जवानी का ‘ज़हरीला’ जोश-5

(Jawani Ka Jaharila Josh- Part 5)

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अभी तक आपने पढ़ा कि मेरे नए ऑफिस की दोस्त नेहा मेरे साथ सेक्स करना चाहती थी लेकिन मैं अपने आप को इसके लिए तैयार नहीं कर पाया मेरे अंदर वो फीलिंग नहीं आई। लेकिन इसमें नेहा की भी कोई गलती नहीं कह सकता क्योंकि उसे क्या पता था कि मैं लड़कियों के साथ सम्भोग में रुचि नहीं रखता हूं।

वो नाराज़ होकर चली गई और अपनी किस्मत पर रोकर सो गया।

उस दिन के बाद नेहा ने भी मुझसे दूरी बना ली जबकि बाकी दुनिया से मैं खुद ही दूरी बनाकर रखता था। अब बस सीधे रूम से ऑफिस और ऑफिस से रूम के सिवा कहीं नहीं जाता था।

लेकिन अकेला इन्सान कब तक खुद का बोझ उठाता। एक कंधा मुझे भी चाहिए था जिस पर सिर रखकर जिंदगी का थोड़ा सा बोझ हल्का कर सकूं।

मैंने फिर से इंटरनेट का सहारा लिया और कई गे सोशल साइट्स पर एक पार्टनर की तलाश शुरू कर दी। रोज़ कईयों से बात होती थी। शुरू में तो सब अच्छी-अच्छी बातें करते थे लेकिन जैसे-जैसे वक्त गुज़रता धीरे-धीरे असलियत सामने आने लगती थी। कोई सेक्स का भूखा बैठा था और कोई पैसे का। किसी को जॉब के लिए अप्रोच चाहिए थी तो कोई बॉयफ्रेंड बनाकर उसकी कमाई पर ऐश करना चाहता था।

गे वर्ल्ड की जो गंदगी मैंने वहां पर देखी उससे मन ऊब गया, मुझे किसी पर भरोसा नहीं रहा।

साल भर बीत जाने के बाद मैंने वो जॉब भी वहां से छोड़ दी और वापस सोनीपत अपने गांव लौट आया। इस विचार के साथ कि घर वालों के साथ रहूंगा तो ध्यान इधर-उधर की बातों में नहीं जाएगा और अकेलेपन से भी छुटकारा मिलेगा।
मैं जॉब छोड़कर घर वापस आ गया.

लेकिन जवान बेटा घर में बेरोज़गार बैठा है, भला किसके घर वाले इस बात को बर्दाश्त कर सकते हैं। सबको समाज की ही फिक्र रहती है, चाहे वो आपके रिश्तेदार हों या परिवार या माँ-बाप। मैं क्या चाहता हूं इसके बारे में कोई नहीं सोच रहा था।

मुझे ये भी अच्छी तरह पता था कि इसमें घर वालों की कोई गलती नहीं है। उनके लिए तो मैं नॉर्मल ज़िंदगी जीने वाला लड़का था। वो भला कहां जानते थे कि उनके लाडले की असली समस्या क्या है… उनका बेटा गे है… गांव से था इसलिए इस टॉपिक पर बात करने की सोचते हुए भी डर लगता था। क्योंकि शहर में तो लोगों को इस गे शब्द के बारे में अच्छी खासी जानकारी होती है लेकिन गांव वाले पुराने लोगों को तो हर गे में गांड मरवाने वाला ही नज़र आता है। उनके लिए गे का मतलब गंडवा ही होता है जो गांड मरवाता है। हालांकि मैं तो अच्छी तरह जानता था कि गे में भी चार कैटेगरी होती हैं- टॉप, बॉटम, वर्सेटाइल और बायसेक्सुअल।

2009 में जब दिल्ली हाइकोर्ट का फैसला समलैंगिकों के हक़ में आया तो थोड़ी उम्मीद बंधी थी कि कानून का हवाला देकर ही घर वालों को इस बारे में मना लिया जाएगा लेकिन 4 साल बाद जैसे ही सरकार बदली सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले को भी रद्द कर दिया। फैसले के रद्द होते ही उम्मीदें भी रद्दी बन गईं।

खैर, कहानी को आगे बढ़ाता हूं…
मैं गुड़गाँव (अब गुरूग्राम) से घर वापस आया तो पापा रोज़ मुझे बुलाकर ये समझाते कि कहीं नौकरी देख ले, तेरी उम्र हो रही है, आगे शादी भी करनी है। अगर कमाएगा नहीं तो तुझसे शादी कौन करेगा।
मैं बस चुप-चाप उनकी बातें सुन लेता था।

4-5 महीने ऐसे ही बिता दिए। फिर मेरे घर वालों के पास रिश्तेदारों के फोन आने लगे। प्रवेश के लिए फलां-फलां लड़की देखी है, पढ़ी-लिखी है, घर का काम भी जानती है.. रिश्ता ले लो।
माँ रोज़ मुझे बुलाती और किसी न किसी रिश्ते का जिक्र करने लगती। लेकिन मुझे शादी के नाम से ही चिढ़ होने लगती थी, मैं माँ की बातों का कोई जवाब नहीं देता था। कोई न कोई बहाना बनाकर टाल देता था। उनके रोज़-रोज़ के प्रेशर से मैं तंग आ चुका था। ना कोई दिल की बात सुनने वाला था और न कोई समझने वाला।

क्योंकि मैं किसी लड़की से शादी नहीं करना चाहता था, सारी उम्र दोहरी ज़िंदगी जीना मुझे मंज़ूर नहीं था।

लेकिन ये सब बातें घर वालों को समझाए कौन। कैसे उनको बताता कि मैं किसी लड़की के साथ खुश नहीं रह पाऊंगा। उनके लिए तो मैं एक नॉर्मल लडका था जो बाकी लड़कों की तरह शादी करेगा, फिर बच्चे पैदा करेगा, उनके वंश को आगे बढ़ाएगा। घर में बहू आएगी, मां-बाप की सेवा करेगी।
ये सब सोचकर अब मुझे हंसी आती है क्योंकि आजकल की बहुएँ कैसी सेवा करती हैं वो सब जानते हैं। अब तो लगता है कि अच्छा हुआ भगवान ने मुझे गे बना दिया, नहीं तो माँ-बाप और बीवी नामक दो पाटों वाली चक्की के बीच में पिसकर मेरी जिंदगी भी नर्क ही बनने वाली थी।

माँ-बाप भी इस बात को अच्छी तरीके से जानते हैं कि आज के समय शादी करके किस तरह बच्चे डिप्रेशन में जा रहे हैं। लेकिन उनके सिर पर भी जिम्मेदारी होती है, खासकर गांव के लोग तो ऐसा ही सोचते हैं कि जब तक बच्चों की शादी न हो जाए तब तक सिर पर बोझ सा बना रहेगा। लेकिन वो नहीं जानते कि अपने सिर का बोझ उतारने के चक्कर में वो बच्चे के सिर पर कितना बड़ा बोझ लादने जा रहे हैं और वो भी जिंदगी भर के लिए।
आजकल शादी का कोई मतलब नहीं रह गया है। इसमें चाहे लड़का हो या लड़की। हर किसी को अपनी लाइफ अपने तरीके से ही जीने में ही मज़ा आता है।

लेकिन गे के लिए किसी तरह की कोई संभावना नहीं होती। या तो वो ताउम्र दोहरी जिंदगी जीता रहे या फिर उम्र भर अकेले गुज़ारने के लिए तैयार रहे। मुझे भी ये बात-बात साफ दिखाई देने लगी थी। इसलिए मैं जल्दी से अपने लिए एक पार्टनर ढूंढ लेना चाहता था।

एक दिन यूं ही पी. आर. पर बैठा हुआ मैसेज चैक कर रहा था कि एक मैसेज मेरे पास आया। उसने मेरी आई डी पर मेरी पिक्स देखी और मैंने उसकी। थोड़ी बात हुई तो बंदा सही लगा। धीरे-धीरे रोज़ ही बातें होने लगी। लगभग 6 महीने तक हम बातें ही करते रहे।
मुझे लगा कि अगर इसे सेक्स की भूख होती तो इतने दिन बातों में नहीं निकालता और अगर इसका कोई और मोटिव होता तो भी अब तक कुछ न कुछ सामने निकल कर आ ही जाता।

जब हम मिले तो पता लगा कि फोटो और रियल लाइफ में ज़मीन आसमान का अंतर होता है। लोग फोटो ऐसी लगाते हैं कि देखते ही पसंद आ जाती है। देखने में वो मुझसे कहीं बेहतर लगता था। गोरा रंग, गुलाबी होंठ, हाइट भी ठीक-ठाक ही थी लेकिन मुझसे दो इंच कम थी। उसका भी हल्का सा पेट निकला हुआ था। लेकिन काफी हेयरी बॉडी थी उसकी। उसकी फोटो जब देखी थी तो किसी अच्छे-खासे मर्द जैसा दिख रहा था लेकिन हकीकत में वो ऐसा नहीं था। जो चीज़ मुझे उसके करीब होने से रोक रही थी वो था उसका थोड़ा गर्लिश बिहेव। मुझे ज़रा स्ट्रेट टाइप लड़के ज्यादा पसंद आते थे।

हम मिले लेकिन ऐसी कुछ बात नहीं हो पाई जिससे लगे कि मैं उसके साथ आगे बढ़ना चाहता हूं। मुझसे मिलकर ना उसकी उम्मीद ही पूरी हो रही थी और ना ही उससे मिलकर मेरी। फिर भी हम दोस्तों की तरह बातें करते रहे।
मैंने भी जॉब ज्वाइन कर ली थी और वो भी कहीं प्राइवेट जॉब पर जाता था।

छुट्टी वाले दिन हम कहीं घूमने निकल जाते थे। चांदनी चौक या पुरानी दिल्ली की किसी गली में चाट पकौड़े खाने। कभी शॉपिंग तो कभी मस्ती। मुझे पार्टनर तो नहीं लेकिन एक अच्छा दोस्त मिल गया था। मैं उसका ख्याल रखता और वो मेरा… कभी वो मुझे समझाता और कभी मैं उसको… दोनों अपने ग़म और खुशी एक-दूसरे के साथ बांट लेते थे।

एक दिन वो मुझे अपने घर ले गया। अपने मम्मी-पापा और भाई से मिलवाया।
धीरे-धीरे मैं उसके परिवार के साथ घुल मिल गया, वो भी मेरे आने पर काफी खुश हो जाते थे। हम लोग साथ में बैठकर खाना खाते थे, इधर-उधर की बातें करते। उसकी मम्मी दिल की काफी अच्छी थीं। मैं उनको आंटी कहकर बुलाता था लेकिन माँ जैसी ही लगती थी। उसके पापा थोड़े रिज़र्वड टाइप थे और खुलकर ज्यादा बात नहीं करते थे। लेकिन आंटी, गगनदीप, उसका भाई और मैं खूब गप्पे मारते थे।

जिंदगी थोड़ी आसान लगने लगी थी। दिन ऐसे ही खुशी-खुशी बीत रहे थे। अपने ही अपने अंदर का वो घुट-घुटकर जीना काफी हद तक कम हो गया था। गगनदीप हमेशा गे चैटिंग में लगा रहता था।
हम दोनों साथ में जब बाहर जाते तो खूब मस्ती करते थे। मार्केट में चलते हुए जब सामने से कोई हैंडसम लड़का आता हुआ दिखाई देता तो हम उसके बारे में अपनी-अपनी राय देने लगते थे।
देख कैसे चौड़ा होकर चल रहा है.. और लग रहा लल्लू.. कहकर दोनों हंस पड़ते। अगर कोई दोनों की पसंद का होता तो- हाय! हंक है यार.. कितना स्मार्ट लग रहा है…इसकी चेस्ट तो देख, और बल्ज (जांघों के बीच में अंडरवियर के अंदर लटक रहे लंड की बाहर उभरकर बनती शेप)… कितना मस्त है… काफी मोटा होगा इसका…

लड़कों के पास गुज़रते हुए सेक्सी कमेंट्स करते हुए निकलते थे। जैसे स्ट्रेट लड़के सामने से आ रही किसी सेक्सी लड़की को देखकर किया करते हैं।

लाइफ फिर से नॉर्मल ट्रैक पर आ गई थी। मैं भी पीआर पर चैटिंग करता रहता था क्योंकि पार्टनर की तलाश अभी जारी थी।

एक स्ट्रेट टाइप लड़के से मेरी बात होने लगी। वो उम्र में मुझसे भी बड़ा था। उस वक्त वो 32-35 के करीब का रहा होगा जबकि मैं उससे काफी छोटा था। उससे फोन पर बात हुई तो आवाज़ भी काफी भारी थी जैसे किसी असली मर्द की होती है। मैं उसकी तरफ पहली बार में ही आकर्षित हो गया।
काफी पढ़ा लिखा भी था वो, बातें भी अक्सर इंग्लिश में ही करता था।

मुझे वो काफी पसंद था, मैं सोच रहा था कि इसके साथ बात बन जाए तो सही रहेगा। मेरी पसंद का पार्टनर मुझे मिल जाएगा क्योंकि वो हर एंगल से फिट था। उसकी फोटोज़ में उसकी बॉडी पर अच्छे खासे कट्स दिखाई देते थे। हेयरी भी था और उसकी आवाज़ पर तो मैं पहले से ही फिदा हो चुका था, मन ही मन उसको चाहने लगा था।

उसका नाम सौरव था। वो भी मुझसे प्यार से बात करता था। उससे बातें करते हुए लगभग एक महीना हो चुका था। इधर गगनदीप मेरे इंतज़ार में था कि मैं उसके साथ फिज़ीकल हो जाऊं। लेकिन पता नहीं क्यों मेरा गगनदीप में कोई फिज़ीकल इंटरेस्ट पैदा नहीं हो पा रहा था क्योंकि हम दोनों की पसंद एक जैसी थी। उसे भी वही पसंद था जो मुझे पसंद था। स्ट्रेट, रफ और हैंडसम इसलिए हम दोनों का आपस में कुछ नहीं हो पा रहा था।

मैं सौरव के साथ ही रिलेशनशिप में जाने की उम्मीद कर रहा था। मैं उसे पसंद करता था और वो मुझे। यहां पर कोई प्रॉब्लम नज़र नहीं आ रही थी।

एक दिन ऐसे ही मैंने पीआर पर अपनी बॉडी की पिक्स डाल दी। जिसे देखकर सौरव को पता नहीं क्या हुआ, उसने मुझे गाली-गलौच वाले मैसेज करना शुरू कर दिए।
मैं हैरान… इसको क्या हो गया।
पिक्स तो पहले भी लगी हुई थीं लेकिन इसको जलन क्यों हो रही है नई पिक्स से?

मैं सोच ही रहा था कि उसका मैसेज आया- तू रंडी की औलाद है, अपनी जिस्म फरोशी करता फिर रहा है… मैंने तुझे क्या समझा था और तू क्या निकला… आज के बाद मुझे कभी मैसेज नहीं करना और पता नहीं क्या-क्या…
उसका इस तरह का गंदा बिहेव देखकर मुझे भी गुस्सा आ गया और मैंने भी उसे खूब सुना दिया।

हैरानी इस बात की थी कि कहां वो इतना पढ़ा लिखा था और समझदारी भरी बातें करता था और अचानक से उसका ये रूप देखने को मिल रहा है, ऊपर से मेरी माँ तक पहुंच गया है। मैंने गुस्से में आकर उसे उसी वक्त ब्लॉक कर दिया।
मूड बहुत खराब हो गया था।
मैंने ऐसी क्या गलती कर दी है जो उसने मेरे साथ ऐसा किया। अंदर की खुंदक और गुस्से से धीरे-धीरे दिमाग पर प्रेशर बढ़ना शुरू हो गया।

ये गे वर्ल्ड इतना गंदा क्यों है। यहां किसी को किसी की कदर ही नहीं है। इंसान बाहर से कुछ लगता है और अंदर से कुछ निकलता है। मेरा दिल भर आया। मैंने गगनदीप को उसी वक्त फोन किया। उसको सौरव के बारे में बताते बताते मेरा गला भर आया और मैं फोन पर ही रोने लगा.
उसने कहा- तू रो मत, ये जगह ही ऐसी है। ऐसा होना कोई नई बात नहीं है। मैं पिछले 5 साल से पीआर पर हूं। तुझसे ज्यादा मैंने धोखे खाए हैं यहां। लेकिन तू दिल छोटा मत कर… मैं हूं ना।
वो मुझे समझाता रहा।

मेरा दिल टूट गया था। आख़िर जाऊं तो जाऊं कहां, क्या सारी उम्र ऐसे ही तनहा गुज़ारनी पड़ेगी। मैं उदास हो गया। मेरे पास गगनदीप की कुछ फोटोज़ थी, मैं उनको देखने लगा। गगनदीप पर उस दिन मुझे प्यार आ रहा था। मैं सोच रहा था कि इसमें आख़िर कमी क्या है। मैं क्यों न इसी के साथ रिलेशनशिप में चला जाऊं।

अगले दिन मैं गगन के ऑफिस पहुंचा उसे सरप्राइज़ देने। गगन किसी बिज़नेसमैन के यहां काम करता था, और अक्सर ऑफिस में अकेला ही रहता था। उसका ऑफिस करोलबाग में था। जब मैं गया तो गगन अकेला ही बैठा हुआ था और कम्प्यूटर पर कुछ काम कर रहा था। मैंने जाते ही उसको पीछे से बांहों में भर लिया और उसको गाल पर किस कर दिया।
वो एक बार तो हैरान हुआ फिर उठकर मेरी तरफ देखा, मुस्कुराया… तो मैंने उसके होठों पर किस कर दिया।

उसकी खुशी दोगुनी हो गई और हम दोनों एक-दूसरे से लिपट गए। बहुत ही अच्छा लग रहा था उसके गले लगकर! उसने मुझे होठों पर डीप किस करना शुरू कर दिया। और जल्दी ही मेरे हाथ उसकी गांड पर पहुंच गए और उसके मेरे लंड पर।

वो मेरी पैंट के ऊपर से मेरे लंड को रगड़ने लगा और मैं उसकी गांड को दबा-दबाकर मसल रहा था। हम दोनों का जोश बढ़ने लगा। मैंने पहली बार किसी को होठों पर किस किया था। जिसका अहसास यहां पर शब्दों में नहीं बताया जा सकता। अलग ही फीलिंग आ रही थी.. मदहोश करने वाली…

गगन ने मेरी जिप खोलकर हाथ अंदर डाल दिया और मेरे लंड को बाहर निकाल लाया और अपने हाथ में लेकर सहलाने लगा। हम अभी भी समूचिंग ही कर रहे थे। गगन ने एकदम से अपनी पैंट का हुक खोला और अंडरवियर समेत पैंट नीचे सरकाते हुए गांड मेरी तरफ कर ली। मैंने उसको पीछे से बाहों में भर लिया और उसने मेरा लंड पकड़कर अपनी गांड के छेद पर सेट करवा दिया और अपना सारा वज़न मेरे लंड की तरफ बढ़ा दिया।

मेरा लंड उसकी गांड में धीरे-धीरे उतरने लगा। ओह्ह्ह… पहली बार का वो अहसास… इतना मज़ा मुझे कभी नहीं आया।
मैंने पूरा लंड उसकी गांड में उतार दिया और उसने मेरे हाथ अपनी छाती पर रखवा लिए और मेरे हाथों को अपने हाथों से पकड़कर अपनी छाती दबवाने लगा। मज़े में मेरी आंख बंद होने लगी, मैंने उसकी गांड में लंड को हल्के-हल्के आगे-पीछे करना शुरू कर दिया।

गांड चोदने का वो मेरा पहला अहसास था। बहुत मज़ा आ रहा था, उसकी गांड अंदर से काफी गरम थी… और लंड बिना किसी परेशानी के धीरे-धीरे, हौले-हौले अंदर-बाहर हो रहा था। मैं तो बस उसकी गांड में झड़ने ही वाला था, लेकिन इससे पहले कि मैं झड़ता गगन ने मेरा लंड गांड से निकलवा दिया और फिर से मुझे समूच करने लगा।

मैं अभी भी सेक्स के लिए तड़प रहा था। फिर से लंड उसकी गांड में डालना चाह रहा था लेकिन वो नीचे बैठ गया और मेरे लंड को मुंह में ले लिया।
उसको चूसने का काफी अनुभव था, मैं अगले ही मिनट उसके मुंह में झड़ गया।

वो फिर खड़ा हुआ और मेरे सोते हुए लंड से अपनी गांड को टच करवाकर अपनी भी मुट्ठ मारने लगा, मैंने उसको पीछे गर्दन पर से चूमना शुरू कर दिया तो उसकी मुट्ठ मारने की स्पीड बढ़ गई। अगले कुछ ही पल में वो भी फर्श पर ही झड़ गया।
हम दोनों शांत हो गए.
उसने ड्रॉअर से एक गंदा सा कपड़ा निकाला और फर्श पर गिरे उसके पानी को पोंछ दिया। अब तक मैंने लंड को अंदर डालकर जिप बंद कर ली थी।

कहानी जारी रहेगी.
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