जिस्मानी रिश्तों की चाह-43

(Jismani Rishton Ki Chah- Part 43)

जूजाजी 2016-07-27 Comments

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सम्पादक जूजा

मैंने आपी को यकीन दिलाया कि मैं सिर्फ़ उनकी रानों के बीच में ही रगडूंगा।
आपी ने मेरे लण्ड को अपनी रानों में दबा लिया और मैंन लण्ड को आपी की रानों में ही फ़िराने लगा कि आपी ने कहा- एक मिनट रूको यहीं.. मैं ये सब देखना चाहती हूँ।

आपी इधर-उधर देख कर कुछ तलाश करने लगीं.. फिर आपी कंप्यूटर टेबल के पास गईं और कुर्सी को उठा कर यहाँ ले आईं और आईने में अपना साइड पोज़ देखते हुए कुर्सी को ज़मीन पर रख दिया और कुर्सी के दोनों बाजुओं पर अपने हाथ रख कर थोड़ा आगे को झुक कर खड़ी हो गईं।
फिर आईने में मेरी तरफ देखते हुए उन्होंने अपनी टाँगों को खोला और कहा- आओ सगीर अब फंसाओ अपना लण्ड..

अब आपी लण्ड शब्द का इस्तेमाल बेझिझक कर रही थीं।

मैंने अपने लण्ड को हाथ में पकड़ कर आपी की रानों के बीच में फँसाया.. तो मुझे अपने लण्ड में करेंट सा लगता महसूस हुआ।
आपी के इस तरह झुक कर खड़े होने की वजह से उनकी चूत का रुख़ ज़मीन की तरफ हो गया था और मेरे लण्ड का ऊपरी हिस्सा अपनी बहन की चूत की लकीर में समा गया।

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मैंने अपने लण्ड को थोड़ा ऊपर की तरफ दबाया तो आपी ने अपना एक हाथ नीचे से मेरे लण्ड पर रखा और उससे हिला-जुला कर अपनी चूत में सही तरह से फिट करने लगीं।

आपी ने मेरे लण्ड को अपनी चूत पर राईट लेफ्ट हिलाते हुए दबाया.. तो आपी की चूत के दोनों होंठ खुल से गए और मेरा लण्ड आपी की चूत के अंदरूनी नर्म हिस्से पर छू गया।

आपी के मुँह से एक और ‘अहह..’ खारिज हुई और वो अपनी टाँगों को मज़बूती से भींचते हुए सिसकती आवाज़ में बोलीं- हाँ.. सगीर.. उफ़फ्फ़.. हान्ं.. अब आगे-पीछे करो।

मैंने अपने हाथ अपनी बहन की कमर के इर्द-गिर्द से गुजारे और आपी के खूबसूरत खड़े उभारों को अपने हाथों में थाम लिया और उन्हें दबाते हुए अपना लण्ड आपी की रानों के दरमियान में आगे-पीछे करने लगा।

मैं जब अपना लण्ड पीछे को खींचता तो मेरा लण्ड आपी की चूत के अंदरूनी नरम हिस्से पर रगड़ ख़ाता हुआ पीछे आता और जब मेरे लण्ड का रिंग… जो रिंग टोपी के एंड पर होता है.. आपी की चूत के अंदरूनी नरम हिस्से पर टच होता.. तो आपी के बदन में झुरझुरी सी फैल जाती और वो मज़े के शदीद असर से सिसकारी भरतीं।

इसी के साथ मैं उनके मज़े को दोगुना करने के लिए आपी के मम्मों को दबा कर उनकी प्यारे से खड़े हुए और सख़्त निप्पलों को अपनी चुटकी में भर कर मसल देता।

अपने लण्ड को ऐसे ही रगड़ते हुए और आपी के निप्पलों से खेलते हुए मैंने अपने होंठ आपी की कमर पर रखे और उनकी कमर को चूमने और चाटने लगा।

आपी ने मज़े से एक ‘आहह..’ भरते हुए अपनी गर्दन को दायें बायें झटका सा दिया और उनकी नज़र अपनी बाईं तरफ़ आईने में पड़ी.. तो वो सिसकारते हुए बोलीं- आह सगीर। आईने में देखो..

मैंने आपी की कमर पर अपना गाल रगड़ते हुए आईने में देखा.. तो इस नज़ारे ने मेरे बदन में मज़े की एक अनोखी लहर दौड़ा दी।

आईने में मेरा और आपी का साइड पोज़ नज़र आ रहा था। आपी कुर्सी के बाजुओं पर हाथ रखे झुक कर खड़ी थीं। उनका चेहरा आईने की ही तरफ था और मैं आपी पर झुका हुआ उनकी रानों में अपना लण्ड फँसाए.. अपना लण्ड आगे-पीछे कर रहा था।

लेकिन आईने में ऐसा ही लग रहा था.. जैसे मैं अपना लण्ड अपनी बहन की चूत में डाले हुए अन्दर-बाहर कर रहा होऊँ..

मैंने पूरे मंज़र पर नज़र डाल कर आपी के चेहरे की तरफ नज़र डाली.. तो मुझसे नज़र मिलने पर आपी मुस्कुरा कर जोशीले अंदाज़ में बोलीं- देखो सगीर बिल्कुल ऐसा लग रहा है ना.. जैसे तुम मुझे कर रहे हो.. है ना?

मैंने शरारत से आपी को देखा और कहा आपी मैं क्या ‘कर’ रहा हूँ आपको.. सही लफ्ज़ बोलो ना?

आपी के चेहरे पर हल्की सी शर्म की लहर पैदा हुई और वो बोलीं- वो ही कर रहे हो.. जो एक मर्द औरत के साथ इन हालत में करता है।
मैंने ज़रा जिद्दी से अंदाज़ में कहा- यार साफ-साफ बोलो ना आपी.. अब क्यों शरमाती हो.. प्लीज़ बोलो ना..

आपी थोड़ी देर चुप रहीं और अपना हाथ नीचे ले जाकर मेरे लण्ड को अपनी चूत पर ऊपर की तरफ दबाया.. जो कि अब ज़रा नीचे हो गया था और बोलीं- अच्छा सुनो साफ-साफ.. बिल्कुल ऐसा लग रहा है.. जैसे मेरा सगा भाई मुझे यानि कि अपनी सग़ी बहन.. अपनी बड़ी बहन को चोद रहा है।

मैं आपी के अल्फ़ाज़ सुन कर एकदम दंग रह गया और मेरा मुँह खुला का खुला रह गया क्योंकि मुझे उम्मीद नहीं थी कि आपी इतने खुले अल्फ़ाज़ में ऐसे कह देंगी।

आपी ने एक गहरी नज़र से मेरी आँखों में देखा और वॉर्निंग देने के अंदाज़ में कहा- सगीर मेरे भाई, तुम अभी औरत को जानते नहीं हो.. मुझे छुपा ही रहने दो.. मेरी झिझक कायम ही रहने दो.. मेरा कमीनापन बाहर मत लाओ.. वरना मैं तुम से संभाली नहीं जाउंगी.. पहले ही बता रही हूँ।

यह बात कहते हो आपी की आँखें उस टाइम बिल्कुल बिल्ली से मुशबाह हो गई थीं और उन आँखों में बगावत का तूफान था.. जिन्सी जुनून था.. इंतेहा को पहुँची हुई बेशर्मी थी.. और अजीब चमक थी।
पता नहीं क्या था उनकी आँखों में.. कि मैं एक लम्हें को दहल सा गया और खौफ की एक लहर पूरे जिस्म में फैल गई।

मुझसे आपी की आँखों में देखा ही नहीं गया.. मैंने नजरें झुका लीं।

आपी ने एक क़हक़हा लगाया और शरारती अंदाज़ में बोलीं- हीई हीएहीई तुम्हारी ही बहन हूँ मैं भी.. एक ही खून है दोनों का.. अब सोच लो कि मेरी आखिरी हद कहाँ तक हो सकती है.. मैं बिगड़ी.. तो कहाँ तक जा सकती हूँ।

फिर मुझे आँख मार कर मेरा दायाँ हाथ पकड़ा और अपने सीने के उभार से उठा कर नीचे की तरफ़ ले गईं और अपनी चूत के दाने पर रखती हुई बोलीं- खैर छोड़ो बातें.. यहाँ से रगड़ो.. लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता..

मैंने भी आपी की कही पहले की बात का कोई जवाब नहीं दिया और उनकी चूत के दाने को अपनी उंगली से सहलाता हुआ अपना लण्ड उनकी रानों में रगड़ने लगा।

आपी की रानें बहुत चिकनी थीं।
मेरे लण्ड का ऊपरी हिस्सा.. जो कि आपी की चूत की लकीर में फँसा.. उनकी चूत के अंदरूनी हिस्से से रगड़ खा रहा था।

आपी की चूत से क़तरा-क़तरा निकलते लसदार जूस से तर हो गया था।
लेकिन मेरे लण्ड की दोनों साइड आपी की रानों में रगड़ लगने से लाल हो गई थीं और मुझे मामूली सी जलन भी महसूस होने लगी थी।

मैंने अपने लण्ड को आपी की रानों से बाहर निकाला और पीछे हटा तो फ़ौरन ही आपी ने कहा- क्या हुआ.. निकाल क्यों लिया?

मैंने अपने क़दम टेबल पर रखी तेल की बोतल की तरफ बढ़ाते हुए कहा- रगड़ से जलन हो रही है।

और इसके साथ ही मैंने तेल की बोतल को उठाया और फिर से आपी के पीछे आकर खड़ा हो गया।

मैंने थोड़ा सा तेल अपने हाथ पर लिया और झुकते हुए अपने हाथ से आपी की टाँगों को थोड़ा खोलते हुए आपी की दोनों रानों पर लगाया और रानों के साथ ही मैंने हाथ थोड़ा ऊपर किया और आपी की चूत पर अपने हाथ की दो उंगलियों से तेल लगाने लगा।

मैंने अपनी दो उंगलियों से आपी की चूत के पर्दों को अलहदा किया और एक उंगली चूत की लकीर में रख कर अंदरूनी नरम हिस्से को रगड़ कर चूत के सुराख पर अपनी उंगली को रखते हुए हल्का सा दबाव दिया।

मेरी उंगली तेल और आपी की कुंवारी चूत से निकलते रस की वजह से पूरी चिकनी थी.. जो थोड़े से दबाव ही से फिसलती हुई तकरीबन एक इंच तक चूत के अन्दर दाखिल हो गई।

उसी वक़्त आपी ने एक तेज सिसकी भरी और अपनी टाँगों को आपस में बंद करते हुए सीधी खड़ी हो गईं- सगीर निकालो बाहर.. जल्दी निकालो.. मैंने कहा था ना.. अन्दर मत डालना..

‘कुछ नहीं होता ना आपी.. बोलो.. क्या मज़ा नहीं आ रहा आपको?’

मैंने आपी को जवाब दिया और 6-7 बार उंगली को अन्दर-बाहर करने के बाद दोबारा सीधा खड़ा हो गया और अपना लण्ड फिर से आपी की रानों के बीच में फँसाते हुए आपी के हाथ को पकड़ा और अपने होंठ आपी की कमर पर रख कर आगे की तरफ ज़ोर दे कर झुका दिया.. और उनके हाथ कुर्सी के आर्म्स पर रख दिए।

फिर आईने में अपने आपको देखते हुए आपी से कहा- अब देखो आपी.. बिल्कुल मूवी के सीन की तरह लग रहे हैं हम दोनों.. और ऐसा ही लग रहा है कि जैसे मैं आपको चोद रहा हूँ।

आपी ने भी आईने में देखा और मैंने आपी को देखते हुए ही अपने झटके मारने की स्पीड भी बढ़ा दी।
वैसे भी अब मेरा लण्ड बहुत आराम से आपी की रानों में फँसा हुआ आगे-पीछे हो रहा था और तेल की वजह से जलन भी नहीं हो रही थी।

फरहान अभी भी बिस्तर पर बैठा था.. थोड़ा सा मुँह खोले मुझे और आपी को देखते हुए अपने लण्ड को मुठी में पकड़े ज़ोर-ज़ोर से मसल रहा था।

जब तक मैं या आपी उससे खुद से नहीं बुलाते थे.. वो हमारे पास नहीं आता था।
मैंने उससे सख्ती से नसीहत की हुई थी कि वो अपना दिमाग बिल्कुल मत लगाए और जैसा मैं कहूँ वैसा ही करे..
इसी लिए मेरे कहने के मुताबिक़ उसने तमाम हालत मुझ पर छोड़ दिए थे। वो अपनी मर्ज़ी से कोई क़दम नहीं उठाता था।

आपी ने आईने से नज़र हटा कर फरहान की तरफ देखा और उससे हाथ के इशारे से अपनी तरफ बुलाते हुए हँस कर बोलीं- आओ छोटे शहज़ादे.. गंगा बह ही रही है तो तुम भी हाथ धो ही लो..

भाई बहन के बीच सेक्स की यह कहानी एक पाकिस्तानी लड़के सगीर की जुबानी है.. आप अपने ख्यालात कहानी के अंत में अवश्य लिखें।

वाकिया जारी है।
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