टीचर की यौन वासना की तृप्ति-1

(Teacher Ki Yaun Vasna Ki Tripti Part-1)

This story is part of a series:


दोस्तो, आप सभी को मेरा हृदय से आभार है कि आप लोगों ने एक बार फिर से मेरे द्वारा लिखी गयी कहानी
लंड के मजे के लिये बस का सफर
को बहुत पसंद किया. कई लड़कियों ने यहां तक कहा कि उन्होंने मेरी इस नयी कहानी का पहला पार्ट दो-तीन बार इसलिये पढ़ा ताकि वे अपनी चूत का पानी खूब ज्यादा निकाल सकें. आप सभी का दिल से आभार प्रकट करते हुए एक नयी कहानी आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूं. कहानी को कल्पनिक ही मान कर पढ़िएगा.

दोस्तों कहानी इस प्रकार शुरू होती है कि मैं आपका प्यारा शरद इंग्लिश मीडियम स्कूल में एक अध्यापक के पद पर काम कर रहा हूँ. जैसा आप लोग जानते कि इंग्लिश मीडियम स्कूलों में बच्चों से ज्यादा टीचर बदल जाते हैं. तो मेरी कहानी की शुरूआत फरवरी माह में हुई थी.

नम्रता नाम की एक टीचर का चयन मेरे स्कूल में हुआ. जब हम लोगों का परिचय कराया गया, तो मैं उसे देखता ही रह गया. सांवला रंग के बावजूद उसकी बड़ी-बड़ी आंखें और मैचिंग पहनावे के कारण वो गजब की माल लग रही थी.

हम लोगों को बड़ी मुश्किल से कोई खाली पीरियड मिलता था. इसलिये अधिकतर समय स्टॉफ रूम खाली ही रहता था और मेरी किस्मत शायद थोड़ी अच्छी थी कि जब मेरा खाली पीरियड होता, तो उसी समय उसकी भी कोई क्लास नहीं होती थी. इसलिये मेरा और उसका साथ एक-दो घंटे के लिये अक्सर हो जाया करता था. शुरू में वो मुझसे दूर अलग चेयर में बैठती थी, फिर बात होते-होते वो मेरे पास बैठने लगी और अक्सर हम लोग हैंडशेक भी कर लिया करते थे.

तीन महीना बीतने को हो रहा था और हम लोग एक-दूसरे से ज्यादा घुल मिल चुके थे. हमारे बीच में सामन्यत: उसके और उसके हस्बैंड के बीच की बातें, उसके बच्चे के बारे में होती थीं. इसी तरह मैंने भी अपने बारे में थोड़ा बहुत राज उसके सामने खोलने शुरू कर दिया था. अब हमारे बीच हंसी मजाक भी शुरू हो चुका था, लेकिन अंतरंग बातें न तो उसने मुझे बताईं और न ही मैंने.

हालांकि मैंने एक आकर्षण सा महसूस करना शुरू कर दिया था. तब भी अभी तक मुझे ऐसा कहीं से नहीं लगा कि कभी मुझे उसके साथ अंतरंगता का मौका मिल जाएगा. पर शायद ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था.

एक दिन वो क्लास से थोड़ी जल्दी आ गयी और मेरे बगल में आकर बैठ गयी. उसके चेहरे से एक दर्द सा झलक रहा था.
उसका दर्द देखकर मैंने उससे यूं ही कह दिया- अगर कहो तो मैं कुछ करूँ.
उसने मेरी तरफ देखा और बोली- मुझे पीरिएड्स हो रहे है और यह कमर का दर्द इसलिये हो रहा है.
‘ओह …’ मैं कहकर मैं चुप हो गया, जबकि नम्रता लगातार अपनी कमर को दबाये जा रही थी.

मैंने एक बार फिर ऑफर दिया, तो थोड़ा झुँझलाकर बोली- अरे मुझे पीरिएड्स हो रहे हैं, तो उसमें आप क्या करेंगे?
मैंने सॉरी बोला और किनारे बैठ गया. थोड़ी देर बाद उसने भी मुझे सॉरी बोला और बोली- मैं घर जाना चाहती हूँ.
मैंने उसे छोड़ने का ऑफर दिया, उसने थैंक्स कहा और चली गयी.

तीन चार दिन तक नम्रता के दर्शन नहीं हुए, पता चला कि उसकी तबियत कुछ ज्यादा खराब हो गयी थी. पांचवे दिन चहकते हुए और मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ नम्रता दिखाई दी. मैंने उसे नजरअंदाज करना उचित समझा.
लेकिन नम्रता मेरी तरफ हाथ बढ़ाते हुए बोली- और मिस्टर सक्सेना कैसे हैं आप?
मैं- ठीक हूं और आप कैसी हो?
वो बोली- बस पीरियडस खत्म, दर्द भी खत्म.
मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहा- पीरियडस तो एवरी मन्थस होता है? तो क्या आपने इस पीरियडस के वजह से छुट्टी ली?
वो- नहीं पीरियडस के वजह से नहीं, घर में कुछ फंक्शन था, जिसके वजह से मुझे छुट्टी लेनी पड़ी.
मैंने आहें भरते हुए कहा- थैंक्स गॉड … मैं तो समझा कि आपकी तबियत खराब हो गयी है, इसलिए आपने छुट्टी ली है.

उसने मुस्कुराकर बातें खत्म की.

यूं ही दिन बीतते गए और मेरा आकर्षण बढ़ता ही जा रहा था और शायद आग उधर भी लगी थी, क्योंकि जितनी तवज्जो वो मुझे देती थी, किसी और को नहीं देती थी. हालांकि यह भी हो सकता है कि यह केवल मेरा भ्रम मात्र ही हो. क्योंकि तवज्जो तक तो तो ठीक था, पर इससे आगे बात बढ़ ही नहीं पा रही थी.

धीरे-धीरे समय बीतता जा रहा था और मैं सोच रहा था कि आज मैं उससे अपने दिल की बात करूंगा … कल उससे अपने दिल की बात करूँगा, नहीं कल तो पक्का ही करूँगा.
इस तरह करके फिर दिन बीतने लगे और मेरी हिम्मत नहीं बढ़ रही थी. फिर वो वक्त आ ही गया.

मेरे जन्मदिन की बात थी. सुबह से लोग मुझे विश किए जा रहे थे, पर नम्रता का कहीं अता पता ही नहीं था. वो मेरे सामने सुबह से ही नहीं पड़ी. मेरी भी क्लास पर क्लास थी. वो दो पीरियड का वक्त था, जब हम और नम्रता दोनों ही खाली होते थे.

वो वक्त करीब आ ही गया. मेरे स्टॉफ रूम में आने के कुछ देर बाद वो भी आई. लाल साड़ी और कट ब्लाउज में वो बहुत ही सेक्सी लग रही थी. मेरे बगल में आकर बैठते हुए मुझे विश किया और बोली- कहिये सक्सेना जी, मैं आपको क्या गिफ्ट दूँ?
मैं- जो मर्जी आपकी.
मैंने थोड़ा सभ्यता दिखाते हुए कहा.

नम्रता- नहीं नहीं … आज आप जो कहेंगे, वो गिफ्ट मैं आपको दूंगी.
इस बार मैंने मौका चूकना मुनासिब नहीं समझा और उसके मम्मे की तरफ नजर गड़ा कर कहा- सच में मना तो नहीं करोगी आप?
नम्रता- नहीं आप बोलो तो सही.
मैं- ठीक है, मुझे आपसे दूध और मलाई चाहिये.
नम्रता मेरी बात को समझ तो गयी लेकिन फिर बोली- लेकिन यहां पर मैं कहां से दूध और मलाई ले कर आऊं?

मेरी नजर अभी भी उसके मम्मे पर टिकी हुयी थी.

मैं- देखिये अब आप बनिये नहीं. आप ऊपर से दूध दे दीजिए और नीचे से मलाई दे दीजिए.
वो मुस्कुराते हुए बोली- सक्सेना जी कमीनापन कर गए आप.
मैं- नहीं देना तो कोई बात नहीं, आपने मेरी मर्जी गिफ्ट देने को कहा था, तो मांग लिया.

मेरे हाथ पर हाथ रखते हुए बोली- मैं कहां दूध और मलाई देने से मना कर रही हूँ. पर यहां पर कहां से दूँ. दूध और मलाई निकालने के लिये आपका सपोर्ट भी तो चाहिये.
मैं- मैं आपको सपोर्ट देने को तैयार हूं. मैंने अपने टिफिन से कटोरा निकाल कर पकड़ाते हुए बोला- वाशरूम में जाओ और इसमें दूध निकाल लो और मेरे नाम से अपनी चूत में उंगली कर लीजिए और अपनी पैंटी में मलाई दे दीजिए.

उसने मेरे मुँह से चूत शब्द सुना तो वो भी बिंदास हो गई. वो मेरे हाथ से कटोरा लेती हुयी बोली- लगता है चुदाई के मामले आप बहुत दिमाग रखते हो?
फिर नम्रता कुर्सी से उठी और वाशरूम की तरफ घूमी, लेकिन फिर अचानक मेरी तरफ घूमते हुए बोली- शरद मुझे भी तुम्हारी मलाई चाहिये.
मैं- मैं तैयार हूं, मैं अपनी चड्डी में तुम्हें अपनी मलाई दे दूंगा.

फिर वो बिना कुछ कहे, वो अपनी गांड मटकाते हुए वाशरूम में घुस गयी. कोई दो-तीन मिनट बाद वो चुपचाप मेरे पास आयी और कटोरी देते हुए बोली- लो दूध.

मैंने कटोरी देखा आठ-दस बूंद दूध की थीं. मैंने कटोरी उसके हाथ से ली और कटोरी में जीभ डाल कर पूरे दूध को चाट गया. मेरे लिये इस तरह किसी औरत का दूध पीने का पहला अहसास था. मैंने अपनी जीभ को होंठों पर फेरा और उसकी तरफ देखते हुए कहा- मजा आ गया.
बस इतना कह कर मैं चुप हो गया और उसको एकटक देखने लगा.

नम्रता मुझे इस तरह घूरते देखकर बोली- इस तरह क्यों घूर रहे हो?
मैंने कहा- मलाई अभी बाकी है.
नम्रता- हां मैं जानती हूँ और तुम तो नहीं भूले ना.
मैं- नहीं भूला.

इतनी बात हम दोनों के बीच हो पायी थी कि तभी दो-चार बच्चे कुछ सवाल लेकर नम्रता के पास आ गए. नम्रता ने मेरी तरफ देखा, मैंने अपने हाथ झटक कर चुप रहने का इशारा किया.

खैर … घण्टी बजने पर बच्चे चले गए. हम दोनों ने क्लास लगने और गैलरी खाली होने तक इंतजार किया. थोड़ी देर बाद नम्रता और मैं उठे और बाथरूम में घुस गए. करीब पांच-छ: मिनट बाद दरवाजा खटकने के साथ एक आवाज यह कहते हुए सुनाई पड़ी- निकला नहीं क्या अभी तक?
मैंने भी जवाब दिया- बस जान रूको, खलास होने वाला हूं.

आह-आह करते हुए मैं खलास हो गया और नंगा ही मैंने दरवाजा खोल दिया और अपनी चड्डी पकड़ाते हुए कहा- लो जान ये मेरा माल तुम्हारे लिये है.

इससे पहले कि मैं कुछ कहता, नम्रता ने अपनी पैन्टी मेरी तरफ कर दी. मैंने उसकी पैन्टी लेते हुए उसे अपनी चूत दिखाने के लिये बोला, तो वो बोली- जान उसके लिए थोड़ा इंतजार करो, जब दिन आएगा, तो तुम मेरी चूत भी देखोगे और उसके साथ खेलोगे भी.
मैं कहा- पर मेरी जान तुमने तो मेरा लंड देख लिया.
नम्रता बस मुस्कुरा दी और बोली- हां देख लिया और पसंद भी कर लिया, तभी खेलने का कहा है.

अब हम दोनों के बीच बची खुची फार्मल्टी भी खत्म हो चुकी थी.

वो बोली- मैंने तो कहा नहीं, लेकिन तुम दिखा रहे थे तो मुझे ऐतराज नहीं था.
तभी मुझे एक शैतानी सूझी और नम्रता से बोला- जानेमन, मैं तुम्हारी मलाई चाटकर तुम्हारी पैन्टी में पहन लूंगा और जिस दिन तुम मुझे अपनी चूत का मजा दोगी, उस दिन मैं तुम्हें वापस करूँगा.

वो भी एक कदम आगे निकली, बोली तो ठीक है, मैं तुम्हारी चड्डी पहन लेती हूं, अगली मुलाकात में मैं तुम्हें लौटा दूंगी. अब जाने दो, नहीं तो कोई आ जाएगा और फिर सब रायता फ़ैल जाएगा.

मैंने अर्थ समझा और चुप हो गया. उस दिन तो मुझे मेरी गिफ्ट मिल गयी, लेकिन आगे ऐसा कोई मौका नहीं मिल रहा था कि उसके साथ खुलकर खेलने का मौका मिले. हां स्कूल में जब कभी मौका मिलता था, तो मैं उसके मम्मे दबा देता था और वो मेरे लंड को दबा देती.

इस बीच कई बार मैंने नम्रता से वही खेल दोहराने के लिये कहा, लेकिन वो साफ मना कर देती.
हां इतना पता चला कि उसका आदमी अब वो मजा नहीं देता था, जो कभी दिया करता था. हां जब कभी भी उसकी जरूरत होती, तो उसकी चूत में लंड डाल देता और अपना पानी उसकी चूत में गिरा देता और फिर सो जाता. अब तो उसको इस बात की चिन्ता भी नहीं रहती कि नम्रता को मजा आया कि नहीं.

उसी तरह मेरी हालत थी कि जब कभी भी मैं अपनी बीवी को ओरल सेक्स करने के लिये कहता, तो वो मना कर देती. इस तरह की बातें हम दोनों ने एक दूसरे को बता दी थीं.

एक दिन स्कूल में मैं इसी तरह उसके विषय में सोचते हुए कि अगर मुझे उसका साथ मिले, तो मैं उसके साथ क्या-क्या करूँगा, मैं दिन के सपने में खो गया. तभी मेरे कमर में हल्की से चिकोटी काटने का अहसास हुआ, तो मैं सकपका कर देखने लगा.

नम्रता ने मुझे चिकोटी काटी थी, मेरे इस तरह सकपका कर देखने से वो बोली- जनाब कहां खो गए थे आप?
मैं- सच कहूँ तो आपकी चूत चुदाई की याद में खो गया था.
वो मुस्कुरा दी.

मैं अपनी बातें आगे बढ़ाते हुए बोला- अच्छा एक बात बताइये, यदि कभी गलती से मुझे आपका साथ मिल जाए तो क्या करेगी आप?
नम्रता- अपनी अधूरी इच्छा पूरी करूँगी.
मैंने पूछा- कैसी अधूरी इच्छा?
तो नम्रता बोली- जो मैं चाहती थी, वो मैंने अपने पति से बोला, लेकिन वो माने नहीं. दो तीन बार कहने के बाद भी एक दिन उन्होंने मुझे झिड़क दिया और बोले कि यह तुम्हारे ऊपर शोभा नहीं देता. तब से फिर मैंने उन्हें अपनी इच्छा नहीं बताई.

मैं- चलिये तो फिर आप मुझे अपनी इच्छा बता दो, हो सकता है कि आपकी इच्छा पूरी करने में मैं आपका साथ दे दूँ.
नम्रता- वो कैसे?
मैं- जब भी आप कहें …
नम्रता- ठीक है, देखते है, ऊपर वाला मेरी इच्छा कब पूरी करता है.

मैंने कहा- वो तो पूरी हो ही जाएगी, लेकिन आपने यह बताया नहीं कि आपकी अपने पति से क्या पाने की इच्छा थी, जो वो करने को नहीं तैयार था.
नम्रता- पता नहीं मेरे बारे में आप क्या सोचेंगे?
मैं- सेक्स के मामले में मैं बिन्दास हूं वैसे भी!
नम्रता- मैं भी.
मैं- मैं अपनी इच्छाएं बाहर ही पूरी करता हूं. क्योंकि मुझे लगता है कि मियां बीवी का रिश्ता भी एक मर्यादित होता है. उसमें बहुत ज्यादा खुला नहीं जा सकता है.
मैं ये सब उसको बहलाने के लिये बोल रहा था.

मैं आगे बोला- मैंने भी कई बार अपनी बीवी के साथ कुछ अलग करने की कोशिश की, लेकिन उसने भी सिरे से नकार दिया. इसलिये आप ये मत सोचिये कि मैं आपके बारे में क्या सोचूंगा.
“हम्म …”
मैंने उसके हाथ को दबाते हुए कहा- अब आप बताइये.

थोड़ी देर चुप रहने के बाद और मेरे द्वारा दो तीन बार हाथ दबाने के बाद उसने बोलना शुरू किया.

नम्रता- यार, जिस तरह बी एफ मूवी में या अन्तर्वासना कहानी में मर्द-औरत करते हैं … वैसे ही मैं भी चाहती हूँ.
मैंने घड़ी की तरफ देखा, क्लास में जाने के लिये अभी भी 20-25 मिनट बाकी थे. मुझे उसके मुँह से खुल कर सुनना था.

तो मैंने उसके हाथ को दबाकर उसकी आंखों में आंख डालकर देखते हुए कहा- मेरी जान मुझे तुम्हारे मुँह से खुलकर सुनना है कि तुम क्या चाहती हो?
नम्रता- मैं चाहती थी कि मेरा पति मुझे रंडी समझ कर चोदे. अपना लंड मेरे मुँह में जबरदस्ती डाले और मेरे मुँह को चोदे, अपनी मलाई खिलाये और मेरी मलाई चाटे. इस बारे में कई बार मैंने उससे कहा, पहले तो वो यह कह कर टाल रहा था कि घर में यह सब अच्छा नहीं लगता, तो मैं बोली कि दो-तीन दिन के लिये कहीं बाहर चलते है, जहां सिर्फ मैं और वो हों. लेकिन वो नहीं माने.

मैंने इधर-उधर देखते हुए चुपचाप उसके होंठ पर उंगली रखी और फिर उंगली उसके मुँह में डालकर इधर-उधर घुमाया और फिर अपने मुँह में वही उंगली डाल कर लॉलीपॉप की तरह चूसने लगा.

फिर उंगली निकलाते हुए बोला- अच्छा एक काम करोगी.
वो बोली- क्या?
मैं- तुम अपनी उंगली अपनी चूत में डालकर मुझे चटाओ.
उसने इधर-उधर देखा, फिर मेरी तरफ देखकर बोली- बस इसी तरह का मजा, जहां पर उत्तेजना भी हो और डर भी हो, ऐसा ही मजा चाहती हूं.

इतना कहकर उसने अपनी कुर्सी मेज से और सटायी और अपनी साड़ी को ऊपर करके अपनी उंगली चूत में डाली और निकालकर मेरे मुँह में डाल दी.
दो तीन बार उसने ऐसा किया और फिर मुझसे बोली- अब तुम मुझे अपना माल का टेस्ट दो.

मैंने भी अपनी पैंट की जिप खोली और लंड को बाहर निकाल कर सुपाड़े के ऊपर अंगूठा फेरा और अंगूठा निकाल कर उसके पास ले गया. उसने अपनी जीभ निकाली और मेरे अंगूठे को चाटने लगी. दो-तीन बार मैंने भी ऐसा ही किया.

इसके बाद वो बोली- काश तुम्हारे जैसा पार्टनर मुझे मिल जाए, तो मजा आ जाए.
मैं- जब तुम कहो मैं तुम्हारा पार्टनर बनने को तैयार हूँ.
नम्रता- मैं भी बहुत चाहती हूं कि तुम मेरी चूत में अपना लंड डालकर पड़े रहो या अपने मुँह में मेरी चूत लेकर चबाते रहो.
मैं- वैसे तो मैं तैयार हूं … लेकिन आज फिर तुम अपने पति से बात करो, शायद कोई बात बन जाए.

वो एकदम उदास हो गयी और बोली- पता नहीं मेरे में क्या कमी है कि वो मेरे पर ध्यान ही नहीं देते.
मैं- अर्र अर्र … उदास मत हो, मैं हूँ न. आप जब कहो मैं तैयार हूं.
नम्रता- मौका भी तो नहीं मिल रहा है, जो तुम्हारी बांहों में समाने के लिये मचल जाऊं. मैं भी तो कब से बेकरार हूँ आपको अपनी बांहों में लेकर आपके जिस्म के एक-एक अंग का रस चूसने के लिये, आपके जिस्म के अन्दर समा जाने के लिये.
मैं- तो कुछ करो, जब दोनों के जिस्म फड़क रहें हैं. कहो तो दो-तीन दिन की छुट्टी ले ली जाए.
नम्रता- वो तो ले सकती हूँ, लेकिन उसका कोई फायदा नहीं है. शादी का मौसम है, कहीं से कोई कार्ड नहीं आ रहा है.

हमारी इतनी ही बात हुयी थी कि बेल बज उठी और एक आहें भरती हुयी वो क्लास की तरफ चल पड़ी.

मेरी ये हॉट एंड सेक्सी देसी चूत चुदाई की कहानी पर आपके मेल का स्वागत है.
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कहानी जारी है.

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