अक्षतयौवना अंजलि का स्वैच्छिक समर्पण-1

सम्भोग-सुख को दुनिया के महानतम सुखों में भी सर्वोत्तम सुख की संज्ञा से परिभाषित किया गया है, हर जाति, हर क़ौम और हर विकाशशील व विकसित देश के सर्वोच्च बुद्धिजीवियों द्वारा नवाज़ा और अनुमोदित किया गया है। मानव जीवन की यह एक विशालतम वास्तविकता है, क्यूँकि किसी भी यौन-अतृप्त स्त्री या पुरुष के द्वारा मानव-कल्याण का कोई भी महत्वपूर्ण कार्य यथोचित रूप से सम्पन्न नहीं किया जा सकता।

दुर्भाग्यपूर्ण विशिष्ट अपंगता की अपवाद स्थिति यदि हम छोड़ दें, तो चाहे कोई अमीर हो या गरीब, छोटा हो या बड़ा, सबको यौन सुख सुलभ प्राप्य है। यहाँ तक कि कुवांरों-कुंवारियों और विधवाओं-रंडुओं को भी या तो हस्त-मैथुन के द्वारा या राज़ी-खुशी से पर स्त्री-पुरुष का सानिध्य प्राप्त कर यौन-सुख प्राप्त करना एक सामान्य सी बात है, ताकि हम समुचित यौन सन्तुष्टि के साथ ध्यानपूर्वक अपने-अपने निर्दिष्ट व्यावसायिक, सामाजिक एवं पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन सुचारू रूप से कर सकें। पाश्चात्य सभ्यता में तो यह बड़ी ही मामूली बात समझी जाती है।

वैसे पारिवारिक रिश्ते के अन्दर या बाहर, शादीशुदा पर-पुरुष के साथ किसी शादीशुदा पराई नारी का यौन सम्बन्ध, उम्र में चाहे पुरुष बड़ा और स्त्री छोटी हो, या स्त्री बड़ी और पुरुष छोटा हो, आपसी रज़ामन्दी के बावज़ूद, कम से कम विकासशील देशों के वर्तमान सामाजिक ढाँचे में आसानी से स्वीकारा नहीं जाता। फ़िर भी नवीन खुले एवं नंगे व्यवसायिक माहौल के बढ़ते असर से, अड़ोस-पड़ोस एवं कार्यालयों में शादीशुदा पर-नर-नारियों के बीच अक्सर बन रहे अवैध यौन सम्बन्धों के अलावा, प्राय: परिवार के अन्दर चाची-भतीजा, चाचा-भतीजी, मामी-भांजा, मामा-भांजी, देवर-भाभी, जीजा-साली तथा चचेरे, ममेरे, मौसेरे, फुफेरे भाई-बहन, आदि के बीच चुपके-चुपके यौन-तुष्टि की घटनाएँ अक्सर आम चर्चा का विषय रहती हैं।

इस लिहाज़ से भैसुर और भाभो यानि जेठ और छोटे भाई की धर्मपत्नी के बीच व्याप्त प्रेम-पूर्ण यौन सम्बन्धों का वर्णन विरले ही सुनने में आता है, और मेरी यह कहानी इसी वास्तविकता से जुड़ी हुई एक निहायत सच्ची और अज़ूबी घटना का शत-प्रतिशत शुद्ध हिन्दी रूपान्तरण है, जो पूरी ईमानदारी से और ज़मीनी सच्चाई से जुड़ कर आपके समक्ष आपको थोड़ी खुशी देने की खातिर प्रस्तुत है।

मेरे खयाल से अपनी भाभी (बड़े भाई की पत्नी) या भाभो (छोटे भाई की पत्नी) के साथ यदि आपसी रज़ामन्दी द्वारा किसी खास परिस्थिति में स्वेच्छापूर्वक यौन सम्बन्ध स्थापित हो जाए, और यदि ऐसे अनायास प्राप्त चरम यौन-खुशी के वशीभूत प्राकृतिक रूप से ललचा-ललचा कर पुन: दुनिया से नज़रें बचाते हुए दोनों राज़ी-खुशी से पति-पत्नी की तरह पूर्ण निर्लज़्जता से बार-बार पाशविक रूप में नग्न सम्भोग सुख का उपभोग करते चले जाएँ, तो इसमें कोई बुराई नहीं, क्योंकि यह ईश्वरीय संवेदना है कि हमसे जो कोई भी प्यार करे, उसे हम ज़्यादा से ज़्यादा प्यार, खुशी और सन्तुष्टि दें, चाहे हमें दुनिया से छुप के ही क्यूँ न एक-दूसरे को समर्पित करना पड़े।

मैं, कन्हैया तोमर, ग्वालियर के प्रसंसाधित खाद्य-निर्यात कम्पनी में कार्यरत एक चौंतीस-वर्षीय, कसरती बदन वाला स्वस्थ पुरुष हूँ। अंजलि, मुझसे लगभग दस वर्ष छोटी, मेरे अपने ही छोटे भाई की नव-विवाहिता युवा धर्म-पत्नी है, जो एक अति सुन्दर, चौबीस वर्षीय, उन्मुक्त काम-भावना का स्वत: संचार करने वाली, निहायत-गोरी और कसे बदन की मालकिन, असाधारण यौनाकर्षण से परिपूर्ण, बिल्कुल ताज़ा, जवान, चुस्त-दुरूस्त और तन्दुरुस्त सुहासिनी नारी है।

हम दोनों भाईयों का परिवार सँयुक्त-परिवार के तहत अपने दक्षिण ग्वालियर-स्थित पुश्तैनी मकान में एक साथ रहता है। इत्तेफ़ाकन, अंजलि मेरे उत्तर ग्वालियर-स्थित एक्सपोर्ट-कॉरपोरेट कार्यालय में मेरे ही अन्तर्गत बतौर कनिष्ठ ऑफ़िसर के पद पर कार्यरत है। मेरी नैनो गाड़ी में ही बैठ वो रोज़ मेरे साथ साढ़े नौ बजे ऑफ़िस जाती है और साढ़े पाँच बजे वापिस आती है।

इस वर्णन में कोई भी अतिशयोक्ति नहीं कि अंजलि का व्यक्तित्व, अनमोल खूबसूरत नारीत्व तथा बेहद कटारी यौवन उभारों वाले बेदाग और चमकदार भरे-पूरे सन्गेमरमरी बदन का एक ऐसा अविस्मरणीय उदाहरण है कि उसके सर्वदा प्रस्फ़ुटित यौवन और खौलते गदराए बदन के दर्शन मात्र से ही किसी अस्सी साल के बूढ़े की नसों में भी स्वत: कामोत्तेजना की बाढ़, लिंग-उत्थान और रोंगटे खड़े करने वाली असीम गुदगुदी पैदा हो जाए।

और कोई यदि एक मिनट तक भी अंजलि के उफ़नाते यौवन और जीवन्त-ज्वलन्त फ़िगर की ओर लगातार दृष्टि डाल दे तो वो अपने फुदुए में एक सनसनी भरी जादूई गुदगुदी महसूस करते हुए कम से कम सौ मिली लीटर गर्म वीर्य के साथ स्वत: स्खलित हो जाए। बदक़िस्मती से अंजलि का पति यानि मेरा छोटा भाई ग्वालियर म्यूनिसिपल कार्पोरेशन में एक मामूली सा ताईद है। यह तो मुझे मालूम था कि मेरा छोटा भाई बचपन से ही नशे का पुज़ारी है, पर मैं हाल तक यह नहीं जानता था कि उसने नशे की पुरानी गन्दी आदत की वज़ह से अपना पुरुषत्व लगभग खो सा दिया है। यह बात अपनी शादी के तीन वर्ष बीतने के बाद अंजलि ने मुझे हाल ही में विलाप करते हुए तब बताई जब मैंने एक दिन ऑफ़िस के लन्च अन्तराल में साथ खाना खाने के उपरान्त आराम के क्षणों में एक मजाकिया सुझाव दिया कि अब घर में नये बच्चे होने चाहिये।

मेरा इशारा सिर्फ़ इतना ही था कि मेरे छोटे भाई से अंजलि की शादी हुए तीन वर्ष से ज़्यादा हो गये हैं, लिहाज़ा अब बच्चा होना चाहिए पर अंजलि के जवाब में संलग्न अज़ीबो-गरीब मज़बूरी सुन कर मैं अवाक़ और अचम्भित रह गया।

अंजलि आँसुओं के साथ बिलखती हुई पहली बार मेरे समक्ष अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी से सम्बन्धित उपरोक्त दुर्भाग्यपूर्ण खुलासा करते हुए मुझसे लिपट गई। यह सच्चाई इससे पहले अंजलि ने किसी से भी अपने मायके या ससुराल में अब तक नहीं बताई थी कि दुनिया की नज़र में शादीशुदा होते हुए भी अब तक वो अक्षतयौवना है और न तो अपने पति के मुर्झाए और बुझे यौनान्ग के द्वारा, न ही किसी अन्य मानव-लिंग के द्वारा उसका कभी भी शील भंग हो पाया है, तथा जीवन जीने की खातिर वो अपनी योनि की सन्तुष्टि मात्र खुद की ऊँगलियों से या बैंगन, केले, गाज़र, मूली, करेले, खीरे, इत्यादि फुदुएनुमे फल-कन्द-मूल के द्वारा करती है।

सुनकर दु:ख तो काफ़ी हुआ, पर इस अप्रत्याशित परिस्थिति में अचानक अपने जिस्म से अपनी आइटम-गर्ल जैसी अति हसीन भरपूर जवान भाभो को लिपटा पाकर मैं किंकर्तव्यविमूढ़ और विस्मित सा हो गया।

वैसे तो मैं अंजलि के पति का अपना बड़ा भाई था, पर अपनी चाँद सी भाभो के शादीशुदा होते हुए भी अभी-अभी संज्ञान में आए उसके पूर्ण परिपक्व कुँवारे नारी शरीर और अनभोगे, सुडौल, बेहद कड़े और भरपूर उभरे आसमान छूती गर्म चूचियों के सानिध्य से मेरा दिल विषय-वासना के ज़्वार-भाटे में डगमगा उठा, मेरा लिंग बेहद कड़ा होकर गदहलन्ड का विशाल रूप लेते हुए और काफ़ी यौन-रस रिसाते हुए मेरे जांघिया और मेरी पैन्ट की ढीली चेन को चीर कर छुटे स्प्रिंग की तरह कूद कर बाहर आ गया।
कहानी जारी रहेगी।
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अक्षतयौवना अंजलि का स्वैच्छिक समर्पण-2

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