बेइन्तिहा मुहब्बत

दोस्तो, मैं अर्पित एक बार फिर से आप के पास अपनी जिंदगी के कुछ यादगार लम्हे बांटने आया हूँ…

आप सबने मेरी पिछली कहानियों में मेरे पहले प्यार के बारे में पढ़ा और मुझे ऐसे बहुत सी मेल मिली जिनमें आगे की दास्ताँ के बारे में पूछा गया… तो चलिए एक बार फिर आप सब को लेकर चलता हूँ अपने उन सुहाने दिनों में…

दोस्तो, इशानी की बाहों में पहली बार मैंने, प्यार क्या होता है, यह जाना… जहाँ एक तरफ औरत और मर्द के रिश्ते की समझ बनी, वहीं दूसरी तरफ दो दिलों के मेल को भी समझा…

मैं और इशानी एक दूसरे से बेइन्तहा मोहब्बत करने लगे थे… सच ही कहा गया है कि दो जवान जिस्मों में लगी आग पूरे कायनात को झुलसाने का माद्दा रखती है… और हमारी यह आग सिर्फ जिस्मानी नहीं थी बल्कि रूहानी भी थी… हम दो जिस्म एक जान हो चुके थे… हम दोनों को एक दूसरे के अलावा कुछ नहीं सूझता था… एक दूसरे की आँखों में खुद को देखना, एक दूसरे की धड़कनों को महसूस करना, सिर्फ खुशबू से ही पहचान लेना, एक दूसरे का ख्याल रखना और हमेशा साथ रहने की कोशिश करना… ये वो चीज़ें थी जो हम दोनों की जरूरत बन चुकी थी…

सुबह सबसे पहले मैं इशानी का ही चेहरा देखता था और यह बात उसे बहुत अच्छी तरह से पता थी, रोज़ सुबह मेरे कमरे में चाय लेकर वही आती थी और मेरे दिन की शुरुआत एक खूबसूरत चुम्बन से होती थी… माँ और पिता जी के घर पर होने की वजह से हमें एक-दूसरे के जिस्म में समाने का मौका नहीं मिल पा रहा था… लेकिन हमारा प्यार सिर्फ जिस्मानी रिश्ते तक ही सीमित नहीं था… जिस्मानी रिश्ता तो इस बात का सबूत था कि हम एक दूसरे पर अपना सब कुछ लुटा सकते हैं…

एक दिन मैं इशानी के कमरे में गया तो देखा कि वो कुछ लिख रही थी..

मैंने उससे पूछा तो उसने कहा- जिंदगी के इन खूबसूरत पलों को अपनी डायरी में छुपाने की कोशिश कर रही हूँ ताकि जब तुम चले जाओ तो मैं इन्हें पढ़-पढ़ कर अपना सारा वक्त इन बीते दिनों में ही बिता सकूँ क्योंकि अब तुम्हारे बिना एक पल भी जीना मुश्किल है अर्पित… मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ..

यह सुनकर मैं बोला- इशानी, आज तक जिस प्यार से मैं महरूम रहा, वो प्यार तुमने मुझे दिखाया है, दिया है… मैं भी तुम्हारे बिना नहीं जी सकता…
और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए…
उसे चूमने के बाद मैं जाकर उसके बिस्तर पर बैठ गया… इशानी उठकर मेरे पास आ गई…
मेरे पास आते ही मैंने फिर से उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसे चूमने लगा…

जितनी बार भी मैं उसे चूमता था मुझे लगता था कि यह पहली ही बार है… गज़ब की कशिश थी उसके होंठों में और इशानी बहुत ही कामुक चुम्बन करती थी…
मैं धीरे धीरे उसकी गर्दन और कानों को चूमने लगा..
इशानी और कस कर मुझसे लिपट गई… उसके बदन की गर्मी मैं कपड़ों के ऊपर से ही महसूस कर रहा था… मैंने अपना हाथ उसके वक्ष पर रख दिया और उसके उभारों को धीरे धीरे दबाने लगा… सच बताऊँ तो चुम्बन के साथ स्तनों को दबाना और सहलाना मुझे बहुत अच्छा लगता है और इशानी को भी यह पसंद था… वो तो मेरे हाथों के ऊपर अपने हाथों को रख कर अपने स्तन दबाया करती थी…

अब मैंने अपने हाथ उसकी टीशर्ट के अन्दर डाल दिया और अपने दोनों हाथ पीछे ले जाकर उसकी ब्रा खोल दी… अपने हाथों को आगे लाकर मैंने आगे से उसकी टीशर्ट ब्रा के साथ ही उठा दी… अब उसके दोनों स्तन नग्न हो चुके थे… उसके चूचुक कड़े होकर बिल्कुल सीधे हो गए थे…

मैंने धीरे से उँगलियों से उन्हें सहलाया तो इशानी मचल उठी… मैंने उसके बाएँ स्तन को अपने हाथ में लिया और उसके दाएँ स्तन को अपने होंठों के हवाले कर दिया..

उसके वो उत्तेजित, कड़े और सीधे स्तानाग्रों को चूसने का अपना ही आनन्द था… मैं कभी अपनी जीभ उसके गहरे सुनहरे रंग के स्तानाग्रों पर घुमाता था तो कभी उसके उत्तेजित चुचूकों को दांतों से काट सा लेता था..

मेरी हर हरकत पर इशानी का बदन थिरक उठता था…

अब मैंने उसके बाएँ स्तन को अपने मुँह में ले लिया और हाथों से उसके दाएँ स्तनों को दबाने लगा…

इशानी का बुरा हाल हो रहा था, अब वो मेरी गर्दन पर अपने दांतों से निशान बनाने लगी थी और ऐसा लग रहा था कि मेरी पीठ में अपनी ऊँगलियाँ ही घुसा देगी… उत्तेजना का आनन्द यही है… पीड़ा भी आनन्ददायक लगने लगती है…

इशानी के हाथ अब पैंट के ऊपर से ही मेरे लिंग को सहलाने लगे थे… उसके हाथों का स्पर्श पाते ही मेरे सारे शरीर का रक्त प्रवाह मेरे लिंग की ओर होने लगता था..

ऐसा लगता था मानो उत्तेजना में मेरा लिंग फट न जाएगा… अब हम दोनों ही बिस्तर पर लेट चुके थे और एक दूसरे की कामोत्तेजना बढ़ाने के लिए जो भी कर सकते थे कर रहे थे..

उत्तेजना में हमारे कपड़े कब उतर गए, हमें पता ही नहीं चला…

अचानक मुझे ध्यान आया कि हमने दरवाज़ा लॉक नहीं किया है…
मैंने इशानी से कहा- दरवाजा बंद नहीं है और हम दोनों यहाँ बिस्तर पर ऐसे नंगे पड़े हुए हैं… किसी ने देख लिया तो…?

इशानी का चेहरा देखने लायक था उसे तो ऐसा लग रहा था कि किसी ने उसे ऐसे देख लिया है मेरे साथ…
मैंने उठ कर दरवाज़ा अन्दर से लॉक कर लिया… और इशानी को बाहों में ले कर उसे चूमने लगा…

हमें अपने शरीर पर पड़े आखिरी वस्त्रों को भी एक दूसरे की मदद से उतर दिया और एक दूसरे से लिपट गए…मैं इशानी को उल्टा करके उसको चूमने लगा… पहले उसके गर्दन और कानों को चूमते हुए उसके कंधों पर अपने दांतों से धीरे धीरे काटा फिर उसकी पीठ पर अपने होंठों और जीभ को चलाने लगा… मैंने अपने होंठों और जीभ से इशानी की रीढ़ की हड्डी पर नीचे से ऊपर चाटने लगा और धीरे धीरे मैं नीचे उसके नितम्बों की ओर बढ़ने लगा… उसके तराशे हुए नितम्बों पर मैंने अपने दांत गड़ाने शुरू कर दिए… उसके कूल्हे मुझे ऐसे ही उत्तेजित करने के लिए काफी थे… उन्हें चूमना मुझे उत्तेजना के चरम पर ले जा रहा था…

थोड़ी देर उसके कूल्हों का आनन्द लेने के बाद मैं पीछे से ही उसकी जांघों को चूमने लगा… इशानी बिना पानी की मछली जैसे तड़प रही थी और बार बार सीधी होने की कोशिश कर रही थी लेकिन मैं उसे ऐसा करने नहीं दे रहा था… मैं उसकी जांघों को चूमते हुए उसके पांवों की तरफ बढ़ने लगा… जैसे ही मेरा दबाव इशानी के शरीर से कम हुआ वो एक झटके में ही पीठ के बल लेट कर सीधी हो गई और मुझे अपने ऊपर खींच लिया और अपनी कमर हिला कर मुझे योनि में प्रवेश का आमंत्रण देने लगी…

मैंने इशानी से कहा- मुझे तुम्हारी योनि का रस पीना है!
तो उसने कहा- अभी पहले तुम अपना लिंग मेरी योनि में डाल कर सम्भोग करो… मुझसे अब रहा नहीं जा रहा है… सम्भोग के बाद तुम्हें जो भी पीना होगा पी लेना…

उसका कहना भी सही था… घर पर हमें समय ही नहीं मिल रहा था उस दिन के बाद सम्भोग करने का और आज जो थोड़ा समय मिला था वो उसको फोरप्ले यानि की सम्भोग पूर्व आपसी लैंगिग उत्तेजना एवं आनन्ददायक कार्य में ही नहीं निकाल देना चाहती थी और उस समय मैं भी एक सम्पूर्ण सम्भोग के ही पक्ष में था…

मैं इशानी की बात मानते हुए अपना लिंग उसकी योनि पर रगड़ने लगा… इस कार्य में इशानी को बहुत आनन्द आता था… जब थोड़ी देर बाद भी मैंने लिंग उसकी योनि में प्रवेश नहीं कराया तो इशानी ने अपने हाथों से मेरा लिंग पकड़ कर अपने योनिद्वार पर रख दिया और कहा- तुम्हें मुझे सताने में बहुत मजा आता है न… चलो अब धीरे धीरे मेरे अन्दर प्रवेश करो…

मैंने थोड़ा सा दबाव बनाया और लिंग को इशानी की योनि में प्रवेश करने लगा…

एक हल्के से दबाव से ही मेरा शिश्न-मुण्ड उसकी योनि में प्रवेश कर गया और इशानी के मुख से चीख सी निकल गई… उसने मुझे रुकने का इशारा किया…
मैंने पूछा- दर्द हो रहा है क्या?
तो उसने कहा- हाँ, थोड़ा दर्द है…
और साथ ही यह भी कहा कि जब मैं कहूँ तभी और अन्दर डालना.
उसने मुझे धीरे धीरे अन्दर करने को कहा.

मैंने अपने लिंग पर दबाव बनाया और अन्दर डालने लगा… यह गीलापन और यह गर्मी दोनों ही सिर्फ योनि में लिंग प्रवेश करा कर ही महसूस किया जा सकता है… दुनिया की किसी भी चीज़ से योनि की समानता नहीं की जा सकती… अब मेरा लिंग पूरी तरह से इशानी की योनि में प्रवेश कर चुका था… उसकी गर्म और गीली योनि में लिंग को अलग ही आनन्द मिल रहा था…

मैंने धीरे धीरे धक्के लगाने शुरू किये… इशानी को भी आनन्द आ रहा था और वो भी मेरे धक्कों की आवृत्ति के साथ अपने कूल्हे हिला हिला कर अनुनाद की नई परिभाषाएँ गढ़ रही थी…

धीरे धीरे मैंने अपने धक्कों की रफ़्तार तेज कर दी.

इशानी के मुँह से उत्तेजक आवाजें निकल रही थी… अआह आअह की आवाजों से मुझे और जोश मिल रहा था और मैं धक्कों को और गहराई में लगाने की पुरजोर कोशिश कर रहा था… इशानी की कामुक आवाजें मुझे पागल बना रही थी… आअह्ह्ह्ह्ह जान… हाआ… आआह्ह्ह्ह ह्ह्ह ह्ह्ह्ह्ह और जोर से करो जान… हाय आए अर्पित… और करो… थोड़ा तेज करो जान…

मैं उत्तेजना में उसके कहे हुए शब्दों का अक्षरशः पालन कर रहा था और इशानी अपनी कामुक आवाजों से उत्तेजना की एक लम्बी फेहरिस्त बनाती जा रही थी… आआह हाआह ह्ह्ह आआह्ह्ह हहहह उफ़्फ़्फ़्फ़ फ़्फ़्फ़ और तेज जान और तेज… आआआह्ह ओह एस माय लव… फ़क मी हार्ड माय बेबी… जान… डू इट फास्टर एंड हार्डर… आआह्ह्ह्हाअ हुह्ह्ह ओ ओह्ह आ आअह्ह्ह्ह होओ हूहु हुहूआअ… ओह यस… आअह्ह हहह आहाहा हूह्ह ओह्हू आहा अहाअह…मुझे जोर से पकड़ लो अर्पित… तोड़ दो मुझे अपनी बाहों में दबा के… हाय ए… आई एम् कमिंग… ओह इट्स कमिंग… आहाहू उह्ह…जाआ आआआ आअन्नन्…
इशानी ने मुझे कस कर दबोच लिया…

उसके इस कामुक स्खलन को मैं भी बर्दाश्त नहीं कर पाया और जोर जोर से धक्के लगाते हुए उसकी योनि में ही धराशायी होने लगा…

थोड़ी देर ऐसे ही पड़े होने के बाद हमें एहसास हुआ कि हम घर में हैं, दिन का समय है और कोई भी आ सकता है, यह सोच कर हमने एक दूसरे की आँखों में देखा और हंसने लगे, शायद इस बात का एहसास हो गया था कि ‘प्यार अँधा होता है… दीन-दुनिया से बेखबर… दो प्यार करने वालों को कोई नहीं रोक सकता…’

हमने उठ कर अपने कपड़े पहने और मैंने इशानी के कमरे का दरवाजा खोल दिया…

इशानी ने मुझसे कहा- अर्पित, कहीं ऐसी जगह ले चलो मुझे जहाँ सिर्फ हम दोनों ही हों, हम जो चाहे वो करें और हमें देखने और रोकने वाला कोई न हो…
मैंने कहा- जान, मैं भी यही चाहता हूँ कि ऐसी जगह हो जहाँ सिर्फ मैं और तुम हो… न कोई देखने वाला न कोई सुनने वाला न कोई रोक न कोई टोक…

मैंने उसे आश्वासन दिया कि जल्दी ही मैं कुछ करूँगा और हम दोनों किसी ऐसी जगह चलेंगे जहाँ हम दोनों के अलावा कोई न हो…

तो दोस्तो, यह थी मेरी कहानी…
आगे क्या हुआ? हम दोनों को ऐसा मौका मिला या नहीं? हम कहीं गए या नहीं? आपको इन सब सवालों का जवाब मिलेगा लेकिन सिर्फ मेरी इस कहानी पर आपकी प्रतिक्रिया प्राप्त होने के बाद…
दोस्तो, मुझ में अपना विश्वास और प्यार बनाये रखिये और पढ़ते रहिये मेरी कहानियाँ सिर्फ और सिर्फ अन्तर्वासना पर… आप लोगों की प्रतिक्रिया का मुझे बेसब्री से इंतज़ार रहेगा…
आप अपनी राय मेरी ईमेल आईडी [email protected] पर भेजे, मुझे आप सबके मेल्स का इंतज़ार रहेगा!
आप सबका अपना
अर्पित सिंह

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