मेरी चालू बीवी-129

(Meri Chalu Biwi-129)

इमरान 2015-03-19 Comments

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सलोनी- अब क्या बताऊँ भाभी, मैं तो बस मेहता अंकल के मेहमानों को कमरे ही दिखाने गयी थी। पर वे तो बहुत ही चालू निकले।

नलिनी भाभी- थे कौन… वही तीनों रिटायर्ड बुड्ढे ना?

तभी आँखें बन्द किए हुये ही ऋतु बोल पड़ी- भाभी, वो तीनों अनवर, जोज़फ और कपूर अंकल होंगे ना… बहुत अच्छे दोस्त हैं पापा के… और उतने ही बड़े हरामी भी हैं।

रिया- हां हां, मुझे सब पता है… तीनों ने हमारी मॉम को भी नहीं छोड़ा था… जब भी मौका मिलता था… चोद देते थे।

ऋतु- रिया… तू कुछ पागल है? यह सब क्यों बोलती है.. अब तो मॉम जीवित भी नहीं है।

रिया- अरे बस बता ही तो रही हूँ.. उन की नज़र तो हम दोनों पर भी रहती है… है ना…

नलिनी भाभी- अरे तुम दोनों चुप करो पहले… जरा सलोनी की भी तो सुन लो… इसका तो लगता है तीनों ने एक साथ मिलकर काम तमाम कर दिया है। उन तीनों अपने सफ़र की सारी थकान इसी पर उतारी है.. हा हा…

सलोनी- क्या भाभी आप भी… वैसे कह तो आप ठीक रही हैं… मैं जैसे ही उन्हें लेकर कमरे में पहुँची कि… मेरे कमरे में पहुँचते ही ऐसे टूट पड़े.. जैसे पहले से ही सब सोचकर आए हों… और आज से पहले किसी लड़की को देखा ही ना हो!

नलिनी भाभी- मेरी जान, लड़कियाँ तो उन्होंने बहुत देख रखी होंगी… पर तेरे जैसी मक्खन मलाई-कोफ्ता नहीं देखी होगी।
हा हा हा…

सलोनी- आपको तो भाभी बस हर वक्त मज़ाक ही सूझता रहता है… वो अनवर अंक़ल ने मेरी हालत खराब कर दी.. अभी तक दुख रही है!

सलोनी शायद अपने कूल्हों को पकड़ कर बोली थी।

नलिनी भाभी- अरे मेरी छम्मक छल्लो… इस तरह क्या बता रही है.. सब कुछ खुल कर बता ना.. कि क्या और कैसे हुआ? ये साले पठान तो पिछवाड़े के ही शौक़ीन होते हैं।

ऋतु- हाँ भाभी बिल्कुल सही कह रही हो… अनवर अंकल का हथियार वाकयी बहुत बड़ा और ज़ानदार है।

नलिनी भाभी- तू तो ऐसे बात कर रही है… जैसे तू खूब चुदवा चुकी है उनसे? कुछ देर चुप नहीं बैठ सकती कर्मजली… कल ब्याह है इसका और कैसे अपने ही कारनामे बता रही है?

ऋतु- ओ प्यारी भाभी… ऐसी कोई बात नहीं है… यह तो मैं सलोनी भाभी की बात को ठीक कर रही थी… मैंने देखा है तभी तो बता रही हूँ!

नलिनी भाभी- तू यह सब बाद में बताना और अब तो अपने नये होने वाले ख़सम को ही बताइयो… चल सलोनी, तू अपनी बता लो क्या क्या हुआ?

सलोनी- ओह… भाभी आप तो सब कुछ जान कर ही मेरा पीछा छोड़ोगी… तो सुन लो…

मैं वहाँ पहुँच कर उनक सामान रखवा कर बिस्तर सही कर ही रही थी कि तभी अनवर अंक़ल ने मुझे पीछे से पकड़ कर अपनी बाहों में लेकर ऊपर उठा लिया। मैं छटपटा रही थी कि छोड़ो ना अंकल… यह क्या कर रहे हो.. उनके दोनों हाथों से मेरी चूचियाँ दब रही थी।
बाकी दोनों बुड्ढे अंकल खिलखिला कर हंस रहे थे।
फिर दो जने मेरे पैरों को पकड़ कर मुझे झूला सा झुलाने लगे।
मैं उनसे बार बार छोड़ने के लिए बोल रही थी और सच में रोने सी लगी… और… फिर उन्होंने मुझे वहीं बिस्तर पर उतार दिया और माफी भी मांगने लगे। लेकिन इस सब में मेरी साड़ी पूरी खुल चुकी थी… जब मैं बिस्तर से उठकर खड़ी हुई तो साड़ी उतर गई।
मैंने उन सबको बहुत बुरा भला सुनाया कि देखो आप तीनों ने मिल कर मेरा यह क्या हाल कर दिया।
वो अब भी माफी मांग रहे थे… तभी जोज़फ अंकल बोले.. ‘बेटा बाथरूम में शावर भी काम नहीं कर रहा है… जरा देख कर बाता दो, हमें तो यहाँ के ये फैंसी टोंटियाँ और टब का कुछ समझ ही नहीं आता!
मैं सिर्फ़ पेटिकोट और ब्लाऊज में ही वहाँ खड़ी थी, मैंने सोचा कि इन सबके सामने साड़ी कहाँ बाँध पाऊँगी… मैंने कहा कि या तो आप लोग बाहर जाओ या फिर बाथरूम में, मैं अपने कपड़े ठीक कर लूँ।
तभी राम अंकल ने कहा- अरे रानी, हमसे क्या शरमाना… हम तो तेरे पापा के जैसे ही हैं… और मेहता के यार हैं… वो हमसे कुछ नहीं छिपाता… उसने हमें सब कुछ बता दिया है। और फिर से तीनों हंसने लगे… मैं समझ गई कि अब इन तीनों के सामने कोई बात करना बेकार है… मैं साड़ी लेकर बाथरूम में गई… अभी साड़ी बांधने के लिए पेटिकोट ही ठीक करने लगी थी कि जोज़फ अंकल अन्दर आकर बोले कि अरे रानी बेटी, ज़रा यह भी बता दे कि शावर कैसे चलेगा।
अब मैं करती भी तो क्या, साड़ी मैंने वहीं टांग दी थी और पेटिकोट का नाड़ा बान्ध रही थी… मेरी पीठ शावर की तरफ़ थी… और उन्होंने ना जाने क्या किया कि शावर का पानी चल गया और मैं पीछे से पूरी नहा गई। मेरे हल्के रंग के इस पतले पेटिकोट में से सब कुछ दिखाई देने लगा। जोज़फ अंकल ने सीधे ही मेरे कूल्हों पर हाथ रख दिए और बोले ‘अरे बेटी तूने तो आज भी अन्दर पैन्टी नहीं पहनी है?’
इतना सुनते ही बाकी दोनों अन्कल भी जल्दी से बाथरूम में आ गए… अनवर अंकल तो कहते हुए आये ‘क्या सलोनी ने आज भी कच्छी नहीं पहन रखी?’
मेरा तो शरम के मारे बुरा हाल था… उन सबके सामने मैं पानी में भीगी करीब करीब नंगी ही खड़ी थी, पेटिकोट और ब्लाऊज दोनों ही पूरे गीले होकर जिस्म से चिपक गये थे।
मैंने सबको बोला- ओह… आप तीनों बाहर जाओ न प्लीज़… मुझे बहुत लाज जग रही है।
राम अन्कल मेरे पास आए, बोले- …हमसे क्या शरमाना… अब तो हम तीनों ने ही सब कुछ देख लिया है। चल जल्दी से ये गीले कपड़े उतार दे, कुछ और पहन ले…
और वो वाकरी वो मेरे ब्लाऊज के बटन खोलने लगे।
मैं उन के हाथ पकड़ रोक ही रही थी कि पीछे से जोज़फ अन्कल ने मेरे पेटिकोट का नाड़ा खोल कर उसे नीचे खिसका दिया। गीला पेटिकोट मेरे चूतड़ों से नीचे होते ही मेरे पैरों तक पहुंच गया।
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जोज़फ अन्कल ने इतना ही नहीं किया… पेटिकोट उतरते ही वे मेरे नंगे चूतड़ों को अपने दोनों हाथों से मसलने लगे, उनके सख्त हाथ मेरे नग्न चूतड़ों पर अजीब लग रहे थे।
मैंने जोज़फ अन्कल के हाथों को पकड़ा तो राम अन्कल मेरे ब्लाऊज के हुक खोल कर उसको मेरे बदन से अलग करने लगे।
अब मेरी हालत खराब होने लगी, कुछ समझ नहीं आ रहा था मुझे कि कैसे इन सबको रोकूँ..
राम अन्कल अपना एक हाथ नीचे लेजा कर मेरी आगे से सहलाने लगे और दूसरे हाथ से मेरी ब्रा ऊपर कर मेरे चूची को मसलने लगे।
इससे पहले कि मैं कुछ कर पाती कि मैंने देखा अनवर अन्कल तो अपने सारे कपड़े उतार कर मेरे पास आ गये, उन का लौड़ा देख कर तो मेरा मुख खुला का खुला रह गया, यह ऋतु जो अभी कह रही थी.. बिल्कुल सही कह रही थी… उनका लंड काफ़ी अजीब सा है… एकदम चिकना.. जैसे उसकी खाल किसी ने छील दी हो। वो बहुत बड़ा और मोटा भी है।
अब वे मेरे पास आ मेरे बचे हुए कपड़े हटाने लगे, वे बिल्कुल मेरे पास खड़े थे, उनका गर्म गर्म लौड़ा मेरी कमर को छू रहा था। अब मुझे नशा सा होने लगा, उन का लौड़ा मुझे इतना ललचा रहा था कि उनको अपने से दूर हटाने के बहाने ही मैंने उस लण्ड को अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया, मुट्ठी में पकड़ते ही मुझे पता चला कि वाकयी उनका लौड़ा खूब बड़ा है। एक बार पकड़ने के बाद उसे छोड़ने का मन ही नहीं किया।
अब अनवर अंक़ल ने आराम से, प्यार से मेरा ब्लाऊज और ब्रा मेरे बदन से अलग कर दिये और उनको अच्छी तरह से सूखने के लिये एक तरफ़ फैला दिये।
अब मैं पूर्ण नग्न उन तीनों के मध्य खड़ी थी… इतनी देर में राम और जोज़फ अंकल भी अपने कपड़े उतार कर मेरे पास आ गये।
हम चारों ही अब बाथरूम में नंगे खड़े थे… अब जो होना था, उसे कौन रोकता, वो तो होना ही था।
जोज़फ अंकल बोले ‘चलो यार, बाहर बिस्तर पर ही चलते हैं!’
और तीनों मुझे उठा कर बिस्तर पर ले आए, उन्होंने मुझे बिस्तर पर गिरा दिया।
मैं अभी सोच ही रही थी कि क्या करूँ कि तभी दरवाजे पर कोई आ गया।
ठक-ठक…
कहानी जारी रहेगी??
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