वासना का मस्त खेल-2

(Vasna Ka Mast Khel- Part 2)

This story is part of a series:

अब क्या होगा? मेरी पिटाई होने में अब तो बस प्रिया‌ के जवाब देने की‌‌ ही देर थी. मुझे मेरी पिटाई होना अब तय ही‌ लग रहा था. मैं विनती भरी नजरों से प्रिया को देख रहा‌ था.

तभी प्रिया ने मेरी तरफ देखा … प्रिया के देखते ही डर के मारे अपने आप ही मेरी नजरें नीची हो गईं और मैं अपनी बगल झांकने लगा.

“वव.वओओओ … म्म्मममउ … मुझे प्रेस से करेंट लग गया!” प्रिया ने घबराई सी आवाज में हकलाते हुए कहा.

प्रिया का जवाब सुनकर मैं चौंक गया और तुरन्त प्रिया की तरफ देखने लगा. अबकी बार प्रिया ने अपनी नजरें घुमा लीं और अपनी मम्मी की तरफ देखने लगी. प्रिया के इस जवाब को सुनकर मुझे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था.

फिर तभी सुलेखा भाभी ने सुमेर भैया की शिकायत करते हुए बोलीं- तुम्हारे पापा को कितनी बार तो बता दिया कि इस प्रेस को सही करवा दो या फिर एक‌ नयी प्रेस खरीद लाओ. मगर उन्हें मेरी सुनने की फुर्सत ही कहां है.

हम दोनों चुप खड़े थे.

सुलेखा भाभी ने फिर कहा- आज रहने ही दे … आज तू प्रेस ही मत कर … कल जब ऑफिस में बिना प्रेस के कपड़े पहन कर जाएंगे ना … तब पता चलेगा. रहने दे प्रेस को … वो वाशिंग मशीन में कुछ कपड़े हैं, उन्हें सुखा कर आ जा और खाना खा ले.
सुलेखा भाभी ने प्रेस को बन्द करते हुए कहा और कमरे से बाहर चली‌ गईं.

मैं प्रिया से कुछ कहता, तब तक प्रिया भी सुलेखा भाभी के पीछे पीछे ही उस कमरे से बाहर निकल गयी.

इसके बाद दिन भर प्रिया से मेरी कोई बात नहीं हुई, एक दो बार हमारा आमना सामना भी हुआ, मगर प्रिया से नजरें मिलाने की मेरी‌ हिम्मत ही‌ नहीं हुई.

अगले दिन कम्प्यूटर कोर्स से आने के बाद दोपहर में मैं अपने कमरे में सो रहा था कि प्रिया मेरे कमरे में आ गयी. प्रिया को देखते ही मैं थोड़ा घबरा सा गया और तुरन्त उठकर बैठ गया, जिससे प्रिया के चेहरे पर हल्की मुस्कान सी आ गयी.
प्रिया ने मेरे पास आकर बताया कि मुझे उसकी मम्मी बुला रही हैं. ये सुनते ही मेरे चेहरे का रंग फीका सा पड़ गया और मैंने हकलाते हुए कहा- क्क्क … क्योंओ?
मेरी घबराहट देखकर प्रिया हंसने लगी और उसने हंसते हुए कहा- घबराओ मत ऐसी कोई बात नहीं है, कोई और काम है उनको.

कल वाली घटना के बाद प्रिया से मुझे इस तरह की बातचीत की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी. खैर मुझमें अब थोड़ा साहस आ गया था इसलिये मैंने प्रिया से पहले तो कल के लिये माफी मांगी और मेरी शिकायत ना करने के लिये उसे धन्यवाद भी कहा.

प्रिया ने ताना सा मारते हुए कहा- अगर इतना ही डरते हो, तो कल तुम में इतनी हिम्मत कहां से आ गयी थी?
मैंने उल्टा प्रिया से ही पूछा- तुमने भी तो उस रात कुछ नहीं कहा था, फिर कल क्या हो गया था तुम्हें?
प्रिया ने हैरान सा होते हुए कहा- क्या बोल रहा है … कौन सी रात? तुम कब की बात कर रहे हो?
मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा- मैं सुमन की शादी में उसी रात की बात कर रहा हूँ, जब तुम‌ रात में मेरी रजाई में सोई थीं.
प्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा- ओ हैलोओओ … बुद्धू चंद … उस रात तुम्हारे साथ मैं नहीं … नेहा दीदी थीं …

झटका लगने की बारी अब मेरी थी. चौंकते हुए मेरे मुँह से निकल‌ गया- क्क्क …क्या?
“हांआआ … क्या तुम्हें नहीं पता है?” प्रिया ने कहा.
“नहीं … लेकिन फिर तुम्हें उस रात के बारे में ये सब कैसे मालूम है?” मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए पूछा.
“बुद्धू … उस रात मैं भी तो उसी कमरे में सो रही थी मगर तुम्हारी और नेहा दीदी की “उह …आह …” ने मुझे सोने ही नहीं दिया. ये कहते हुए प्रिया के चेहरे पर शरारती मुस्कान आ गयी.

“तो फिर उस चेन का‌ क्या हुआ?” मैंने फिर अब प्रिया से पूछा.
“कौन सी चेन?” प्रिया ने फिर से हैरान होते हुए पूछा.
“वही पतली सी चेन, जिसमें दिल‌ के जैसा लॉकेट लगा हुआ था. जब मैं पहले दिन यहां आया था तो तुमने उसे पहना हुआ था … मगर अब उसे पहनना क्यों बन्द कर दिया तुमने?” मैंने पूछा.
“वो तो दीदी की चेन थी, पहले उन्होंने खुद ही मुझे पहनने के‌ लिये दी थी मगर पता नहीं दीदी को क्या हुआ, जिस दिन‌ तुम‌ यहां आये थे उस दिन उन्होंने मुझसे वो वापस ले ली.”
“अच्छाआआआ.”
“तो तुम्हें अभी तक पता ही नहीं था कि उस रात तुम्हारे साथ कौन थी, अब मैं समझी … तुमने उस चेन की पहचान की हुई थी‌ और तुमने उस चेन को मुझे पहने हुए देखकर ये समझ लिया कि उस रात को मैं तुम्हारे साथ थी?”

मैं चूतियों सा पलकें झपका रहा था.

“ओह … अब मैं समझी … तुम‌ पहचान ना जाओ, इसीलिये ही दीदी ने वो चेन मुझसे वापस ले ली.”
प्रिया ने ये सब इस अन्दाज में कहा, जैसे कि वो बहुत बड़ी जासूस हो और उसने कोई बहुत बड़ा केस सुलझा दिया हो.
“मगर तुम्हारा तो ये गलत नम्बर लग गया.” प्रिया ने अब हंसते हुए कहा.

प्रिया से बात करके मुझमें अब फिर से विश्वास आ गया था, मैं अब ये सोच ही रहा था कि सब कुछ मालूम होने पर भी प्रिया ने किसी को कुछ बताया नहीं था. ऊपर से मैंने भी उसके साथ इतना कुछ कर दिया था, फिर भी उसने बिल्कुल भी बुरा नहीं माना, इसका मतलब था कि उसके दिल में भी कुछ ना कुछ तो चल ही रहा है.

ये बात मेरे दिमाग में आते ही मैंने प्रिया का हाथ पकड़ लिया.
“ये क्या कर रहा है … हाथ छोड़ मेरा … नहीं सुधरोगे तुम?” उसने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा.
वो कुछ कहे, उससे पहले मैंने उसे अपनी तरफ खींचकर बांहों में भर लिया.

“अअओय …. छ.छोड़ … मुझे … मम्मी आ जाएंगी … छोओओड़ … मैंने बताया ना कि उस रात दीदी तुम्हारे साथ थीं, ये सब दीदी के साथ ही करना!” प्रिया ने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा.
“तो क्या हुआ, तुम भी तो उसकी बहन ही हो, नेहा‌ नहीं तो तुम ही सही.” मैंने उसके गालों पर अबकी बार प्यार से चूमते हुए कहा.
“च.छ.छोड़ मुझे … कोई देख लेगा … छोओओड़ …”

मुझसे छुड़ाने की कोशिश करते हुए प्रिया ने‌ कहा, मगर मैं कहां मानने वाला था.

“छोड़ता है या बुलाऊं मम्मी को?” कहते हुए सही में प्रिया जोरों से ‘मम्मीईई … ईईई …’ की आवाज लगा दी.
मम्मी का नाम सुनते ही मेरी पकड़ ढीली हो गयी और वो किसी मछली की तरह मेरी बांहों से फिसलकर अलग हो गयी.
“अब क्या हुआ?” उसने शोखी से इतराते हुए कहा.
“चल‌ अब मम्मी‌ बुला‌ रही हैं.” कहते हुए प्रिया कमरे से बाहर निकल‌ गयी.

प्रिया की इस अदा पर मैं मुस्कुराये बिना नहीं रह सका और उसके पीछे पीछे सुलेखा भाभी के पास चला गया.

सुलेखा भाभी ने बताया कि आज शाम को मैं कहीं बाहर ना जाऊं क्योंकि वो सब लोग बाजार जा रहे हैं और यहां पर घरों में चोरी बहुत होती है, इसलिये मुझे घर पर ही रहना है.

इसके साथ साथ ही मुझे एक बुरी खबर भी मिली, प्रिया और उसके भाई कुशल की तो छुट्टियां चल ही रही थीं, अगले दिन से नेहा की भी छुट्टियां होने वाली थीं … इसलिये वो सब अगले दिन ही कुछ दिनों के लिये गांव जाने वाले हैं और उसके लिये ही वो सब बाजार से कपड़े वगैरह खरीदने बाजार जा रहे थे.

यह जानने के बाद मैं मायूस सा हो गया और चुपचाप अपने कमरे में आकर लेट गया.
मेरे सारे सपने मुझे अब बिखरते से नजर आ रहे थे. अभी कुछ देर पहले ही मैं नेहा के साथ साथ प्रिया के साथ भी मस्ती की योजना बना रहा था, मगर उनके गांव जाने की बात जानकर एक पल में ही मेरी सारी योजनाएं धराशाही हो गयी. खैर … मैं कर भी क्या सकता था.

अगले दिन जब मैं कम्प्यूटर कोर्स के लिये निकल रहा था, तब वो सब भी शायद गांव जाने की तैयारी कर रहे थे. शायद बस सुलेखा भाभी ही गांव नहीं जा रही थीं और वो भी मेरे वहां रहने‌ की वजह से बाकी सब गांव जा रहे थे.

उन सब को‌ गांव छोड़कर आने‌ के लिये प्रिया के पापा ने भी ऑफिस से छुट्टी ली हुई थी. मेरी अब ज्यादा किसी से बात करने की या पूछने की हिम्मत नहीं हुई इसलिये मैं चुपचाप अपने कम्प्यूटर कोर्स के लिये निकल गया.

दोपहर को कम्प्यूटर कोर्स से जब मैं वापस आया तो पूरे घर में शांति सी लग रही थी. मुझे घर में बस सुलेखा भाभी ही मिलीं … शायद बाकी सब गांव चले गए थे. पहले मैं जब घर आता था तो उनका घर भरा हुआ सा लगता था, बाकी कुछ हो या ना हो … मगर घर में जब नेहा, प्रिया और कुशल होते थे तो एक रौनक सी रहती थी … इसलिये दिल लगा रहता था. मगर उस दिन खाली खाली घर को देखकर मेरा वहां से भाग जाने को दिल कर रहा था.

उस दिन मेरा दिल नहीं लग रहा था इसलिये मुझे खाना खाने की भी इच्छा नहीं हो रही थी. सुलेखा भाभी ने मुझसे पूछा भी, मगर मैंने ऐसे ही तबीयत खराब होने का बहाना बना दिया और अपने कमरे में आकर लेट गया. उसके बाद पता नहीं कब मुझे नींद आ गयी.

मैं गहरी नींद में सो रहा था कि किसी के जोरों से हिलाने के कारण मेरी नींद खुल गयी. मैंने आंखें खोलकर देखा तो प्रिया का हंसता चेहरा मेरे सामने था. मैंने ये सपना समझा और करवट बदल कर फिर से सो गया. मगर फिर से किसी ने मुझे जोरों से हिला दिया … अबकी बार मैं उठकर बैठ गया और देखा तो सही में मेरे सामने प्रिया ही खड़ी हुई थी. मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था इसलिये मैंने एक बार अपनी आंखें मलकर फिर से उसे देखा. सही में वो प्रिया ही थी.

“क्या हुआ? मम्मी कह रही हैं कि ज्यादा तबियत खराब है तो डॉक्टर से दवा ले आओ!” प्रिया ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.
जैसे कि मैंने उसकी बात सुनी ही नहीं और मैंने प्रिया से पूछा- तत तुम … तो गांव चली गयी थीं ना?
“तुम्हें किसने कह दिया कि मैं गांव चली गयी?” प्रिया ने अब हंसते हुए कहा.
“अरे … बाकी सब गए तो तुम भी तो उनके साथ ही जा रही थी ना?” मैंने कहा.
“नहीं मेरा दिल नहीं लगता गांव में, इसलिये मैं नहीं गयी, मम्मी तुम्हें डॉक्टर से दवा ले आने के लिये कह रही हैं. चलो उठो.” प्रिया ने ये सब अब एक साथ ही कहा.

प्रिया को देखकर मेरे शरीर में अब जान सी आ गयी थी और मेरी नींद भी कोसों दूर भाग गयी.
“मुझे डॉक्टर की दवा की जरूर नहीं है मेरी दवाई तो‌ तुम्हारे पास है, मगर तुम हो कि देती ही नहीं हो.” मैंने अब प्रिया की तरफ देखकर हंसते हुए कहा.
“अच्छा जी …” प्रिया ने कहा.
“हांआंआं … मेरी तो तबियत ही खराब ये सोचने के कारण हो गयी थी कि तुम गांव चली गयी हो.” मैंने उसके हसीन चेहरे को देखते हुए कहा और उसे पकड़ने के लिये धीरे धीरे अपने पैरों को बिस्तर से नीचे कर लिया.
“अच्छा जी … मेरी वजह से या फिर नेहा दीदी की वजह से?” उसने अपने एक हाथ को हिलाकर इशारा करते हुए पूछा.

तभी झटके से उठकर मैंने उसे पकड़ लिया, वो कुछ समझे उससे पहले ही मैंने उसे बांहों में भरकर बिस्तर पर गिरा लिया और उसके नर्म मुलायम कश्मीरी सेब से लाल गालों को चूमने लगा.
“ओययय … छोड़ … छोड़ मुझे …” प्रिया ने कसमसाते हुए कहा और मुझसे छुड़ाने का प्रयास करने लगी. तब तक मैं उसके गालों को चूमते हुए उसके होंठों पर आ गया और उसके शहद से भी मीठे रसीले‌ होंठों को जोरों से चूसने‌ लगा.

मगर तभी बाहर से सुलेखा भाभी की आवाज सुनाई दी‌- तुम‌ आकर यहीं बैठ गयी क्या?
जिससे मैं चौंक गया और मेरी पकड़ ढीली हो गयी. प्रिया ने भी अपनी पूरी ताकत से मुझे धकेलकर अलग कर दिया‌ और मुझसे दूर होकर खड़ी हो गयी. मुझसे छुड़ाकर प्रिया अलग हुई ही थी कि तभी सुलेखा भाभी भी मेरे कमरे में आ गईं.

“आकर यहीं बैठ गयी क्या तुम?” सुलेखा भाभी ने पहले तो प्रिया से कहा और फिर मुझे भी डॉक्टर से दिखाने के लिये कहा, मगर मैंने मना कर दिया.
“नहीं, अब मेरी तबियत ठीक है और मैंने दवा भी ले ली है.” मैंने प्रिया की तरफ देखते हुए कहा.

प्रिया भी मेरी तरफ ही देख रही थी. वो मेरी बात का मतलब समझ गयी थी, इसलिये उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी और शर्माकर उसने नजरें झुका लीं.
“कहां से मिली दवा?” सुलेखा भाभी ने पूछा तो मुझे शरारत सूझ गयी और मैंने प्रिया की तरफ इशारा करते हुए कह दिया कि प्रिया के पास थी.”
“प्रिया? तुम दवा कहां से ले आईं? सुलेखा भाभी ने प्रिया की तरफ देखते हुए कहा, जिससे प्रिया थोड़ा घबरा सी गयी और प्रिया ने हकलाते हुए कहा- व्वव.वव.ओ … म्म.मम्मीई … मेरे पास पहले की रखी हुई थी, जब मैं बीमार हुई थी ना … तब की बची हुई थी.
“ठीक है, मगर ऐसे ही किसी की दवा नहीं खाते हैं.” सुलेखा भाभी ने मुझे हल्का सा डांटते हुए कहा और फिर कमरे से बाहर चली गईं.

सुलेखा भाभी के जाते ही प्रिया ने मुझे आंखें दिखाते हुए थप्पड़ का इशारा किया. मैं उसे अब फिर से पकड़ना चाहता था, मैं धीरे धीरे करके बिस्तर से उठ ही‌ रहा था कि प्रिया समझ गयी और जल्दी से कमरे से बाहर भाग गयी.

रात को खाना खाते समय सुलेखा भाभी ने फिर से मेरी तबीयत के बारे में पूछ लिया. मैं, प्रिया और सुलेखा भाभी साथ में ही खाना खा रहे थे, तबियत के बारे में पूछते ही मेरी नजर अब प्रिया पर चली गयी और मुझे फिर से शरारत सूझ गयी.

मैंने प्रिया की तरफ देखते हुए उनसे कहा कि वैसे तो अब ठीक है … अगर प्रिया रात के लिये भी दवा की एक खुराक और दे देगी, तो सुबह तक बिल्कुल ठीक हो जाऊंगा.”
“कोई बात नहीं, वो दे देगी.” सुलेखा भाभी ने पहले तो मुझसे कहा और फिर प्रिया से कहा- अगर और दवा है … तो दे देना इसे.
“ज्ज …जी …” प्रिया बस इतना ही कहा और मुझ आंखें दिखाने लगी.

खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे में आ गया और प्रिया के बारे में सोचने लगा. मैं सोच ही रहा था कि प्रिया तो लगभग तैयार ही है, बस मुझे ही कोई मौका ही नहीं मिल‌ रहा. तभी मेरे दिमाग में आया कि आज घर पर बस प्रिया और सुलेखा भाभी ही हैं, रात को प्रिया कमरे में भी अकेली ही होगी … तो क्यों ना मैं आज रात में प्रिया के कमरे में ही चला जाऊं?
यह बात मेरे दिमाग में आते ही मैं तुरंत अपने कमरे से बाहर आ गया.

मैंने बाहर आकर देखा तो सुलेखा भाभी रसोई में बर्तन साफ कर रही थीं और प्रिया के कमरे का दरवाजा बन्द था. शायद वो कमरे में ही थी. मैंने अब धीरे से प्रिया के कमरे के दरवाजे को खोलना चाहा मगर दरवाजा अन्दर से बन्द था.

मुझे बस सुलेखा भाभी के सोने का ही इन्तजार था मगर साथ ही ये भी डर था कि कहीं प्रिया ही ना सो जाए. अब क्या करूँ? मैं सोच ही रहा था कि तभी सुलेखा भाभी रसोई के काम निपटाकर बाहर आ गईं और उन्होंने मुझे प्रिया के कमरे के बाहर खड़े देखकर पूछ लिया कि मैं यहां क्या कर रहा हूँ?

मैं थोड़ा घबरा तो गया था. मगर तभी मुझे प्रिया से दवाई लेने की बात याद आ गयी. मैंने उनसे कहा कि वो प्रिया से दवाई लेनी है न.

“वो शायद नहा रही होगी, तुम आराम करो, वो नहाने के बाद दे देगी.” उन्होंने मुझसे कहा और फिर कमरे के बाहर से ही प्रिया को आवाज देकर बताया कि नहाने के बाद वो बाद मुझे दवा दे दे.”
अन्दर से भी प्रिया की आवाज सुनाई दी- जी ठीक है.
मैं अब वापस अपने कमरे में आ गया और सुलेखा भाभी भी अपने कमरे में चली गईं.

सुलेखा भाभी के अपने कमरे में चले जाने बाद मैंने तीन चार बार अपने कमरे से बाहर आकर देखा कि प्रिया के कमरे का दरवाजा खुला या नहीं. मैंने कई बार उसे धीरे धीरे आवाज भी दी मगर उसका कोई जवाब नहीं आ रहा था. मैं अब ज्यादा शोर भी तो नहीं कर सकता था, नहीं तो सुलेखा भाभी के आ जाने का डर था. तीन चार बार कोशिश करने के बाद जब प्रिया ने कोई जवाब नहीं दिया तो थक कर मैं वापस अपने कमरे में आ गया.

मैं अपने बिस्तर पर आकर बैठा ही था कि तभी प्रिया ने मेरे कमरे के दरवाजे पर आकर पूछा- क्या हुआ? क्यों शोर कर रहा है?

उसने नीचे स्कर्ट … स्कर्ट तो नहीं थी वो क्योंकि स्कर्ट घुटनों तक ही लम्बी होती है … मगर वो जो भी था, उसके पंजों तक की लम्बाई का था. उसने शायद घाघरे के जैसा कुछ पहना हुआ था, जो कि काफी खुला हुआ भी था. ऊपर उसने एक ढीली सी टी-शर्ट पहनी हुई थी, जिसका गला कुछ ज्यादा ही खुला हुआ था. शायद उसने अन्दर ब्रा भी नहीं पहनी थी, तभी तो उसकी साँसों के साथ साथ उसके अनार आजादी से ऊपर नीचे हो रहे थे. इन कपड़ों में वो बला की खूबसूरत लग रही थी, जिसको देखकर एक बार तो मैं खो सा गया था.

मगर तभी प्रिया ने तीन चार बार अब चुटकी बजाकर हंसते हुए कहा- ओ … हैल्लोओओओ … क्या हुआ? क्यों शोर कर थे?
प्रिया के चुटकी बजाने से एक बार तो मेरा ध्यान उसके बदन से हट गया था. मगर फिर से मैं उसकी ऊपर नीचे होती चूचियों को देखने लगा और उसकी चूचियों की तरफ देखते हुए कहा कि वो मेरी दवाई का क्या हुआ?

प्रिया ने अब हंसते हुए कहा- तुम्हारे लिये ही दवाई तैयार कर रही थी.
“क्या? मैं कुछ समझा नहीं?” मैंने उसके चेहरे की तरफ देखते हुए कहा.

सही‌‌ में, उस समय मैं उसकी बात का मतलब नहीं समझ पाया था … जो मुझे बाद में समझ आया.

“समझ जाओगे …!” उसने फिर से हंसते हुए कहा.
“क्या समझ जाऊंगा …” ये कहते हुए मैं उसे पकड़ने के लिये उठने ही वाला था कि तभी प्रिया ने हंसते हुए कहा- रहने दे … रहने दे … ये चालाकी, मैं आ रही हूँ वहीं पर!
और सही में वो मेरी तरफ आने लगी.

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कहानी जारी है.

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