पहला प्यार.. पहला लंड-1

(Pahla Pyar.. Pahla Lund- Part 1)

लव शर्मा 2016-12-14 Comments

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अन्तर्वासना पर सेक्स स्टोरी पढ़ने वाले सभी पाठकों का लव शर्मा का एक बार फिर से नमस्कर।

दोस्तो, आज मैं हाज़िर हुआ हूँ अपने जीवन के सबसे पहले प्यार और सेक्स की कहानी को लेकर!
पहले प्यार को पाने का आनन्द ही अलग होता है।

बात उस समय की है, जब मैं पढ़ता था और मुझे सेक्स, प्यार, लंड, चूत और गांड के बारे में कुछ ज्यादा पता नहीं था और ना ही मुझे कुछ समझ आता था।
पहले मैं एक गाँव में रहा करता था और गाँव के ही स्कूल में पढ़ता था। वो कहने का ही गाँव था.. पर काफी उन्नत गांव था और वहाँ का स्कूल भी कॉन्वेंट स्कूल था.. जिसमें कि मैं पढ़ता था।

मैं बचपन से ही उसी स्कूल में पढ़ रहा था.. और उसी समय से ही मुझे मेरी ही कक्षा का एक लड़का अच्छा लगता था। जब मैं छोटी क्लास में था.. तब से ही वह मेरे दिल को भाता था लेकिन मुझे कुछ पता नहीं था कि ये सब क्या है और ऐसा क्यों है।

मैं बस जब भी समय मिलता.. उसके साथ रहता.. बोलता.. खाता और समय बिताता था। कभी-कभी जब वो स्कूल नहीं आता.. तो मुझे उसकी याद भी आती, लेकिन मैं कुछ समझ नहीं पाता कि ऐसा क्यों है। क्योंकि मैं तो अभी किशोर अवस्था का ही था।

उसका नाम राजेश था.. वह बचपन से ही काफी हैंडसम और मर्दाना था। उसका गोरा अंडाकार चेहरा.. खूबसूरत आँखें उसके आकर्षण को और बढ़ाते थे।

वह अपनी शर्ट की एक बटन खुला रखता था और चूंकि वो गांव का लौंडा था.. और जाति का बंजारा था इसलिए कामुकता तो उसमें कूट-कूट कर भरी थी।

ऐसे ही दिन बीतते गए.. उसके लिए मेरे मन में आकर्षण भी बढ़ने लगा, उम्र के साथ वह और भी सेक्सी होने लगा.. उसकी मर्दानगी भी बढ़ने लगी।
वह हर समस्या का समाधान था.. सबकी जिम्मेदारी लेने वाला भी था, सबको साथ में लेकर चलने वाला था, किसी से पंगा हो जाने पर वो अपने मजबूत मर्दाना हाथों से मुँह तोड़ देने वाला मर्द था।
मतलब वो मेरी क्लास का हीरो था।

धीरे-धीरे मुझे भी उससे लगाव बढ़ता गया और अब हम लोग स्कूल की अंतिम कक्षा में आ चुके थे और मुझे थोड़ा-थोड़ा समझ में आने लगा था कि मुझे वह क्यों अच्छा लगता है। लेकिन मैंने उसे कभी यह बात नहीं बताई थी।

जैसा कि वह गांव का मदमस्त बंजारा था.. तो उसकी अदाएं भी मदहोश कर देने वाली थीं। आप ये मान लीजिए कि पूरे स्कूल में उसके टक्कर का कोई लौंडा नहीं था। वह गांव के अखाड़े में कसरत भी करता था.. जिससे कि उसकी छाती में उभार आने लगा था और भुजाएं भी मजबूत हो चुकी थीं। वह गांव का गबरू जवान था.. अपने खेतों में भी थोड़ा कामकाज देखता था.. जिससे कि उसकी गोरी और चौड़ी हथेलियां काफी सख्त हो चुकी थीं।

अब मुझे उसे देखकर कामुकता का नशा छाने लगता था और दिल करता था कि बस इसके बदन को किसी बहाने छू लूँ.. हालांकि सेक्स में अब भी मुझे कुछ समझ नहीं आता था.. इसलिए इस तरह का कुछ भी दिमाग में नहीं था कि राजेश का लंड लेना है.. या सेक्स करना है.. बस उसके मदमस्त बदन को छूने का दिल करता था।

मेरा बेस्ट फ्रेंड दूसरा लड़का था.. इसलिए मैं राजेश के पास नहीं बैठता था, लेकिन जैसे ही मुझे मौका मिलता.. मैं उसके पास जाकर बैठ जाता या खड़ा हो जाता और मौका मिलते ही उसकी कठोर भुजाओं को पकड़ लेता और उसके कठोर उभार को महसूस करता।
इसके अलावा उसके बदन से एक अलग ही खुशबू आती थी.. जो किसी और से बिल्कुल अलग थी। मैं मौका पकर उसके बगल में खड़ा हो जाता और उस मदमस्त महक का आनन्द लेने की कोशिश करता रहता।

जैसा कि मैंने बताया कि राजेश की छाती काफी कठोर थी और उसमें अच्छा खासा उभार हो चुका था। लेकिन अब वह अपने शर्ट के सभी बटन लगा कर रखने लगा था.. जिससे उसका उभार बस बाहर से ही देखा जा सकता था। अन्दर उसकी छाती का तो एक बाल भी दिखाई नहीं देता था।

मेरा मन अब उसके मदमस्त कामुक मर्दाना बदन को देखने के लिए और छूने के लिए तड़पने लगा था.. लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकता था। मैं उसे नंगा देखना चाहता था.. लेकिन स्कूल में वह अपने कपड़े भला क्यों उतारेगा।

एक दिन उसकी किसी लड़के से लड़ाई हो गई और लड़ाई में शर्ट के ऊपर के दो बटन टूट गए.. लेकिन मुझे पता नहीं था कि लड़ाई जैसा कुछ हुआ है। वो दूर से अपनी मर्दाना चाल में चलता हुआ आ रहा था.. तभी मेरी नज़र उसकी छाती पर पड़ी और मैं उसे देखकर दीवाना हो गया।

वाह.. क्या मस्त चाल.. ऊपर से शर्ट के टूटे हुई बटनों में से दिखती हुई गोरी कठोर उभरी हुई छाती.. जो कि शर्ट को फाड़ रही थी।

वह मेरे पास आया और बोला- यार कोई पिन हो तो दे.. यार बटन टूट गए हैं।
मैंने कहा- पिन तो नहीं है यार.. रहने दे ना.. क्या हुआ टूट गए तो टूट गए।

उस पूरे दिन मैंने उसकी मस्त छाती को देखकर अपनी आँखें सेंकी।

अब बस मैं उसके मदमस्त बदन का दीवाना हो चुका था और दिल में बस यही ख्वाहिश थी कि कभी राजेश के मर्दाना बदन को पूरा नंगा देखने का और छूने का मौका मिले.. तो मजा आ जाए।

ऐसे ही बारिश के दिनों में एक दिन सबका तालाब में नहाने जाने का प्लान बना। मुझे तो तैरना आता नहीं था इसलिए मैं तो नहा नहीं सकता था.. लेकिन में राजेश को वहाँ पर पूरा नंगा देख सकता था.. इसलिए मैं भी उन सबके साथ तालाब पर चला गया।

वहाँ पर जब राजेश ने अपनी शर्ट उतारी तो उसके बदन को देखकर मेरा लंड खड़ा हो गया। उसने अपने कपड़े मेरे हाथ में दे दिए और वह कुएं में कूद गया। उसके अलावा और भी गांव के जवान लौंडे नंगे होकर उस तालाब में नहा रहे थे लेकिन मेरी नजरें तो राजेश पर ही टिकी हुई थीं। मैंने मौका पाकर उसके कपड़ों से आने वाली महक का भी आनन्द लिया।

इस तरह मैं राजेश के कातिलाना मजबूत बदन को भी देख चुका था। अब तो बस उसके कठोर बदन को छूना चाहता था.. उसकी छाती के उभार को महसूस करना चाहता था। समझ रहे हैं आप.. कि मैं क्या चाहता था।

एक दिन की बात है.. स्कूल में सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहे थे। मैंने भी कई सारी प्रतियोगिताओं में भाग लिया था और राजेश ने भी कुछ में भाग लिया था।
जैसा कि आपको तो पता ही होगा कि ऐसे समय पर कपड़े बदलने के लिए कमरे बने होते हैं.. जहाँ पर सभी अपने कपड़े बदलते हैं। वहीं पर मैं भी खड़ा हुआ था और मेरा उस समय कोई कार्यक्रम नहीं था.. इसलिए तैयार नहीं हो रहा था।

तभी मैंने देखा कि राजेश भी वहीं पर है और कुछ तैयारी कर रहा है। मैं उसके पास जाकर खड़ा हो गया और उससे बोला- यहाँ क्या कर रहा है रे..?
उसने मुझे देखा और बोला- अच्छा हुआ यार तू आ गया.. रेडी होना है यार.. तू हेल्प करवा दे।

इतना बोलते हुए वह अपने बटन खोलने लगा और देखते ही देखते उसने अपनी शर्ट उतार दी।

मैं तो खुशी से झूम उठा.. अब वह बनियान में था और उसके कसे हुए डोले देखकर मेरा लंड तनतना उठा, मेरा जी मचलने लगा कि इसके इन डोलों को जुबान से चाट लूँ।

इतने में ही उसने अपनी बनियान भी उतार फ़ेंकी.. मेरी आँखें तो फटी की फटी रह गईं, इतने करीब से राजेश को मैंने बिना कपड़ों के कभी नहीं देखा था।

क्या कातिलाना जवानी थी.. वाह.. नई उम्र का जवान बंजारा.. गांववाला मर्द.. मेरी आँखों के सामने.. वो भी अपनी मजबूत भुजाओं और कसरती बदन के साथ.. मेरी तो मानो लॉटरी लग गई थी।

मेरा जी कर रहा था कि आज तो इसके बदन को छू लूँ और इसकी छाती को चूम लूँ। मैं अभी इसी सोच में डूबा था तभी राजेश की आवाज आई- ले.. यह लेप मेरी पूरी बॉडी पर लगा दे..

ओह्ह.. मेरी तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा.. मैं तो उसके मस्त बदन को छूना ही चाहता था। उसने तो पूरे बदन पर पेस्ट लगाने का बोलकर मानो मेरे दिल की ख्वाहिश पूरी कर दी।

वह मुल्तानी मिट्टी जैसा कुछ पेस्ट था.. जिसे लगाकर उसे परफॉर्म करना था।
वह बेंच पर बिल्कुल तन कर कड़क होकर बैठ गया। मैंने वो लेप का बर्तन लिया और उसके बदन को छू लिया, मानो मेरी दिल की ख्वाहिश पूरी हो गई हो.. मैंने उसके मर्दाना जिस्म पर लेप लगाना शुरू कर दिया और वो बिल्कुल किसी राजपूताना महाराजा की तरह तनकर बैठा हुआ था और मैं किसी दासी की तरह उसके जिस्म पर लेप लगा रहा था।

मैंने उसकी पीठ पर लेप लगाया जो कि काफी चौड़ी थी.. फिर उसकी कलाइयों से होते हुए डोलों तक पहुँचा.. उसके फूले हुए डोलों को मैंने छुआ और बार-बार लेप लगाने के बहाने उसके हाथों को ऊपर-नीचे करवाता.. जिससे डोले ऊपर-नीचे होते और मैं उन्हें छूकर अनुभव करता।

उसकी बगल में छोटे-छोटे बाल उग आए थे.. जो उसे और भी सेक्सी बना रहे थे। अब मैं उसकी मजबूत छाती तक पहुँचा और उसके पीछे खड़ा हो गया। मैंने अपने दोनों हाथों में लेप ले लिया और उसकी छाती के दोनों उभारों पर अपने हाथ रख दिए और बिल्कुल होली खेलने वाले ढंग से उसकी छाती पर लेप लगाने लगा।

वाह.. क्या पल था वो.. जवान मदमस्त फूली हुई मर्दाना छाती पर मेरे दोनों हाथ.. ऐसे करते हुए मैंने उसके पेट पर भी लेप लगाया और आनन्द का यह सिलसिला यहीं समाप्त हो गया।

अब सब अपनी परफॉर्मेंस के लिए जा चुके थे और कमरे में कोई नहीं था, राजेश भी चला गया था.. लेकिन मेरा लंड शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था, मेरे दिमाग में बस राजेश का कामुक जिस्म ही चल रहा था।

मेरा दिमाग खराब हुआ और मैंने कमरे का दरवाजा बन्द करते हुए अपने पैन्ट से अपना लगभग छोटा सा लौड़ा निकाला जो कि अपनी औकात से अधिक फनफना रहा था।

दोस्तो, मेरी इस आत्मकथा पर आपके विचारों का स्वागत है।
[email protected]
कहानी जारी है।

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