गलतफहमी-17

(Galatfahami- Part 17)

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नमस्कार दोस्तो… आप सबका प्यार निरंतर मिल रहा है। आप सबका आभार…

मैंने (कविता) रोहन से पूछा- तुमने सैक्स की इतनी प्यारी कला कहाँ से सीखी? कहीं तुमने पहले भी तो सैक्स नहीं किया है?
तो उसने कहा- तुम पहली लड़की हो जिसके बारे में मैं सोचता हूँ, और जिसे मैंने छुआ है। रही बात सैक्स की तो उसे कुछ नेट से देख कर और कुछ अनुभवी दोस्तों से सुनकर सीख लिया।

मैंने कहा- तुम्हारे किस दोस्त को सैक्स का अनुभव हो गया?
तो उसने मुस्कुराते हुए कहा- वही अपना विशाल.. उसे है सैक्स का अनुभव..!
मैं चौक पड़ी- विशाल..! उसने किसके साथ सैक्स किया..? कब किया..?
फिर रोहन हंसने लगा..

मेरे चेहरे को देख कर उसकी हंसी और बढ़ गई, मैं समझ रही थी ऐसा कुछ जरूर है जो मेरे आस-पास की ही बात है, पर मैं नहीं जानती।
मैं कुछ नाराज सी होने लगी, तो रोहन ने हंसना बंद कर दिया और मेरी आंखों में आंखें डाल कर बोलने लगा- जब हम टूर में लड़ाई कर रहे थे, तब कुछ लोग मौके का फायदा उठा कर प्यार में डूबे हुए थे। उनमें से एक जोड़ा था मेरे दोस्त विशाल और तुम्हारी सहेली प्रेरणा का..! वो उसी समय से प्रेम रंग में डूबे थे, पर उन्होंने शायद बारहवीं में आकर अभी-अभी सेक्स करना शुरू किया है।

प्रेरणा का नाम सुनते ही मैं हड़बड़ा सी गई ‘हे भगवान, वो ऐसा कैसे कर सकती है? अगर वो माँ बन गई तो क्या होगा? किसी को पता चल जायेगा तो क्या होगा? लड़की कितना आगे निकल गई..!’
तब रोहन ने मुझे संभालते हुए गंभीर स्वर में कहा- तुम भी तो वही सब कर रही हो, अपने बारे में कुछ सोचा है?
अब मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई.. मैंने खुद को संभाला और कहा- रोहन, मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, और अब मुझे किसी चीज की परवाह नहीं है। और मैंने अभी अपनी योनि में तुम्हारा लिंग नहीं डलवाया है तो माँ के अनुसार अभी मैं माँ भी नहीं बन सकती।

तब रोहन ने मुस्कुराते हुए कहा- चल हट पगली, लिंग घुसवा लेने भर से कोई माँ नहीं बन जाती, उसके लिए स्पर्म का गर्भ में पहुंचना भी जरूरी होता है।
तो मैंने कहा- कुछ भी हो, मैं अपनी योनि में लिंग नहीं डलवाना चाहती।
तो रोहन ने बड़ी मासूमियत से कहा- ठीक है जान, जब तक तुम ना कहो, हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे।

उसके इस जवाब ने मुझे उसका दीवाना बना दिया, मैंने उसके होंठों पर चुम्बन चड़ दिया।

फिर मैंने रोहन शर्माते हुए पूछा- ये विशाल और प्रेरणा कब, कैसे और क्या करते हैं?
वास्तविकता तो यह थी कि मैं प्रेरणा को खुद से बहुत कमजोर समझती थी और जब वो मेरे से आगे निकल गई तो मुझे जलन भी होने लगी।

तब रोहन ने मुस्कुराते हुए कहा- जब तुमने टूर के समय मेरी सीट में आने के लिए विशाल को प्रेरणा के साथ बिठाया, तो उन दोनों को पास आने का मौका मिल गया, रात को दोनों ने एक ही शॉल ओढ़ रखा था, तब विशाल धीरे से प्रेरणा की जाँघों को सहलाने लगा, और प्रेरणा ने कोई प्रतिरोध नहीं किया, बल्कि थोड़ा रात गहराने के बाद विशाल के लंड को खुद ही सहलाने लगी। वो दोनों टूर के समय तो हस्तमैथुन तक ही सीमित रहे, फिर बहुत अरसे बाद में दोनों ने मौका पाते ही खूब सैक्स किया, हर आसन को समझा जाना और करके देखा, इतनी उम्र में इतना सैक्स शायद ही कोई करता हो, उन्होंने तो गुदा सैक्स भी किया हुआ है। और हाँ, वो दोनों एक दूसरे को बहुत चाहते हैं, एक दूसरे के साथ जीने मरने की कसमें खा चुके हैं।

मैंने कहा- ये गुदा सैक्स क्या होता है?
तो उसने बताया- पीछे टायलेट करने वाली छेद में भी सैक्स करते हैं।
मैंने ये पहली बार सुना था तो मुझे अजीब लगा, मैंने कहा- वहाँ कैसे होता होगा, और होता भी होगा तो दर्द के मारे जान निकल जाती होगी।
तो रोहन ने मेरा नाक पकड़ा और बड़े भोलेपन से कहा- अरे.. मेरी जानेमन, वो भी तो आखिर मानव अंग का ही छेद है, तो फिर होगा क्यों नहीं..! और रही बात दर्द की तो वो तो सामने से करने पर भी होगा। और ऐसे भी दर्द होगा या नहीं ये बहुत हद तक प्रथम संभोग में शील भेदन करने वाले के ऊपर भी निर्भर करता है।
मैंने हम्म्म् कहा और आगे कुछ नहीं पूछा क्योंकि अब मैं खुद भी गर्म हो गई थी।

इतनी बाते सुनते तक तो मेरी चूत पनिया गई थी, तो मैंने रोहन का लंड सहलाना शुरू कर दिया।
तो रोहन ने कहा- तुम तो कुछ नहीं करना चाहती फिर मेरे सोये शेर को क्यों जगा रही हो?
तो मैंने कहा- हाथ या मुंह से करने में कुछ नहीं होता मैं बहुत दिनों से हाथ से कर रही हूँ!
ये बोलते वक्त मुझे याद नहीं रहा की रोहन क्या सोचेगा।
रोहन ने आश्चर्य से ‘क्या..?’ कहा और उसका मुंह खुला का खुला रह गया।

तब मैं शरमा के उससे लिपट गई और वो मुझे सहलाने लगा, तो मैं भी खुल कर साथ देने लगी।
हम एक दूसरे के होंठ चूस रहे थे और हम दोनों के ही हाथ नीचे चले गये थे, रोहन मेरी पैंटी के अंदर हाथ डाल कर मेरे चूत के दाने को सहला रहा था, मैं मस्ती में आहह उहहह कर रही थी और मेरा हाथ रोहन के अंडवियर के भीतर उसके लंड को दबाने और आगे पीछे करने में लगा था, रोहन के मुंह से भी उहह आहहह जैसी आवाजें आने लगी थी।

हम ऐसी हालत में कुछ देर ही रह पाये फिर दोनों ने बिजली की तेजी से अपने पूरे कपड़े निकाल फेंके और तुरंत ही पोजिशन सैट करके मुख मैथुन करने लगे, उत्तेजना से हमारी आंखें लाल हो गई थी, शर्म हमसे कोसों दूर हो गई थी.

रोहन ने बहुत देर तक चूट चाटने और मेरे शरीर को सहलाने के बाद ऊपर की ओर रुख किया और मेरे उरोजों को सहलाने, मसलने लगा और अपनी जीभ से मेरे कड़े हो चुके निप्पल को चाटने के बाद काट लिया.
इतनी देर में हम दोनों स्खलित हो जाते पर हम दोनों का यह दूसरा राऊंड था इसलिए स्खलन नहीं हो रहा था.

फिर रोहन ने मेरा चेहरा थाम कर आंखों में आंखें डालकर गिड़गिड़ाते हुए कहा- मान जाओ ना जान, अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है, मुझे अपनी चूत में लंड डालने दो ना प्लीज!
मैं भी उसे हाँ कहना चाहती थी पर मेरे मन में माँ बन जाने का डर था, तो मैंने उसे इमोशनल होकर कहा- अभी मैं तुम्हारे घर पर तुम्हारे बिस्तर पर हूँ, तुम कुछ भी कर लो, मैं तुम्हें मना नहीं कर पाऊँगी, पर याद रखो इसमें मेरी सहमति नहीं होगी।
तो रोहन ने उदास होकर कहा- जब तक तुम्हारी सहमति नहीं है तब तक कुछ करने का क्या फायदा!
और मुझसे दूर होने लगा।

उसकी एक इंच की भी दूरी मैं बर्दाश्त नहीं कर पाई और उसे अपनी ओर खींच लिया, उसके होंठो को चूसने लगी. फिर कुछ देर बाद मैंने उससे लिपट कर उसके कान में शर्माते हुए कहा- रोहन, तुम पीछे भी सैक्स करते हैं कह रहे थे ना, तुम वहाँ कर लो!
इतना कह कर मैं जोर से शरमा गई और उसे भींच लिया।

हालांकि मैं गुदा सैक्स से भी डर रही थी, लेकिन मैं रोहन को निराश नहीं करना चाहती थी, और फिर मेरे बदन को भी तो किसी तरह शांत करना था। ऐसे भी मैं हस्तमैथुन की आदी थी, तो मैं कुछ आगे का अनुभव लेकर भी देखना चाहती थी। इन सभी कारणों से मुझे गुदा सैक्स करना एक तरह से उचित ही लगा।

कुछ देर सन्नाटा पसरा रहा, शायद रोहन कुछ सोच रहा था।
फिर रोहन ने कहा- अगर तुम ये सिर्फ मेरी खुशी के लिए कर रही हो तो इसकी कोई आवश्यकता नहीं है, और फिर दर्द भी बहुत होगा।
मैंने विश्वास के साथ कहा- तुम्हारे लिए मैं कोई भी दर्द सह लूंगी, और ये सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं हो रहा है, इसमें मेरी भी खुशी शामिल है।
और इतना कहते ही मैं बहुत जोर से शरमा गई, और रोहन के शरीर में समा जाने जैसा प्रयास करते हुए छुपने लगी।

रोहन ने जवाब में कुछ कहने के बजाय मुझे चूमना और सहलाना शुरू कर दिया। हम पहले से ही उत्तेजित तो थे ही पर अब और भी व्याकुल होने लगे।

रोहन ने बिस्तर पर मेरे दोनों पैर मोड़े और चूत को चाटते हुए जीभ और आगे बढ़ा कर मेरे गुदा तक पहुंचा दी, मैं गुदा के शील भंग की कल्पना से ही सिहर उठी।
फिर वह उठा और टेबल से बोरोप्लस की ट्यूब लेकर वापस आ गया, उसके जाते और आते तक मैं उसे गौर से देख रही थी, मेरे सांवले से रोहन का काला सा लंड हवा में लहराता हुआ हिल कर मुझे रोमांचित कर रहा था, रोहन और मैं हमउम्र भी हैं और उसकी हाईट-हेल्थ लगभग मेरी जैसी ही थी।

अब मेरे लिए यह समझना मुश्किल ना था कि वो उस ट्यूब का क्या करेगा, फिर उसने मेरी कमर में तकिया लगा दिया, जिससे मेरी गुदा तक उसकी आसान पहुंच बन गई। मैं सांस अंदर खींचे बेचैनी डर और आनन्द को महसूस करने की कोशिश में लगी रही।

रोहन ने एक बार फिर चूत से गुदा तक अपनी जीभ फिराई फिर अपने हाथों से मेरी कमर से लेकर जाँघों तक के हिस्से को कई बार सहलाया, और फिर ट्यूब से बोरोप्लस निकाल कर अपनी उंगली में लगाया और मेरी गुदा के मुहाने पर लगाने लगा.
मैं शरमा भी रही थी, घबरा भी रही थी और कसमसा भी रही थी क्योंकि अभी दर्द तो बिल्कुल नहीं था पर अजीबो गरीब अहसास हो रहा था.
पर मैंने धैर्य रखा और चादर को सहारा समझ कर कस कर भींच लिया था।

अब रोहन ने अपनी उंगलियों पर बोरोप्लस लगाना फिर उसे मेरी गुदा के मुहाने और गुदा के अंदर तक अच्छे से मलने का उपक्रम जारी रखा। कुछ देर बाद उसने मुझे उलट कर घोड़ी बना दिया और अब वो मेरी गुदा के अंदर तक दो उंगलियों से बोरोप्लस लगाने लगा, मुझे हल्के मीठे दर्द का अहसास हुआ, फिर मैं उसके इस उपक्रम में भी आनन्द उठाने लगी।

कुछ देर बाद रोहन अचानक से मेरे सामने आया और मेरे मुंह के सामने अपना लिंग दे दिया, मैं समझ गई कि ये मेरी गुदा का शील तोड़ने के पहले एक बार चुसवाना चाहता है, तो मैंने उसकी इच्छा अच्छे से पूरी कर दी. मेरे चूसने से उसका लंड और जोरों से फनफना उठा.

फिर रोहन ने मेरे शरीर को सहलाते हुए बड़े प्यार से मेरे कान में कहा- जान, मैंने पूरा इंतजाम ऐसा किया है कि तुम्हें जरा भी दर्द या तकलीफ ना हो फिर भी अगर तुम्हें कोई तकलीफ हो तो कह देना मैं और आगे नहीं बढूँगा।

उसकी इन बातों ने मेरा दिल जीत लिया, वह चाहता तो जबरदस्ती मेरी चूत भी मार लेता और मैं उसका साथ भी देती, पर उसने केवल मेरी खुशी के लिए अपना मन मार लिया।
मैंने कहा- दर्द सहना तो नारी की किस्मत में लिखा है फिर भी तुम मेरी इतनी फिक्र करते हो उसके लिए थैंक्स!

अब उसने मुझे एक बार और चूम लिया और अपने लिंग पर बहुत सा बोरोप्लस लगाया, और मेरे गुदाद्वार पर अपना लंड सैट कर लिया, मैं डर के मारे कांप रही थी पर किसी प्रकार का दर्द मैं रोहन के ऊपर जाहिर नहीं होने देना चाहती थी क्योंकि वो मेरा दर्द देख कर ये सब अधूरे में ही छोड़ देता, और ऐसा मैं बिल्कुल नहीं चाहती थी।

अब उसने मेरे गुदा द्वार पर दबाव बनाने की कोशिश की पर उसका लंड बिल्कुल भी अंदर नहीं गया, तो उसने और जोर दिया तो मैं ना चाहते हुए भी तड़प और दर्द से आहह कर बैठी. फिर भी उसका लंड अंदर नहीं गया, तो मैंने रोहन से कहा- ऐसे दबाव मत बनाओ, पहले पीछे होकर हल्के झटके के साथ अंदर डालो!
उसने हम्म् कहा और अगले ही पल वैसा किया.

लंड मेरी गुदा के द्वार को चीरता हुआ प्रवेश करने लगा, मुझे बहुत जोरों से दर्द हुआ पर मैंने अपने होंठों को दबा कर अपनी चीख अंदर ही दबा ली। और वास्तविकता तो यह है कि दर्द असहनीय नहीं था क्योंकि रोहन ने पहले ही लंड फिसलने का जुगाड़ कर लिया था।
पर हम दोनों ही नये थे, तो शायद उसे भी उतनी ही तकलीफ हुई जितनी मुझे हुई थी। तभी तो वह भी महज सुपारा फंसा कर उसी पोजिशन में रुक गया।

और कुछ ही देर में हम दोनों ने संयत होकर फिर से प्रयास किया, अगले प्रयास में रोहन ने अपना तीन इंच यानि की आधा लंड़ मेरी गुदा में उतार दिया, अब मुझे गुदा में दर्द के साथ जलन भी होने लगी, पर मैंने बिना चिखे चिल्लाये सब कुछ बरदाश्त कर लिया और मेरी आँखों से आंसू के बूंद गालों पर ढलक आये।

मैं अगले धक्के के लिए पहले से ही तैयार थी, मैंने चादर को भींच लिया था और होंठों को कस के ऐसे दबाया था कि मेरी आवाज बाहर ना आये.
फिर रोहन का एक और झटका लगा, और हम दोनों के मुख से एक साथ आहहह इस्स्स्स निकल गई, जो दर्द और आनन्द का मिलाजुला रूप था.

मुझे गुदा में कुछ गर्म और तरल सा अहसास हुआ, पर उस समय हम दोनों की आंखें बंद थी।

हम इस पल को बहुत अच्छे से जी लेना चाहते थे, कुछ देर हम यूं ही डटे रहे, फिर रोहन ने आगे-पीछे होना शुरू किया, अब दर्द के साथ आनन्द भी आने लगा था, उसने आगे झुक कर मेरे उरोजों को थाम लिया और अपनी गति तेज कर दी, कमरे में उन्माद के स्वर स्पष्ट झंकृत हो रहे थे।

हम दोनों के इस लंबे संघर्ष के बाद मैं अकड़ने लगी पर तभी रोहन ने अपनी पकड़ मेरी कमर पर बनाते हुए बिजली सी तेजी दिखाई और अपने लंड को पूरा बाहर खींच कर पूरा अंदर पेलने लगा, हम आहहह उहहह ओहहह कहते रहे और मैं थरथराने कांपने के साथ झड़ गई.
मैं अब और साथ नहीं दे पाती… वो तो गनीमत है कि रोहन भी चार-पांच धक्कों बाद ही अकड़ कर अपना लंड बाहर खींच लिया, लंड़ का सुपारा गप्प की आवाज से बाहर आया और रोहन ने उसे अपने हाथों से पकड़ कर मेरी गोरी सुंदर चिकनी पीठ पर अपना वीर्य डाल दिया।

सैक्स के दौरान मेरा हाथ मेरी योनि के दाने को निरंतर रगड़ रहा था और बीच-बीच में रोहन ने भी उसमें उंगली घुसाई थी इस वजह से अब उसे भी शांति मिल चुकी थी।

अब रोहन और मैं ऐसे ही ढुलक गये, लगभग दस से पंद्रह मिनट बाद रोहन ने मुझे चूमते हुए ‘आई लव यू जान, तुमने मुझे अद्भुत आनन्द प्रदान किया.. थैंक्स!’ कहा।

मैंने भी उसे ऐसा ही जवाब दिया और पास रखे क्रीम कलर की नेपकिन को पकड़ कर अपने शरीर को साफ करने लगी तो मुझे अहसास हुआ कि नेपकिन में तो वीर्य के साथ खून भी दिख रहा है.
मैं पहले तो डर ही गई, पर रोहन ने बताया कि पहली बार में खून आ ही जाता है, और मुझे माँ की यौन शिक्षा भी याद आई तो डर से उबर के अपने आपको साफ किया।
उस जगह पर अभी भी जलन और दर्द था, पर रोहन की खुशी और अनमोल आनन्द के सामने वो कुछ भी नहीं था।

मैंने रोहन के लिंग की ओर देखा, उसमें भी खून लगा हुआ था तो मैंने उसे नेपकिन देते हुए साफ करने को कहा, उसने साफ किया, फिर जब मेरी नजर दुबारा उसके लिंग पर पड़ी तो मुझे फिर से खून दिखा, मुझे लगा कि रोहन ने अच्छे से साफ नहीं किया है तो मैंने अपने हाथों से उसके लिंग को साफ किया, पर मेरे साफ करने के कुछ ही देर बाद मुझे फिर खून दिखा, तब समझ आया कि उसके लिंग का ऊपरी मांस जो सुपारे को ढकता है, वो कट गया था, मतलब आज रोहन की भी सील टूटी थी.
मैं खुश थी कि मुझे सील पैक लंड मिला है, पर उसके लिंग से खून बहता देख कर मुझे चिंता होने लगी, और मैं अपने गुदा का खून बहना भूल गई।

मैंने रोहन की तरफ देखकर बड़े प्यार से पूछा- रोहन, तुम्हें भी दर्द और जलन हो रहा है क्या?
रोहन ने मुस्कुराते हुए कहा- थोड़ा-थोड़ा..!
फिर वह उठ कर एक मग्गे में साफ पानी लाया और उसमें कपड़े को भीगो कर मेरे गुदाद्वार और अपने लिंग को साफ किया और बोरो प्लस लगाया. अब तक खून का बहना लगभग रुक सा गया था।

फिर हम दोनों ने अपने अंदरूनी वस्त्र धारण कर लिये और साथ में चिपक कर लेटे रहे।

हम दोनों को ऐसी ही हालत में कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला.

फिर लगभग दो घंटे बाद हमारी नींद खुली हमें भूख लग रही थी, हमने पहले अपने-अपने कपड़े पहने, दर्द और जलन अभी भी था पर बहुत कम था।

फिर हमने साथ मिलकर मैगी बनाई और साथ-साथ ही एक ही प्लेट में खाये।

अब मेरे घर जाने का वक्त आ रहा था, पर जाने का मन नहीं था, फिर हमने लिपट-चिपट के कई बार एक दूसरे को चूमा चाटा सहलाया और साथ निभाने और जल्दी मिलने का वादा किया और लगभग आधे घंटे के इस चूमा चाटी और लिपटा-चिपटी वाले प्यार के बाद मैं घर लौट आई।

घर आकर मैंने माँ से नजरे बचाते हुए अपना समय काटा।

कहानी जारी रहेगी…
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