कामुकता की इन्तेहा-13

(Kamukta Ki Inteha- Part 13)

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दोस्तो, अब मैं आपको काले के बारे में बता दूं जिससे चुदने की बात मैंने ढिल्लों से कह डाली थी। काले का कद लगभग ढिल्लों जितना ही था, यही कोई साढ़े छह फुट के करीब। रंग उसका ढिल्लों से भी काला था, आंखें बड़ी बड़ी गहरी लाल, ढिल्लों से भी सुडौल और बड़े शरीर का मालिक, देखने में सिरे का बदमाश लगता था और शायद कोई नशा भी करता था, जिसके कारण उसकी आंखें हमेशा चढ़ी रहती थीं।
एक और बात कि ऊपर कमरे में जब मैं हवा में लहराती हुई ढिल्लों से ढिल्लों के डंडे पर अपनी फुद्दी पटक रही थी तो सिर्फ वो अकेला था जो मुझे चुदते हुए देखने नहीं आया था।
दरअसल उसे पहली नज़र देखते ही मेरा दिल उस पर आ गया था और उससे हाथ मिलाते वक़्त मैंने दिल ही दिल में ये कहा था- क्या तकड़ा मर्द है, साला ऊपर चढ़ जाए तो मज़ा आ जाये।
आपको मैं पहले ही बता चुकी हूं कि मुझे भारी और बदमाश किस्म के मर्द पसंद हैं, क्योंकि ये लोग हार्डकोर होते हैं।

खैर गाड़ी में ढिल्लों ने मुझसे हंस कर सवाल किया- साला काला ही क्यों, उसे तो कभी किसी औरत ने पसंद नही किया?
मैंनें जवाब दिया- यही तो उन्हें पता नहीं है! और हां, मुझे सिर्फ काला और तुम चाहिए हो, और लल्ली छल्ली नहीं आना चाहिए।

ढिल्लों ने कोई जवाब नहीं दिया और हंस पड़ा, आते आते उसने एक बड़ी गोली अफीम की निकाली और मुझे थमाते हुए कहा- खा ले इसे, पंगा तूने बहुत बड़ा ले लिया है, हम तो अकेले अकेले ही काफी होते हैं, जब दो हो जाएंगे तो सिर्फ हम ही हम और हमारे लौड़े होगें, न तो तू दिखेगी, और न तेरी फुद्दी और गांड।
मैंने भी गोली खाकर कहा- पता नहीं मुझे हो क्या गया है ढिल्लों! लेकिन देख लेना टांग नहीं उठाऊँगी, नुक़री घोड़ी हूँ, शायद दो सांडों को भी संभाल लूं, बाकी मैदान में आकर पता लगेगा।

ढिल्लों मेरी बात सुनकर हैरानी से मेरा मुंह ताकने लगा, उसको इतना हैरान मैंने पहले कभी नहीं देखा था। खैर इसके बाद कुछ और हल्की फुल्की बातें करते करते हम पैलेस में आ गए जहाँ शादी का समागम जारी था।
और हां, 2-3 घण्टों के बाद ढिल्लों ने मेरी गांड से वो वाइब्रेटर निकाल लिया था।

आते ही मेरी नज़रें काले को ढूंढने लगीं लेकिन काफी देर तक वो मुझे नज़र नहीं आया. ढिल्लों के बाकी दोस्त तो आ गए थे हमारे पास लेकिन वो नहीं आया था।
मैंने बेचैन होकर ढिल्लों के दोस्तों से उसके बारे में पूछ ही लिया कि आखिर वो है कहाँ।
ढिल्लों के पांचों दोस्त हैरानी से मेरा मुँह ताकने लगे और एक ने मुझे पूछ ही लिया- क्यों जनाब, दिल आ गया क्या उस पर आपका?
मैंने थोड़ा शर्मा कर गर्दन झुका ली।
इसका जवाब ढिल्लों ने दिया- हाँ यार, सॉरी, तुम सब लोगों में से उसी पर इसका दिल आया है।

इसके बाद उसके दोस्त मुझे बातों बातों में छेड़ते रहे और मैं बेशर्म रंडियों की तरह हंसती रही. यह पहली बार था कि कोई मुझपर इतनी गंदी टिप्पणियाँ कर रहे हों और मैं उनका मज़ा लेने लग गयी।
अब मैं एक नए और बेहद ज़बरदस्त सफर पर निकल पड़ी थी लेकिन मैं यह किसी मजबूरी में नहीं आ रही थी, मुझे तो चुदाई के नए किले फतेह करने थे।

खैर अगला एक घंटा मैं ढिल्लों और उसके दोस्तों के साथ दारू पे दारू पीती गयी। बुरी तरह नशे में चूर मैंने उसके दोस्तों के साथ सिगरेटें भी पी लीं। नशा अब इतना हो चुका था कि ऊंची एड़ी के सैंडलों के साथ खड़ा होना मुश्किल हो रहा था इसीलिए मैंने ढिल्लों के दोस्त से कार में मेरे बैग में पड़ी अपनी पंजाबी जूती मंगवा कर पहन ली।

अब आधे मेहमानों की नजरें मुझ पर थीं। छोटी सी चोली और बहुत नीचे बंधा हुआ मेरा लहँगा मेरा हल्का सा उभरा हुआ गोरा पेट और मेरी गहरी धुन्नी को नुमायाँ कर रहा था। पीठ पर ऊपर से नीचे तक महज़ एक डोरी थी।

जब मैं कुछ ज़्यादा ही झूमने लगी तो आखिर ढिल्लों ने काले को फोन लगाया और साइड में हटकर उसे सारी बता बताई और फौरन आने को कहा। दस मिनट के बाद मैं काले की फौलादी बांहों में झूम रही थी। कुछ देर के बाद मैं एक नए मर्द का स्पर्श पाकर गर्म होने लगी और किसी की परवाह न करते हुए अपना जिस्म खड़े खड़े ही धीरे धीरे काले के साथ मसलने लगी, और तो मैं क्या कर सकती थी।

मेरी ये हरकतें देख कर ढिल्लों के दोस्त ने कहा- जनाब जी अपना कंट्रोल खो रहे हैं, जा ले जा इन्हें, और हां, काले तू पहले चैक करके लेता है ना, जा चेक तो कर ले।
काला उनकी बात सुनकर मुस्कुराया और मुझे अपनी बाँह में लेकर चलाने लगा। जाते जाते मैंने उसे चेक करने का मतलब पूछा तो उसने बताया कि वो पहले माल अच्छी तरह चेक करता है और फिर पसंद आये तो लेता है वरना नहीं।

मैं उसकी बात सुनकर हैरान परेशान हो गयी। परेशान इसलिए कि अगर मैं पसंद न आई तो मेरे अरमान मिट्टी में मिल जाएंगे। रात के 10 बज चुके थे। काला मुझे चलाते हुए बाहर ले गया और सामने वाली सड़क पार करते ही उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया और सामने खेतों में ले गया। एक अंधेरी सी जगह देखी, मुझे नीचे उतारा और इससे पहले कि मैं कुछ सोचती समझती, लहँगा और चोली मेरे जिस्म से अलग हो चुके थे और पता नहीं उसने कहाँ फेंक दिए थे, ब्रा और चड्डी तो मैंने पहनी ही नहीं थी, इसलिए सब मैं अल्फ नंगी उसकी बांहों में थी।

उसने खुद अपने कपड़े नहीं उतारे और ऐसे ही मेरे मुंह में अपनी जीभ डाल कर मुझे ज़ोर से चपर चपर करते हुए पीने लगा, उसके हाथों में मेरा पिछवाड़ा था। 5-7 मिनट के अंदर ही मैं बुरी तरह कामवासना में तपने लगी।

अचानक काले ने अपना हाथ मेरे पिछवाड़े पर फेरते फेरते मुझे ऊपर उठा लिया और मेरी गांड में दो सुखी उंगलियां जड़ तक पिरो दीं। इससे पहले कि मुझे कुछ समझ आता उसके हाथ दूसरी दो उंगलियां मेरी फुद्दी में थीं। जब उसने गांड में उंगलियां डाली थीं तो मुझे ऐसा लगा जैसे गांड में से खून निकल आएगा। और जब उसने अगले ही पल मेरी फुद्दी में भी उंगलियां पिरो दीं तो मुझे दर्द और मज़े के अजीब अहसास एक साथ हुए जिसे मैं बयान नहीं कर सकती।

अगले पर ही वो बुरी तरह से इंजन की रफ्तार से उंगलियां बाहर निकाल निकाल कर अंदर पेलने लगा। पोज़िशन ये थी कि ऊपर से मैं उसकी गर्दन के साथ लिपटी हुई और नीचे से मैं उसके पंजे के भार पर थी जिसकी उंगलियां तेज़ी से मेरे दोनों छेदों में अंदर बाहर हो रहीं थी ‘फच … फच … फच … फच … फच और फचचच!
मैं झड़ने वाली थी तो एकदम उसने मुझे मेरी टांगों पर खड़ा कर दिया।

दोस्तो, मैं इतने ज़ोर से झड़ने लगी कि कांपती हुईं टांगों के साथ ‘हूँ … हूँ …’ करते हुए मेरी दो आधी बैठकें लग गईं और मेरी टाँगें गीली हो गईं।
यह देखकर उसे पता नहीं क्या तसल्ली मिली और ‘ठीक है.’ कहते हुए उसने मुझे अपनी लोई पे लपेट दिया और मुझे उठा कर वापस चलने लगा।

ढिल्लों अपनी गाड़ी समेत बाहर ही खड़ा था और अगले ही पल मैं मादरजात नंगी सिर्फ एक लोई में ढिल्लों के साथ फ्रंट सीट पर बैठी थी और काला हब्शी (मैं उसे इसी नाम से पुकारती हूँ) पीछे बैठा था। गाड़ी हवा को चीरती हुई बढ़ने लगी।

कुछ देर के बाद गाने बंद करा कर अचानक काला बोला- ढिल्लों यार, बड़ा करारा माल लाया है इस बार, इसमें तो आग ही बड़ी है.
इस बात पर ढिल्लों ने काले को पूछा- तूने साले इसे भी झड़वाया है ना, क्यों अब पता लग गया न कि मैं झूठ नहीं बोल रहा था।
काले ने कहा- झड़ने के वक़्त साली की सारी जान फुद्दी में आ गयी थी, कमाल की बात है, लेकिन तूने तो अच्छी सर्विस कर रखी है इसकी! दो उंगलियां घप्प से चढ़ गयीं थी, फिर इसे मेरी क्या ज़रूरत है?

ऐसा नहीं हो सकता था कि ढिल्लों ने उसे मेरी ख़ाहिश बताई न हो, लेकिन काला अब बातों बातों में मज़े ले रहा था. मुझे भी उन दोनों की बातचीत सुनकर बहुत मज़ा आ रहा था इसलिए मैं चुपचाप सुनती रही।

काले की बात के जवाब में ढिल्लों ने कहा- यार, ये पूरा मज़ा लेना चाहती है, मैंने 2-3 बार वाइब्रेटर गांड में घुसा कर फुद्दी मार दी। अब इसे असल लौड़े की ज़रूरत है।

इसके बाद काले ने मुझे मुखातिब होकर कहा- क्यों जानेमन, खुद भी कुछ बोलो?
मैंने थोड़ा शर्मा कर कहा- यार, तुम दोनों को पता तो है सब कुछ, अब मैं क्या बोलूं? और यार तुम तो मेरे कपड़े भी वहीं खेतों में फेंक आये, अब मैं पहनूँगी क्या?
काले ने जवाब दिया- पहली बात तो तुझे ज़रूरत ही नहीं पड़ने वाली कपड़ों की, फिर भी मैं तेरे लिए कपड़े लेने ही गया था।
मैंने काले से कहा- लाओ दिखाओ तो सही क्या लाये हो?

काले ने पीछे से बैग उठा कर मुझे पकड़ा दिया, खोल कर देखा तो उसमें एक जीन्स, टीशर्ट, एक बड़े बड़े जूतों का जोड़ा और एक बहुत-बहुत छोटी काले रंग की ब्रा पैंटी थी। इसके इलावा एक गर्म जैकेट थी।
सारे कपडे बेहद महंगे यानि कि ब्रांडेड थे। दोस्तो, ब्रा-पैंटी के बारे में बता दूं कि ब्रा झीने काले कपड़े की थी, जिसे अगर मेरे जैसी औरत पहन ले तो सिर्फ 25% मम्मे ही ढके जाएं, ऊपर से उसके कंधे भी नहीं थे यानि कि बस पीछे बांधने के लिए एक डोरी थी। पैंटी का तो नाम ही क्या लेना, सिर्फ 2 डोरियां और गांड और फुद्दी ढकने के लिए बड़ी मुश्किल से लगा काला झीना कपड़ा। वैसे मुझे यकीन नहीं था कि वो मेरे दोनों छेदों को ढक पायेगा।

तभी काले ने मुझसे पूछा- क्यों ठीक है ना?
मैंने थोड़ा झेंप कर कहा- हां बाबा, ठीक है।

इसके बाद काले ने पीछे बैठे बैठे तीनों के लिए एक पेग बनाते हुए मुझे पीछे की सीट पर बुलाया। क्योंकि मैं पहले ही काफी पी चुकी थी इसलिए मैंने पीने में न नुकर की तो काले ने कहा- साली पी ले, पहला राउंड पूरे नशे में ही पार कर सकती है, तुझे पता नहीं है तेरी मां चुदने वाली है कुछ देर में।
मुझे इस बात पे थोड़ा गुस्सा आया लेकिन आने वाले वक्त से अनजान मैंने भी एक डायलॉग चेप दिया- मां तो तुम दोनों की चोदूंगी आज मैं … वो भी अकेली।

काला और ढिल्लों इस बात पे ज़ोर ज़ोर से हंसे।

तभी मैं अचानक उठकर उकड़ूं पकड़ूँ होते हुए पीछे जाकर काले से सट कर बैठ गयी।

“हीटर तेज़ कर दे ढिल्लों!” ये कहकर उसने मुझे झफ्फी में लेते हुए मेरी लोई उतार दी और घुटनों के नीचे और कमर के पीछे बाहें डाल कर उठा कर अपनी मुझ अल्फनंगी को गोदी में बैठा लिया। बड़ी गाड़ी होने के कारण मैं आसानी से काले की गोद मे फिट हो गयी।

क्योंकि रात को काले शीशों में भी बाहर की रोशनी अंदर आ सकती है इसलिए ढिल्लों ने सभी शीशों को ढक दिया था सिवाए बस ड्राइवर साइड के आधे शीशे को छोड़कर। तो जनाब ढिल्लों ने गानों की आवाज़ तेज़ कर दी और पीछे होंठों से होंठ और जीभ से जीभ मिल गई।
यार किस करने का तरीका तो काले का भी जबरदस्त था, 2 मिनट के अंदर ही मैं पूरी तैयार हो गयी। उसे किस करते करते मैं खुद उसके कपड़े उतारने लगी क्योंकि मुझे अब जल्दी से जल्दी उसके लौड़े के दर्शन करने थे।

तो जनाब सबसे पहले मैंने उसका सफ़ेद कुर्ता उतारा, वाह, क्या भरा हुआ मर्द था, बार बार उसकी छाती, पीठ और डौलों पर हाथ फेरने का दिल कर रहा था और मैंने फेरे भी, यहां तक कि उसके बलशाली, हट्टेकट्टे जिस्म को देख कर मैंने उसका पजामा उतारने में भी जल्दी न की।

खैर 4-5 मिनट मैं इसी तरह मैं उससे लिपटती चिमटती रही। मेरा जिस्म अब काम और हीटर की वजह से तपने लगा था। अब मुझे मुंह में लण्ड चाहिए था। इसलिए मैंने जल्दी जल्दी हड़बड़ाहट में उसका उसके पजामे का नाड़ा उतारा और उसका अंडरवियर नीचे खींच दिया।
अगला नज़ारा देख कर मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया- हाय मेरी माँ!

दोस्तो, इतना सुंदर लौड़ा तो ढिल्लों का भी नहीं था। हां उसके लौड़े से लंबाई में एक-आध इंच था लेकिन मोटा उससे भी ज़्यादा था। बड़ा सारा सुपाड़ा, जिसके आसपास ऊपरी मांस नाम की कोई चीज़ नहीं थी। अच्छी तरह साफ सुथरा, बाँह जितना मोटा खूबसूरत लौड़ा।
उसको निहारने के लिए मैं एकदम रुक गयी तो मेरे पिछवाड़े पर आज़ादी से धीरे धीरे हाथ फेरते हुए काले ने मुझसे पूछा- क्यों, कैसा लगा हथियार?
मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और न ही उसके पूर्ण तौर पर खिले हुए लौड़े को हाथ में पकड़ा।

मैंने अपना मुंह पूरी तरह खोला और उसके लौड़े को मुंह में 3-4 इंच तक लिया और इसी तरह उसे चूसने की कोशिश करने लगी। बेहद गर्म, मुलायम और तगड़ा लौड़ा था। मोटाई ज़्यादा होने के कारण उसे मुँह में लेकर चूसना मुमकिन नहीं था फिर भी मैंने 1-2 मिनट उसे मुंह में ही रखा। जब जबड़ा दर्द करने लगा तो बाहर निकाला और फिर आराम से जीभ और होंठों से चपर चपर चूसने लगी।

मुझे उसका लौड़ा इतना पसंद आ गया था कि 8-10 मिनट अपनी सुधबुध खोकर उसे चूसने चाटने में मस्त रही।

अचानक से क्या हुआ कि काले ने मुझे उठाकर नीचे ले लिया और मेरा मुँह सीट पर सट गया। पीछे मेरा पिछवाड़ा गाड़ी के दरवाज़े के साथ मिल गया और टाँगें ऊपर छत की तरफ हो गईं। हिलने की कोई गुंजाइश नहीं बची थी।

काले ने इसी तरह अपना आधा गीला लौड़ा मेरे मुंह में डाला और दे दना दन घस्से मारने लगा। वाक़ई ही मेरी माँ चुद रही थी। मज़ा अब दर्द में तब्दील हो गया, आंखें बाहर को आने लगीं। मेरा मुँह ज़िन्दगी में पहली बार इतना खुला था। अगला वार असहनीय था, उसने पूरी बेदर्दी से एक तेज़ घस्सा मारा और लौड़ा सारी हदें तोड़ता हुआ गले तक घुस गया। आधा मिनट रुका और फिर एक तेज़ घस्सा मार दिया।

मेरी क्या हालत थी ये आप समझ सकते हैं, मैं कुछ नहीं कर सकती थी कुछ भी नहीं, मेरी बांहों तक को उस वहशी ने जकड़ रखा था। ऊपर से मुंह बंद भी नहीं कर सकती थी कि कहीं मेरे दांत लौड़े पर न गड़ जाएं। मेरी आंखों से पानी की धार बह निकली और मैं अपने होश गंवाने लगी थी।
तभी ढिल्लों की एक ऊंची आवाज़ आई- ओये काले, आराम से साले, मार डालेगा क्या, साले बहुत काम लेना है इससे अभी!

एकदम काले को मेरी हालत पर ध्यान आया तो उसने झटसे अपना लौड़ा बाहर निकाल लिया। मैंने चीखने की कोशिश की लेकिन मेरे मुंह से आवाज़ नहीं निकली। अभी मुझे कुछ सांस आयी ही थी लौड़ा फच से मेरे गले तक पहुँच गया। काले ने 2-3 खूँखार घस्से मारे उसका वीर्य सहजे सहजे गले से नीचे उतरने लगा।

इसी तरह वो वहशी 2-3 मिनट मेरे गले में झड़ता रहा। जब उसे महसूस हुआ कि अब कोई बूंद भी वीरज की बाकी नहीं बची है तो लौड़ा बाहर निकाल लिया।
मैं हैरान-परेशान उसी तरह लेटी रही, उठने की हिम्मत नहीं थी। मैंने खांसने की कोशिश की कि शायद वीर्य बाहर आये लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उसका बहुत सारा वीरज तो पेट में चला गया था और दोस्तो ऐसा भी पहली बार हुआ था।

गनीमत ये रही कि काला मेरे मुंह में नहीं झड़ा नहीं तो शायद मुझे उल्टी आ जाती। मेरे मुंह में तो वीरज का महज़ हल्का सा स्वाद था जिसे मैंने कुछ देर बाद पानी पीकर दूर कर लिया। अब तक मेरी गुस्सा हवा हो गया और मैंने काले से शिकायत की- यार, चूस तो रही थी, ये करने की क्या ज़रूरत थी?
उसने कहा- तेरा जिस्म और भर जाएगा, ऐसे ही पीया कर माल।

दोस्तो, उसकी इस एक लाइन ने मेरी अगली सारी जिंदगी बदल दी थी क्योंकि इसके बाद मुझे वीरज गले में उतारने की आदत बन गयी। उसे चाट कर पीना मेरे लिए तो मुमकिन नहीं था इसलिए मैं अब लौड़े को पूरा गले तक उतार तक झड़ाती हूँ या अपने यारों से कह देती हूं कि वो झड़ते वक़्त लौड़ा गले तक पेल दें।

खैर ज़िन्दगी का ये तजुर्बा भी मुझे नया और सुहावना लगा था।

रात के 12 बज चुके थे, मैं अपने 2 शानदार और जानदार यारों के साथ गाड़ी में नंगी बैठी थी। अब तो मैं 2-2 लौडों से चुदने के बेताब हो चुकी थी लेकिन वो दोनों जल्दी नहीं कर रहे थे, पता नहीं क्यों?

आपकी अपनी रूपिंदर कौर की हॉट चुदाई कहानी जारी रहेगी.
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