहीं जमे रह गए. अंकित का लिंग उसके पति से ज्यादा बेहतर था और अंकित की कम उम्र ने उसमे चार चाँद लगा दिए थे.

वो जैसे जैसे अंकित के लिंग को उसके हाथों के बीच रगड़ता हुआ देख रही थी, उसको लग रहा था जैसे उसकी खुद की टांगों के बीच एक हलचल सी मच रही हो. जैसा ही उसने देखा कि अंकित का वीर्य उसके लिंग से बाहर आ रहा है, उसकी जैसे सांस रुक गयी. उसका मुंह सूख गया था.

ये दृश्य उसके लिए इतना कामुक था की अनजाने में ही उसका हाथ उसकी टांगों के बीच चला गया. उसकी रीढ़ में एक सिरहन दौड़ रही थी. उसका खुद पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया था और वो लगातार वहीं देख रही थी. उसके दिमाग का एक कोना उसको ऐसा करने से रोक रहा था लेकिन उसकी शारीरिक इच्छाओं ने, उसकी नैतिकता को पीछे छोड़ दिया था. उसको समझ नहीं आ रहा था कि क्या गलत है और क्या सही. ना ही वो खुद के विचारों को रोक पा रही थी और न ही उन पर ध्यान लगा पा रही थी.

उसके लिए अब सब कुछ कभी ना मिटने वाली जिस्मानी इच्छाओं पर निर्भर था. उसकी कामुकता अपने चरम पर थी और उसको अपनी टांगों के बीच में गीलेपन का एहसास हो रहा था. उसकी योनि खुद को अपने आप में भिगो रही थी.

उस रात बिस्तर पर जाते हुए शबनम के दिमाग में केवल अंकित का ही ख्याल था. उसके लिंग और मजबूत जवान शरीर का ही दृश्य उसके दिमाग में तैर रहा था. कुछ सेकंड में ही उसकी योनि भीग गयी थी और उसकी उँगलियाँ वहां पर अपना काम कर रही थी.
कुछ ही मिनटों में उसकी आँखों के आगे जैसा अँधेरा छा गया और उसके मुंह से एक लम्बी सी आह निकल गयी. केवल इस ख्याल ने कि अंकित उसकी टांगों के बीच में है, उसको वो चरमसुख दे दिया जो बहुत मेहनत के बाद भी मुश्किल से ही मिलता है.
अगर वो सच में यहाँ होता, तब वो सुख कितना ज्यादा होता? ये सोचते सोचते ही उसकी आँख लग गयी.

चूँकि अंकित भी उसके खुद के बेटे जैसा ही था तो आतिफ की तरह शबनम अंकित को भी अपने गले से लगाती थी.

एक दिन आतिफ के बाद वो अंकित को गले लगाने के लिए आगे बढ़ी. लेकिन जैसे ही उसने उसको अपनी बांहों में घेरा, उस दिन के दृश्य उसकी आँखों के सामने आ गए. उसने अपने आलिंगन को थोड़ा और मजबूत किया और अंकित के और पास आ गयी.

इस बार यह मातृत्व भरा आलिंगन नहीं था. उसने अंकित को और जोर से जकड़ा और एक लम्बी सांस ली. अंकित ने भी जवाब में अपनी बांहों से शबनम की कमर को पकड़ लिया.
उसकी बांहों में शबनम को एक अलग ही सुख मिल रहा था. वो बहुत देर तक वैसी ही रही जब तक कि उसको यह अहसास नहीं हुआ कि उसका बेटा भी वहीं है, और वो बहुत देर तक उस स्थिति में नहीं रह सकती.
वो अपने ख्यालों से बाहर आयी और एक मुस्कान देते हुए वो अंकित से अलग हो गयी.

उस दिन के बाद वो जब भी उसके सामने आता, उसके पूरे शरीर में एक अजीब सी सिरहन दौड़ जाती थी. उसको यह तो समझ में आ रहा था कि हो क्या रहा है लेकिन यह नहीं समझ में आ रहा था कि क्या जाए.
उसके सारे विचार धीमे पड़ गए थे सिवाए अंकित के … वो जब भी उसके सामने होता था वो नज़रें चुरा कर उसको देखने की कोशिश करती थी. वो उसकी तरफ कामुक निगाहों से देखती थी और उस वक़्त उसके दिमाग में केवल एक ही चीज़ होती थी कि जो भी इन कपड़ों के अन्दर है, उसकी प्यास बुझाने के लिए काफी है.

शबनम के सारे विचार उसी पर केन्द्रित थे और वो जब भी मौका मिलता, अपने शरीर को उसके शरीर से रगड़ने की कोशिश करती. जब भी अंकित का शरीर उसके शरीर से छू जाता, वो महसूस करती जैसे इसी वक़्त वो उसको जोर से पकड़ ले. उसको लगता कि इन सारी चीजों की वजह से शायद अंकित को कुछ समझ में आ जाये और वो अपनी तरफ से पहल करे.

वो नहीं चाहती थी कि अंकित को लगे कि वो उसको पाने के लिए तड़प रही है.
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. उसकी मासूमियत ने शबनम की इच्छाओं को और बढ़ा दिया था, क्योंकि ना केवल एक जवान और खूबसूरत लड़का था बल्कि उसका व्यवहार भी बाक़ी लड़कों से अलग था.

शबनम के लिए हालात मुश्किल से मुश्किल होते जा रहे थे. उसके दिमाग में अंकित के जवान लिंग के अलावा और शायद ही कोई विचार आ रहे थे. उसके दिमाग में केवल यही विचार आते थे कि कैसे अंकित उसके शरीर के ऊपर आकर उससे प्यार कर रहा था. अपने पूरे शरीर को उसके शरीर के ऊपर ले जाकर शबनम को सुख के चरम पर ले जा रहा है.

वो लगातार खुद से लड़ रही थी अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखने के लिए. लेकिन वो अपने विचार से अलग नहीं हो पा रही थी, उसको पूरी तरह अपना बनाने की चाहत से, उसकी उँगलियों को खुद के पूरे शरीर पर रेंगने के ख्याल से.

उसके ख्याल में अक्सर ये रहता था कि अंकित के हाथ उसके पूरे शरीर पर जा रहे हैं, उसके हर अंग को छूते हुए अपनी उँगलियों से, हाथों से, होंठों से. उसके पैर, टांग, गर्दन, कमर और कहाँ नहीं. वो यही सोचती कि काश इस बेचारे को पता होता कि वो क्या सोच रही है.

वो जब भी इसके बारे में सोचती, उसकी टांगों के बीच में एक बाढ़ सी आ जाती, और हर बार पिछली बार से ज्यादा.

कहानी जारी रहेगी.
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