चाची जी की चूत की प्यास का इलाज

(Chachi Ji Ki Choot ki Pyas Ka Ilaz)

यह चोदन कहानी तब की है जब मैं 12 वीं में पढ़ता था। मैं घर से दूर कमरा किराये पर लेकर रहता था।

वहीं मेरे बगल में एक चाचा जी रहते थे जो हमारे ही गाँव के थे, उनकी बीवी आजकल की कटरीना से किसी भी हालत में कम नहीं थीं, एकदम लम्बी सुरीली कमर, लम्बे-लम्बे बाल गांड के नीचे तक लहराते।
उफ़!! मजा आ जाता था देखकर ही, देखते ही लंड सलामी देने लगता।

ओह, माफ करना मैं अपने बारे में तो बताना भूल ही गया। उस टाइम मैं 18 साल का था। स्पोर्टी लुक था मेरा तो एकदम स्टाइल में रहता था; गली की सारी लड़कियाँ मुझे घूरती रहती थीं।
चाचा जी भी मुझे खूब प्यार करते थे, बोलते- जो भी दिक्कत हो मुझे बता देना।
उनकी एक बेटी थी शीनू 5 साल की; शीनू को मैं कभी-कभार पढ़ा दिया करता।

जब मैं शीनू को पढ़ाने जाता, चाची जी आतीं और मुझे खूब दुलार करतीं; वो मुझ से सट कर बैठ जाती और अपनी जाँघ मेरे पैर से रगड़ती।
अफ़सोस कि मेरा ध्यान कभी नहीं गया उस तरफ़।

एक दिन चाची छत पर अपने कपड़े सुखा रही थीं, मैं उनके घर गया और जब कोई नहीं दिखायी दिया तो मैंने ऊपर की तरफ़ देख़ा, देखते ही मेरी सिसकारी निकल गई। चाची छत के ऊपर जाल पर खडी थीं और मैं एकदम उनके नीचे, उनकी साड़ी में से उनकी केले के तने के आकार की मांसल जाँघ, वो भी एकदम चिकनी साफ दिखाई दे रही थी।

हे भगवान, क्या गोरी-चिट्टी जांघें थीं, जी तो कर रहा था कि बस अजगर कि तरह उस तने में लिपट जाऊँ।
मेरा लंड बुरी तरह फड़फड़ाने लगा।

अंदर मुझे ज़्यादा साफ़ नहीं दिख रहा था पर जितना दिख रहा था उतने के लिये चाची के आशिक़ लाखों रुपए बर्बाद कर देते। चाची थीं ही ऐसी चीज।

5’8″ की कुदरत की मेहर, एकदम गोल, सुडौल तने हुए चुचूक, गांड की कसावट तो यूँ थी कि साड़ी के ऊपर से ही उनकी गांड की गोलाई दिखती। लम्बी गरदन सुराही की तरह, कमर एकदम चिकनी, होंठ और चेहरा जो कटरीना और आलिया भट्ट को भी मात कर दे।

ना चाहते हुए भी अब मेरी नज़रें हमेशा चाची के बदन पर रहती, जब भी वो मेरे सामने होतीं।
मेरा बेचारा लंड उसी वक़्त नया नया खड़ा होना सीख रहा था।

पर यूँ ही साल बीत गया और मैं दिल्ली में जाकर पढ़ने लगा। इस बीच मैंने कुछ लड़कियों को चोदा पर चाची की चूत के रस के लिये मेरी जीभ हमेशा फड़फड़ाती रही।

किस्मत से एक दिन मेरा उसी शहर में वापस आना हुआ। चाचाजी का बिज़नेस इस वक़्त में बहुत बढ़ गया था, उन्होंने पैसा भी बहुत कमा लिया था और अमीर भी हो गये थे और चाची जी की तो बात ही निराली हो गई थी।

खैर, मुझे देखकर दोनों बहुत खुश हुये।

मेरी किस्मत ने फिर ज़ोर मारा और पता चला की चाचा को कहीं बाहर जाना था, वो बोले- पारस, तुम ज़रा एक दिन रुक जाओ, हम तुमसे कल आकर बात करेंगे।
यह कह कर चाचा निकल गए।

जी हाँ, मेरा नाम पारस है।

अब मैं और चाची जी अकेले रह गए। फिर शीनू भी आ गई, कहीं खेलने गई थी।
उफ़!! क्या बताऊँ, चाची क्या लग रही थीं? ब्लाउज भी कट वाला, पीठ पूरी खुली हुयी साड़ी भी गांड पर बंधी हुई।

इसके बाद हमारी बातें होने लगीं। मैंने और उन्होंने एक-दूसरे वो सब कुछ बताया, जो इस पिछले साल में हुआ।
लेकिन ना जाने क्यूँ मुझे आज भी वो नूर उदास लगा। पूछने पर वो ना-नुकुर करने लगीं पर हाँ आज उन्होंने मुझे एक सच बताया कि शीनू उनकी बेटी नहीं है। जी हाँ, शीनू को उन्होंने गोद लिया था।

मैंने कारण पूछा तो उन्होंने टाल दिया और चाची कपड़े बदलने चली गईं। मैं भी पीछे पीछे गया तो वो देखा जो ना तो किसी मूवी में देखा और ना ही हकीकत में चाची शीशे के सामने अपनी साड़ी को उतार रही थीं।
गुलाबी साड़ी के अन्दर हल्का लाल ब्लाउज, हाय!! वो भी कसा हुआ पीछे से तो खुला ही था और आगे के कटाव देखकर मेरा लंड जो अब 7-8″ का हो गया होगा फ़ुन्कार भरने लगा।

हे राम!! अब वो साड़ी के बाद अपना ब्लाउज भी खोलने लगी। उसके अंदर काली ब्रा, वो भी सिल्की और वो चूचे सफ़ेद दूध की तरह।
मैंने सोचा रब करे ये दिन यहीं रुक जाये। सामने एक अप्सरा हो काली ब्रा में, अपने चूचों को छिपाये हुये और उसके हाथ अपने गुलाबी सिल्की पेटिकोट के नाड़े पर हों जो कि गांड पर बंधा हो तो कामदेव भी मुठिया मारने को विवश हो जाये।

दोस्तो, मेरी उम्र अब अठ्ठारह के ऊपर हो गई थी। मेरा लंड भी अब फुफ्कारे भरने लगा था।

तो अब चाची ने अपने हाथ से उनकी पतली कमर के नीचे गांड पर लटके अपने पेटीकोट के नाड़े को खोला और वो झट से नीचे गिर गया।
उफ़!! क्या नजारा था? मेरे सामने काले रंग की जालीदार पतली सी चूतड़ों के बीच फंसी हुई पैंटी। मन तो कर रहा था कि फ़ौरन जाऊँ और काट कर उनकी गांड खा जाऊँ।

फ़िर चाची जी अपनी गांड मटकाते हुए बाथरूम में घुस गईं, मैं वहीं बुत बना खड़ा रहा, अंदर से शावर की आवाज आने लगी।

अब मैं अचानक देखता हूँ कि चाची ने अपनी ब्रा और पैंटी उतार कर बाहर बिस्तर पर फेंक दी।
मैं झट से गया और उन्हें उठा कर सूँघने लगा। क्या महक थी पैंटी की? मैंने झट से अपना लंड निकाल कर पैंटी के चारों तरफ़ लपेट दिया और ब्रा को अपने कानों मैं लपेटकर उसकी महक लेने लगा।

मेरा एक हाथ मेरे लंड को सहला रहा था। जैसे-तैसे मैंने कंट्रोल किया और वापस उसी जगह आ गया।

उसी कमरे में करीब 20 मिनट बाद में चाची भी आ गईं, दूसरी हरे रंग की साड़ी में। चिकनी कमर, गीले बाल जितनी मैंने नंगी पीछे से देखा था उससे भी ज़्यादा खूबसूरत।

फ़िर हमने चाय पी और रात का खाना खाया और चाची के बेडरूम मैं ही टीवी देखने लगे। शीनू भी वहीं आकर सो गई।

पता नहीं कब मुझे टीवी देखते-देखते नींद आ गई। रात में मेरी आँख खुली, मैं बाथरूम गया, जहाँ शाम को चाची जी नहायी थीं। मैंने देखा मेरा लंड चिपचिपा हो रहा है, मैंने अपने लंड को साफ़ किया और बेड के पास पहुँचा।
जब देखा तो मेरी छाती धक्क से रह गई।

मैंने देखा चाची मेरे ही बेड पर बेसुध सो रही हैं, उनकी साड़ी और पेटीकोट ऊपर की तरफ़ जा रहे थे।

पतली टाँगों पर सुडौल पिंडली चिकनाहट से सरोबार, उनकी छाती ऊपर-नीचे हो रही थी, बाल खुले हुये तकिये पर फ़ैले थे। नीली नाइट लेम्प की रोशनी में पूरा कमरा नहाया हुआ था।
लेकिन मैं यह सब पूरी रोशनी में देखना चाहता था।

लाइट जलाने पर चाची जाग ना जायें, यह डर भी था!

मेरी निगाहें कुछ ढूँढने लगीं, किस्मत से मुझे टार्च मिल ही गई।
मैं नीचे की तरफ़ गया और पेटीकोट समेत साड़ी को उठाकर टार्च की रोशनी मारी। सफ़ेद फूल वाले प्रिंट वाली पैंटी के अंदर फ़ूली हुयी छोटी सी चिड़िया छिपी हुई थी।
अब मेरा मन तो बहुत कुछ करने को हो रहा था पर डर भी था।

मैं वापस उसी जगह आकर लेट गया। हमारे बीच में सिर्फ़ शीनू लेटी थी। मेरे दिमाग में भी खुराफ़ात आने लगी। क्या करूँ… लंड भी अकड़ रहा था।

आख़िरकार हिम्मत करके मैंने अपना हाथ शीनू के ऊपर से चाची पर रख लिया और करवट ले ली, धीरे धीरे मेरी उंगलियाँ उनकी कमर को छूने लगी।

फ़िर कुछ देर में मेरी उंगली उनकी नाभि में घुसने लगी अब मेरा पूरा हाथ उनकी कमर पर चल रहा था।
सपाट पेट चिकनी कमर, बटन के आकार की नाभी। चाची सीधी लेटी थीं अब मैंने हाथ ऊपर बढाया और ब्लाउज की नुकीली घुंडियों पर चलाने लगा।

कुछ देर में मेरी हिम्मत बड़ी और मैं अब उनके चूचे दबाने लगा, चाची अपने पैर कसमसाने लगी, उनके घुटने आपस में टकरा रहे थे।

अब मैंने शीनू को बीच से उठाकर साइड मैं लिटा दिया। मेरे हाथ अब चाची की जाँघ, गांड और कमर पर चल रहा था और दूसरा उनके बूब्स, गर्दन व होठों को हल्के-हल्के छू रहा था। चाची कसमसा रही थीं और हाँफते हुए बेडशीट और तकिये को पकड़ रही थी।

फ़िर मैं सीधा हाथ चाची के सपाट पेट से नीचे सरकाने लगा और चाची की चूत को छूने की कोशिश करने लगा।
लेकिन मैंने जैसे ही हाथ डाला, उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया यानि वे जाग चुकी थीं।

पर मैंने हार नहीं मानी और थोड़ा ज़ोर लगा कर अपना हाथ पेट से होते हुये साड़ी, पेटिकोट और पैंटी के नीचे चूत के ठीक ऊपर गुदगुदे हिस्से तक ले गया।
आखिर चाची बोलीं- पारस, यह सब ठीक नहीं है, मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थीं।

मरता क्या ना करता, मैंने झट से हाथ हटा दिया। लेकिन मैं चाची की मिन्नतें करने लगा और चाची ना-नुकुर करने लगीं।

मैं उनकी कमर को पकड़ कर लेटा था, मेरी टाँग चाची की जाँघ पर थी।
अचानक चाची ने मुझे चिपटा लिया और बोलीं- पारस बेटा, मैं भी कितने ही सालों से प्यासी हूँ, कोई मेरा दर्द नहीं समझता। तेरे चाचा से कुछ होता ही नहीं है, रात भर बस मैं तड़पती रहती हूँ।
अपनी बात ख़त्म करते ही उन्होंने मेरे होंठों में अपनी जीभ घुसा दी, अब मेरी जीभ और उनकी जीभ दो नागिनों की तरह लिपटी पड़ी थी।

मैं भी अब झट से खड़ा हो गया और लाइट जला दी। चाची अपनी आँखें बंद करे मूर्ति बनी पड़ीं थीं, लग रहा था जैसे उन्होंने खुद को मुझे पूरी तरह से समर्पित कर दिया हो। मैं अब नीचे आ गया था और उनके पैर के अँगूठे को चूसने लगा!

धीरे-धीरे मेरी जीभ ऊपर की तरफ़ बढ रही थी, मैं हाथ से साड़ी और पेटीकोट ऊपर करता जाता और सफ़ेद मलाई जैसी कुल्फ़ी रूपी पिंडलियों को जीभ से चाटता जाता था।
अब मेरे हाथ चाची की गोल सुडौल जांघों पर आ गये, मैं उन्हें चूसने लगा।

चाची ने अपने पैर अब चौड़े करने शुरू कर दिये थे। उनकी पैंटी सफ़ेद थी, फूलों के प्रिंट वाली… पता नहीं वो महक चूत की थी या उन फ़ूलों की… लेकिन थी लुभावनी।

पैंटी के बीचों बीच मैंने जीभ चलाना शुरू कर दिया, मैं अपनी जीभ को तेज़ी ऊपर नीचे कर रहा था। चाची जी अब सिसकारी भरने लगी थीं, मैं जैसी ही पैंटी के ऊपर से उनकी चूत पर चूमता, चाची उफ्फ.. उम्म.. करने लगतीं।
मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था मेरे सिर के ऊपर उनका पेटीकोट पड़ा था।

अब चाची बोलीं- पारस, कुछ करो ना!
लेकिन मैं भी इतने अच्छे मौके को इतनी जल्दी नहीं निपटाना चाहता था, मैंने चाची की साड़ी उतार दी और पेटीकोट भी सरका दिया और उन्हें दीवार के सहारे खड़ा कर दिया।
वो बोलीं- पारस, तुमने इतना प्यार करना कहाँ से सीखा?

मैंने दाँत से उनकी पैंटी पकड़ कर खींच दी, अब वो पलट कर सीधी हो गईं।
पैंटी उतार कर मैं नीचे तो बैठा ही था, चाची ने अपनी एक टाँग मेरे कन्धे पर रख दी और मैंने अपनी जीभ उनकी 3″ लंबी दरार वाली छोटी सी चुत पर रख दी और उनके दाने को अपने होंठों के बीच दबा कर खींचने लगा।

चाची दीवार के सहारे खड़ी हुई थीं, मेरे कन्धे पर अपनी एक टाँग रख कर और अपने हाथ से मेरे सिर को दबा रही थीं।
ब्लाउज अभी भी बंद था, वो ऐसे कर रही थीं, जैसे मुझे पूरा का पूरा अपनी चूत के अंदर घुसेड़ लेगीं।

गोरी चूत का लाल चीरा, वो भी रस से भरी हुई, उफ़!! क्या नज़ारा था।

चाची जोर जोर से हाफ़ रही थीं- आआह्ह ह्ह्ह्हा अह्ह… पारस… आआह्ह… ये क्या कर रहे हो? आह्ह्ह… मैं तो मर गई। पारस, क्यूँ मुझे पागल कर रहे हो?

मेरे हाथ उनकी गांड पर गोल-गोल चल रहे थे, वो चिल्ला रही थीं उम्म्ह… अहह… हय… याह… आअह… आह्ह… पारस… आअह्ह… और यह कहते कहते वो झड़ गईं।

फ़िर चाची नीचे बैठ गईं और मेरे लंड को चूसने लगीं और फ़िर पूरा लंड अपने गले में उतार लिया।

मैं भी उनके बाल खींच कर जोर जोर से आगे पीछे करने लगा। ऐसा लग रहा था कि आज ये कुतिया मेरा लंड खा ही जायेगी। मेरे लंड की नसें फ़टी जा रही थीं और उनकी आँखों से आँसू छ्लक रहे थे।
दोस्तो, लग रहा था जैसे किसी भूखी शेरनी को मेरा लंड पकड़ा दिया हो!

अब वो बेड के किनारे लेट गईं और बोलीं- प्लीज जान, घुसेड़ दे अपना अब तो…
मैंने अपना लंड उसकी चूत के गुलाबी लबों पर रखा और घिसने लगा।
“आह्ह् ह्ह्हह…” वो अपनी कमर ऊपर की तरफ़ उछालने लगीं- अह्ह… प्लीज मत तड़पा!

और एकदम मेरी कमर को पकड के खींच लिया- आअ ह्ह्ह् ह्ह्ह्…
इस अचानक हमले से मेरी गांड फ़ट गईं और चाची की चीख निकल गई…
फ़िर जो चुदायी का दौर शुरु हुआ घपाघप… दबादब घपाघप… दबादब! कभी वो मेरे ऊपर, कभी मैं उनके ऊपर, या कभी उनको कभी घोड़ी बना कर अह्ह्ह… उफ़्फ़्फ़्फ़… हे माँ, और जोर से कर…
करते करते वो झड़ गईं और करीब 10-12 मिनट के बाद मैंने भी उनकी चूत में उनकी मर्जी से अपना सफ़ेद और गाढ़ा सा माल डाल दिया.

जो आज उनके घर का चिराग है, वो मेरा बच्चा है। यह सिर्फ़ हम दोनों को ही पता है।
लेकिन उस दिन के बाद मैंने चाची जी के घर जाना बंद कर दिया। उसके बाद मैं दिल्ली आ गया।
तो ये थी मेरी आप बीती चोदन कथा!
प्राइवेसी के कारण मैं अपना इमेल नहीं दे रहा हूँ.

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