मेरे गांडू जीवन की कहानी-14

(Mere Gandu Jiwan Ki Kahani- Part 14)

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अभी तक इस गे सेक्स स्टोरी में आपने पढ़ा कि रवि की तलाश में हिसार जाकर मैं संदीप के साथ बाइक पर जाखोद खेड़ा गांव की तरफ जा रहा था. रात हो चुकी थी. हम पहुंचने ही वाले थे लेकिन संदीप मुझे नेवली खुर्द गांव की तरफ एक सुनसान रास्ते पर वीराने में एक कोठरी में ले गया जहाँ पर उसके दो दोस्त जग्गी और राजू पहले से ही दारु की पी रहे थे. जग्गी ने मेरे मुंह में लंड दिया और पीछे से राजू और संदीप ने एक साथ अपने लौड़े मेरी गांड में धकेल दिये, मैं दर्द के मारे बेहोश हो गया.
और जब आंख खुली तो सुबह के 3.30 बज चुके थे. किसी तरह मैंने खुद को संभाला और उठकर चला तो चक्कर आ गया, एक-एक कदम चलना जैसे घायल गांड में जैसे नमक छिड़के जाने का अहसास करा रहा था. सामने मेन रोड किलोमीटर भर दूर था. शरीर और दिमाग में जितनी ताकत थी मैंने सारी एक साथ समेटते हुए आँसू पौंछे और मेन रोड की तरफ चल पड़ा.

नेवली खुर्द के मेन रोड तक पहुंचने के बाद मैं जाखोद खेड़ा की तरफ जा रहे हाइवे की तरफ चल पड़ा.
अब तक गांड का दर्द कुछ कम हो गया था और अंदरूनी हौसले ने कदमों की तेजी को सहारा देते हुए उनमें जान फूंक दी थी.

जल्दी ही मैं जाखोद खेड़ा की तरफ जा रही सड़क पर पहुंच गया लेकिन सुबह के 4.30 बजे का टाइम था, सड़क पर ट्रकों के सिवा और कोई वाहन नहीं चल रहा था. मैंने सोचा अगर किसी ट्रक वाले से लिफ्ट मांगी तो फिर कोई गांड मार लेगा क्योंकि अब कोई दर्द झेलने की हिम्मत ना तो दिल में ही बची थी और ना ही गांड में… इसलिए मैंने पैदल चलना ही बेहतर समझा.

चलते-चलते जाखोद खेड़ा का साइन बोर्ड आ गया और उस पर लिखा था- 2 किलोमीटर.

सुबह के 5.30 बज चुके थे और सूरज आसमान में फिर से अपनी लाल रोशनी बिखेरता हुआ चमकने की तैयारी में था. गांव के लोग खेतों की तरफ टहलते आते हुए दिखाई दे रहे थे. कोई पशुओं के लिए बुग्गी में चारा लेकर जा रहा था तो कोई गेहूँ की फसल की कटाई के बाद भूसे से भरी हुई ट्रॉली को ट्रैक्टर से खींचकर ले जा रहा था.

गांव की सीमा में प्रवेश करने के बाद मैंने सोचा कि मैं यहाँ तक पहुंच तो गया लेकिन रवि को ढूंढूंगा कैसे… मैं तो उसके नाम के सिवा कुछ भी नहीं जानता.

लेकिन हरियाणा के गांवों की एक खास बात ये होती है कि यहाँ के लोग गांव के बाकी सभी लोगों के बारे में जानकारी रखते हैं कि कौन किसका बेटा है, कौन किसका दादा है, किसका परिवार कितना बड़ा है, किसके कितने खेत हैं और किसकी कितनी भैंस हैं.
गांव में किसी से भी पूछो तो सबका बायोडेटा निकलकर आ जाता है.

मैंने भी एक राह चलते अधेड़ उम्र के आदमी से पूछा- अंकल, मुझे रवि के घर जाना है.
उसने कुर्ता पजामा पहना हुआ था, शरीर से तगड़ा था और बड़ी-बड़ी मूछें जो उसके होठों को ढकती हुई नाक के दोनों ओर से उसके गालों की तरफ मुड़ी हुई थीं.

उसने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और बोला- कित तै आया सै बेटा (कहाँ से आया है बेटा)
मैंने कहा- मैं बहादुरगढ़ से आया हूँ.
वो बोला- तो फिर ये शर्ट कैसे फट गई?
अब मेरी हवा निकल गई… इसको क्या जवाब दूं. जल्दी से दिमाग घुमाया और बोला- रात को टैम्पो वाले से लिफ्ट ली थी जब सुबह नीचे कूदने लगा तो उसके हुक में उलझ कर फट गई.
वो बोला- अच्छा… तो आराम से देखकर उतरना चाहिए था… चोट-फेट लग जाती तो!

मैंने मन ही मन कहा- चोट तो बहुत गहरी लगी है लेकिन कहाँ लगी है ये नहीं बता सकता… खैर!
मैंने उसको और कुछ पूछने का मौका न देते हुए कहा- आप मुझे रवि का घर बता सकते हो?
उसने कहा- कौन सा रवि… गांव में तो कई रवि हैं… किसके घर जाना है तुझे?
मैंन कहा- रवि जाखड़
वो ठहाका मारकर हंसा और बोला- बेटा गांव में सारे ही जाखड़ हैं… ये जाखड़ का ही गांव है.

मैंने कहा- आप ये पर्ची देख लो, उसने यही दिया था मुझे.
उसने कहा- भाई मन्नै तो पढ़ना कोनी आंदा( मुझे पढ़ना नहीं आता)
मैंने कहा – मैं पढ़कर बताता हूँ. इस पर लिखा है- जाखोद खेड़ा, रामदेव मंदिर के पास!
वो बोला- अच्छा… अच्छा… तू रामबीर के छोरे रवि की बात कर रहा है.
मैंने भी उसकी हाँ में हाँ मिलाई और कहा- हाँ, हाँ वही!

वो बोला- रेलवे लाइन पार करके सीधे हाथ को एक रोड जा रहा है उस पर सीधे-सीधे चला जाइयो… जब तक मंदिर ना आए.. चलते रहियो.
मैंने कहा- धन्यवाद अंकल जी…
कह कर मैं आने जाने वालों से रेलवे लाइन पूछता हुआ उसके बताए रास्ते पर चलने लगा.

चलते-चलते मैं पानी के तालाब के पास पहुंच गया जहाँ पर गांव के लोग अपनी भैंसों को नहलाने के लिए ला रहे थे… कोई नहला रहा था तो कोई नहलाकर वापस जा रहा था, कोई भैंस की पीठ पर बैठकर तालाब के पानी में भैंस की सवारी कर रहा था.
मैंने सोचा यहाँ पर किसी से पूछ लेता हूँ, मैं पूछने के लिए एक लड़के के पास गया, वो तालाब के किनारे बैठा हुआ अपनी भैंसों को हाँक रहा था जो पानी में दूसरी भैंसों के साथ लड़ाई कर रही थीं. उसका चेहरा तालाब की तरफ था और पीठ मेरी तरफ. शरीर की बनावट में काफी चौड़ा और भरे हुए शरीर का था जैसे अक्सर जाट होते हैं.

मैंने पीछे से जाकर पूछा- भैया, रवि जाखड़ का घर किस तरफ है?
आवाज़ सुनकर उसका मुंह मेरी तरफ घूमा तो मेरी आंखों में खुशी और गम के आंसू एक साथ पलकों तक भर आए लेकिन नीचे नहीं गिरे… मैं उसकी आंखों में देख रहा था… वही मुस्कुराता चेहरा, माथे पर बिखरे हुए बाल, लाल-लाल रसीले होंठ और उन पर फैली वही कातिलाना मुस्कान… जिसको पहली बार देखते ही मैं लट्टू हो गया था.

दिल की धड़कन धक-धक करने लगी थी… रवि मेरी आंखों के सामने था.

मुझे देखकर उसके मुंह से निकला- अरै हिमांशु.. तू… इतनी सुबह… और यो के हाल बना रखा है… या बुशट कुकर पाट गी(ये शर्ट कैसे फट गई)
उसके होठों से मेरा नाम निकलते ही मेरी पलकों में बंधी आंसुओं की झड़ी चेहरे पर धार बनकर मेरी फटी-शर्ट को भिगोने लगी.

मुझे रोता देखकर वो जैसे ही खड़ा हुआ मैं उसके सीने से लिपट गया. उसकी छाती से लगकर दिल में जैसे दर्द का सैलाब जो रात भर की दरिंदगी के बाद किसी तरह रोके रखा था वो अपने प्यार के सीने से लगते ही वो बांध टूट गया और मैं फूट-फूट कर उसके सीने से लगकर जी भर कर रोया.

वो हैरान था… वो बोलता रहा- अरै के होया… (अरे हुआ क्या)… कुछ बताएगा या ऐसे ही रोता रहेगा?
वो बोलता रहा और मैं रोता रहा…

फिर उसने अपने मजबूत हाथों से मुझे अपने से अलग किया और पूछा- बावला हो गया के.. (पागल हो गया है क्या…) क्यूं जनानियों की ढाल रोण लाग रया है (क्यूं लड़कियों की तरह रो रहा है)…
मेरे मुंह में जैसे शब्द ही नहीं थे… क्या बताऊं और क्या नहीं.

वो बोला- तू एक काम कर, यहाँ बैठ पहले आराम से… शांत हो जा… मैं ज़रा भैंसों को बाहर खदेड़ कर लाता हूँ.
कहकर वो अपनी भैंसों को खदेड़ने नीचे तालाब की कुछ सीढ़ियों पर पानी में उतर गया और अपनी दो भैंसों और उनके दो छोटे बच्चों के साथ जल्दी ही बाहर किनारे पर आ गया.
उसने जांघों तक लाल रंग की ढीला कच्छा (अंडरवियर- शॉर्ट्स) पहन रखे थे और ऊपर एक काले रंग की टी-शर्ट.
पानी में भीगने के कारण उसके गीले कच्छे में उसका लंबा मोटा लंड दाएं से बाएं और बाएं से दाएं डोलता हुआ अगल से दिखाई दे रहा था.

लेकिन मेरे अंदर अभी हवस जैसी कोई भावना नहीं आ रही थी. वो अपनी भैंसों को निकाल कर जोहड़(तालाब) के बाहर आ गया, चप्पलें पहनीं और हाथ में डंडा लेकर भैंसों को हाँकते हुए मुझसे बोला- चल घर… अब यहीं बैठा रहेगा?
मैं उदास सा चेहरा लेकर उसके पीछे-पीछे चल दिया.

पास में ही रामदेव मंदिर था और उसी के पास थोड़ी दूर पर उसका घर… घर के साथ में ही एक बरामदा था जिस पर लोहे के गजों का बना हुआ गेट लगा हुआ था. वो हाँकता हुआ भैंसों को अंदर ले गया. जैसे अक्सर पशुओं के लिए अलग से बांधने की जगह होती है वो जगह कुछ ऐसी बनी हुई थी. मैं भी उसके पीछे-पीछे गेट के अंदर चला गया. उसने भैंसों के चारा डालने वाली जगह पर बंधीं बेलों को दोनों भैंसों के गले में डालते हुए उनको खूंटे से बांध दिया.

बरामदे में मैं उसके पीछे खड़ा हुआ उसको देख रहा था.
बांधने के बाद उसने डंडा एक तरफ फेंका और मुझे अपने पास बुलाने का इशारा किया. साथ में ही भैसों का भूसा पड़ा हुआ था और वो जगह इस तरह से बनी थी कि मेन गेट से सीधा कुछ दिखाई नहीं देता था.

अपने पास बुलाकर वो उसी जगह की तरफ थोड़ा अंदर की ओर जाकर खड़ा हो गया. मैं उसकी ओर कदम बढ़ाते हुए देख रहा था कि उसका लंड उसके लाल ढीले कच्छे में तनना शुरु हो गया है और ऊपर उठता हुआ सा दिख रहा है. वो दोनों हाथ क्रॉस करके अपने भारी से डोलों पर रखे हुए लंड को थोड़ा आगे की तरफ निकाले अपनी कातिल मुस्कान से मुझे देख रहा था.

मेरे पास पहुंचते-पहुंचते उसका लंड लगभग आधा तन चुका था जो कपड़े के अंदर किसी केले की शेप जैसे लग रहा था. मेरे पास जाते ही उसने मुझे अपनी ओर खींच लिया और मेरा बैग नीचे गिराते हुए अपने दोनों हाथ मेरी कमर के दोनों ओर से ले जाते हुए मेरी गांड पर रख कर मुझे अपने बदन से लगा लिया.
मेरे लंड वाला भाग उसके लगभग पूरे तन चुके लंड से जाकर सट गया. उसके मजबूत हाथ गांड पर लगते ही जैसे जन्नत का सुकून सा महसूस हुआ… और आगे से उसके लंड का टच होना इस अहसास को चौगुना कर रहा था.

इसी पोजिशन में मुझे अपने जिस्म से चिपकाते हुए उसने अपने रसीले होंठ मेरे चेहरे के पास लाते हुए धीरे से पूछा- और सुना जान… क्या हाल हैं तेरे… तेरी गांड को याद कर करके मैंने बहुत बार अपना कच्छा खराब किया है.
उसके बदन के अहसास से मैं सारा दुख भूलकर उसके लाल-लाल होठों की मुस्कान में खो गया… कभी उसके होठों को देखता तो कभी उसकी मोटी मोटी काली नशीली आँखों में… उसके हाथ मेरी गांड पर धीरे-धीरे फिरने लगे जैसे रात भर चुदी गांड को मलहम लगा रहा हो.
उसके लंड वाला भाग मेरी जांघों में धीरे-धीरे अंदर की तरफ बढ़ने लगा. उसके हाथों की छुअन से मेरी जांघें फैलने लगीं और गांड खुलने लगी. उसका लंड तनकर मेरी नाभि से टकराने लगा और मेरे हाथ उसकी मजबूत कमर पर जाकर कस गए.

मैं उसके बदन की गर्मी में मदहोश होने लगा… मेरी आंखें बंद हो गईं… वो धीरे-धीरे अपने लंड को मेरी नाभि पर रगड़ने लगा. मैंने उसकी छाती पर टी-शर्ट के बटनों में अपनी नाक को ले जाकर गहरी सांस भरते हुए उसको सूंघा और अपना सिर उसके सीने पर रख दिया और उसकी छाती को चूमने लगा. उसके बदन की खुशबू मेरे अंदर तक जाने लगी… वो अपनी कमर से मेरे हाथ एकदम से हटाते हुए मुझे पलटा और कच्छा में खड़ा लंड मेरी गांड पर लगाते हुए पीछे से अपने दोनों हाथों से मुझे कवर करते हुए मेरी छाती पर लाकर मेरी निप्पलों को टटोलने लगा. धीरे-धीरे लंड को गांड पर रगड़ते हुए वो मेरे निप्पलों को मसलने लगा.

मेरी हवस में पूरी आग लग चुकी थी और अपनी घायल गांड में उसका लंड लेने के लिए मैं वहीं पर खुद बेचैन होने लगा.

आगे की गे सेक्स स्टोरी जल्द ही लेकर लौटूंगा…
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