मेरी कामवासना और दीदी का प्यार-1

(Meri Kamvasna Aur Didi Ka Pyar- Part 1)

सम वन 2019-08-24 Comments

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नमस्कार दोस्तो! अन्तर्वासना पर ये मेरी दूसरी कहानी है. आशा है आप लोगों को पसंद आएगी. मुझे आपके कमेंट्स का इंतज़ार रहेगा.
मेरा ईमेल है- [email protected] आप मुझे hangout या kik पर भी मेसेज कर सकते हैं.

कहानियाँ कभी नयी या पुरानी नहीं होतीं. केवल उनके सन्दर्भ अलग अलग होते हैं. पात्र बदल जाते हैं, काल बदल जाते हैं, परिदृश्य बदल जाता है, लेकिन सार वही रहता है. ये कहानी भी कुछ ऐसी ही है.

बात उन दिनों की है, जब मैं गर्मी की छुट्टियों में अपने गाँव में था. चूँकि उत्तर भारत में गर्मी की छुट्टियाँ लगभग दो महीने की होती है, तो मैं भी गाँव पर अपने हमउम्र दोस्तों के साथ मस्ती करता रहता था.

हमारा गाँव पूर्वी उत्तर प्रदेश की किसी आम गाँव जैसा ही है. आस पास बसे घर और बस्ती के बाहर लोगों के बाग़ और खेत. ये वो समय होता है जब औरतें अपने बच्चों के साथ अपने मायके भी जाती हैं. हालाँकि कई बार केवल बच्चे ही ननिहाल में रहने जाते हैं.

उस वक़्त हमारी बुआ की बेटी भी हमारे घर आयी हुई थी. चूँकि हमारे बुआ जी की मृत्यु कई साल पहले ही हो गयी थी, तो उनकी बेटियां गर्मियों में अक्सर अपने ननिहाल यानि हमारे घर आती थी.
हमारे घर में आम के बाग़ थे, तो ये मौसम आने के लिए अच्छा रहता था.

थोड़ा पीछे जाते हुए ये बता दूँ कि हमारी बुआ की 3 बेटियां और 1 बेटा है. जो दीदी इस वक़्त हमारे घर आयी हुई थी, वो उनकी बीच वाली बेटी थी. मैं अपने भाई बहनों में सबसे छोटा था और मेरे पिताजी भी बुआजी से छोटे थे, तो मेरे और दीदी की उम्र में काफी अंतर था. उस वक़्त मैं लगभग 21 साल का था और सुनीता दीदी, हाँ! उनका नाम सुनीता था, वो लगभग 35 साल की थी. उनके उस वक़्त 3 बच्चे भी थे लेकिन बच्चे अपने बाबा दादी के साथ उनकी ससुराल में थे.

ये वक़्त लगभग जून के मध्य का था. हमारे घर पर खेती-बाड़ी थोड़ी अधिक थी तो हर वक़्त कुछ ना कुछ अनाज छत पर सूखने के लिए फैला रहता था.

उस दिन मैं अपने द्वार (घर के बाहर की वो जगह जहाँ बाहर के मेहमानों को बैठाया जाता है. जो लोग गाँव के परिदृश्य से परिचित होंगे वो जानते होंगे.) पर अपने कुछ दोस्तों के साथ बैठा दोपहर में ताश खेल रहा था.

मौसम सुबह से ही बारिश का बन रहा था और दोपहर होते होते, बादलों ने पूरे आसमान को ढक लिया. हम बेपरवाह होकर मौसम का आनंद उठाते हुए ताश में ही व्यस्त थे. थोड़ी देर बाद जब मैं उठ कर अपने घर में गया तो देखा कि मेरी माँ, बड़े भाई और वो दीदी छत पर थे. मैं सीढ़ियों से चढ़ता हुआ ऊपर गया तो देखा वो सारे लोग हाथ में बोरी और झाड़ू लिए सरसों जो सूखने के लिए छत पर फैली थी, उसको बटोरने के लिए लगे हुए थे.

मेरी माँ ने थोड़ी नाराज़गी दिखाते हुए कहा- जब तुम देख रहे थे कि बारिश होने को है तो घर नहीं आ सकते थे क्या? छत पर ये सब फैला था.
मैंने भी कहा- तो आपको बुला लेना चाहिए था. यहीं तो था मैं!
माँ ने उसके बाद फिर कुछ नहीं कहा.

मैं सुनीता दीदी को वहां देख कर आश्चर्य में था कि वो कब आ गयीं. जब उन्होंने बताया कि थोड़ी देर पहले … तब मुझे लगा कि मैं ताश खेलने में इतना व्यस्त था कि कब वो हमारी बैठक के सामने से निकल कर घर में आ गयीं, मुझे पता ही नहीं चला.

खैर जो भी थोड़ा बहुत काम बचा था, मैं उसमें हाथ बंटाने लगा. काम लगभग खत्म हो गया था तो मेरे भाई नीचे चले गए.

मम्मी दूसरी तरफ छत साफ़ कर रही थी और सुनीता दीदी एक तरफ. अचानक मेरी नज़र सुनीता दीदी की तरफ गयी तो उनके झुकने की वजह से उनके कुरते का हिस्सा नीचे झूल गया था और उनके क्लीवेज गहराई तक दिख रहे थे.
उनका रंग गेंहुआ था, लेकिन कपड़ों के अन्दर रहने की वजह से वो हिस्सा काफी गोरा था.

हर जवान लड़के की तरह मेरी भी हालत थी और उसी तरह मेरी भी नज़र वहां से हट नहीं रही थी. उस कुरते का शायद गला भी काफी गहरा था, इस वजह से वो और भी ज्यादा दिख रहा था.
अचानक से उनकी नज़र ऊपर उठी तो उन्होंने मुझे वहां देखते हुए पकड़ लिया. हालाँकि मैं कुछ ऐसा नहीं कर रहा था जिसपर वो सबके सामने उंगली उठा सकें, लेकिन शर्म से मेरी ही नज़रें झुक गयीं और मैं दूसरी तरफ देखने लगा.

हालाँकि मन में एक चोर था जो बार बार उसी तरफ देखने के लिए जोर मार रहा था. दीदी ने कुछ ना बोलते हुआ बस अपने कुरते को थोड़ा ऊपर खींच लिया और बाक़ी का काम खत्म कर के नीचे चली गयीं.
मैं भी थोड़ी देर बाद घर से बाहर चला गया.

चूँकि वो गर्मी के दिन थे, और आप सब को पता ही है कि गाँवों में बिजली की क्या हालत रहती है, तो इस वजह से पूरे गाँव की तरह हम लोग भी छत पर सोते थे. हालाँकि पंखा लगा कर सोते थे कि अगर रात में बिजली आये तो कुछ तो हवा का आनंद मिले.

उस रात भी मैं मम्मी और दीदी छत पर ही बिस्तर लगा कर सो रहे थे. मेरे भाई नीचे देर तक टीवी देखते थे तो वो कई बार वहीं पर इन्वर्टर के सहारे चल रहे पंखे में ही सो जाते थे. और इससे पहले आप पूछें तो बता दूँ कि मेरे पिताजी की मृत्यु 3 साल पहले हो चुकी थी. तो घर में हम इतने ही लोग थे.

मैं पहले ही पंखे के साइड जाकर सो गया था तो जब दीदी और मम्मी सोने के आयी, तो दीदी बीच में और मम्मी उनके बगल में जाकर लेट गयी. चूँकि वो मेरी बड़ी बहन थी, तो उम्र में मुझसे काफी बड़ी, तो अगल बगल सोने में किसी को भी कोई दिक्कत नहीं थी.

रात में गर्मी के मारे मेरी नींद खुल गयी. मैंने उठ कर पानी पिया और फिर आकर अपनी जगह लेट गया. कुछ ही मिनट में लाइट आ गयी और पंखे की हवा लगने से मुझे फिर से नींद आनी शुरू हो गयी.
जब पंखे की हवा लगनी शुरू हुई तो दीदी ने भी अपने शरीर को थोड़ा सा खिसका कर पंखे के सामने कर लिया.

उस वक़्त उन्होंने साड़ी पहनी हुई थी, जो उन्होंने शाम को भीगने के बाद कपड़े बदल कर पहनी थी.

मैं आधी नींद में था लेकिन उनको बगल में देख कर और पंखा चलने से गर्मी से ध्यान हटने की वजह से शाम के नज़ारे मुझे याद आने लगे. वो याद आने पर मैं करवट बदल कर उनकी तरफ मुड़ गया. हालाँकि कुछ करने की हिम्मत नहीं थी लेकिन फिर भी जवानी का जोश … मैंने बस अपने हाथ को उठा कर उनके खुले हुए पेट पर रख दिया.

ये सब करते हुए मेरी आँखें बंद थी कि अगर वो जाग भी रही होंगी तो उन्हें यही लगेगा कि मैंने नींद में ऐसा किया है.

थोड़ी देर तक मैंने अपना हाथ उनके पेट पर ऐसे ही रहने दिया. चूँकि मेरी आगे कुछ करने की हिम्मत नहीं थी तो मैं खुद भी नींद में था वो मैंने अपना हाथ नीचे कर लिया और सोने की कोशिश करने लगा.

थोड़ी देर बाद मुझे ऐसा लगा जैसे कि कोई मेरी उँगलियों को छू रहा हो. पहले तो मेरा ध्यान नहीं गया लेकिन थोड़ी देर बाद मेरी आँख हल्की सी खुल गयी तो मैंने देखा की दीदी का हाथ मेरे हाथ के पास था, और उनकी उँगलियाँ मेरी हथेली को छू रही थीं.
मुझे लगा कि शायद नींद में होगा, तो मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

लेकिन थोड़ी देर बाद मेरी नींद खुल गयी. अब उनकी उँगलियाँ एक ही जगह पर थी बिना हिले-डुले. मैंने थोड़ी हिम्मत करते हुए अपनी उँगलियों से उनकी कलाई को छुआ तो उन्होंने अपने हाथ में मेरी उँगलियों को पकड़ लिया.

जब थोड़ी देर बाद उन्होंने उँगलियों को अपनी पकड़ से आजाद किया तो मैंने फिर से हाथ उठा कर उनके खुले पेट पर रख दिया. थोड़ी देर वैसे ही रखने के बाद मैंने उनके पेट को सहलाना शुरू कर दिया. ऐसे करते करते कब मेरी आँख लग गयी मुझे पता ही नहीं चला.
उस वक़्त शायद इससे ज्यादा करने की मेरी हिम्मत भी नहीं थी.

अगले दिन मैं सुबह चाय पीकर दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने चला गया. गर्मियों की छुट्टियों में दिन ऐसे ही बीतता था.

दोपहर में जब मैं वापस आया तो सारे लोग खाना खा चुके थे. गाँव में लोग खाना थोड़ा जल्दी खा लेते हैं. मैंने किचन से खाना लिया और खाने के बाद ऊपर के कमरे में चला गया.

हमारे घर में में गर्मी की दोपहर लोग नीचे के कमरे में ही आराम करते हैं, क्यूंकि वो अपेक्षाकृत ठंडा रहता है. लेकिन नीचे फ़ोन के नेटवर्क की हालत बहुत ख़राब रहती है, इसलिए मैं कई बार ऊपर ही जाकर थोड़ी देर लेटता था.

जब मैं ऊपर गया तो वो दीदी वहां लेटी हुई थी. वो अभी जगी हुई थीं. जब मैंने उन्हें देखा तो मैंने उनसे कहा कि मुझे पता नहीं था वो यहाँ पर हैं, वो आराम करें, मैं नीचे जाकर ही लेट जाता हूँ. उन्होंने मुझे रोकते हुए कहा- नहीं, मैं भी सो नहीं रही थी. और अगर मुझे सोना ना हो, तो बैठ कर मुझसे बात कर सकता है.

मेरी भी आँखों में नींद नहीं थी तो मैं वहीं बैठ कर उनसे बात करने लगा और साथ साथ मोबाइल में सर्फिंग करता रहा. चूँकि हमारी कभी इतनी ज्यादा बात होती नहीं थी, इसलिए मुझे भी नहीं समझ में आ रहा था कि उनसे क्या बात करूँ.
इसलिए मैंने जीजाजी और उनके ससुराल के जितने भी थोड़े बहुत लोगों को जानता था उनके बारे में पूछने लगा.

उन्होंने बताया कि जीजाजी की तबियत बहुत ठीक नहीं रहती है. ऐसी घबराने वाली कोई बात नहीं बस सांस की थोड़ी तकलीफ़ उनको रहती है लगातार, बहुत इलाज कराने के बाद भी.

थोड़ी देर इधर उधर की बात के बाद वो बोली- कल के बारे में कुछ कहना है तुम्हें?
मेरे पैरों के खून सर में आ गया और ऐसे लगा जैसे किसी ने कई मंजिल वाली इमारत से नीचे धकेल दिया हो.

मैंने अनजान बनते हुए कहा- कौन सी बात?
उन्होंने बिना चेहरे पर कोई भाव लाये हुए कहा- इतने मासूम मत बनो. मुझे सब पता है तुम कल शाम को सरसों बटोरते हुए जो देख रहे थे.
मैंने अपनी नज़रें नीचे करते हुए कहा- वो तो गलती से हो गया था.

उन्होंने फिर कहा- वो रात में भी वो गलती से ही हुआ?
मुझे काटो तो खून नहीं … समझ में नहीं आ रहा था क्या कहूँ. मैं उस पल को कोस रहा था जब उनके कहने पर मैं वहां बैठ कर उनसे बात करने लगा था.
मैंने घबराते हुए निगाहें नीचे कर ली और मेरे पैर जैसे काँप रहे थे.

मेरी हालत देख कर वो हँसने लगी. उनको हँसता देख कर मैं आश्चर्य से उनकी तरफ देखने लगा.
वो हँसते हुए ही बोली- घबराओ मत, मैं किसी से शिकायत नहीं करुँगी तुम्हारी.
मैंने उनकी तरफ ख़ुशी ख़ुशी देखा और केवल ये बोल पाया- थैंक यू दीदी. आज के बाद फिर कभी ऐसा नहीं करूँगा मैं!

मेरी ये बात सुनकर उन्होंने कहा- नहीं, ये तो गलत बात होगी.
यह कहकर उन्होंने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया.

कहानी जारी रहेगी.
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